31 जनवरी को बीजेपी नेता सुरेश चंद वत्स ने दिल्ली उच्च न्यायलय में फरवरी 2015 में हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित लेख के विरोध में उस पर कारवाई करने की मांग करते हुए याचिका दायर की. लेख में कहा गया है कि वत्स के खिलाफ बलात्कार और यौन हमले का मामला दर्ज किया गया था. वत्स दिल्ली में हो रहे विधानसभा चुनाव में शकूर बस्ती क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे है. बीजेपी नेता ने उच्च न्यायालय से कहा कि उन्हें बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया गया था इसलिए यह न्यूज रिपोर्ट “पूर्व दृष्टाया मानहानिकारक” है. न्यायलय ने सुनवाई वाले दिन ही याचिका को खारिज कर दिया.
2015 में वत्स आम आदमी पार्टी के सतेंद्र जैन से विधानसभा चुनाव हार गए थे. इस साल 8 फरवरी को फिर से जैन और वत्स आमने-सामने हैं.
वत्स शैक्षणिक संस्थान विवेकानंद इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज के संस्थापक और चेयरपर्सन भी हैं. फरवरी 2015 में एक असिस्टेंट प्रोफेसर द्वार की गई शिकायत के आधार पर दिल्ली पुलिस ने वत्स के खिलाफ बलात्कार, यौन हिंसा, यौन उत्पीड़न, कपड़े उतारने की मंशा से हमला करने, पीछा करने और धमकी देने के लिए मामला दर्ज किया था. असिस्टेंट प्रोफेसर ने अपनी शिकायत में कहा कि उनपर अक्टूबर 2013 में यौन हमला हुआ था और केस उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली के मौर्य नगर एनक्लेव पुलिस थाने में दर्ज हुआ था.
जनवरी 2018 में दिल्ली की सत्र अदालत ने भारतीय दंड सहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोपी वत्स को बरी कर दिया था लेकिन अन्य मामलों से जुड़ी कारर्वाही जारी रही. इस साल, वत्स ने उच्च न्यायालय में कहा कि ऐसी खबरों की अभी भी मौजूदगी जिनमें उनपर बलात्कार का आरोप है, दिल्ली विधानसभा चुनाव में उनकी छवी को प्रभावित कर सकता है. वत्स ने न्यायालय से बिना सुनवाई के एकतरफा आदेश सुनाते हुए हिंदुस्तान टाइम्स की वेबसाइट और गूगल पर उनसे जुड़े लेख हटाने का आदेश देने की गुहार लगाई.
“मैं सहमत नहीं हूं,” दिल्ली उच्च न्यायालय के जज राजीव सहाय एंडलॉ ने याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा. “यह अभियोगी पर है कि वह जनता को बताए कि उसे आईपीसी की धारा 376 जैसे आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया है. यह एक कानूनी प्रावधान भी है कि जनता को अपने उम्मीदवार के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए.” न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “इस मामले में न्यायालय का दखल जनता को उनके क्षेत्र से उचित उम्मीदवार चुनने के मौके से वंचित करेगा.”
वत्स का बलात्कार के आरोप से बरी हो जाने का विवरण महत्वपूर्ण है. असिस्टेंट प्रोफेसर की प्रारंभिक पुलिस शिकायत और बयान पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध नहीं हैं. फिर भी जिस फैसले में सत्र न्यायालय ने वत्स को बरी किया वह महिला की शिकायत, पुलिस और मजिस्ट्रेट को दिए बयान पर आधारित था.
असिस्टेंट प्रोफेसर ने जुलाई 2013 से विप्स में पढ़ाना शुरू किया था. पुलिस में दर्ज अपनी शिकायत में उन्होंने कहा कि 18 अक्टूबर को जब उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी, वत्स ने उन्हें देखकर स्टाफ के अन्य सदस्यों के सामने कहा, “तुम तो रसगुल्ला लग रही हो” फिर वत्स ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया. असिस्टेंट प्रोफेसर के अनुसार वत्स ने उन्हें गलत तरीके से छुआ और जबरदस्ती चूमा. उन्होंने पुलिस को दर्ज कराई अपनी शिकायत में लिखा, “उसने जबरदस्ती मेरे निजी अंग में उंगली डाली और जब मैं गुस्सा हुई तब उसने मुझे धमकी दी कि वह और चीजें मेरे निजी अंग में डाल देगा. मेरे स्तनों को छुते हुए उसने मुझसे कहा कि यह बहुत सख्त हैं जिस कारण मुझे स्तन कैंसर हो सकता है तो मुझे अक्सर इन्हें उनसे दबवाते रहना चाहिए क्योंकि वह एक डॉक्टर है और उन्हें इसकी जानकारी है. उसने मुझे जबरदस्ती अपना लिंग पकड़ने के लिए मजबूर किया. मैं जोर-जोर से रो रही थी तो उसने मुझे धमकी दी कि वह गार्डस को बुला कर मुझे बुरी तरह पिटेगा.”
असिस्टेंट प्रोफेसर ने अपनी शिकायत में लिखा, वत्स का कहना न मानने पर बाद में उसने मुझे धमकी देना शुरू कर दिया. उन्होंने आगे कहा कि वत्स ने अपनी जान लेने की धमकी दी और उन्हें दोषी ठहराने के लिए एक पत्र छोड़ दिया. वत्स ने असिस्टेंट प्रोफेसर से कम काम करने और सैलरी बढ़ा देने को भी कहा. अनेक बार वत्स को मना करने पर वत्स ने जनवरी 2014 में उन्हें नौकरी से निकाल दिया. वह दूसरी नौकरी ढूंढ़ने में असमर्थ थी. तब वत्स ने उन्हें वापस आकर अपने पहले किए व्यवहार पर माफी मांगने के लिए कहा. अन्य साथियों ने उन्हें वापस आने का आश्वासन दिया. साथियों के दिए आश्वासन पर उन्होंन फिर से विप्स में पढ़ाना शुरू किया. लेकिन वत्स ने फिर से वही सब शुरू कर दिया, असिस्टेंट प्रोफेसर ने बताया. अंत में मई 2014 में एक बार फिर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. उन्होंने आगे बताया कि वत्स ने उन्हें पुलिस को कुछ भी बताने पर चेहरे पर एसिड से हमला करने की धमकी दी. फरवरी में असिस्टेंट प्रोफेसर ने मौर्य एन्क्लेव पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई.
सत्र न्यायालय में वत्स ने तर्क दिया कि असिस्टेंट प्रोफेसर के आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अनुच्छेद 164 के अंतर्गत घटना के बारे में मजिस्ट्रेट के सामने और पुलिस को दिए बयान परस्पर विरोधी थे. वत्स ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है महिला ने उसपर अपने किसी भी बयान में अपने योनि में उंगली डालने का आरोप नहीं लगाया था, मजिस्ट्रेट को दिए अपने बयान में भी नहीं और इसलिए तथाकथित घटना बलात्कार का मामला नहीं थी. वत्स ने न्यायालय से कहा कि महिला ने शिकायत अपने वकील के कहने पर की है, जिसमें उसने अपनी योनि में उंगली डालने की बात कही. वकील बलात्कार को साबित करने के लिए आवश्यक तत्वों को जानता होगा, जबकि अन्य बयानों से यह निर्दिष्ट नहीं होता कि उसने बलात्कार किया था.
न्यायाधीश शैलेंद्र मलिक ने इस तर्क से सहमति जताई. “मौजूदा मामले में, अभियोग की तरफ से भी यह स्वीकार किया गया है कि “योनि को छूने” का जो आरोप शिकायत में दर्ज है, आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अनुच्छेद 164 के अंतर्गत जब उनका बयान दर्ज किया जा रहा था तो उसे महिला द्वारा नहीं कहा गया था. मेरे हिसाब से यह तथ्य महत्व रखता है. यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि ऐसा महत्वपूर्ण तथ्य, जो स्वयं एक अपराध है, अभियोजन पक्ष द्वारा सामने क्यों नहीं रखा गया था.” मजिस्ट्रेट को दिए अपने बयान में, सहायक प्रोफेसर ने कहा था:
मैं विवेकानंद कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम कर रही थी. कॉलेज का चेयरमैन सुरेश चंद वत्स यह बात जानता था कि मैं अकेले रहती हूं. वत्स अक्सर मेरे साथ दुर्व्यवहार करता था. वह मुझे अपने घर आने के लिए कहता था. वह कहता था कि वह मेरे साथ 1 से 3 बार ही शारीरिक संबंध बनाना चाहता है, उसे इससे ज्यादा कोई दिलचस्पी नहीं है. जब मैंने ऐसा करने से इनकार किया तब उसने धमकी दी कि वह मेरे चेहरे पर एसिड फेंक देगा, तब सारा घमंड चला जाएगा. अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी, तो वह ट्रक से कुचल दिए जाने की धमकी देता था. वह मुझे गलत जगह छूता था, जबरदस्ती गले लगता था और कई मौकों पर मेरी तस्वीरें लेता था. मैं फंस जाती थी. मैंने काम पर जाना छोड़ दिया था. वह मुझे सेक्स के शारीरिक लाभ बताता था. उसने मुझे मोबाइल फोन में पोर्न फिल्म देखने के लिए मजबूर किया. उसने मुझे बार-बार धमकी दी कि मुझे अंतिम संस्कार की भी जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि मेरे साथ कोई नहीं है. नौकरी छोड़ने के बाद भी मैं डरी हुई थी क्योंकि वह बेहद ताकतवर व्यक्ति है. इस तरह मरने के बजाय लड़ना बेहतर है. उसने मुझे कई एसएमएस भी भेजे. मैं और कुछ नहीं कहना चाहती.
मलिक ने लिखा कि मजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान को छोड़कर पुलिस ने महिला के सात बार बयान दर्ज किए. 26 फरवरी को पुलिस को दिए अपने दूसरे बयान में महिला ने बताया, “वत्स ने मेरे कपड़े उतारने की कोशिश की. मैं असंतुलित होकर मेज पर गिर गई थी. उस प्रक्रिया में, वत्स ने अपनी उंगलियों से मेरे निजी अंग को छुआ, मेरे अंडरवियर को छुआ, लेकिन मैंने उसे धक्का दे दिया था. इसलिए, वह नहीं डाल सका...” 26 मार्च को तीसरे बयान के दौरान पुलिस अफसर ने विशेष रूप से महिला से पूछा कि क्या वत्स ने अपनी उंगली डाली थी. उसने जवाब दिया, “उसने किया था लेकिन मैं उससे वापस लड़ी थी. यह बेहद कम समय में हुआ. कुछ ही सेकंड में सब हुआ था.
18 जनवरी 2018 को वत्स को बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया गया था. अपने आदेश में मलिक ने कहा कि महिला ने स्वीकार किया कि एक वकील ने उसकी शिकायत का मसौदा तैयार किया था. मलिक ने लिखा, "अगर जांच के दौरान दर्ज किए गए अभियोजन पक्ष के सभी बयानों को निरंतरता में पढ़ा जाए तो यह आसानी से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ये बयान बलात्कार होने का संकेत नहीं देते." स्थायी रूप से, डिस्चार्ज ऑर्डर का कोई भी बिंदु यह इंगित नहीं करता है कि वत्स ने आरोपों का खंडन किया था, न ही यह उसके खिलाफ अन्य आरोपों से उसे दोषमुक्त करता है, जिसमें यौन उत्पीड़न भी शामिल है.
इस डिस्चार्ज ऑर्डर के बल पर ही वत्स ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें हिंदुस्तान टाइम्स और गूगल के खिलाफ बलात्कार के आरोपों का उल्लेख करने वाले लेखों तक पहुंच की अनुमति बंद करने की निषेधाज्ञा की मांग की गई थी. पूर्ण दृष्टाया निषेधाज्ञा के लिए उनके आवेदन को खारिज करते हुए, एंडलॉ ने लिखा, "वादी को भले ही आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध से मुक्त कर दिया गया हो, इंटरनेट से उक्त सीमा तक जानकारी को मिटाया नहीं जा सकता है." एंडलॉ ने आगे लिखा कि वत्स पर अन्य मामलों में आपराधिक कार्यवाही जारी रहेगी जो ''बलात्कार के अपराध से जुड़े हुए हैं." एंडलॉ ने माना कि ''अन्य अपराधों का प्रभाव, जिनका वादी पर अभी भी आरोप है, सार्वजनिक रूप से वह उसी तरह का अपराध है जिस तरह के अपराध से वादी को मुक्त किया गया है. इस प्रकार, पूर्व दृष्टया आदेश से निजात देने का कोई कोई मामला नहीं बनता है.” अन्य अपराधों के लिए वत्स के खिलाफ आपराधिक मामला 14 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है.
अनुवाद - अंकिता