इन दिनों बनारस फिर चर्चा में है. बनारस में 27 जनवरी से 31 जनवरी तक होने वाले रंग मोहत्सव में 30 जनवरी को गोडसे नाटक के मंचन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. इसी दिन महात्मा गांधी की पुण्यतिथि भी है. 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर गांधी की हत्या कर दी थी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी संस्था संस्कार भारती और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा वाराणसी रंग महोत्सव के आयोजक हैं. पांच दिवसीय महोत्सव में पांच नाटकों का मंचन होना है. 22 जनवरी को जब महोत्सव में मंचित होने वाले नाटकों की सूची जारी हुई तो बनारस के बुद्धिजीवी, पत्रकार और नागरिक समाज में भारी नाराजगी छा गई. सोशल मीडिया में काफी विरोध झेलने के बाद गोडसे नाटक को सूची से हटा दिया गया और एक नई सूची जारी की गई.
‘गोडसे’ नाटक के लेखक उत्कर्ष उपेंद्र सहस्रबुद्धे का कहना है कि नाटक का विरोध गैरजरूरी है क्योंकि किसी ने स्क्रिप्ट नहीं पढ़ी है. उन्होंने यह भी कहा कि अभी स्क्रिप्ट पूरी नहीं हुई है. अब इसी आयोजन में सहस्रबुद्धे के एक अन्य नाटक का मंचन होगा.
इस बारे में जब मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, वाराणसी के निदेशक रामजी बाली से बात की तो उन्होंने इसके सूची में आने की बात को डिजाइनर से हुई गलती बताया. उन्होंने कहा, “देखिए वह नाटक होना ही नहीं था. 24 जनवरी को हमारी प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई. उससे पहले इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार कर रहे थे.” उन्होंने आगे कहा, “उस समय हमारे पास बहुत से नाटक थे. वह नाटक भी आया था. डिजाइनर को गलतफहमी हो गई. उसे लगा कि यह नाटक भी हो रहा है और वह पम्पलेट सोशल मीडिया पर फैल गया.”
हालांकि साझा संस्कृति मंच की सदस्य जागृति राही बताती हैं कि यह गलती नहीं है. राही खुद गांधीवादी कार्यकर्ता हैं और लंबे समय से दमन, उत्पीड़न के खिलाफ वाराणसी में सक्रिय हैं. उन्होंने मुझसे बात करते हुए कहा, “आप खुद ही समझिए जब इस महोत्सव का आयोजन संस्कार भारती जैसी संस्था करा रही हो, जो खुद आरएसएस से जुड़ी हुई है, तो ऐसे में सूची में गोडसे नाटक का होना, गलती से होने वाला कम ही नजर आता है.”
सूची जारी होने पर हुए बवाल के बाद तुरंत उसे हटा दिया गया और एक नई सूची जारी की गई थी. बाली ने कहा, “हमने 24 जनवरी को ही इसका खंडन कर दिया था. सभी नाटकों की सूचना दे दी गई है. गोडसे नाटक इसमें नहीं है.” उन्होंने आगे कहा, “वह नाटक तो चुना ही नहीं गया था, गलती से चला गया था.”
दूसरी सूची के बारे में राही बताती हैं कि उसमें भी उन्हीं लेखक-निर्देशक का द इनफेमस कॉनफिलिक्ट नाम से एक अन्य नाटक होना है. रही कहती हैं, “मुझको सूचना मिली है ये लोग गोडसे नाटक ही खेलने वाले है. इन्होंने बस इसका नाम बदल दिया है.” वह कहती हैं कि संस्कार भारती वाराणसी जैसे शहर की सांझा संस्कृति को बिगाड़ने का काम कर रही हैं और “अब नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा भी इसमें शामिल हो गया है.”
राही कहती हैं कि यह एक खास विचारधारा के तहत किया जा रहा है. “हम गांधी जी का बलिदान दिवस मना रहे हैं और दूसरी ओर उसी दिन जिस दिन उनकी हत्या की गई थी, उनके हत्यारे का महिमामंडन हो रहा है.” राही आगे कहती हैं, “यह पहली बार नहीं हो रहा है. 2018 में बीएचयू के संस्कृति कार्यक्रम में गोडसे नाटक खेला गया था और तब भी इसका विरोध हुआ था.”
वाराणसी से प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबार जनसंदेश टाइम्स के पूर्व संपादक और सीनियर पत्रकार विजय विनीत ने भी इस बारे में मुझसे बात की. महोत्सव पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा, “आप किसी एजेंडे को लेकर नाटक करते हैं. इस नाटक का एजेंडा गांधी नहीं, बल्कि गांधी को खारिज करना और हिंदूवादी नेता गोडसे को आगे लाना है.”
विनीत ने नाटक को लेकर हुई तकनीकी बातों पर बताया कि कुछ न्यूज चैनलों पर कहा गया था कि नाटक अभी आधा-अधूरा है. उसकी स्क्रिप्ट पूरी नहीं है. इस लिए नाटक को हटाया गया. लेकिन विनीत इस पर भरोसा नहीं करते, “ऐसी बात नहीं है. मोहत्सव की तैयारी एक दिन में तो नहीं हुई होगी. नाटक खेलने वाली टीमों से संपर्क किया गया होगा और उन्होंने भी अपनी तैयारी की होगी. नाटक एक दिन में तैयार भी नहीं होता, न ही एक दिन में लिखा जाता है.”
वाराणसी में इस तरह के नाटक के जरिए माहौल खराब करने की बात कहते हुए विनीत ने कहा, “वाराणसी शहर अपने आप में एक लघु भारत है. आप इसके मोहल्ले देखिए तो आपको लगेगा यह एक शहर सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहा है. पूरे देश की आत्मा जैसे यहां बसी हैं.” उन्होंने आगे कहा कि जिस हिंदुत्वादी, जातिवादी मानसिकता को हवा दी जा रही है वह एक नए रंग की सियासत पैदा करती है.
राही कहती हैं, “यह दो विचारधाराओं की लड़ाई है. बीजेपी गांधी के विचारों से डरती है इसीलिए हर साल 30 जनवरी पर कोई नई घटना हो जाती है.” उन्होंने कहा, “अगर 30 जनवरी को होने वाला नाटक वही हुआ तो हम लोग इसका पुरजोर विरोध करेंगे.”