आरएसएस के लिए "सेवा" भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का साधन

17 जुलाई 2020
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य 26 जनवरी 2001 को गुजरात के कच्छ में आए भूकंप से प्रभावित लोगों को राहत सामग्री वितरित करते हुए. भूकंप ने भुज शहर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस आर्काइव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य 26 जनवरी 2001 को गुजरात के कच्छ में आए भूकंप से प्रभावित लोगों को राहत सामग्री वितरित करते हुए. भूकंप ने भुज शहर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस आर्काइव

नोवेल कोरोनोवायरस महामारी से निपटने के लिए लगाए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के एक महीने बाद 26 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक मोहन भागवत ने "वर्तमान स्थिति और हमारी भूमिका" शीर्षक से एक भाषण दिया. यह भाषण संघ के यूट्यूब चैनल और फेसबुक लाइव पर लाइव स्ट्रीम किया गया. मुख्यधारा के कई समाचार चैनलों ने भी भागवत के 42 मिनट के भाषण का सीधा और पूरा प्रसारण किया. भाषण के दौरान आरएसएस के स्वयंसेवकों से देश में जारी लॉकडाउन में लोगों की "सेवा" करने का आग्रह किया.

भागवत ने कहा कि स्वयंसेवकों को जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए क्योंकि यह "उनके पवित्र समुदाय की सुरक्षा और उनके विकास के लिए है." उन्होंने कहा कि "इस सेवा का आधार" समुदाय के साथ "अपनेपन का भाव" होना चाहिए. दुनिया को जकड़ने वाले एक नैतिक संकट के बारे में बेतरतीब दार्शनिक सोच से भरा शुद्ध हिंदी ​में दिया गया भाषण आरएसएस के सदस्यों तक सीमित नहीं था. भागवत ने सभी नागरिकों को संबोधित करने और यह बताने की कोशिश की कि आरएसएस सेवा में विश्वास इसलिए करता है ताकि "समान विचारधारा वाले लोगों" को एकजुट किया जा सके. उन्होंने सुझाव दिया कि लोगों को कोविड-19 के संदर्भ में जीवन के एक नए तरीके को अपनाने के लिए कहने की प्रक्रिया "राष्ट्र के पुनर्निर्माण की एक चल रही प्रक्रिया का ही हिस्सा" है. भागवत ने पुनरुद्धार की उस दृष्टि को प्राप्त करने के लिए संभावित साधनों के रूप में "सेवा" की वकालत की.

रिपोर्टों की इस श्रृंखला में कारवां ने लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से आरएसएस के राहत हस्तक्षेपों को ट्रैक किया है. पहली रिपोर्ट में बताया गया था कि सेवा किस तरह की गई थी और आपदा के बाद या एक सामाजिक परियोजना के रूप में आरएसएस ने लोगों का दिल जीतने के लिए और उन्हें एक ऐसे संगठन का हमदर्द बनाने के लिए ​कपटपूर्ण ढंग से काम किया जो 95 साल के अपने इतिहास में तीन बार प्रतिबंधित हुआ. दूसरी रिपोर्ट में आरएसएस के साथ संबद्ध गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका की जांच की गई थी जिन्होंने चल रही महामारी के दौरान सरकारी संसाधनों और धन का उपयोग किया.

मैंने संघ के "सेवा" दर्शन, इसके विकास और संगठन के लिए कार्य करने के उद्देश्य को लेकर 11 राज्यों के दो दर्जन से अधिक आरएसएस प्रतिनिधियों का साक्षात्कार लिया. ये लोग संगठन की विभिन्न शाखाओं में राज्य और जिला-स्तरीय पदों पर हैं. इसके अलावा, कम से कम चार संघ प्रकाशन- दत्तोपंत ठेंगडी का तीसरा रास्ता, एमजी वैद्य का अंडरस्टैंडिंग आरएसएस, हरिश्चंद्र बर्थवाल की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : एक परिचय और भविष्य का भारत तथा राजनीतिक वैज्ञानिकों के साथ साक्षात्कार ने संगठन के "सेवा" के विचार को समझाने में मदद की. उसकी छवि को लेकर बनती इस धारणा ने आरएसएस के राजनीतिक और सांस्कृतिक लक्ष्य को भारतीय समाज को "हिंदू समाज" के साथ जोड़ कर देखने और ब्राह्मणवादी श्रेष्ठता बरकरार रखने में मदद की है. आरएसएस के वरिष्ठ सदस्यों ने मुझे बताया कि संघ ने 1970 के दशक में पहली बार दलित और आदिवासी समुदायों और निचली जातियों को हिंदू पंथ में लाने के लिए संगठन में "सेवा" को संस्थागत किया था. यह जाति-पदानुक्रम को बरकरार रखते हुए जनसमर्थन सुनिश्चित करने के लिए था.

अपनी स्थापना के बाद से आरएसएस ने दावा किया है कि वह "राष्ट्र का पुनर्निर्माण" कर रहा है. संघ के साहित्य के अनुसार, देश "पुनर्निर्माण" की स्थिति में है जो अंततः आरएसएस के मार्गदर्शन में "संगठित हिंदू समाज" के रूप में होगा. एक धार्मिक इकाई के बजाय, आरएसएस हिंदू शब्द को एक सभ्यतागत पहचान के रूप में देखता है जो हिंदू धर्म से उपजा है. आरएसएस के वरिष्ठ विचारक वैद्य के प्रति मोहन भागवत बढ़चढ़कर सम्मान भाव व्यक्त करते हैं और उन्हें संघ दार्शनिक जीवन का एक जीवित भंडार माना जाता है. वैद्य ने अपनी किताब अंडरस्टैंडिंग आरएसएस में स्पष्ट रूप से लिखा है कि “इस राष्ट्र का भाग्य और भविष्य हिंदुओं के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है.”

सागर कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

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