रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी, अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद वेनेजुएला से कच्चे तेल का आयात कर रहे हैं. जनवरी 2019 में अमेरिका ने वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगाया था. ऐसा लगता है कि प्रभावशाली लॉबिस्ट ब्रायन बल्लार्ड को लॉबिंग के लिए नियुक्त करने से अंबानी पर अमेरिकी प्रतिबंधों का असर नहीं पड़ रहा है. बल्लार्ड अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के नजदीकी सहयोगी और पुराने मित्र माने जाते हैं. 2016 में जब ट्रम्प राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे थे, तब बल्लार्ड उनके सबसे बड़े फंडरेजरों में से एक थे. सर्वजनिक तौर पर उपलब्ध भारतीय वाणिज्य एवं अद्योग मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 में लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से रिलायंस ने वेनेजुएला की कंपनी से कम से कम 10 मिलयन मीट्रिक टन यानी 77 मिलयन बैरल से अधिक कच्चा तेल आयात किया है जिसका मूल्य 3.75 बिलियन डॉलर के बराबर है.
ऐसा संभव है कि रिलायंस को इसलिए इस काम के परिणाम झेलने नहीं पड़े क्योंकि अंबानी ने एवरशेड्स सदरलैंड और बल्लार्ड पार्टनर्स को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमेटिड और उसकी अमेरिकी सहायक कंपनी आरआईएल यूएसए के लिए लॉबी का काम सौंपा है. अप्रैल 2018 में प्रकाशित एक प्रोफाइल में समाचार पत्रिका पॉलिटिको ने बल्लार्ड को “ट्रम्प के वॉशिंगटन में सबसे ताकतवर लॉबिस्ट” बताया था. उसमें लिखा था कि बल्लार्ड ट्रम्प को 30 साल से भी ज्यादा वक्त से जानते हैं और आज भी वह “राष्ट्रपति पद के उनके दूसरे चुनाव अभियान के लिए करोड़ों डॉलर जुटा रहे हैं.” इन दो कंपनियों द्वारा दी गई सार्वजनिक जानकारियों के मुताबिक अंबानी ने दोनों कंपनियों को अमेरिका के विदेश और वित्त विभागों, ह्वाइट हाउस और सिनेट के साथ ऊर्जा, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और प्रतिबंधों के मामलों में लॉबी करने के लिए नियुक्त किया है. रिलायंस ने दोनों कंपनियों को कुल 775000 डॉलर भुगतान किया है जिसमें से 330000 डॉलर बल्लार्ड पार्टनर्स को और 445000 डॉलर एवरशेड्स सदरलैंड को दिए गए हैं.
2019 की जनवरी के आखिर में ट्रम्प ने वेनेजुएला की सार्वजनिक कंपनी पेट्रोलिओस डी वेनेजुएला (पीडीवीएसए) पर प्रतिबंध लगा दिया था. ट्रम्प प्रशासन ने यह प्रतिबंध उस वक्त लगाया था जब वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलास मादुरो दूसरी बार देश के राष्ट्रपति बने थे और चुनावों में धांधली होने के आरोप लगाए जा रहे थे. उस महीने मादुरो के प्रतिपक्षी जुआन ग्वाइदो ने स्वयं को देश का अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर लिया था. ट्रम्प का प्रतिबंध लगाना मादुरो पर दबाव डालने के अमेरिकी प्रशासन के प्रयासों का हिस्सा था. प्रतिबंधों ने अमेरिका के सभी व्यक्तियों और कंपनियों को पीडीवीएसए के साथ काम करने से रोक दिया. साथ ही यह प्रतिबंध उन गैर-अमेरिकी कंपनियों पर भी लागू था जिनसे कोई अमेरिकी नागरिक या अन्य कोई नेक्सेस जुड़ा है. इसमें अमेरिकी डॉलर में कारोबर करना या अमेरिकी वित्तीय प्रणाली का इस्तेमाल करना भी शामिल था. इससे रिलायंस जैसी भारतीय कंपनियों पर असर पड़ सकता था. अमेरिका ने ऐसी सभी कंपनियों को वेनेजुएला की कंपनी के साथ अपना हिसाब-किताब पूरा करने के लिए 28 अप्रैल तक 90 दिनों का समय दिया था. लेकिन रिलायंस और नायरा एनर्जी इस अवधि के बाद भी कच्चे तेल का आयात करती रहीं.
गुजरात में रिलायंस के दो बंदरगाह हैं : सिक्का और सेज जामनगर. साथ ही यह दुनिया की सबसे बड़े रिफायनरी परिसर की मालिक भी है जो प्रतिदिन एक मिलियन बैरल से ज्यादा तेल का प्रसंस्करण करती है. नायरा पर पहले एस्सार ऑयल का स्वामित्व था जिसे 2017 में रूस की सार्वजनिक कंपनी रोसनेफ्ट ऑयल कंपनी ने अधिग्रहित कर लिया. नायरा अब गुजरात के वादिनार से संचालित देश की दूसरी सबसे बड़ी रिफायनरी है जहां उसका बंदरगाह है जिससे वह वेनेजुएला से कच्चा तेल आयात करती है. प्रतिबंध लग जाने के बाद खबरें आई थीं कि रोसनेफ्ट के जरिए वेनेजुएला की कंपनी तेल निर्यात कर रही है. रूस की इस कंपनी का दावा है कि वह प्रतिबंधों का उल्लंघन किए बिना तेल आयात कर रही है क्योंकि आयातित तेल वेनेजुएला की कंपनी पर पूर्व के कर्ज के एवज में लिया जा रहा है. 18 अप्रैल को समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी थी कि वेनेजुएला की कंपनी ने रिलायंस समेत अपने ग्रहकों से प्रतिबंधों से बचने के लिए रोसनेफ्ट की व्यापार इकाई के जरिए उसका तेल खरीदने को कहा था.
दो दिन बाद रिलायंस ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपनी स्थिति स्पष्ट की. विज्ञप्ति में कहा गया था, “रिलायंस प्रतिबंधों के पहले से ही रोसनेफ्ट जैसी कंपनियों के जरिए कच्चा तेल वेनेजुएला की कंपनी से खरीद रही है क्योंकि पिछले कर्ज के एवज में ये कंपनियां वेनेजुएला की कंपनी से तेल खरीद सकती हैं.” उसने यह भी बताया, “जब से प्रतिबंध लगाए गए हैं, रिलायंस ने ऐसी खरीदारी अमेरिकी विदेश विभाग की पूर्ण जानकारी और स्वीकृति से की है और रिलायंस ने विदेश विभाग को लेनदेन और खरीद की मात्रा की जानकारी दी है. उसके इन लेनदेनों से वेनेजुएला की कंपनी को किसी तरह का भुगतान नहीं होता और ये अमेरिकी प्रतिबंधों या नीतियों का उल्लंघन नहीं करते.”
रिलायंस ने इस बात का खंडन नहीं किया कि वह पीडीवीएसए से कच्चा तेल आयात कर रही है बल्कि उसने सिर्फ यह कहा कि वह अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं कर रही है. अमेरिका की चेवरॉन कॉरपोरेशन जैसी तेल कंपनियां को प्रतिबंधों से छूट मिली है, लेकिन रिलायंस ऐसी छूटों के बिना ही तेल आयात कर रही है. सितंबर 2012 में रिलायंस ने वेनेजुएला की कंपनी से 4 लाख बैरल कच्चा तेल प्रतिदिन आयात करने का 15 साल का अनुबंध किया था और इसलिए अमेरिका सरकार में लॉबी करने के लिए उसके द्वारा नियुक्त किए गए संसाधनों को समझा जा सकता है.
ट्रम्प के प्रतिबंधों के दो महीनों से भी कम समय बाद में रिलायंस ने भारत और अमेरिका के अपने संस्थानों के लिए लॉबिंग करने वाली दो कंपनियों को नियुक्त किया. अमेरिकी कानूनों के तहत लॉबिंग करने वाली कंपनियों के लिए अपने ग्रहकों, अपने लॉबिस्टों और जिन मामलों के लिए वे लॉबिंग कर रही हैं, उन्हें बताना जरूरी है. 15 फरवरी 2019 को एवरशेड्स सदरलैंड ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमेटिड को अपने ग्राहक के बतौर दर्ज किया और वर्जीनिया फॉल्क और जेकब ड्विक को अमेरिकी प्रतिबंधों के मामले में लॉबिस्ट नियुक्त किया. इसके बाद वाली तिमाही की फाइलिंगों में, जो ऑनलाइन उपलब्ध हैं, लॉबिंग के मामलों की पहचान “अमेरिकी व्यापार प्रतिबंध नीतियां” के रूप में की गई है. कंपनी की बेबसाइट के मुताबिक जेकब ड्विक वकील हैं और उनके पास ऊर्जा, तेल और गैस, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं प्रतिबंधों के साथ प्रतिबंधों को लागू करने और नजर रखने वाले विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय का अनुभव है.
1 मार्च को बल्लार्ड पार्टनर्स ने अपने नए ग्राहक के रूप में आरआईएल यूएसए को दर्ज किया. इसके लिए ब्रायन बल्लार्ड और सिलवेस्टर लूकिस को “ऊर्जा और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मामलों” के लिए लॉबिस्ट नियुक्त किया गया. तिमाही फाइलिंगों में उस सरकारी संस्था का भी नाम है जिससे ये लॉबिस्ट संपर्क करेंगे. एवरशेड्स सदरलैंड लगातार अमेरिका के विदेश मंत्रालय के साथ संपर्क कर रही थी और बल्लार्ड पार्टनर्स अमेरीका के वित्त विभाग, ह्वाइट हाउस कार्यालय और अमेरिकी सिनेट के साथ लॉबी कर रही थी. नायरा एनर्जी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रवक्ता ने मेरे ईमेल और फोन कॉल का जवाब नहीं दिया, जिस वजह से यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि उसने लॉबिस्टों से काम लिया या नहीं.
जिन लॉबिस्टों को आरआईएल यूएसए ने लगाया था वे नामचीन लोग हैं. बल्लार्ड कंपनी के अध्यक्ष हैं और लूकिस उस कंपनी के मैनेजिंग पार्टनर हैं. पॉलिटिको की प्रोफाइल के अनुसार बल्लार्ड 2016 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान ट्रम्प के सबसे बड़े फंडरेजरों में से थे और सूसी विलिस बल्लार्ड के सबसे बड़े सहयोगियों में से एक थे जिन्होंने फ्लोरिडा में ट्रम्प के लिए अभियान चलाया था और राष्ट्र का सबसे बड़ा स्विंग राज्य राष्ट्रपति के नाम करवाया था. बतौर ट्रम्प के शीर्ष फंडरेजर, बल्लार्ड 2016 में राष्ट्रपति के कैंपेन के वित्त चैयरमैन स्टीविन म्यूचिन के करीब आ गए थे. म्यूचिन फिलहाल वित्त सचिव हैं. 2017 की डेली बिस्ट की एक रिपोर्ट में फ्लोरिडा पॉलिटिक्स नाम की वेबसाइट के प्रकाशक पीटर स्कोर्च के हवाले से कहा गया था कि “राज्य में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली कंपनी खड़ी करने वाले बल्लार्ड आज भी एक असल सिपहसालार की तरह आगे से कमान संभालते हैं.” बल्लार्ड ने ट्रम्प की संक्रमण टीम के सदस्य के रूप में भी काम किया और उनकी अभिषेक समिति के उपाध्यक्ष भी रहे. उस टीम का गठन राष्ट्रपति के अभिषेक कार्यक्रम से संबंधित गतिविधियों के लिए राष्ट्रपति ने किया था.
फरवरी 2017 में ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के कुछ ही दिनों बाद बल्लार्ड ने वॉशिंगटन डीसी में अपना कार्यालय खोला लिया जो ह्वाइट हाउस से केवल तीन बॉल्कों की दूरी पर है. बल्लार्ड की कंपनी ने फ्लोरिडा के पूर्व डेमोक्रेटिक पार्टी के कांग्रेसमैन रॉबर्ट वैक्सलर, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिटंन के कार्यकाल में असिस्टेंट सचिव रहे जैम्स रुबिन, ह्वाइट हाउस के पूर्व प्रेस सचिव राज शाह और पूर्व अटर्नी जनरल पाम बोंडी सहित कई नामचीन लोगों को लॉबिस्ट नियुक्त किया है. हाल में ट्रम्प के खिलाफ चले सिनेट के महाभियोग में बोंडी ने ट्रम्प का बचाव किया था. रिपोर्ट में बताया गया है कि बल्लार्ड की कंपनी बड़े ग्राहकों के लिए काम करती है. उसके ग्राहकों में अमेजन और उबर जैसे बड़े कारपोरेट और रेसेप तैयप एर्दोगन की टर्की सरकार और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के निर्वासित विपक्षी नेता मोसे कातुंबी जैसे लोग शामिल हैं.
एशिया के पहले और दुनिया के नौवें सबसे अमीर व्यक्ति अंबानी ने दोनों कंपनियों को काफी पैसा दिया है. प्रतिबंधों के बाद पहली तिमाही में, जनवरी से मार्च 2019 तक, आरआईएल ने एवरशेड्स सदरलैंड को 140000 डॉलर का भुगतान किया और आरआईएल यूएसए ने बल्लार्ड पार्टनर्स को 100000 डॉलर का भुगतान किया. अगली तिमाही में आरआईएल ने 120000 डॉलर का भुगतान किया और आरआईएल यूएसए ने 30000 डॉलर का भुगतान किया. अगली दो तिमाहियों में, एवरशेड्स सदरलैंड को क्रमशः 110000 डॉलर और 75000 डॉलर मिले और बल्लार्ड पार्टनर्स को 100000 डॉलर का दो बार भुगतान किया गया. चार तिमाहियों में, अंबानी ने बल्लार्ड पार्टनर्स को 330000 डॉलर और एवरशेड्स सदरलैंड को 445000 डॉलर का भुगतान किया.
जाहिर तौर पर भारी मात्रा में इस तरह खर्च करने के पीछे अंबानी की कोशिश यही है कि रिलायंस वेनेजुएला से अपने कच्चे तेल के आयात को बनाए रखते हुए प्रतिबंधों से बचा रहे. वेनेजुएला का कच्चा तेल अन्य देश के तेल की तुलना में कम ग्रेड का होता है और आमतौर पर इसे उच्च गुणवत्ता के तेल के साथ मिलाकर प्रसंस्कृत किया जाता है. नतीजतन, यह औसत कच्चे तेल की कीमत से सस्ता पड़ता है क्योंकि इसके लिए एक ऐसी रिफाइनरी की जरूरत होती है जो कोकर तकनीक के जरिए वेनेजुएला के कठोर और भारी कच्चे तेल को प्रसंस्कृत कर सके. इस तरह की रिफाइनरी कुछ ही कंपनियों के पास है, जिनमें आरआईएल और नायरा भी हैं. वास्तव में, प्रतिबंधों के लागू होने के बाद, रिलायंस ने पीडीवीएसए से तेल उन दरों पर खरीदा, जो मौजूदा औसत कच्चे तेल की कीमत की तुलना में 9 से 32 प्रतिशत तक सस्ता था.
इसके अलावा, रिलायंस के पास अमेरिका में पर्याप्त संपत्ति और कई सहायक कंपनियां हैं, जिनमें से कई तेल और गैस की खोज तथा उत्पादन का काम कर रही हैं. उदाहरण के लिए, आरआईएल यूएसए की होल्डिंग कंपनी, रिलायंस होल्डिंग्स यूएसए, कई शेल तेल और गैस क्षेत्र की मालिक है. दोनों कंपनियों ने मिलकर एक हजार करोड़ से अधिक का राजस्व अर्जित किया है. नतीजतन, रिलायंस न तो अमेरिकी सरकार द्वारा लगाए प्रतिबंध को झेल कर देश में अपनी भारी संपत्ति की संभावित जब्ती का सामना कर सकती है और न ही वेनेजुएला से कच्चे तेल के आयात को बंद करने का जोखिम उठा सकती है क्योंकि अधिक महंगा तेल होने से उसके लाभ पर असर पड़ेगा.
बल्लार्ड पार्टनर्स, ब्रायन बल्लार्ड, एवरशेड्स सदरलैंड और जेकब ड्विक ने इस बारे में भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया. परिणामस्वरूप, उनकी लॉबिंग के उनके प्रयासों का सही विवरण ज्ञात नहीं है. हालांकि, अमेरिका के विदेश और वित्त विभागों के प्रवक्ता यह बताने में असमर्थ थे कि दोनों कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई. वास्तव में, उन्होंने अभी तक यह भी तय नहीं किया है कि क्या कार्रवाई की भी जा सकती है. वेनेजुएला से भारत में कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंधों के संबंध में सीधे-सीधे पूछे गए सवालों का जवाब देने में अधिकारी लगभग असमंजस की स्थिति में दिखाई दिए. वह गेंद को एक-दूसरे के पाले में डालते नजर आए या उन्होंने जवाब देने से ही मना कर दिया.
इस बीच, अक्टूबर 2019 में रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट में बताया था कि रिलायंस सीधे पीडीवीएसए से कच्चे तेल का आयात करने जा रही है. दो महीने पहले, वेनेजुएला सरकार की "भौतिक रूप से सहायता" करने की स्थिति में अमेरिका ने विदेशी कंपनियों को दंडात्मक कार्रवाई की धमकी दी थी, लेकिन वह धमकी रिलायंस के फैसले को प्रभावित करती नजर नहीं आती. रिलायंस इंडस्ट्रीज के एक प्रवक्ता ने मुझसे इसकी पुष्टि की. उस महीने एक ईमेल की प्रतिक्रिया में, प्रवक्ता ने लिखा था, “आरआईएल वेनेजुएला को डीजल जैसे मंजूर उत्पादों की आपूर्ति कर रही है और इसलिए कच्चे तेल का आयात शुरू करने की स्थिति में है. यह अमेरिकी प्रतिबंधों के अनुरूप हैं क्योंकि मंजूर उत्पादों की आपूर्ति के एवज में कच्चे तेल के आयात की अनुमति है."
यह स्पष्ट नहीं है कि रिलायंस कि प्रतिबंधों में कच्चे तेल के लिए डीजल के कारोबार की छूट है या नहीं लेकिन हाल के घटनाक्रम से पता चलता है कि ट्रम्प प्रशासन ने इस पर नाराजगी जताई है. इस साल फरवरी की शुरुआत में, ग्वाइदो की वाशिंगटन डीसी की यात्रा के दौरान, रॉयटर्स की रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिकी सरकार के एक "वरिष्ठ प्रशासन अधिकारी" ने रिलायंस और अन्य कंपनियों को वेनेजुएला से कच्चे तेल के आयात के खिलाफ चेतावनी दी थी. अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया था कि '' मादुरो पर दबाव बनाने के लिए सभी तरह के विकल्प खुले हैं फिर चाहे वे रूसी या अन्य संस्थाएं ही क्यों न हों जो मादुरो का समर्थन कर रही हैं. फिर चाहे वह रोसनेफ्ट, रिलायंस, रेपसोल या चेवरॉन ही क्यों न हो, यहां संयुक्त राज्य अमेरिका में, मैं वेनेजुएला में उनकी गतिविधियों के प्रति सतर्क रहना चाहूंग, जो सीधे या परोक्ष रूप से, मादुरो की तानाशाही का समर्थन कर रही हैं ... क्योंकि हमने अत्यधिक दबाव बनाने के अपने अभियान में आधी दूरी तय की है.”
बाद के एक ईमेल में रिलायंस के प्रवक्ता ने दोहराया कि यह प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं है. प्रवक्ता ने कहा, "रिलायंस की वेनेजुएला के कच्चे तेल की खरीद की सूचना अमेरिकी सरकार को है और उसके द्वारा अनुमोदित है. हम वेनेजुएला के संबंध में अमेरिकी सरकार के अधिकारियों के साथ लगातार संवाद कर रहे हैं और उन्हें लगातार हमारे कार्यों से अवगत कराते रहते हैं. रिलायंस वेनेजुएला में कोई तेल क्षेत्र साझा नहीं कर रही है और न ही वह तीसरे पक्ष को तेल बेचने के लिए मध्यस्थ के रूप में काम करती है. रिलायंस द्वारा आयातित वेनेजुएला का सारा कच्चा तेल केवल रिलायंस की रिफाइनरियों में प्रसंस्करण के लिए है. वेनेजुएला को प्रभावित करने वाली अमेरिकी प्रतिबंध नीतियों के अनुपालन में रिलायंस हमेशा आगे रहेगा.”
रिलायंस की स्पष्ट धारणा के बावजूद कि उसने अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं किया, प्रतिबंधों को तैयार और परिभाषित करने वाला अमेरिकी वित्त विभाग मुझे स्पष्ट जवाब नहीं दे सका. 2 जुलाई 2019 को, वित्त विभाग में सार्वजनिक मामलों के उप सहायक सचिव पेट्रीसिया मैक्लॉघलिन ने मुझे एक ईमेल के जवाब में लिखा था "जो लोग पीडीवीएसए की भौतिक रूप से सहायता करते हैं, उन पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं." लेकिन रिलायंस की पीडीवीएसए से कच्चे तेल के आयात को फिर से शुरू करने के अपने फैसले की घोषणा के बाद जब मैंने उन्हें फिर ईमेल किया, तो मैक्लॉघलिन ने जवाब नहीं दिया कि क्या इसे भौतिक सहयोग की तरह माना जाएगा. "वित्त विभाग आमतौर पर विशिष्ट व्यक्तिगत मामलों में प्रतिबंधों के निहितार्थ पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी नहीं करता है, क्योंकि प्रत्येक मामला उससे संबंधित तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित होता है," उन्होंने लिखा.
वित्त विभाग के अधिकारियों को भेजे गए अपने ईमेल में मैंने पूछा था कि क्या वेनेजुएला के कच्चे तेल के आयात से संबंधित मुद्दे पर रिलायंस ने लॉबिंग की है, और क्या बाहरी प्रभाव के कारण यह स्वीकार नहीं किया जा रहा कि कार्रवाई प्रतिबंधित है या नहीं? 11 जनवरी 2020 को वित्त विभाग में सार्वजनिक मामलों के प्रमुख उप सहायक सचिव और प्रवक्ता डेविन ओमाली ने मुझे लिखा : "मैंने वित्त से पूछे गए आपके प्रश्न देखे और मैं इस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार करता हूं.” मैक्लाघलिन ने भी आगे के ईमेल का जवाब नहीं दिया.
अपने एक ईमेल में, मैक्लॉघलिन ने लिखा, "हम आपको अतिरिक्त जानकारी के लिए विदेश मंत्रालय से संपर्क करने की सलाह देते हैं." लेकिन रिलायंस के कार्यों की वैधता के बारे में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारी और प्रवक्ता समान रूप से हीला हवाली करते रहे. 18 अक्टूबर को भेजे गए ईमेल के जवाब में, एक प्रवक्ता ने मुझे लिखा, “प्रशासन वेनेजुएला के प्रतिबंधों के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है. हम अपने देश की संवैधानिक व्यवस्था और लोकतंत्र बहाल करने की चाहत रखने वाले वेनेजुएला के अंतरिम राष्ट्रपति ग्वाइदो, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेशनल असेंबली और लोगों का समर्थन करने के लिए क्षेत्र और दुनिया भर में अपने लोकतांत्रिक भागीदारों के साथ काम करना जारी रखे हुए हैं." आरआईएल और नायरा एनर्जी द्वारा वेनेजुएला से कच्चे तेल के आयात का जिक्र करते हुए प्रवक्ता ने कहा कि विदेश मंत्रालय "औपचारिक रूप से यह निर्धारित करने में असक्षम है कि विशिष्ट कार्य प्रतिबंधित हैं या नहीं." प्रतिक्रिया में आगे कहा गया है, "हम औपचारिक रूप से तय हुए बिना इस बात पर टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं कि विशिष्ट कार्रवाई मान्य है या नहीं."
मैंने अमेरिकी विदेश मंत्रालय से पूछा कि क्या विदेश विभाग पर लॉबिस्टों के प्रभाव के कारण रिलायंस प्रतिबंधों से बचा हुआ है? विदेश विभाग के प्रवक्ता ने जवाब देने से इनकार कर दिया और विदेश विभाग के मुख्य प्रवक्ता मॉर्गन ऑर्टैगस ने भी ईमेल का जवाब नहीं दिया. ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग, अक्टूबर में मुझे लिखने वाले प्रवक्ता ने जैसा बताया था, अभी तक "औपचारिक रूप से तय" नहीं कर पाया है कि क्या रिलायंस और नायरा द्वारा वेनेजुएला से भारत में कच्चे तेल का आयात "स्वीकार्य" है. इस संबंध में ह्वाइट हाउस को भेजे गए ईमेल का अब तक कोई जवाब नहीं मिला है. फरवरी के अंत में, ह्वाइट हाउस के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि कार्यालय को मेरे ईमेल मिले थे, लेकिन उन्होंने कहा कि उनके पास उस समय मेरे सवालों के जवाब नहीं थे. ट्रम्प की प्रेस सचिव स्टेफनी ग्रीश्म ने फरवरी में कई बार भेजे गए ईमेलों और फोन कॉल का जवाब नहीं दिया.
दिलचस्प बात है कि भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने प्रतिबंधों का अनुपालन किया है और वह भी इस तथ्य के बावजूद कि सरकार की आधिकारिक स्थिति यह है कि भारत केवल संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को मानता है और उनका ही अनुपालन करता है, न कि किसी देश द्वारा एकतरफा लगाए गए प्रतिबंधों को. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मार्च 2018 में सार्वजनिक रूप से ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को अस्वीकार करने और उस देश के साथ संबंधों को जारी रखने की बात कही थी.
फिर भी सरकारी कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड और मित्तल समूह की संयुक्त स्वामित्व वाली एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी लिमिटेड कंपनी ने मई 2019 के बाद वेनेजुएला से कच्चे तेल के आयात को रोक दिया. इससे पहले, कंपनी गुजरात में मुंद्रा बंदरगाह से अपना कच्चा तेल प्राप्त करती थी और इसे पंजाब के भटिंडा में गुरु गोबिंद सिंह रिफाइनरी में प्रसंस्कृत करती थी. एचएमईएल की कारपोरेट संचार टीम के एक सदस्य ने पुष्टि की कि कंपनी ने वेनेजुएला से कच्चे तेल के आयात को रोक दिया था. लेकिन उन्होंने कोई ठोस विवरण देने से इनकार कर दिया. "एचएमईएल देश के कानूनों के अनुसार अपने सारे कच्चे तेल की खरीद करती है," उस सदस्य ने बताय. "नीतिगत तौर पर हम इसके विवरण या हमारी क्रूड सोर्सिंग रणनीति पर टिप्पणी नहीं करते हैं."
यह देखते हुए कि भारतीय नीति अमेरिकी प्रतिबंधों को मान्यता नहीं देती है, यह स्पष्ट नहीं है कि एचएमईएल ने अपने आयात को क्यों रोका. किसी भी राजनीतिक विचार के अलावा, यह निर्णय वित्तीय विवेक के साथ असंगत भी है. पता नहीं क्यों एचएमईएल ने सस्ते मूल्य के वेनेजुएला के कच्चे तेल का आयात बंद कर दिया जबकि यह उसके लिए फायदेमंद होता.
जबकि अमेरिकी विदेश और वित्त विभाग के अधिकारियों ने रिलायंस द्वारा वेनेजुएला से कच्चा तेल आयात करने के बारे में एक चुप्पी बनाए रखी है, उसने रोसनेफ्ट के खिलाफ अपनी लड़ाई में बहुत कुछ दांव पर लगा दिया है. 18 फरवरी को, ट्रम्प प्रशासन ने रोसनेफ्ट ट्रेडिंग के खिलाफ नए प्रतिबंधों की घोषणा की, जो रोसनेफ्ट तेल कंपनी की जिनेवा आधारित व्यापारिक सहायक कंपनी है. वेनेजुएला नीति के लिए अमेरिकी विदेश विभाग के विशेष दूत इलियट अब्राहम्स ने प्रतिबंधों का उल्लेख करते हुए कहा, "मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है और मुझे लगता है कि आप दुनिया भर की तेल क्षेत्र की कंपनियों को देखेंगे कि वे रोजनेफ्ट के साथ व्यापार करने से पीछे हट गई हैं." प्रेस वार्ता के दौरान, अब्राहम्स से पूछा गया कि "अवैध चैनलों" के माध्यम से भारत और चीन को वेनेजुएला का कितना तेल निर्यात किया गया. रिलायंस और नायरा पीडीवीएसए के दो सबसे बड़े ग्राहक हैं. उन्होंने जवाब दिया, “वेनेजुएला के तेल के दो सबसे बड़े ग्राहक भारत और चीन हैं और हम ग्राहकों के साथ वेनेजुएला के तेल निर्यात के संबंध में अमेरिकी नीति के बारे में सलाह देने के लिए बातचीत करेंगे."
फिलहाल यह देखा जाना बाकी है कि रिलायंस से अमेरिका क्या बातचीत करता है. लेकिन विदेश और वित्त विभागों की टालमटोल प्रतिक्रियाएं और ब्रायन बल्लार्ड के प्रभाव से संकेत जरूर मिलता है कि इसकी संभावना कम है कि निकट भविष्य में रिलायंस को रोसनेफ्ट जैसे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा.