19 दिसंबर को हमलोग सामूहिक रूप से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (एनआरसी) के खिलाफ लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे थे. कानूनी रूप से जब भी किसी राज्य में धारा 144 लगती है तो सरकार को इसकी सूचना वहां के अखबारों में देनी होती है. लेकिन सरकार ने ऐसी कोई सूचना नहीं दी थी.
सिविल नाफरमानी हमारा अधिकार है. सीएए के विरोध में हम लोग सड़क पर उतरे और शांति से प्रर्दशन करने लगे. अचानक ही वहां बहुत से लोग आ गए. उस समय मैं परिवर्तन चौक पर थी. यह चौक शहर के बिल्कुल बीचोंबीच है और उसके आस-पास कोई गली-मोहल्ला नहीं है. उस जगह बड़े-बड़े पत्थर और ईंटें पड़ी थीं. अगर किसी को वहां इतने बड़े-बड़े पत्थर लेकर आना होता, तो पुलिस की नजर से बचकर नहीं ला सकता था. वह भी जब धारा 144 लगी हुई हो. पुलिस का दावा है कि मेरे पास पांच ईंटें थी तो, सवाल यह है कि उस समय पुलिस क्या कर रही थी?
जहां हमलोग प्रदर्शन कर रहे थे वहां आचानक से पत्थरबाजी और आगजनी होने लगी. उस वक्त पुलिस मूकदर्शक बन बस देखती रही. उन्होंने पत्थरबाजों पर कोई कार्रवाई नहीं की. अपनी जान बचाने के लिए हमलोग वहां से दूसरी दिशा में भागे. लेकिन थोड़ी दूरी पर मैंने देखा कि एक मीडिया कर्मी को पत्थर लगा है. मैं उसको प्राथमिक सहायता देने लगी. मैं उसकी मदद कर रही थी, तभी हमलोगों को चारों तरफ से घेर लिया गया. दो तरफ से आगजनी हो रही थी और एक तरफ बैरिकेडिंग कर दी गई थी. हमलोग वहां पर एक आहाते में चले गए और वहां से मैं फेसबुक लाइव करने लगी. पुलिस उस समय भी सिर्फ तमाशा देख रही थी, टहल रही थी लेकिन कुछ कर नहीं रही थी. हम बार-बार कह रहे थे कि आप कुछ कर क्यों नहीं रहे हैं? आप पकड़ क्यों नहीं रहे हैं लोगों को? लेकिन उन्होंने हमारी बातों को अनसुना कर दिया. पुलिस कुछ कार्रवाई करना शुरू करती उससे पहले हमलोगों ने ही एक उपद्रवी को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया. उसके बाद वहां पर एक साथ बहुत सारे लोग आ गए और हिंसा करने लगे. सब-कुछ देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह एक राज्य प्रायोजित तमाशा है. वे सभी लोग एक जैसी यूनीफॉर्म में थे. सभी बलवाइयों ने गोल टोपी और काफिया पहन रखा था. (मुस्लिम लोग काफिया गले में पहनते हैं) उन सभी ने लगभग एक ही जैसे कपड़े पहने थे. सड़क पर दोनों तरफ से आगजनी हो रही थी और अचानक वह लोग सड़क पर बैठकर नमाज पढ़ने लगे. मैं भी एक मुसलमान हूं और जानती हूं कि ऐसी आगजनी में कोई नमाज नहीं पढ़ेगा और वह नमाज का वक्त भी नहीं था. उनका ऐसा करना बड़ी विचित्र बात थी, क्योंकि नमाज तो अपने वक्त पर ही होती है. वे सिर्फ यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि वे मुसलमान हैं. मुझे लगता है कि वह राज्य प्रायोजित एक हथकंडा था. जब चीजें बहुत बढ़ने लगीं तब मैं और मेरे साथ जो बाकी सामाजिक कार्यकर्ता थे सब घर जाने लगे, तब हमें पुलिस ने पीछे से दौड़ कर पकड़ लिया और कहा कि "अब तुमलोगों के कलेजे में ठंडक पड़ गई."
पुलिसवाले हमें पकड़ कर सड़क के किनारे ले जाने लगे. मैंने उनसे पूछा कि “मुझे क्यों ले जा रहे हो?” मैंने क्या किया है? उन्होंने कहा, "अभी बताते हैं क्या किया है, अभी बताते हैं कहां ले जा रहे है तुझे." उस वक्त तक मैं लाइव कर रही थी. फिर मुझे लगा कि ये लोग मेरा फोन तोड़ देंगे तो मैंने फोन बंद करके अंदर रख लिया. पुलिसवालों ने हमें चारों तरफ से घेर कर सर्कल बना लिया और हम पर लाठीचार्ज करने लगे. हम पांच-छह लोगों को पैरों पर लाठी मारते हुए पुलिस सड़क किनारे ले गई. उनके डंडे फाइबर के थे, वह इतनी बुरी तरह मार रहे थे कि मुझे लगा जैसे ये डंडे खाल पर ही चिपक जाएंगे. तभी मैंने देखा कि मेरे साथ जो दलित एक्टिविस्ट थे, उनका सिर फट गया है, उनके सिर पर चोट लगी थी. बाकी साथियों के सिर पर भी चोटें आईं थी. कुछ पुलिसवालों ने मुझे जमीन पर बैठाने की कोशिश की, तो मैंने कहा कि "मैं नहीं बैठूंगी. मेरे पैरों में तकलीफ है." तभी एक मर्द पुलिसवाले ने मुझे इतना तेज थप्पड़ मारा कि मेरा चश्मा नीचे गिर गया.
हिंसा के दौरान हुई आगजनी में जिस एक महिला पुलिस की बाइक को आग के हवाले कर दिया गया था, उस महिला पुलिस को डंडा देकर कहा गया कि वह अपना बदला मुझसे ले. फिर वह महिला बहुत देर तक डंडे से मुझे पिटती रही. बिना महिला सिपाही के मुझे थाने लाया गया. 19 दिसंबर की वह रात इतनी भयंकर थी मुझे लग रहा था कि वह खत्म ही नहीं होगी. रात भर पुलिस लोगों को लाती रही और पीटती रही. मुझे थाने लाकर पहले बहुत मारा गया. जिस महिला सिपाही की बाइक जली थी उसने कहा, "मैं तेरा खून निकाल लूंगी. तुझे पता है कितनी महंगी आती है बाइक." यह कहकर वह मुझे जोर-जोर से तमाचे मारने लगी. मैंने अपने दोनों हाथों से अपने चहरे को छुपा लिया. उसने मेरे चेहरे और हाथों को अपने नाखूनों से नोंचा और मेरे बाल खींचने लगी. वह मुझे घसीटकर एक अलग कोने में ले गई और जैसे-जैसे महिला पुलिस अफसर आतीं, मुझे मारतीं और लगातार कहतीं, "तुम पाकिस्तानी हो." मेरा नाम सुनकर वह और ज्यादा भद्दी-भद्दी गालियां देने लगतीं. वे बोल रहीं थीं कि "तुम लोग यहां पर क्या कर रहे हो, पाकिस्तान जाओ."
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