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बड़ी संख्या में अयोध्या के साधु बीजेपी से नाराज हैं क्योंकि 2014 के लोक सभा चुनावों में वादा करने के बावजूद भी बीजेपी राम मंदिर निर्माण के काम में तेजी नहीं दिखा रही है. 23 अक्टूबर को साधुओं का गुस्सा अयोध्या की सड़कों पर दिखाई दिया. उस दिन विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व नेता प्रवीण तोगड़िया की अगुवाई में साधुओं ने विवादित बाबरी मस्जिद-राम जन्भूमि परिसर में घुसने की कोशिश करते हुए बैरिकेड तोड़े और पुलिस से भिड़ गए. वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने नाराज साधुओं को मनाने के लिए एक नया संगठन बनाया है.
इस संगठन का नाम श्री राम मंदिर निर्माण सहयोग मंच है जो 31 अक्टूबर को साधुओं की बड़ी सभा का आयोजन करने वाला है जिस का लक्ष्य संघ परिवार और स्थानीय धार्मिक नेताओं के बीच की दूरियों को कम करना है. आरएसएस के प्रचारक से साधु बने और अब मंच के राष्ट्रीय संयोजक महिराज ध्वज ने बताया, ‘‘संत सम्मेलन में एक हजार से अधिक साधु भाग लेंगे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह सम्मेलन सभी भ्रमों को दूर करेगा और अयोध्या में भव्य राम मंदिर निमार्ण का रास्ता खोलेगा.’’
पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट में चल रही बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई के साथ साथ मंदिर निर्माण के लिए समर्थन जुटाने के लिए इस मंच की स्थापना हुई. आरएसएस की संरचना में मंच को मुस्लिम जनता को हिन्दुत्व के घेरे के भीतर लाने वाले मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के अधीन रखा गया है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार हैं जो मंच के मुख्य संरक्षक भी हैं (कट्टर हिन्दू नेता असीमानंद ने कबूल किया था कि इंद्रेश कुमार और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का आशीर्वाद उन श्रृंख्लाबद्ध बम धमाकों के लिए मिला था जिसके आरोप में असीमानंद पर मुकदमा चल रहा था).
ध्वज मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक भी हैं, बताते हैं कि मंच ‘‘जनता का संगठन’’ है जिसे ‘‘समान सोच वाले संगठनों का समर्थन प्राप्त है.’’ उन्होंने कई समर्थक संगठनों ने नाम लिए- विश्व हिन्दू परिषद, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रीय एकता मंच, मसीह मित्र मंच, भारत तिब्बत सहयोग मंच, हिमालय परिवार, सनातन सभा, श्री जगन्नाथ सेवा समिति, राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच और भ्रष्टाचार मुक्ति आंदोलन. ये सभी आरएसएस के शाखा संगठन हैं.
मंच की यह पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में अयोध्या के साधुओं की नाराजगी ने राम जन्मभूमि आंदोलन के इस गढ़ में ही बीजेपी की रणनीति को कमजोर कर दिया है. इसके अलावा यह उस वक्त हो रहा है जब साधुओं को मोबलाइज करने वाले आरएसएस के उग्र संगठन विश्व हिंदू परिषद को बीजेपी की तरह अयोध्या में आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है.
अक्टूबर के आरंभ में नाराजगी उफान पर थी. राम मंदिर निर्माण के लिए केन्द्र में कानून पारित कराने की मांग करते हुए स्थानीय महंत परमहंस दास भूख हड़ताल पर बैठ गए. वीएचपी के दिल्ली स्थित मुख्यालय में 5 अक्टूबर हो हुई बैठक में साधुओं की उपस्थिति कम रहने का कारण भी यही नाराजगी थी. यहां तक कि अयोध्या के सबसे शक्तिशाली निर्वाणी अखाड़ा के महंत धरम दास भी दिल्ली की बैठक में नहीं गए.
अयोध्या में हो रहे जमीनी बदलाव ने बीजेपी को इतना डरा दिया है कि 7 अक्टूबर को परमहंस को जबरदस्ती लखनऊ ले जाकर अस्पताल में भर्ती कर दिया गया. छह दिनों बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महंत को मनाने के लिए अस्पताल में उनसे मुलाकात की. परमहंस ने मुझे बताया, ‘‘मुख्यमंत्री ने मेरा सम्मान किया और वचन दिया कि लोक सभा चुनावों की घोषणा से पहले राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो जाएगा.’’
वीएचपी को किनारे कर मंच की स्थापना आरएसएस की चालाकी है ताकि स्थानीय धार्मिक नेताओं के गुस्से को साधा जा सके. मंच का दावा है कि वह “जनता” की ओर से संचालित है और वह कोई संगठन नहीं है बल्कि एक मंच है जिसे अन्य संगठनों का समर्थन प्राप्त है. इसलिए नाराज साधुओं के साथ सौदेबाजी करने में इसके सफल होने की संभावना अधिक है.
राम मंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या के साधुओं से जुड़े रहने के बावजूद वीएचपी ने अपनी विश्वसनीयता बहुत हद तक खो दी है. यदि आरएसएस नाराज साधुओं को समझाने के लिए वीएचपी को आगे बढ़ाता तो शायद शत्रुता और बढ़ जाती. धरम दास जो वीएचपी की केन्द्रीय समिति -मार्गदर्शक मंडल- के प्रभावशाली सदस्य है वे भी इस बात को मानते हैं. उन्होंने मुझे बताया कि वीएचपी अयोध्या में इतना बदनाम हो चुका है कि वह स्थानीय धार्मिक नेताओं की जन सभा तक नहीं करा सका. 5 अक्टूबर की बैठक के संबंध में पिछली बातचीत में धरम दास ने बताया था कि वीएचपी के खिलाफ गुस्से की वजह से ही वह “अयोध्या में साधुओं की एक भी खुली बैठक नहीं करा सका” और उसे दिल्ली में बैठक करानी पड़ी.
यहां तक कि राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येन्द्र दास ने भी ऐसा ही दावा किया. “आरएसएस जानता है कि अयोध्या में वीएचपी ने अपनी पूरी विश्वसनीयता गुमा दी है इसलिए वह साधुओं को यह बताने के लिए कि मंदिर के प्रति वह प्रतिबद्ध है और बीजेपी की चुनावी उठापटक से उसका कोई लेना देना नहीं है, वह नए उपाय आजमा रहा है.
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