लॉकडाउन में स्थानीय प्रशासन के कामों में आरएसएस कैसे कर रहा हस्तक्षेप?

11 जुलाई 2020
कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मोहन रोड पर प्रवासी श्रमिकों को चाय वितरित कर​ते हुए. आरएसएस के अपने साहित्य के अनुसार, "सेवा" उन प्रमुख रणनीतियों में से एक है जिसे स्वयंसेवकों को समाज के साथ जुड़ने और संगठन की विचारधारा का समर्थन बनाने के लिए अपनाया जाना चाहिए. हिंदू राष्ट्र का गठन संघ के दर्शन का अंतिम उद्देश्य है.
प्रमोद अधिकारी
कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मोहन रोड पर प्रवासी श्रमिकों को चाय वितरित कर​ते हुए. आरएसएस के अपने साहित्य के अनुसार, "सेवा" उन प्रमुख रणनीतियों में से एक है जिसे स्वयंसेवकों को समाज के साथ जुड़ने और संगठन की विचारधारा का समर्थन बनाने के लिए अपनाया जाना चाहिए. हिंदू राष्ट्र का गठन संघ के दर्शन का अंतिम उद्देश्य है.
प्रमोद अधिकारी

28 मार्च की दोपहर को दिल्ली के आनंद विहार अंतरराज्यीय बस टर्मिनल (आईएसबीटी) पर इकट्ठा हजारों प्रवासियों की तस्वीरें और फुटेज समाचार चैनलों और सोशल-मीडिया पर छाई हुईं थीं. उस दिन कोरोनायरस महामारी के खिलाफ लागू देशव्यापी लॉकडाउन (तालाबंदी) का चौथा दिन था. जब ये तस्वीरें टीवी में चल रहीं थीं, उसी वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक राजबीर को दिल्ली संघ के मुख्यालय से फोन आया. राजबीर शकरपुर स्थि​त आरएसएस की पूर्वी दिल्ली जिला संगठन इकाई के प्रभारी राजबीर ने मुझे बताया कि उन्हें तुरंत ही सभी स्वयंसेवकों को जमा कर आनंद विहार आईएसबीटी में पुलिस की मदद के लिए भेजने का निर्देश मिला. राजबीर ने दावा किया कि खुद दिल्ली पुलिस ने आरएसएस से मदद मांगी थी. जब मैं राजबीर के दावों की पुष्टि करने के लिए दिल्ली पुलिस के पास पहुंचा, तो पूर्वी दिल्ली जिले के पुलिस उपायुक्त जसमीत सिंह ने मुझे बताया कि उन्होंने आरएसएस को सहायता के लिए फोन किया था और "उन्होंने हमारी बहुत मदद की."

कारवां ने लॉकडाउन के शुरू से आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों के राहत कार्य में हस्तक्षेप को ट्रैक किया. जांच 11 राज्यों में कम से कम दो दर्जन से अधिक आरएसएस सदस्यों के साथ व्यापक साक्षात्कार, सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध दस्तावेज और डेटा, आरएसएस पर हुए अकादमिक शोध, संगठन के अपने साहित्य और मीडिया रिपोर्टों पर आधारित है. एक ऐसे संगठन के तौर पर जिसे तीन बार प्र​तिबंधित किया गया हो (पहली बार 1948 में गांधी की हत्या के बाद, फिर 1975 में आपातकाल में दो साल के लिए और आखिरी बार 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद) कोविड-19 आपदा राहत में मदद करके सामाजिक स्वीकृति और प्रभाव प्राप्त करना आरएसएस की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है.

दिल्ली पुलिस द्वारा स्थानीय पुलिस के पूरक के तौर पर आरएसएस कैडर का उपयोग एक अकेली घटना नहीं थी. मैंने 11 राज्यों, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और केरल, के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राज्य और जिला-स्तरीय प्रतिनिधियों से बात की. पश्चिम बंगाल और केरल के सदस्यों को छोड़कर सभी ने कहा कि तालाबंदी शुरू होने के बाद से उनके राज्यों में जिला प्रशासन ने नियमित रूप से भोजन और राशन वितरण के लिए और चिकित्सा आपात स्थिति में मदद के लिए संघ से मदद मांगी है.

लॉकडाउन के पहले दो महीनों में कई समाचार रिपोर्टों में खबर आई कि आरएसएस के कैडरों ने लॉकडाउन लागू करने के स्थानीय प्रशासन और पुलिस के प्रयासों में मदद की. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्थानीय प्रशासन के सहयोग से आरएसएस ने राहत वितरण में भूमिका निभाई. कई बार स्थानीय प्रशासन ने आरएसएस की मदद लेने से सार्वजनिक रूप से इनकार किया.

24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की कि देशव्यापी तालाबंदी लागू की जाएगी. उन्होंने मजदूरी, भोजन और आवास सुरक्षा पर कोई आश्वासन नहीं दिया और आने वाले दिनों की अराजकता ने प्रमुख शहरों से प्रवासी मजदूरों को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया. राजबीर ने बताया कि दिल्ली पुलिस को बस स्टेशन पर जुटे प्रवासियों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए स्वयंसेवकों की "मदद" की आवश्यकता थी. "कम से कम 250 स्वयंसेवक मौके पर पहुंचे और सभी ने सावधानी के साथ भीड़ को नियंत्रित किया." उन्होंने कहा कि "पुलिस को यह मुश्किल लग रहा था" लेकिन उनके स्वयंसेवक अंततः स्थिति को नियंत्रण में लाने में कामयाब रहे.

सागर कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

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