पूर्व में बहुराष्ट्रीय कंपनी के कर्मचारी रहे संजय यादव, फिलहाल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के चुनावी रणनीतिकार हैं. साथ ही वे पार्टी के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ नेता लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार भी हैं. हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले के रहने वाले संजय की तेजस्वी से मुलाकात 2012 में हुई. इसके थोड़े ही दिनों बाद वे उनके सलाहकार बन गए. 2015 में बिहार में हुए विधान सभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन के लिए उनको श्रेय दिया जाता है. 2010 के विधान सभा चुनावों में 22 सीट जीतने वाली आरजेडी, 2015 में 80 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बन गई. हाल में ही राज्य में महागठबंधन के चुनाव अभियान की रूपरेखा बनाने में भी वे सक्रिय थे. बिहार में महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस और अन्य दल शामिल हैं.
कारवां के स्टाफ राइटर सागर ने संजय से आरजेडी में उनके काम और आगामी लोक सभा चुनावों में पार्टी की रणनीति के बारे में बातचीत की. संजय ने बताया कि अपने जीवन के शुरू में ही उन्हें पता चल गया था कि “समाज की किसी भी समस्या का समाधान राजनीति से ही होता है. यहां तक कि किसी इलाके में बनने वाले नाले के लिए भी नेता से संपर्क करना पड़ता है.” संजय ने आरक्षण के मामले में पार्टी के हाल के स्टेंड पर भी बात की. राज्य के अलग अलग इलाकों के अपने दौरों में, तेजस्वी यादव सरकारी नौकरियों में 90 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं. आरजेडी ने हाल में ही रिजर्व श्रेणी से इतर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का विरोध किया था. पार्टी ने यह भी वादा किया है कि चुनाव जीतने पर वह एससी, एसटी और ओबीसी को जनसंख्या में उनके अनुपात के हिसाब से आरक्षण देगी. संजय ने बिहार में सीटों के बंटवारे और ओबीसी को आकर्षित करने के लिए बीजेपी के प्रयासों का मुकाबला करने की योजना पर बात की.
सागर— आप आरजेडी के चुनावी रणनीतिकार कैसे बने?
संजय यादव— जब तेजस्वी यादव क्रिकेट खेल रहे थे तब मैं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रहा था. हमारे कॉमन दोस्तों के जरिए हम मिले. इन मीटिंगों के बाद हम लोगों ने तय किया कि तेजस्वी क्रिकेट छोड़ कर पूरा वक्त राजनीति में लगाएंगे. 2012 में उन्होंने मुझसे भी नौकरी छोड़ कर पार्टी में जुड़ने को कहा. जब हम दोनों ने बात करनी शुरू की, उस वक्त आरजेडी की अपनी वेबसाइट तक नहीं थी. ऐसे में सोशल मीडिया एक्सपर्ट रखने की बात हो ही नहीं सकती थी. हम लोगों ने आरजेडी की वेबसाइट बनाई. मैं और तेजस्वी फेसबुक और ट्वीटर पर सक्रिय हुए और बाद में लालू जी ने भी अपना ट्वीटर खाता खोला. हमने साथ मिलकर पार्टी को नए प्रकार से संगठित करना आरंभ किया. इस दौरान हमने सीखा, विकास किया और आरजेडी के युवा कार्यकर्ताओं से जमीनी रूप से जुड़ने की रणनीति तैयार की.
सागर— वर्ष 2019 के आम चुनावों में आपकी रणनीति क्या होगी? पार्टी के उस संयंत्र के बारे में बताएं जो इस रणनीति को लागू करेगा.
एसवाई— हमारी चुनावी रणनीति 2014 के मोदी को 2019 के मोदी के खिलाफ लड़ाना है. 2014 में केन्द्र के काम का कोई अनुभव न रखने वाले मोदी मतदाताओं के लिए नई बात थे. उस वक्त तक गुजरात में 2002 दंगों के लिए ही उन्हें जाना जाता था. 2014 के मोदी सपने दिखाने वाले और बड़े बड़े वादे करने वाले मोदी थे जो अपने वादों को पूरा करने में बुरी तरह विफल रहे. जिसका नतीजा लोगों को भुगतना पड़ा. आज 2019 में हम जानते हैं कि गुजरात मॉडल, जिसका प्रचार इतना बढ़ा-चढ़ा कर किया गया था वह हवाई किला था जो झूठ, आधे सच और बहुसंख्यों के दिलों में अल्पसंख्यक का भय डाल कर बनाया गया था. लेकिन ऐसे कहने का मतलब यह नहीं है कि विपक्ष के पास इस चुनाव में कहने के लिए कुछ नया नहीं है. बीजेपी कह रही है कि कोई विकल्प ही नहीं है. लेकिन हम लोगों के पास बताने के लिए है कि 2014 तक देश स्थिर था और तेजी से विकास कर रहा था.
जहां तक हमारे संयंत्र की बात है तो हमारे पास एनडीए की भांति भड़कीले और रंगारंग अभियान चलाने के लिए असीमित संसाधन या धन नहीं है. लेकिन हमारे पास एक विचारधारा है जो नागरिकों के दैनिक जीवन पर असर डालती है. हमारे पास समर्पित कार्यकर्ता हैं जो बीजेपी के आईटी सेल या वेतन भोगी कार्यकर्ता कम कर्मचारियों का प्रभावशाली ढंग से स्थानीय स्तर पर लोहा लेने के लिए छोटी लेकिन अच्छी टीम तैयार कर सकने की हालत में हैं. हम अपने समर्पित कार्यकर्ताओं से नियमित रूप से मिलते हैं और उनको आवश्यक पड़ने वाली जानकारी मुहैया कराते हैं.
सागर— पूर्व में आरजेडी की छवि यादव-मुस्लिम पार्टी के रूप में थी लेकिन अब लगता है कि वह खुद को एक बहुजन पार्टी की तरह पेश कर रही है जिसका एजेंडा न केवल बीजेपी को हराना है बल्कि मनुस्मृति की विचारधारा को भी पराजित करना है. आपकी पार्टी के ट्वीटर हैंडल से तो ऐसा ही लगता है. इसके पीछे के क्या कारण हैं? पार्टी को इससे क्या हासिल करने की आशा है?
एसवाई— आरजेडी कभी भी सिर्फ यादव और मुलसमान की पार्टी नहीं रही. आरजेडी को केवल मुस्लिम-यादव पार्टी बताना बीजेपी का दुष्प्रचार है ताकि अन्य सामाजिक समूहों को इससे जुड़ने से रोका जा सके. समाज के सभी वर्गों में हमारा आधार हमेशा अच्छा रहा है. हम जब तक सत्ता में रहे हमें बड़ी आसानी से 40 से 45 प्रतिशत वोट मिलता रहा जो केवल यादव और मुसलमानों के वोटों की बदौलत नहीं हो सकता था. आरजेडी केवल अंग्रेजी के अक्षर वाई और एम की पार्टी नहीं है यह ए टू जेड की पार्टी है. हाल में 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण और 13 प्वाइंट रोस्टर के कारण हमें अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी के हितों के लिए आवाज उठानी पड़ी है. हमें समाज के सबसे वंचित और सबसे कमजोर वर्ग के भविष्य के रक्षार्थ ऐसा करना ही पड़ेगा. हम ऐसे लोगों की राजनीति करते हैं जिन्हें हजारों सालों तक खामोश रखा गया. हम ताकतवरों, संसाधन सम्पन्न और जरूरत से अधिक प्रतिनिधित्व पाए लोगों की राजनीति नहीं करते.
सागर— अंबेडकर की राजनीति को अधिक प्रतिबिंबित करने वाले इस नए अवतार से क्या कांग्रेस पार्टी को असुविधा नहीं होगी. उदाहरण के लिए 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के मामले में दोनों का रुख अलग अलग है.
एसवाईः सवर्ण आरक्षण के मामलें में कांग्रेस का अलग रुख इसलिए है क्योंकि एक राष्ट्रीय पार्टी होने के कारण वह चीजों को अलग नजरिए से देखती है.
आरजेडी ने इस तथाकथित आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण पर अपनी चिंताएं साफ कर दी हैं. हम लोग कानून के प्रावधानों पर ही आपत्ति नहीं जता रहे बल्कि जिस प्रकार से बहुजनों और अगड़ी जातियों को बेवकूफ बनाने के लिए इसे जल्दबाजी में लागू किया उस पर भी आपत्ति कर रहे हैं. आर्थिक स्टेटस के नाम पर आरक्षण दिया जाना, आरक्षण की मान्यता के ही खिलाफ है. और तो और बिना किसी आयोग की रिपोर्ट, शोधपत्र या सर्वे के, संविधान में यह संशोधन किया गया. यह नोटबंदी की तरह ही एक राजनीतिक दांव है.
सागर— 2019 के आम चुनाव के लिए आरजेडी का नारा क्या “बेरोजगारी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ” होगा? यदि महागठबंधन की सरकार आती है तो क्या वह शिक्षा और रोजगार में 90 प्रतिशत आरक्षण का वादा निभा पाएगी.
एसवाई— आप किसी भी मंत्रालय या राज्य के किसी भी सरकारी कार्यालय में हो आइए. आप पाएंगे कि वायदा किया गया आरक्षण और पूरा किया गया आरक्षण में जमीन आसमान का अंतर है. इंडियन एक्सप्रेस की जनवरी 16 की रिपोर्ट पढ़ कर देखिए जिसमें बताया गया है कि देश के किसी भी केन्द्रीय विश्विद्यालय में एक भी ओबीसी प्रोफेसर नहीं है. क्या यह जातिवाद या कम प्रतिनिधित्व की इंतहा नहीं है. बेरोजगारी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ के नारे से हम सभी जाति और धर्म के युवाओं को लामबंद कर रहे हैं. दिल्ली और पटना की सरकारें 5 साल में 10 करोड़ रोजगार देने का वादा पूरा नहीं कर पाईं. 2018 की सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनोमी की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार ने एक करोड़ 10 लाख रोजगार लोगों से छीन लिए. इस नारे से हम लोगों को जागरुक करा रहे हैं कि सरकार ने रोजगार का अपना वादा पूरा नहीं किया है. चूंकि इन लोगों ने आरक्षण की संवैधानिक सीलिंग को बढ़ा दिया है इसलिए उन्हें एससी, एसटी और ओबीसी के लिए भी आरक्षण को उनकी जनसंख्या के अनुपात में बढ़ाना चाहिए.
जाति जनगणना और जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण हमारी पुरानी मांगे हैं. जब हम सरकार में आएंगे तो देश की आबादी में जातीयों के अनुपात में आरक्षण लागू करेंगे.
सागर— कांग्रेस के साथ सीटों के बंटवारे के बारे में बताइए.
एसवाई— सभी को पता है कि राष्ट्रीय जनता दल बिहार में व्यापक आधार वाली सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है. हमारी ताकत को आप इस बात से ही समझ सकते हैं कि बीजेपी और जेडीयू जैसी दो अलग अलग विचारधारा वाली पार्टिंयां, आरजेडी से मुकाबला करने के लिए पिछले 20 सालों से साथ काम कर रही हैं. इसलिए बिना किसी शक के कहा जा सकता है कि बिहार में बनने वाले महागठबंधन में सबसे शक्तिशाली साझेदार आरजेडी ही होगी. बीजेपी की विरोधी सभी पार्टियों को महागठबंधन में जगह मिलेगी. बस यह जरूरी होगा कि बीजेपी और जेडीयू को हरा सकने वाले उम्मीदवार मैदान में हो.
सागर— लग रहा है कि बीजेपी ओबीसी मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रही है. हाल ही में उसने पिछडे़ वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाला बिल पास किया है. आरजेडी इसका मुकाबला कैसे करेगी?
एसवाइः ओबीसी मूर्ख नहीं हैं. बीजेपी यह बताए न कि जिन 16 राज्यों या भारत की 50 प्रतिशत आबादी में वह राज करती है, उसके कितने मुख्यमंत्री ओबीसी हैं. पिछड़े समूह यह समझते हैं कि बीजेपी उन्हें बांटने का प्रयास कर रही है ताकि वे लोग एक होकर वोट न दें. ओबीसी देख सकते हैं कि बीजेपी में इतने सारे ओबीसी और दलित नेता होने के बावजूद भी वे लोग 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण को नहीं रोक पाए. पिछड़ों को पता है कि इस 10 प्रतिशत आरक्षण के जरिए बीजेपी सामाजिक उत्थान के कार्यक्रम को गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम बना देना चाहती है. और तो और बिना किसी जाति जनगणना और ओबीसी के प्रतिनिधित्व के सही आंकड़ों के बीजेपी ओबीसी की मदद कैसे कर सकती है.
सागर— 2017 में यादवों ने बिहार के खगड़िया जिले के छह मासिया में मुसहरों के कम से कम 80 घरों को जला दिया था. इस मामले में आरजेडी कुछ नहीं बोली. पूर्व में भी ओबीसी समूहों द्वारा दलितों पर किए जाने वाले अत्याचारों पर भी आरजेडी चुप रही. क्या आपको लगता है कि आरक्षण के मामले में आरजेडी का हाल का स्टेंड दलितों को अपने पक्ष में करने के लिए पर्याप्त है.
एसवाई— सिर्फ इसलिए कि हिंसा करने वाला व्यक्ति एक विशेष जाति का है इसलिए उस कृत्य का जिम्मा आरजेडी के ऊपर डाल देना गलत होगा. हमारे पास किसी भी कास्ट का कॉपीराइट नहीं है. मैं बस इतना ही कह रहा हूं कि किसी विशेष जाति के सभी लोग हमारे समर्थक नहीं हैं या किसी खास जाति के व्यक्ति के काम के लिए आरजेडी को दोषी नहीं माना जाना चाहिए.
जेडीयू और बीजेपी का आम तरीका यही है कि किसी खास जाति के व्यक्ति के कृत्य को हमारी पार्टी से जोड़ दो. जेडीयू और बीजेपी सत्ता में हैं और उन्हें निष्पक्ष जांच कर असल बात का पता लगाना चाहिए न कि राजनीतिक छींटाकशी करनी चाहिए. यदि अत्याचार में किसी खास जाति की संलिप्तता पाई जाती है तो उसे कानून अनुसार सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए. यदि सरकार यह नहीं रोकती तो इसका मतलब है कि वह ऐसे अत्याचारों को प्रोत्साहन देती है. इसमें आरजेडी को बीच में लाने की बात कहां है.
सागर— हाल में तेजस्वी यादव ने ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटी इंप्लाइज फेडरेशन अथवा बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम के साथ 10 प्वाइंट रोस्टर पर दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. क्या आने वाले चुनावों में बामसेफ महागठबंधन का समर्थन करेगा? क्या आप ने बामसेफ अध्यक्ष से संपर्क किया था. (बामसेफ की स्थापना बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक और दलित नेता एवं विचारक कांशीराम ने की थी.)
एसवाई: वह कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं थी बल्कि वर्तमान सरकार की जातिवादी नीतियों के खिलाफ एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के स्वतंत्र संगठनों का शिखर सम्मेलन था. न हमने बामसेफ से संपर्क किया और न ही उन लोगों ने हमें कॉन्फ्रेंस में आने का बुलावा भेजा था. बामसेफ एक सामाजिक संगठन है और हम लोग एक राजनीतिक दल. कुछ मुद्दों पर हमारे विचार समान हैं. इसके साथ ही हमें खुशी होगी यदि बामसेफ आरएसएस की पितृवादी सोच, मनुवाद, जातिवाद, ब्राह्मणवादी मानसिकता, संप्रदायवादी और दक्षिणपंथी राजनीति के बारे में लोगों को सामाजिक और राजनीतिक रूप से जागरुक कर सके. हम वंचितों और बहिष्कृत लोगों का सामाजिक उत्थान करना चाहते हैं.
सागर— बीएसपी प्रमुख के साथ तेजस्वी यादव की मुलाकात के बाद मीडिया में खबरें आ रहीं थीं कि तेजस्वी ने मायावती से मुलाकात इसलिए की क्योंकि वे बिहार के एससी और एसटी वोटरों को आरजेडी के पक्ष में करना चाहते हैं. क्या आपको भारत में दलित नेतृत्व में गैप नजर आता है?
एसवाई: क्या मीडिया को लगता है कि मात्र किसी महान दलित नेता से मिलने से किसी को दलित वोट मिल जाएगा. हम लोग फोटो खिंचवाने वाली राजनीति नहीं करते या मीडिया में खुद को दबेकुचलों का मसीहा नहीं दिखाना चाहते. दलित जन हमारी पार्टी को लंबे समय से वोट देते आए हैं और पार्टी और उनके बीच विश्वास कायम है और यह हमेशा बना रहेगा. दलितों को एहसास है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार रोकथाम कानून को कमजोर किए जाने के खिलाफ 2 अप्रैल 2018 के दिन उनके साथ कौन मार्च कर रहा था. जब तेजस्वी यादव अपने 80 विधायकों के साथ दलितों की लड़ाई लड़ रहे थे उस समय पासवान जी और उनका परिवार एसी कमरों में आराम फरमा रहे थे.