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उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर इलाके में मजदूरी करने वाले 48 साल के मोहम्मद जाकिर अपने गोदाम के बाहर खड़े थे जब कुछ लोग भागते हुए गोदाम में घुस गए. वह खुद अंदर घुस पाते कि इससे पहले ही दो पुलिसकर्मियों ने उन्हें पकड़ लिया. पुलिस उन्हें मारते हुए खींच कर सड़क पर ले आई. जाकिर ने बताया, ''मैंने उन्हें बहुत समझाया कि मैं इसमें (प्रदर्शनकारियों) शामिल नहीं हूं, लेकिन वे मारते ही रहे. सड़क पर कम से कम 15 पुलिस वाले मुझे डंडों से पीटते रहे.'' जाकिर का गोदाम इलाके की 21 नंबर गली में हैं. उन्होंने बताया, ''पुलिस मुझे गली नंबर 21 से पीटते-पीटते गली नंबर 15 तक ले गई और जब मैं बेहोश होकर गिर पड़ा तो मुझे मरा हुआ समझकर वहीं फेंक कर चली गई.''
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में 17 दिसंबर को दिल्ली के सीलमपुर क्षेत्र में स्थानीय निवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया था. स्थानीय युवा मोहम्मद जावेद ने बताया कि, ''इस कानून के विरोध में लोग शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे. पुलिस ने रास्ते में बैरिकेड लगा दिए थे इसलिए लोग सड़क पर बैठ गए.'' उन्होंने आगे कहा, “हम इसी हिंदुस्तान में पैदा हुए हैं और इसी की मिट्टी में दफ्न होंगे. अगर आप लोगों को कहीं और की मिट्टी पसंद आ रही है तो आप जाओ इस देश को छोड़ कर, हम नहीं जाएंगे. जब तक हमारे अंदर जान है, हम लड़ेंगे. आपको यह बिल हर हाल में खत्म करना पड़ेगा.”
जावेद के साथ मौजूद एक अन्य स्थानीय ने मुझसे कहा, “जिनकी पुश्तें यहां दफ्न हो गईं उनसे कहा जा रहा कि साबित करें कि वह हिंदुस्तानी है, पाकिस्तानी या बांग्लादेशी नहीं है. यह सिर्फ देश को असल मुद्दो से भटकाने के लिए किया जा रहा है. देश की अर्थव्यवस्था खराब है तो असल मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए.”
इससे आगे शांतिपूर्ण प्रदर्शन कैसे हिंसक हो गया इसे लेकर मीडिया में आई खबरों के मुताबिक प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस पर पत्थर फेंकने और डीटीसी बसों को नुकसान पहुंचाने के बाद पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा. स्थानीय निवासी अमीर कुरेशी ने बताया कि, ''हम अगर लड़ने ही आए होते तो निहत्थे क्यों आते? पुलिस वाले अपने हथियार ले कर आए थे.'' उन्होंने बताया कि पुलिस ने जब लाठीचार्ज किया तो भगदड़ मच गई. उन्होंने मुझे मोबाईल से रिकॉर्ड किया एक वीडियो दिखाया जिसमें पुलिस एक दुकान का शटर उठाकर उसमें तोड़फोड़ कर रही है. उन्होंने बताया कि ''कादिर भाई इसी दुकान के आगे फूल बेचते हैं, जब लाटीचार्ज हुआ तो वह जान बचाने के लिए दुकान में घुस गए.'' वीडियो दिखाते हुए उन्होंने कहा, ''देखिए पुलिस कादिर भाई को डंडों से पीट रही है.'' उसी दुकान के आगे खड़े होकर हम बात कर रहे थे. स्थानीय लोगों ने बाद में मुझे बताया कि कादिर की आंख में कांच घुस गया है और वह अस्पताल में भर्ती हैं.
जावेद ने बताया कि एक दिन पहले भी शाम को इलाके में एक विरोध प्रदर्शन हुआ था. उन्होंने बताया ''लोग के ब्लॉक से जे ब्लॉक एरिया तक गए लेकिन कहीं कोई नुकसान नहीं हुआ. पीछे से 12-14 पुलिसकर्मी आए और आते ही बिना वजह लाठीचार्ज शुरू कर दिया. आप चाहें तो वहां लगे सीसीटीवी में देख लो कि पब्लिक क्या कर रही थी और पुलिस ने आते ही क्या किया है?''
सीलमपुर इलाके में हिंसा भड़क उठने की खबर मिलते ही जब मैंने वहां जाने के लिए ऑटो किया तभी अधेड़ उम्र की एक महिला बदहवासी में बगल में आकर बैठ गई. मैं उनकी बदहवासी और परेशानी का अंदाजा लगा पाता इससे पहले ही उन्होंने खुद अपनी कहानी बतानी शुरू कर दी. उनका नाम माया था और वह उस दिन सुबह ही पास के गोकलपुरी इलाके अपनी मां के घर आईं थीं. मां के घर पहुंचते ही उन्हें टीवी से पता चला कि “सीलमपुर में दंगा” हो गया है. उन्होंने मुझे बताया कि अभी उनके ''घर पर बहू और दो पोते अकेले हैं, बेटा काम पर गया है.'' मैं उनसे कुछ कह पता इससे पहले ही उनकी बदहवासी गुस्से में बदल गई. उन्होंने पिछले सालों में झेले सारे दुख और परेशानी के लिए सरकार को कोसना शुरू कर दिया. ''पहले नोटबंदी करके हमारी जान ली और अब दंगा फैलाकर हमें खत्म ही कर देंगे.'' उन्होंने कहा. सीलमपुर की हिंसा का खौफ वहां पहुंचने से पहले ही मेरे सामने आ गया था.
जब तक मैं वहां पहुंचा तब तक पुलिस मामले को नियंत्रित कर चुकी थी लेकिन भारी संख्या में पुलिस की मौजूदगी, सड़क पर पड़े पत्थरों के टुकड़े और बिखरा पड़ा चकनाचूर कांच खौफनाक ढंग से वहां की घटना को बयां कर रहा था. सामने से आते सुरक्षा बल के एक जवान से जब मैंने बात करनी शुरू की तो यह निश्चित कर लेने के बाद कि मेरे पास कोई खुफिया कैमरा या रिकॉर्डर नहीं है, एक जवान ने कहा, “सरकार में इतने पढ़े-लिखे लोग हैं. वे जो भी कानून बनाएंगे वह सही ही होगा इसके खिलाफ प्रदर्शन करने की क्या जरूरत.” स्थानीय युवा आमीर ने मुझे से कहा, ''पूरा हिंदुस्तान आपस में लड़ रहा है, अब भी नेताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा.''
स्थानीय लोगों से जब मैंने घटना के बारे में बात करनी चाही तो शुरू में उन्होंने मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि आप लोग सच्चाई नहीं बताते. “हम आपसे क्यों बात करें.” उनका गुस्सा लाजमी भी था. भीड़ के तितर-बितर हो जाने बाद पहुंचे रिपब्लिक टीवी के एक मीडियाकर्मी ने बेहतर फुटेज बनाने लिए के लिए वहां खड़ी नौजवानों की भीड़ को दौड़ा दिया. जब भीड़ अफवाह के डर से भागने लगी तो भागती हुई भीड़ को पृष्ठभूमि बनाकर मीडियाकर्मी घटना का लाइव विवरण देने लगा. स्थानीय बड़े-बुजुर्गों ने मीडियाकर्मी को घेर कर आगे खदेड़ दिया. लेकिन तब तक वह बेहतरीन शॉट पूरा हो चुका था. आमीर कुरेशी ने मीडिया के बारे में बात करते हुए कहा कि ''मीडिया कह रही है कि तोड़-फोड़ पब्लिक ने की है. वे खुद यहां खड़े देख रहे थे. वे जानते हैं कि तोड़-फोड़ किसने की है.'' उन्होंने मोबाइल से लिया एक और वीडियो मुझे दिया जिसमें मीडिया की मौजूदगी में पुलिस को घरों के अंदर पत्थर फेंकते हुए दिखाया गया था.
घायलों के बारे में कोई साफ जानकारी किसी को नहीं थी इसलिए मैं पास के ही जगप्रवेश चंद्र सरकारी अस्पताल में आ गया. अस्पताल के कर्मियों ने बताया कि ओपीडी में लोगों को लाया गया है लेकिन घायलों के बारे में कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया. रिसेप्शन पर बैठी एक महिला ने बताया, “ऐसा करना गैरकानूनी है.”
पूरे इलाके में घायलों की स्थिति को लेकर कोई स्पष्टता नहीं हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार बहुत सारे लोग घायल हुए हैं. स्थानीय युवा मोहम्मद खालिद ने मुझे एक वीडियो दिखाया जिसमें एक व्यक्ति के हाथ पर आंसू गैस का गोला फटा था. जावेद ने इसके चलते दो लोगों के हाथ पूरी तरह खराब हो जाने की बात कही.
इस पूरी घटना का असर इतना भयावह रहा कि जब हमने मोहम्मद जाकिर से पूछा कि क्या आगे अपने बचाव के लिए वे पुलिस पर केस दर्ज कराएंगे. तो उनका कहना था, ''हम मामले में तो पुलिस से कभी नहीं जीत सकते.''
लोगों ने बताया कि उन्हें अब सुप्रीम कोर्ट से ही किसी तरह की उम्मीद है. जावेद ने कहा, ''अगर वे संसद में ऐसा बिल लाए कि मुसलमानों को घर से निकालों और सीधे गोली मार दो तो वह बिल भी संसद में पास हो जाएगा. अब तो बस सुप्रीम कोर्ट से ही हमें उम्मीद है.''
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