विधानसभा चुनावों में हार के बाद अर्धकुंभ की तैयारी में जुटा संघ

2019 के अर्धकंभ मेले में हजारों की संख्या में स्वयंसेवकों को तैनात करने की योजना है आरएसएस की. महेन्द्र पारिख/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में अगले माह होने वाले अर्धकुंभ मेले को राजनीतिक रूप देने की भारतीय जनता पार्टी की तैयारी के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) हिंदू धर्मावलंबियों के इस जमघट को हथियाने की गुपचुप तैयारी में जुट गया है ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के पक्ष में लहर बनाई जा सके. बीजेपी की पितृ संस्था आरएसएस अर्धकुंभ मेले में अपने हजारों स्वयंसेवकों को तैनात करने जा रहा है. अर्धकुंभ मेला प्रत्येक छह वर्ष में एक बार आयोजित होता है. आरएसएस से संबद्ध अधिकांश संगठनों को छह सप्ताह के इस आयोजन में भाग लेने को कहा गया है. यह मेला 14 जनवरी से शुरू होने जा रहा है.

वाराणसी उत्तर के आरएसएस के विभाग कार्यवाहक नंदलाल का कहना है कि अब तक यह तय नहीं है कि स्वयंसेवकों को संघ की वर्दी में तैनात किया जाएगा या सादे कपड़ों में लेकिन कुंभ मेले में आरएसएस के पहली बार प्रत्यक्ष हस्ताक्षेप करने के बारे में नंदलाल ने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया, “इस माह के अंत में आरएसएस का केंद्रीय नेतृत्व इस संबंध में निर्णय करेगा”.

वाराणसी उत्तर 25 क्षेत्रीय इकाइयों वाले काशी प्रांत का हिस्सा है. संघ परिवार ने सांगठनिक कार्य के लिए उत्तर प्रदेश को छह भागों में विभाजित किया है. काशी प्रांत की 25 इकाइयों को पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश के 18 जिलों से बनाया गया है जिनमें प्रयागराज, वाराणसी, जौनपुर, भदोही, बलिया और अन्य आसपास के क्षेत्र आते हैं.

प्रत्येक विभाग से कुंभ मेले में 600 से 700 स्वयंसेवकों को नियुक्त करने का निर्णय लिया गया है. इन लोगों को भीड़ प्रबंधन और परिवार या संबंधियों से बिछड़े लोगों की अलग अलग प्रकार से मदद करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. नंदलाल बताते हैं कि आरएसएस कार्यकर्ता वृद्ध लोगों के प्रति विशेष ध्यान देंगे. मेले में संघ की गतिविधियों में से एक है- कुंभ मेला क्षेत्र में नेत्र जांच कैंपों को लगाना जिनमें स्वयंसेवक एक लाख चश्में जरूरतमंद श्रद्धालुओं को दान करेंगे.”

इसके अलावा कुंभ मेले के दौरान आरएसएस के इतिहास से संबंधित एक नाटक का मंचन किया जाएगा. नाटक का नाम ‘संघम शरणम गच्छामि’ है जो बौद्ध प्रार्थना से लिया गया है. ऐसा नहीं लगता कि इस नाटक में उन घटनाओं का उल्लेख होगा जिन्हें आरएसएस छिपाता आया है.

इस तैयारी को बीजेपी के निरंतर कमजोर हो रहे जनाधार को, अर्धकुंभ मेले में राज्य प्रायोजित कार्यक्रमों के जरिए हिंदुओं को धुर्वीकरण कर, चुनावी रूप से महत्वपूर्ण इस प्रदेश में पुनः हासिल करना है.

लोक सभा की 545 सीटों में से 80 सीटें उत्तर प्रदेश में है. 2014 के आम चुनावों में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 71 सीटें जीती थीं जो उसकी कुल 282 सीटों का एक चौथाई से अधिक है. हालांकि बीजेपी ने जीत के अपने फॉर्म को मार्च 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों तक कायम रखा था लेकिन उसके बाद राज्य में हुए लोकसभा उपचुनावों में उसे हार का स्वाद चखना पड़ा. सबसे बड़ी चिंता की बात तो यह है कि मजबूत समझी जाने वाली गोरखपुर सीट भी पार्टी हार गई जहां 1991 से वह लगातार जीतती आई थी. हाल में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे तीन हिंदी पट्टी के राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिली हार ने पार्टी की चिंता को और बढ़ा दिया है.

असल में इन राज्यों में हार जाने के बाद बीजेपी अर्धकुंभ मेला को महाकुंभ बनाने का प्रयास कर रही हैं. कुंभ या महाकुंभ प्रत्येक 12 वर्ष में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, उत्तराखंड के हरिद्वार, महाराष्ट्र के नासिक और मध्य प्रदेश के उज्जैन में आयोजित होने वाले लोकप्रिय मेले हैं. प्रयागराज में अंतिम महाकुंभ 2013 में आयोजित हुआ था और अगला 2025 में होगा. अर्धकुंभ मेले दो महाकुंभों के बीच में आयोजित होते हैं. अब तक इन मेलों को बहुत अधिक मान्यता नहीं दी जाती थी लेकिन इस बार संघ परिवार ने केंद्र और यूपी सरकार के सहयोग से कुंभ के प्रतीक को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया है क्योंकि यह लोकसभा चुनावों के कुछ ही महीने पहले हो रहा है.

इसी कारण 16 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा पूजन किया था और अर्धकुंभ मेला के कमांड और नियंत्रण केंद्र का प्रयागराज में उद्घाटन किया था. इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ राज्य के सभी सरपंचों को आमंत्रण पत्र लिखने की योजना बना रहे हैं जिसमें वह लोगों से इस धार्मिक जमघट में बड़ी संख्या में भाग लेने का अनुरोध करेंगे. हिंदू श्रद्धालुओं को राज्य के विभिन्न हिस्सों से अर्धकुंभ मेले में लेकर आने का प्रबंध भी किया जा रहा है. सबसे अहम बात है कि आरएसएस, जो धार्मिक आयोजनों को राजनीतिक रूप देने के काम में खुद को नेपथ्य में रख विश्व हिंदू परिषद को आगे करता था, वह इस बार खुलकर सामने आ गया है. आरएसएस की संगठन संरचना में मध्यम स्तर के एक कार्यकर्ता ने मुझे बताया, “अगले लोकसभा चुनावों में संभावित हार के डर से आरएसएस ऐसा कर रहा है”.

1989 के इलाहाबाद कुंभ मेले में पहली बार धार्मिक जमघट को राजनीतिक अखाड़े में बदल दिया गया था और इसने राम जन्मभूमि आंदोलन को महत्वपूर्ण विस्तार दिया था. उस कुंभ में हिंदुत्व की राजनीति को अभूतपूर्व रूप से बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया था. उस वक्त यह काम बीएचपी की अगुवाई में हुआ था. आगे होने वाले ऐसे कार्यक्रमों में वीएचपी ही आगे रहा.

हालांकि जनवरी में प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) में होने वाले अर्धकुंभ मेला में साधुओं की धर्म संसद का आयोजन वीएचपी कर रही है लेकिन अब शायद ही इसे वीएचपी का कार्यक्रम माना जाएगा. आरएसएस स्वयंसेवकों की भारी उपस्थिति और उसका प्रत्यक्ष रूप से शामिल होना हिंदू साधुओं और धर्मावलंबियों के इस बड़े जमघट के पुराने चरित्र को पूरी तरह से बदल देगा.

Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute