Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.
जारी लोकसभा चुनावों में भगवा लहर बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी साधुओं को संदेश भेज रही है. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी शाखा, विश्व हिंदू परिषद, के समर्थन से बीजेपी साधुओं के बीच अपनी पहुंच को व्यापक बनाने में लगी है. संघ परिवार के नेता नाराज साधुओं को अपने पक्ष में करने के लिए उनसे सीधा संवाद कर बीजेपी का साथ देने की अपील कर रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने कार्यकाल के खत्म होने से पहले अयोध्या में राम मंदिर बनाने का वादा किया था. इस वादे को पूरा न करने की वजह से बड़ी संख्या में साधु बीजेपी से नाराज हैं.
रीवा जिले के मऊगंज शहर के साधु रमेशजी महाराज के अनुसार, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने धर्मगुरुओं को विवादास्पद बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि क्षेत्र में राम मंदिर संबंधी पार्टी के वचन को पूरा करने का आश्वासन देते हुए एक संदेश भेजा है. रमेशजी महाराज, वीएचपी के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं. यह साधुओं की संस्था है. महाराज का कहना है कि राजनाथ सिंह ने संघ परिवार से जुड़े सभी प्रमुख साधुओं को यह संदेश भेजा है.
रमेशजी 1992 से वीएचपी से जुड़े हैं और मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में काम करते हैं. 15 अप्रैल को मऊगंज में आरएसएस और उससे संबद्ध संगठनों की बैठक में उपरोक्त आश्वासन को दोहराया गया. महाराज ने बताया कि इस बैठक का आयोजन आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक सुरेंद्र ने किया था जो रीवा, सीधी और सिंगरोली को देख रहे विभाग के इंचार्ज हैं.
रमेशजी ने आगे बताया, “बैठक में बड़ी संख्या में साधुओं को बुलाया गया था और जब मैंने मंदिर का मामला उठाया तो साधुओं ने मेरा समर्थन किया”. इसके बाद सुरेंद्रजी ने राजनाथ सिंह के संदेश का उल्लेख करते हुए कहा कि अगली बीजेपी सरकार इस मामले में कमजोर नहीं पड़ेगी और यदि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के खिलाफ जाता है तो भी वह अध्यादेश लाकर राम मंदिर का निर्माण कराएगी. रमेशजी ने बताया कि आरएसएस के पदाधिकारी देश के अन्य स्थानों में भी ऐसी ही बैठकें आयोजित कर रहे हैं.
पिछले कुछ समय से, खासकर वर्तमान बीजेपी सरकार के कार्यकाल के आखिरी साल में राम मंदिर के सवाल पर संघ और साधुओं के बीच मतभेद पैदा हो गया है. यह तनाव उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इस साल के शुरू में आयोजित अर्ध कुंभ मेले में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ा. इतिहास में पहली बार कई धार्मिक नेताओं ने अर्ध कुंभ के अवसर पर आयोजित होने वाले वीएचपी की धर्म संसद का बहिष्कार किया. इन लोगों को वापस अपने पक्ष में करना और पिछले लोकसभा चुनावों की तरह हिंदुओं को आकर्षित करने के लिए इनका सहयोग प्राप्त करना संघ परिवार के लिए चुनौती बन गई है.
वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. उनके चुनाव क्षेत्र में रहने वाले संजीवजी महाराज ने रमेशजी के दावे की पुष्टि की. उन्होंने बताया, “राजनाथ सिंह का संदेश साधुओं को भेजा जा रहा है लेकिन कई धार्मिक नेता इस आश्वासन पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं.” संजीवजी के अनुसार, आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी रात-दिन प्रमुख साधुओं को राम मंदिर के प्रति बीजेपी की ईमानदारी पर भरोसा दिलाने का प्रयास कर रहे हैं. वे उनसे कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट की देरी की वजह से सरकार इस दिशा में कुछ नहीं कर पाई.
राजनाथ सिंह के संदेश और आश्वासन के अतिरिक्त साधुओं के संगठन, अखिल भारतीय संत समिति, ने देश भर के धार्मिक नेताओं के लिए दो पन्नों की अपील जारी की है. उस अपील में संगठन ने सभी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद आदि हिंदुत्ववादी संगठनों के साथ सहकार्य करने का आह्वान किया है. अखिल भारतीय संत समिति का गठन 1986 में आरएसएस की पहलकदमी में हुआ था. तब से लेकर यह संस्था आरएसएस की शाखा के रूप में काम करती रही है. इस अपील पर समिति के महासचिव जितेंद्रानंद सरस्वती के हस्ताक्षर हैं. 2004 तक 15 सालों तक आरएसएस के प्रचारक रहने के बाद वह साधु बन गए थे. 2016 में सरस्वती को समिति का महासचिव नियुक्त किया गया. इस पत्र में धार्मिक नेताओं को अपने अनुयायियों को बीजेपी का समर्थन करने के लिए प्रेरित करने को कहा गया है. संत समिति ने लिखा है, “बाबरी मस्जिद गिराने और राम मंदिर बनाने के प्रयास करने के लिए बीजेपी को बहुत कुछ भुगतना पड़ा है”.
अपील में किसी भी राजनीतिक पार्टी का नाम न होने के बावजूद यह स्पष्ट है कि संत समिति साधुओं को बीजेपी के लिए हिंदुओं का ध्रुवीकरण करने और कांग्रेस के खिलाफ मतदान करने को प्रेरित करने को कह रही है. इस अपील में इस बात का भी जिक्र है कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि परिसर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे में कांग्रेस के नेता और वकील कपिल सिब्बल ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से जिरह की है. संत समिति ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी की सरकारों को अपदस्थ किए जाने का उल्लेख करते हुए कहा है कि संतो को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वे किस पार्टी का साथ देना चाहेंगे, जो मुसलमानों के पक्ष से वकील खड़ा करती है या जिसने भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए चार राज्यों में अपनी सरकारें कुर्बान कर दीं. पत्र में आगे लिखा है, “6 दिसंबर 1992 को गुलामी के प्रतीक को गिरा दिया गया और जिन नेताओं ने आपराधिक मामलों का भार उठाया वे हमारे अपने हैं”.
मध्य प्रदेश की पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जबलपुर के साधु अखिलेश्वरानंद गिरी ने मुझे बताया कि वह साधुओं के साथ गांव-गांव की यात्रा कर रहे हैं और धार्मिक नेताओं को नरेन्द्र मोदी के पक्ष में वोट देने की आवश्यकता बता रहे हैं. गिरी प्रचारक से साधु बने हैं और वीएचपी के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के प्रमुख सदस्य हैं. गिरि के अनुसार संत समिति की अपील का अपेक्षित असर हुआ है. “यह अपील नहीं धर्मादेश है जो सभी वास्तविक साधुओं पर लागू होता है”.