मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं. पिछले 10 दिनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने राजनीतिक मोर्चे, भारतीय जनता पार्टी, के लिए प्रचार करने के उद्देश्य से राज्य भर में एक अनोखा सर्वे कराया है. इस सर्वे में मतदाताओं को उनके राजनीतिक झुकाव के अनुसार ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ श्रेणी में रखा गया है. संबंधित डाटा को बूथ स्तर पर संकलित किया गया है ताकि मतदाताओं को बीजेपी को वोट देने के लिए प्रेरित कर पार्टी के पक्ष में अत्याधिक परिणाम लाया जा सके.
धार जिले के जैतपुर गांव में इस सर्वे के इंचार्ज एवं आरएसएस कार्यकर्ता मृणाल डोराये ने मुझे बताया, “जो वोटर हमेशा से बीजेपी को वोट देते आए हैं उन्हें हमने ‘ए’ श्रेणी में रखा है और जो अपना चुनाव बदलते रहते हैं और अनौपचारिक स्तर अधिक समझाने की जरूरत है उन्हें ‘बी’ श्रेणी में रखा गया है”. उन्होंने आगे बताया, “कम्युनिष्ट विचारधारा वाले मतदाता या ऐसे मतदाता जिन्हें अपने पक्ष में नहीं किया जा सकता उन्हें ‘सी’ श्रेणी में रखा गया है.” वह बताते हैं, “क्योंकि ऐसे वोटरों पर अपना समय और ऊर्जा खर्च करना बेकार है इसलिए डाटा के जरिए ‘बी’ श्रेणी के वोटरों पर ध्यान देने में मदद मिलेगी.”
यह सर्वे आरएसएस की चुनावी रणनीति में बदलाव का संकेत है और उस पर मंडरा रहे हार के खतरे को दिखाता है. पहले संघ के बूथ स्तरीय कार्यकर्ता सभी तरह के वोटरों के बीच, प्रचार को इस प्रकार केन्द्रित किए बिना जाते थे.
संघ ने यह निर्णय 10 नवंबर को जारी किए गए कांग्रेस के घोषणापत्र के मद्देनजर लिया है. अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने आरएसएस पर निशाना साधते हुए, उसकी सरकार बनने पर सरकारी कर्मचारियों को संघ की शाखाओं में भाग लेने की अनुमति वाले आदेश को रद्द करने की घोषणा की है. कांग्रेस ने यह भी घोषणा की है कि राज्य में सरकार बनने पर वह सरकारी परिसरों में आरएसएस को शाखा लगाने नहीं देगी. धार जिले के तिरुपति नगर में संघ के चुनावी प्रयासों में शामिल आरएसएस के कार्यकर्ता ईश्वर दास वैष्णव बताते हैं, “सर्वे करने का निर्देश कांग्रेस की इस घोषणा के ठीक दूसरे दिन आया था.”
इस सर्वे में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को शामिल नहीं किया गया है. यह काम संघ कार्यकर्ता स्वयं कर रहे हैं. जिन निर्वाचन क्षेत्रों में आरएसएस कार्यकर्ताओं का मजबूत नेटवर्क है उन जगहों में सर्वे को व्यापक स्तर पर किया जा रहा है. वैष्णव बताते हैं, “संघ की बूथ स्तरीय समिति के प्रत्येक सदस्य को 20 से 25 घरों का जिम्मा दिया गया है और इन घरों को ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ श्रेणी में चिन्हित करने को कहा गया है”. वह कहते हैं, “सर्वे पूरा करने के लिए हम लोगों को 22 नवंबर तक का समय दिया गया था परंतु तिरुपति नगर के अधिकांश स्वयंसेवकों ने यह सर्वे इससे पहले ही पूरा कर लिया है.”
पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के एक वरिष्ठ संघ पदाधिकारी ने बताया कि इस सर्वे का उद्देश्य आरएसएस के नेटवर्क का अधिकतम प्रयोग कर कांग्रेस को पराजित करना है. नाम न बताने की शर्त पर आरएसएस के इस पदाधिकारी का कहना है, “मध्य प्रदेश मे आरएसएस को लगभग पूरी तरह से प्रतिबंधित करने वाली घोषणा से एक नए प्रकार की स्थिति का निर्माण हो गया है. कांग्रेस की जीत का मतलब न केवल एक राज्य का हाथ से जाना है बल्कि यह आरएसएस के लिए कठिन समय लाएगा. इसलिए हम लोगों के पास कांग्रेस को पराजित करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है.”
हालांकि मध्य प्रदेश में आरएसएस की जड़ें काफी मजबूत हैं, फिर भी कुछ महीनों से, राज्य की सत्ता में लंबे समय तक बने रहने और अन्य कारणों से वह थकी हुई सी दिखाई दे रही थी. लेकिन कांग्रेस के घोषणापत्र में प्रतिबंधों की बातों ने आरएसएस को इतना सक्रिय बना दिया है, मानो यह चुनाव उसके लिए करो या मरो वाला हो.
आरएसएस की इस नई रणनीति का बहुआयामी महत्व है. आरएसएस के लक्षित चुनाव प्रयासों में मदद करने के साथ साथ अगले वर्ष होने जा रहे लोक सभा चुनावों में वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए उपलब्ध डाटा का प्रयोग हो सकता है.
आरएसएस के पदाधिकारी बताते हैं, “बी श्रेणी के मतदाताओं से नियमित अंतक्रिया करने से हमें यह समझने का मौका मिलेगा कि हम लोग कितने वोटरों पर भरोसा कर सकते हैं. चूंकि ‘ए’ वोटर पहले से ही हमारे पक्ष में है, हमारे स्वयंसेवकों को ठीक ठाक अनुमान होगा कि उनको अपनी ऊर्जा किन विशिष्ठ व्यक्तियों पर केन्द्रित करनी है.”