सज्जाद लोन जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पार्टी के अध्यक्ष हैं. लोन के पिता अब्दुल गनी ने 1978 में पार्टी की स्थापना की थी. 2002 में संदिग्ध आतंकवादियों ने उस वक्त अब्दुल गनी की हत्या कर दी जब वह एक अन्य कश्मीरी नेता की स्मृति सभा में भाग ले रहे थे. लोन ने अपने पिता की मृत्यु के बाद पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की कमान संभाली. अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में लोन ने स्वतंत्र जम्मू और कश्मीर की वकालत की और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा थे. इन वर्षों में उन्होंने भारत समर्थक रुख अपनाना शुरू कर दिया. तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य में 2014 के विधानसभा चुनावों में लोन उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा निर्वाचन क्षेत्र से जीते. उनकी पार्टी बाद में भारतीय जनता पार्टी और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के गठबंधन में शामिल हो गई, जिसने राज्य में सरकार बनाई. लोन को बीजेपी-पीडीपी शासन में मंत्री नियुक्त किया गया. जून 2018 में यह सरकार गिर गई.
अगस्त 2019 में भारत सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के तहत कश्मीर को प्राप्त विशेषाधिकारों को खत्म कर दिया. राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया, क्षेत्र में सैन्यीकरण को तेज कर दिया और संचार ठप्प कर दिया. घोषणा से एक रात पहले लोन को कश्मीर के कई अन्य मुख्यधारा के नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. वह लगभग साल भर हिरासत में रहे. 2020 के अंत में कश्मीर में मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने एक छत्र समूह का गठन किया, जिसे पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) कहा जाता है, जिसकी मांगों में अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य का दर्जा शामिल हैं. लोन को पीएजीडी का प्रवक्ता नियुक्त किया गया और उन्होंने केंद्र सरकार के साथ कई चरणों में बातचीत की है.
इस साल जनवरी में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पीएजीडी से अलग हो गई. पीएजीडी के नेतृत्व को लिखे एक पत्र में लोन ने कश्मीर में हाल के जिला विकास परिषद चुनावों में सीटों के आवंटन को उनके बाहर होने का कारण बताया. उन्होंने कहा कि "कोई भी पार्टी बलिदान देने को तैयार नहीं है" और "हम कश्मीर प्रांत में एक-दूसरे के खिलाफ लड़े, 5 अगस्त के गुनाहगारों के खिलाफ नहीं." जून में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत के लिए लोन और पीएजीडी के सदस्यों सहित कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिक नेतृत्व को आमंत्रित किया. लोन कथित तौर पर केंद्र के निमंत्रण को स्वीकार करने वाले पहले व्यक्ति थे.
जुलाई में कारवां के मल्टीमीडिया रिपोर्टर शाहिद तांत्रे ने लोन से लंबी बातचीत की. उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ बैठक, कश्मीर में राजनीति को लेकर लोन के नजरिए और क्षेत्र के भविष्य पर चर्चा की.
शाहिद तांत्रे : आपने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. बैठक में क्या हुआ?
सज्जाद लोन : अंदर जो हुआ उस संबंध मैं आपको केवल इतना बता सकता हूं कि हम सब यहां से जम्मू-कश्मीर के लोगों के दुखों को बताने गए थे. हमने कश्मीर के बारे में बात की, हमने कश्मीरियों के बारे में बात की, हमने जम्मू-कश्मीर के बारे में बात की, हमने 5 अगस्त के बारे में बात की, हमने हर चीज पर बात की.
शाहिद तांत्रे : दिल्ली-कश्मीर का रिश्ता टूटा हुआ नजर आ रहा है. ऐसा है क्या?
सज्जाद लोन : रिश्ता निश्चित रूप से तनाव में है और यह समय-समय पर तनाव में रहा है. सरकारें आती हैं और जाती हैं, लोग आते हैं और चले जाते हैं लेकिन रिश्ते को मिटाया नहीं जा सकता. वे सरकारों और व्यक्तियों की तुलना में बहुत बड़े हैं. यह एक दौर है और यह भी बीत जाएगा. ऐसा मेरा मानना है.
शाहिद तांत्रे : दिल्ली अब क्या वादा कर रही है?
सज्जाद लोन : देखिए, आपके पास जो शक्ति है- भौतिक, सरकारी या प्रशासनिक शक्ति- उसके आधार पर आप किसी चीज को रोक सकते हैं. लेकिन 5 अगस्त को उन्होंने जो किया है उसका एक हिस्सा-अनुच्छेद 370 का हनन मैं उनसे वह वापस देने की उम्मीद नहीं करता हूं क्योंकि इसका मतलब होगा कि वे यहां से खत्म हो जाएंगे और कोई भी राजनीतिक दल आत्महत्या नहीं करना चाहेगा. उसके लिए मेरा मानना है कि हमें अदालत में जाने और भविष्य की तारीख का इंतजार करने की जरूरत है या किसी दिन एक उदार सरकार आने का इंतजार किया जाए जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को वह वापस दे दे जो उनका अधिकार है.
लेकिन जहां तक (राज्य का दर्जा हटाने) का सवाल है यह कभी भी उनकी विचारधारा का हिस्सा नहीं था. मुझे नहीं लगता कि भारत के लोग जम्मू-कश्मीर के लोगों के खिलाफ हैं या उनसे राज्य का दर्जा छीनने के पक्ष में हैं. और यह भलमनसाहत की बात नहीं है. यह भारत के लोगों के अधिकारों का मामला है जिसका हम हिस्सा हैं. यह कश्मीर के बारे में कम और भारत के बारे में ज्यादा है. यह संघवाद के बारे में है. जम्मू-कश्मीर में जो हुआ वह कल किसी और राज्य में कोई और सरकार कर सकती है. यह बहुत ही खतरनाक बात है. मुझे नहीं पता कि भारतीय जनता क्यों सो रही है जबकि संघवाद के खिलाफ ऐसी चुनौतियां खड़ी की जा रही हैं. यहां जो हुआ है उसे कहीं भी दोहराया जा सकता है. 1947 के बाद से किसी राज्य को कभी भी केंद्र शासित प्रदेश नहीं बनाया गया है. ऐसा नहीं हो सकता. यह अप्राकृतिक है और मुझे तो इसके कानून सम्मत होने पर भी शक है.
शाहिद तांत्रे : क्या आपने अपनी बैठकों में इस मुद्दे को उठाया?
सज्जाद लोन : जैसा कि मैंने आपको बताया है कि हमने हर चीज पर बात की. जो टीम वहां बैठी थी उसमें गृहमंत्री, प्रधानमंत्री, एलजी भी थे, जो आज जम्मू-कश्मीर में उनके प्रतिनिधि हैं. अगर हम उनसे यह नहीं कहते तो किससे कहते? मोदी तक बात पहुंचानी है. अगर जम्मू-कश्मीर राज्य को कोई कुछ दे सकता है, तो वह प्रधानमंत्री ही हैं.
लेकिन मुझे लगता है कि नेतृत्व की असली जिम्मेदारी तब शुरू होती है जब आप (कश्मीर में) वापस आते हैं. उनके लिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे आज कुछ दें, परसों दें या शायद एक साल बाद दें. इसलिए हमें उन्हें प्रोत्साहित करना होगा. हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जहां वे इसे राजनीतिक रूप से प्रतिकूल न समझें. अगर वे इसे शत्रुतापूर्ण पाते हैं - यही राजनीति है, तो वे चले जाएंगे और कहेंगे, "ठीक है एक साल बाद करते हैं." और इसकी कीमत कौन चुकाएगा? जम्मू-कश्मीर के लोग. इसलिए नेतृत्व के तौर पर अगर हमने कुछ भी बुरा भला कहा है, तो हमें उसे अपने तक ही रखना चाहिए. हम अपने घटकों को बाद में संबोधित कर सकते हैं. हम बाद में अपने वोट के लिए लड़ सकते हैं. लेकिन आज की तारीख में हमारी एकमात्र उम्मीद भारत के प्रधानमंत्री हैं. कोशिश करो और उन्हें विश्वास दिलाओ कि जल्द से जल्द ऐसा करना देश के हित में है, संघवाद के हित में है.
शाहिद तांत्रे : प्रधानमंत्री की क्या प्रतिक्रिया थी?
सज्जाद लोन : उन्होंने अंत में बात की, मुद्दा दर मुद्दा कोई प्रतिक्रिया जैसा कुछ नहीं था क्योंकि कई नेता थे. लेकिन मैंने प्रधानमंत्री में शत्रुता का भाव नहीं देखा. प्रधानमंत्री अपने ही लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं हो सकते.
शाहिद तांत्रे : क्या गृहमंत्री शत्रुतापूर्ण थे?
सज्जाद लोन : नहीं, बिल्कुल नहीं. भले ही आप किसी को पसंद नहीं करते हैं लेकिन सरकारें मेज के दूसरी तरफ बैठे अपने ही लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं हो सकतीं.
शाहिद तांत्रे : एक राजनेता के रूप में क्या आप वर्तमान केंद्र सरकार और पिछली सरकारों के बीच कोई अंतर देखते हैं?
सज्जाद लोन : बिल्कुल नहीं. कश्मीर को लेकर भारत के उदारवादियों और भारत के तथाकथित उदारवादियों का रवैया सौ फीसदी एक सा है. बस तरीका अलग है. वे बिल्कुल एक जैसे हैं और कश्मीरियों को यह समझना चाहिए. यह समझने के लिए काफी दिमाग लगाना होगा कि जब कश्मीर की बात आती है, तो कोई उदार या अनुदार, वाम या दक्षिणपंथी नहीं होता है. सब एक हो जाते हैं.
शाहिद तांत्रे : भारतीय राजनीति में क्या फिट बैठता है - नेहरू की राजनीति या मोदी की?
सज्जाद लोन : भारत की जनता को फैसला लेना है. लेकिन मुझे आपको एक बात बतानी है. सरकारें पांच साल की होती हैं. यह कोई विचारधारा नहीं है. दुनिया के हर देश में दक्षिणपंथी राजनीति की लहर है, जिसके बाद आमतौर पर वामपंथी राजनीति की लहर आती है. यह तो एक चरण है.
शाहिद तांत्रे : क्या आपको लगता है कि कश्मीर में अलगाववादी राजनीति खत्म हो गई है?
सज्जाद लोन : ऐसा लगता है. लेकिन मैं फिर भी, जैसा कि मैंने आपसे कहा था, अपने दिल के भीतर हमेशा उदार रहूंगा. मैं नहीं मानता कि बल, जबरदस्ती और डरा कर कुछ भी खत्म कर सकते हैं. आप अलगाववादियों को खत्म होते हुए देख सकते हैं जिससे अलगाववाद कुछ समय के लिए कम हो सकता है लेकिन वह फिर सामने आ सकता है. आप यहां अलगाववादी की आजादी को कम कर सकते हैं लेकिन फिर आपके पास दूसरे देश में अलगाववादी होगा. अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई यहां कश्मीर में लड़नी होगी, यहां जीत या हार सहमति से तय होगी. डर से कोई सहमति कायम नहीं हो सकती.
जितना अधिक कश्मीरी बाहर जाकर दुनिया को देखेंगे, वैश्वीकृत दुनिया में अलगाववादी आंदोलनों की स्थिति का खुद ही भान हो जाएंगे. जब मैं पढ़ने के लिए ब्रिटेन गया तो मैं 12वीं कक्षा में था. मेरा नजरिया भारत और पाकिस्तान तक सीमित. जब मैं विदेश गया तो मुझे पता चला कि बात बहुत अगल है.
दिल्ली से हमारी समस्याएं हैं और हमें उन समस्याओं का समाधान करना चाहिए और दिल्ली को उन समस्याओं को और नहीं बढ़ाना चाहिए. लेकिन अगले सात-आठ साल कश्मीरियों के लिए कठिन हो सकते हैं.
शाहिद तांत्रे : आपको क्या लगता है कि अगले दस वर्षों में जम्मू-कश्मीर का भविष्य क्या है?
सज्जाद लोन : मुझे नहीं पता. बहुत अशांत समय हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि कम से कम पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए और जब मैं राज्य का दर्जा कहता हूं, तो मेरा मतलब पूर्ण राज्य का है. मैं यही चाहता हूं. लेकिन मैं भविष्य के बारे में कोई अनुमान नहीं लगाऊंगा.
मुझे नहीं पता कि जम्मू-कश्मीर में अमन होगा, मैं दिल्ली और श्रीनगर के बीच शांति की बात नहीं कर रहा हूं. मैं हमारे पड़ोस में उथल-पुथल की बात कर रहा हूं. मैं बस यह उम्मीद करता हूं कि हम पीड़ित न हों और हमारे पास अमन-चैन और समृद्ध से भरा जम्मू-कश्मीर हो, कि हम अर्थव्यवस्था और राजनीति में तरक्की करें, कि सामाजिक रूप से हम खुद को फिर से तलाश करने के काबिल हों. यही सपना है. इसलिए अमन के लिए प्रयास करना सबसे पाक काम है क्योंकि हिंसा होगी तो हम ही प्रभावित होंगे. लेकिन मरेगा हमेशा कश्मीरी ही.
(अंग्रेजी में प्रकाशित इस इंटरव्यू को संपादित और संक्षिप्त किया गया है.)