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इस साल फरवरी के आखिर में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के प्रत्यक्षदर्शियों ने शिकायत की है कि दिल्ली पुलिस के एक उपायुक्त, दो अतिरिक्त आयुक्त और दो एसएचओ अकारण गोलीबारी, आगजनी और लूटपाट में शामिल थे. एक शिकायतकर्ता ने लिखा है कि उन्होंने गोकलपुरी थाने के एसीपी अनुज शर्मा, दयालपुर पुलिस स्टेशन के एसएचओ तारकेश्वर सिंह और भजनपुरा पुलिस स्टेशन के एसएचओ आरएस मीणा को चांदबाग में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाते और उनकी हत्या करते देखा है. महिला शिकायतकर्ता ने लिखा है कि “यह देखकर मैं डर गई और सोचने लगी कि हमें बचाने कौन आएगा. पुलिस अधिकारी हमारी हत्या कर रहे थे.” उत्तर-पूर्वी दिल्ली के लोगों की कई शिकायतें कारवां के पास हैं जिनमें उन्होंने दिल्ली पुलिस के उन वरिष्ठ अधिकारियों के नाम लिए हैं जिन्होंने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुस्लिम निवासियों के खिलाफ लक्षित हिंसा का नेतृत्व किया, उस हिंसा में भाग लिया और उसे प्रोत्साहन दिया.
ये शिकायतें फरवरी और मार्च में दायर की गई थीं लेकिन अब तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई हैं जबकि ऐसा करना बाध्यकारी है. इस प्रकाशित श्रृंखला के पहले भाग में मैंने बताया था कि पुलिस ने भारतीय जनता पार्टी के आरोपी नेताओं के खिलाफ हिंसा का नेतृत्व करने की एफआईआर दर्ज नहीं की. अधिकांश शिकायतें मुस्तफाबाद के ईदगाह मैदान में बने राहत शिविर में स्थापित पुलिस सहायता डेस्क में दर्ज कराई गई थीं. शिकायतकर्ताओं की शिकायत है कि जब उन्होंने पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट दायर करने की कोशिश की तो पुलिस ने ऐसा नहीं किया. पुलिस सहायता डेस्क में दर्ज इन शिकायतों में घटना के अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशनों की मोहरे लगी हैं. बहुत-सी शिकायतें प्रधानमंत्री के कार्यालय, गृह मंत्रालय, दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय और अन्य पुलिस स्टेशनों को भी भेजी गई हैं.
कई शिकायतों में उत्तर पूर्वी-दिल्ली के डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या का नाम आरोपियों में है. 23 फरवरी को जब बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को सड़क से हट जाने की धमकी दी तो सूर्या ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. प्रदर्शनकारियों को धमका रहे मिश्रा के बगल में चुपचाप खड़े रहना इस बात का स्पष्ट संदेश था कि हिंसा को पुलिस का समर्थन मिला हुआ है. मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ता और नेताओं ने मिश्रा के इस बयान और उस पर डीसीपी की खामोश सहमति पर सवाल खड़े किए थे लेकिन उस दिन धमकी के बाद जो कुछ हुआ उस पर किसी ने रिपोर्ट नहीं की. संभवतः इसलिए कि दिल्ली पुलिस ने खुद के खिलाफ शिकायतों को दबा दिया.
दो शिकायतकर्ताओं ने अपनी शिकायत में कहा है कि 23 फरवरी को सूर्या कर्दमपुरी की गलियों में घूम-घूम कर नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को धमका रहे थे. उत्तर-पूर्वी दिल्ली के यमुना विहार में रहने वाले मोहम्मद जामी रिजवी ने अपनी शिकायत में लिखा है, “डीसीपी साहब सड़कों में घूम घूम कर दलित और मुसलमानों को धमका रहे थे.'' रिजवी ने अगले दिन अपनी शिकायत दर्ज की थी और वह उन चंद मुसलमानों में से एक हैं जो हिंसा के दौरान अपनी शिकायत दर्ज करा पाए थे. रिजवी ने सूर्या को शिकायत में उद्धृत करते हुए कहा है कि उन्होंने कहा था, “हमें ऊपर से आदेश है कि दो दिन बाद क्षेत्र में कोई प्रोटेस्टर नहीं होना चाहिए और अगर तुमने प्रोटेस्ट खत्म नहीं किया तो यहां ऐसे दंगे होंगे कि ना तुम बचोगे और ना ही यह प्रोटेस्ट. तुम सब मारे जाओगे.”
यमुना विहार के ही मोहम्मद इलियास ने अपनी शिकायत में रिजवी जैसे ही आरोप लगाए हैं. उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा है, “डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या ने गलियों में घूम-घूम कर कहना शुरू किया कि अगर तुमने यह प्रोटेस्ट खत्म नहीं कराए तो यहां ऐसे दंगे होंगे कि तुम सब मारे जाओगे.“ रिजवी ने यह शिकायत 17 मार्च को दर्ज कराई थी और इसमें दयालपुर पुलिस स्टेशन की मोहर लगी है.
एक अन्य शिकायतकर्ता रहमत ने भी शिकायत में पुलिस वालों के नाम लिए हैं. उन्होंने लिखा है कि उस दिन बाद में मिश्रा और सूर्या चांदबाग आए थे. रहमत ने अपनी शिकायत में लिखा है, “दिनांक 23.02 2020 को शाम 4 बजे के करीब कपिल मिश्रा, डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या अपने गुंडों के साथ आया जिनके हाथों में तलवारें, बंदूके, डंडे, त्रिशूल, भाले, पत्थर वगैरा थे और पुलिस वाले भी उनके साथ-साथ चल रहे थे.“ रहमत ने आगे लिखा है, “कपिल मिश्रा ने आते ही जोर-जोर से नारे लगवाए ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’, ‘जय श्री राम’, ‘कटुए मुर्दाबाद’ और फिर उनके साथ आए पुलिस वालों ने वहां खड़े लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया.”
इस इलाके के कम से कम पांच शिकायतकर्ताओं ने कहा है कि पुलिस की मौजूदगी और समर्थन में अगले दिन हिंसा तीव्र हो गई. 24 फरवरी की सुबह भारी तादाद में पुलिस और स्थानीय लोग चांदबाग के प्रदर्शन स्थल में आए और प्रदर्शनकारियों को जगह खाली कर देने की धमकी देने लगे और उनके खिलाफ सांप्रदायिक और जातिवादी शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे. चांदबाग की रुबीना बानो, इमराना परवीन और एक अन्य शिकायतकर्ता ने उस दिन सुबह प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के आरोप वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर लगाया हैं.
एक शिकायतकर्ता ने, जो अपना नाम का उल्लेख रिपोर्ट में नहीं चाहतीं, बताया कि 24 फरवरी को सुबह से ही पुलिस के जवान, एसएचओ, एसीपी और डीसीपी प्रदर्शन की जगहों में बड़ी संख्या में जमा होने लगे थे. ये शिकायतकर्ता भजनपुरा और दयालपुर स्टेशन के एसएचओ मीना और सिंह गोकलपुर पुलिस स्टेशन के एसीपी अनुज शर्मा और सूर्या का उल्लेख कर रही थीं. एक शिकायतकर्ता ने शिकायत में कहा है, “इसके बाद अर्ध सैनिक बल की वर्दी पहने बहुत सारे लोग प्रदर्शन स्थल पर इकट्ठे हो गए. उनके हाथों में ढेर सारे हथियार थे. ये सभी लोग दो-दो बंदूकें लिए हुए थे. वहां पंडाल में बैठी महिलाओं से पुलिस अधिकारियों ने कहा, ‘यह बहुत दिनों से चल रहा है आज तुम्हें जिंदगी से आजाद कर देंगे.’”
दो अन्य महिलाओं की शिकायतों में भी उपरोक्त बात की पुष्टि होती है. परवीन ने अपनी शिकायत में लिखा है कि सुबह करीब 10 बजे जब वह प्रदर्शन स्थल में पहुंचीं तो वहां पहले से ही बड़ी संख्या में पुलिस मौजूद थी. उन्होंने लिखा है, “पुलिस वाले प्रदर्शनकारियों से कह रहे थे ‘आज तुम्हारा आखिरी दिन है. तुम्हें आज पूरी आजादी मिल जाएगी.’” परवीन ने लिखा है कि पुलिस वालों ''के साथ काफी सारे उपद्रवी थे जिनके हाथों में डंडे, त्रिशूल, हथगोले, तलवारें, पत्थर वगैरह थे. वे नारे लगा रहे थे ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को.’ कई पुलिसवाले दो-दो बंदूकें हाथों में लिए थे और एसएचओ दयालपुरहम औरतों को धमका रहे थे कि ‘तुम्हें पहले भी कई बार समझाया था कि प्रोटेस्ट खत्म कर दो मगर तुम्हें समझ नहीं आई, आज हमें ऊपर से आदेश मिल गया है कि किसी को छोड़ना नहीं है.’”
बानो ने अपनी शिकायत में आगे लिखा है कि 24 फरवरी को सुबह लगभग 11 बजे वह धरनास्थल पर पहुंचीं तो देखा कि वहां बहुत सारे पुलिस वाले, एसीपी अनुज शर्मा, दयालपुर थाना एसएचओ तारकेश्वर सिंह, मौजूद थे और औरतों से बहस कर रहे थे और अपशब्द कह रहे थे. वे लोग कह रहे थे कि अगर प्रदर्शन बंद नहीं किया तो हमें मार देंगे.
इस श्रंखला के पहले भाग में कारवां ने बानो की शिकायत में एक महत्वपूर्ण क्षण की नोट किया था जिसमें उन्होंने लिखा है, " मैंने एसीपी अनुज कुमार से पूछा कि ‘हम तो चुपचाप शांतिपूर्ण तरीके से पंडाल के अंदर बैठकर प्रोटेस्ट कर रहे हैं तो आप क्यों हमें उल्टा सीधा बोल रहे हैं’ तो वह गाली देकर बोला कि ‘कपिल मिश्रा और उसके लोग आज तुम्हें यहीं तुम्हारी जिंदगी से आजादी देंगे.’ बानो आगे लिखती हैं, “फिर इतने में दयालपुर थाना के एसएचओ तारकेश्वर तेजी से आए और आकर फोन एसीपी साहब को देते हुए बोले कि ‘साहब कपिल मिश्रा जी का फोन है.’ उनसे बात करते हुए एसीपी साहब ‘जी’, ‘जी’ बोल रहे थे. फिर फोन रखते हुए बोले फिक्र मत करो लाशें बिछा देंगे इनकी पुश्तें याद रखेंगी.” बानो ने आगे लिखा है, “फोन रखते ही एसीपी ने एसएचओ वगैरह सब से कहा कि मारो सालों को.”
हिंसा की चारों शिकायतों में प्रदर्शनकारियों पर बेरहमी से हमले की बात है. परवीन ने अपनी शिकायत में लिखा है, “पुलिस वालों ने वहां मौजूद लड़कों व हम औरतों पर हमला शुरू कर दिया और पुलिस वालों ने, जिनके पास बंदूकें थीं, उन्होंने लड़कों को गोलियां मारनी शुरू कर दी और इस बीच मोहन नर्सिंग होम के ऊपर से उसके मालिक और नौकरों ने हम सब पर गोलियां दागनी शुरू कर दी जिससे कई लोग मौके पर ही मारे गए.”
परवीन ने भजनपुरा पुलिस स्टेशन के एक अन्य एसीपी, दिनेश शर्मा की पहचान की, जिन पर उन्होंने हिंसा का नेतृत्व करने और प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया था. "हमने देखा कि पुलिस अधिकारी खुद पथराव और गोलीबारी कर रहे थे," उन्होंने कहा. परवीन ने लिखा कि दिनेश ने दंगाइयों से कहा कि वे उत्तर प्रदेश के बागपत निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी के सांसद सत्य पाल सिंह का नाम लेकर प्रदर्शनकारियों को मार दें. सत्यपाल 2014 में इस्तीफा देने तक मुंबई में पुलिस आयुक्त के रूप में काम कर चुके थे. “एसीपी दिनेश शर्मा दंगाइयों पर चिल्ला रहा था, 'आज हमें वही करना चाहिए जो सतपाल सांसद जी ने हमें बताया है. आगे बढ़ो, डरो मत. पुलिस तुम्हारे साथ है. एक-एक को चुनकर जिंदगी से आजादी देनी है. ''
परवीन ने लिखा कि फिर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर आंसू गैस के गोले फेंके. उनकी शिकायत के अनुसार, ''जिससे हमारी आंखों में मिर्च लगने लगी, इसी बीच मोहन नर्सिंग होम का व उसके नौकर अपने साथियों के साथ गाड़ियां लेकर आए और बाकी लोगों से कहा, 'इनकी सारी जवान औरतों को उठा कर ले चलों," उन्होंने लिखा. “वे हमें जबरन हटाने लगे, उन्होंने हमारे कपड़े फाड़ दिए और हमारी इज्जत पर हमला किया.जिसके बाद कुछ लड़के हमारी इज्जत और जान बचाने के लिए आगे भागे तो इन लोगों पर मोहन नर्सिंग होम के ऊपर से गोलियां चलानी शुरू कर दी जिससे हमारे कई लड़के वहीं गिरकर मर गए. जो लोग बचे थे, उन्होंने हमें बड़ी मुश्किल से दंगाइयों से बचाया.''
दूसरों ने भी यौन हिंसा के बारे में शिकायत में लिखा है. रहमत ने लिखा, "उन्होंने औरतों की इज्जत पर हमला करना शुरू कर दिया, जबकि पुलिस उनकी मदद कर रही थी. वे औरतों को गंदी-गंदी गालियां दे रहे थे, कह रहे थे, 'आज हम उनके कपड़े फाड़ देंगे और उनको घुमाएंगे."
चांद बाग के रहने वाले साबिर अली ने 16 मार्च की अपनी शिकायत में औरतों पर हमला करने वाले पुलिस अधिकारियों की पहचान की है. "मैंने देखा कि एसएचओ भजनपुरा ने औरतों के ऊपर लाठी से हमला किया और फिर उनके साथ आज दूसरे एसएचओ और पुलिस वालों ने भी औरतों को बुरी तरह से मारना पीटना शुरू कर दिया." वह उस समय आरएस मीणा, भजनपुरा एसएचओ और तारकेश्वर सिंह, दयालपुर एसएचओ का जिक्र कर रहे थे. अली ने हमलावरों के संदर्भ में उन्होंने कहा, "जो लोग मर जाते उन्हें मोहन नर्सिंग होम की गाड़ी में डाल कर ले जाते. यह सब वहां मौजूद पुलिस की मौजूदगी में चलता रहा.” अली की शिकायत पर एमएचए, एलजी कार्यालय और दिल्ली पुलिस आयुक्त के कार्यालय की प्राप्ति की मुहर दर्ज है.
पुलिस की ज्यादती अकारण गोलीबारी और यौन हमले की जटिलता तक सीमित नहीं थी. शिकायतकर्ताओं के अनुसार, पुलिस उस तंबू को जलाने के लिए आगे बढ़ी, जहां सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी बैठे हुए. पंडाल के अंदर, प्रदर्शनकारियों ने भीमराव अंबेडकर, सावित्री बाई फुले और अशफाकुल्ला खान जैसे राजनीतिक प्रतीकों के पोस्टर भी लगाए थे, जिन्हें पुलिस अधिकारियों ने विशेष रूप से नष्ट कर दिया था. बानो ने अपनी शिकायत में लिखा है, "पंडाल में घुसकर गालियां देते हुए बोले, 'तुमे आजादी चाहिए थी, अभी तुम्हारा जय भीम निकालते हैं." "जय भीम" अंबेडकरी आन्दोलन का नारा है जो सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान एक लोकप्रिय नारा बन गया था. बानो ने कहा, "फिर एसीपी अनुज कुमार ने बाबासाहेब अंबेडकर के बैनर को खींचकर उतारा और बाबा साहिब के मुंह पर पैर रखकर रगड़ने लगे"
अंबेडकर का अपमान कुछ ऐसा था जिसे अन्य शिकायतकर्ताओं ने भी नोट किया गया था, जिन्होंने इसे देखा था. रहमत ने लिखा, "इन लोगों ने पेट्रोल बम मार कर पंडाल में जिसमें बाबासाहेब आंबेडकर की छह से सात, सावित्री बाई फुले, भगत सिंह, अशफाकुल्ला खान, तिरंगा झंडा व यासीन शरीफ की तस्वीरें थीं." यासीन शरीफ इस्लामिक धार्मिक ग्रंथ का एक हिस्सा है जिसे "कुरान के दिल" के रूप में जाना जाता है. रहमत ने आगे कहा, "और खास तौर से बाबा साहब के फोटो को काट-काट कर आग के हवाले किया."
चांद बाग के शिकायतकर्ता ने नाम न छापन का अनुरोध करते हुए लिखा, "उन्होंने सावित्रीबाई फुले, अशफाउल्ला खान, अब्दुल कलाम आजाद और हमारे यासीन शरीफ की तस्वीरों को आग में फेंक दिया." और एसीपी (अनुज कुमार) ने वहां पर आदमियों पर गोलियां चलाईं जिससे कुछ की मौत हो गई. मैं यह देखकर घबरा गया, और सोचने लगा कि हमें कौन बचाएगा. पुलिस अधिकारी हमें मार रहे हैं. फिर मैं अपनी जान बचाने के लिए भाग गया.”
परवीन की शिकायत के अनुसार, कुछ महिला प्रदर्शनकारियों ने अगले दिन अपना विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू करने का प्रयास किया, लेकिन स्थानीय लोगों और पुलिस के हिंसक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. "25.02.2020 को, मैं और कुछ खवातीन दुबारा जले पंडाल में गईं और वहां पर चादर बिछा कर बाबा भीमराव अंबेडकर की फोटो एक बार फिर लगा कर बैठ गए," उन्होंने लिखा. "तकरीबन 1 बजे, मोहन नर्सिंग होम का मालिक और खाकी रंग के कपड़े पहने हुए कुछ लोग फिर से नर्सिंग होम की छत से पत्थर और गोलियां चलाने लगे. इस हमले के दौरान, एक गोली 17 नंबर गली में रहने वाले एक लड़के के सीने में लगी उसने वहीं दम तोड़ दिया. एसएचओ दयालपुर ने वहां मौजूद बाबा भीमराव अंबेडकर के फोटो को फाड़ कर टुकड़े टुकड़े कर फेंक दिया और बोले कि ये भीम अपने को ही नहीं बचा सकता, तो तुमको क्या बचाएगा?' और फिर दंगाइयों के साथ हम पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया. जिसमें काफी सारी ख्वातीनों के चोटें आईं.”
इलियास की शिकायत के अनुसार, शाम तक पुलिस की हिंसा जारी रही. उन्होंने लिखा कि उस समय के आसपास जब मुस्तफाबाद के बृजपुरी क्षेत्र के लोग मगरिब की नमाज की तैयारी कर रहे थे, पुलिस और एक भीड़ ने पड़ोस में पर हमला किया था और एक स्थानीय मस्जिद, फारूकिया मस्जिद को आग लगा दी. कारवां ने पहले बताया था कि हमले में बचे दो लोगों ने कहा कि उन्होंने पुलिस कर्मियों को मस्जिद में आग लगाते देखा. "हमले की खबर फैलते ही इलाके का पूरा मुस्लिम समुदाय भय के माहौल में रहने लगा था," इलियास ने कहा. "हर किसी ने सारी रात दुआ करते हुए बिताई."
इलियास ने लिखा है कि अगली सुबह वह आग के बाद की स्थिति का जायजा लेने फारूकिया मस्जिद गए थे तो उन्होंने देखा कि कुछ पुलिस वालों के साथ दयालपुर के एसएचओ तारकेश्वर और "चावला" जो स्थानीय जनरल स्टोर का मालिक और इलाके का एक रसूखदार आदमी है, घटनास्थल पर पहले से ही मौजूद हैं. इलियास की शिकायत के अनुसार, पुलिस अधिकारियों और चावला के सहयोगियों ने इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ना करना शुरू कर दिया और मस्जिद और उससे सटे एक मदरसे में तोड़फोड़ की. इलियास ने लिखा कि उन्होंने तारकेश्वर से हस्तक्षेप करने की विनती की थी लेकिन एसएचओ ने बीच-बचाव करने से मना कर दिया और जवाब दिया, "तुम्हें कितना समझाया था कि प्रोटेस्ट बंद कर दो तब तो तुम्हें अक्ल नहीं आई."
जैसा कि इस श्रृंखला के पहले भाग में बताया गया है, इलियास ने लिखा कि चावला ने तारकेश्वर से फोन पर संपर्क किया और उन्हें बताया कि सांसद सत्यपाल सिंह की ओर से उनके लिए फोन आया है. थोड़ी देर तक फोन पर बात करने के बाद, तारकेश्वर ने फोन नीचे रख दिया और चावला को निर्देश दिया कि मस्जिद और मदरसे से जो कुछ भी पैसा उन्होंने इकट्ठा किया है उसे सत्यपाल के घर ले जाएं. “चावला जी ने अलमारी से सारे पैसे एक बैग में भर लिए. बैग में ऊपर से ही रुपए भरे हुए दिखाई दे रहे थे.” इलियास ने बताया .
इलियास ने कहा कि एसएचओ ने तब उनसे कहा, "सभी मुसलमानों को समझाएं कि वे इस इलाके को छोड़ कर भाग जाएं, वरना वे सभी मारे जाएंगे." उन्होंने लिखा कि पुलिस के जवानों ने तारकेशर की कार से पेट्रोल निकाल लिया और मदरसे के अंदर ले गए. "पुलिस कर्मियों ने मदरसे में आग लगा दी, और जैसे ही धुआं उठा, चावला और पुलिस बल साइट से बाहर निकल गए."
दिल्ली में नरसंहार के दिनों में और उसके बाद, सोशल और न्यूज़ मीडिया राष्ट्रीय राजधानी में हो रही हिंसा की वीडियो से भर गया था. कई वीडियो और रिपोर्टों में पुलिस को दिखाया गया था कि वह सीएए के प्रदर्शनकारियों पर हमले में भाग ले रही थी, हिंदुत्व की भीड़ के साथ घूम रही थी, या बिना दखल दिए मुस्लिम समुदायों पर हिंसा को होते देख रही थी. कई रिपोर्टों में यह भी बताया गया है कि कैसे मुस्लिम इलाकों में हिंसा को स्पष्ट रूप से लक्षित किया गया था और पुलिस ने जब प्रदर्शनकारियों पर हमला किया तो उन्हें “जय श्री राम” जैसे हिंदुत्व के नारे लगाते देखा जा सकता था. फिर भी पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई हिंसा पर दायर की गई शिकायतों के बारे में एक भी रिपोर्ट नहीं दर्ज की.
इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, यह आश्चर्यजनक है कि दिल्ली पुलिस ने इन शिकायतों में एफआईआर दर्ज नहीं की है, इस तथ्य के बावजूद कि वे विशिष्ट अधिकारियों की पहचान करते हैं और उनके द्वारा किए गए अपराधों का वर्णन करते हैं, जिन्हें अक्सर शिकायतकर्ताओं ने सीधे देखा है. इन सभी शिकायतकर्ताओं ने उल्लेख किया कि पुलिस ने शुरू में उनकी शिकायतों को मानने से मना कर दिया था, आखिर में ईदगाह राहत शिविर के हेल्प डेस्क पर जाकर यह दर्ज हो पाई.
"सर, मैंने कई बार पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करने की कोशिश की है, लेकिन उन्होंने मेरी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया और अगर मैंने शिकायत करने की कोशिश की तो मुझे दंगे में फंसाने और जेल में डालने की की धमकी दी गई," इलियास ने अपनी शिकायत में दयालपुर पुलिस स्टेशन को संबोधित करते हुए लिखा. इसी तरह, उसी स्टेशन को संबोधित अपनी शिकायत में, परवीन ने लिखा, "थाने में हमारी शिकायत भी नहीं की जा रही है और उल्टा धमका रही है अगर कोई शिकायत करेगा उसे क्राइम ब्रांच से 302 के केस में उठवा देंगे और जिंदगी तबाह कर देंगे” उन्होंने कहा, "इसी वजह से कोई भी कंप्लेन दर्ज कराने सामने नहीं आ रहा है. और झेठे केसो में फंसा रहे हैं."
गुमनामी का अनुरोध करने वाले चांद बाग के निवासी ने इस संबंध में सबसे अधिक शिकायत की थी. "पुलिस ने हमें शिकायत से पुलिस और अन्य लोगों के नाम हटाने और बिना किसी नाम के दर्ज करने के लिए कहा," उन्होंने लिखा. उसने बाद में मुझे बताया कि उसने दयालपुर पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा, “हमारे पास ऊपर से आदेश है कि नामित व्यक्तियों के साथ किसी भी शिकायत को स्वीकार न करें. इस वजह से मैं कई दिनों से संघर्ष कर रहा हूं, और अब पुलिस मुझे धमकी दे रही है कि वे मुझे और मेरे परिवार को किसी भी एफआईआर में फंसा देंगे और हम सभी को जेल में डाल देंगे. '
साबिर अली ने अपनी शिकायत में लिखा है कि जब उन्होंने दयालपुर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करने की कोशिश की तो दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने हस्तक्षेप किया. अली ने कहा कि दयालपुर पुलिस द्वारा कई मौकों पर हमारी शिकायत को अस्वीकार करने के बाद, 10 मार्च को, "अपराध शाखा के कुछ लोग मेरे पास आए और पूछा, ''तुम एफआईआर दर्ज करना चाहते हो? अब सारा मामला हम देख रहे हैं. '' उन्होंने लिखा कि उन्होंने उनसे पूछा कि उनके पास क्या सबूत हैं. उनके 20 वर्षीय बेटे ने उन्हें पुलिस हिंसा के वीडियो दिखाए, जो उन्होंने अपने फोन पर रिकॉर्ड किए थे, शिकायत के अनुसार इसके बाद पुलिस जबरदस्ती उनके बेटे और फोन को क्राइम ब्रांच में ले गई.
अली ने लिखा कि उन्होंने शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस हेल्पलाइन नंबर 100 पर फोन किया तब जाकर उन्हें दयालपुर पुलिस ने बताया कि उनके बेटे को उनकी शिकायत पर एफआईआर और अपना बयान दर्ज कराने के लिए ले जाया गया था. उन्होंने कहा कि उनके बेटे को अगले दिन पुलिस स्टेशन से रिहा कर दिया गया, लेकिन उन्होंने फोन रख दिया. अली ने लिखा, कि बेटे के रिहा होने के बाद, "उन्होंने मुझे और मेरे बेटे को कुछ कोरे कागजों पर साइन करने के लिए मजबूर किया, जबरदस्ती उनका फोन उनसे ले लिया, और फिर कहा, 'हम अभी व्यस्त हैं, हमें एफआईआर दर्ज कराने में थोड़ा समय लगेगा, तुम कल आ जाना.'' जिस समय अली ने अपनी शिकायत दर्ज की थी, उस समय उन्हें फोन वापस नहीं मिला था और उनकी शिकायत पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी.
मैंने दिल्ली के पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव और जनसंपर्क अधिकारी को इन शिकायतों की जांच और आरोपी अधिकारियों के खिलाफ क्या कोई कार्रवाई की गई थी इसके बारे में जानकारी देने के लिए ईमेल किया था. मैंने डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या, एसीपी अनुज शर्मा और दिनेश शर्मा और एसएचओ आरएस मीणा से भी उनके खिलाफ लगे आरोपों के जवाब के लिए संपर्क किया. जब मैंने नियंत्रण कक्ष द्वारा दिए गए मीणा के नंबर पर कॉल किया तो एक पुलिस अधिकारी ने बिना अपनी पहचान बताए कहा एसएचओ ने कहा है "दो-तीन दिनों के लिए" छुट्टी पर हैं और उनका कोई और नंबर देने से मना कर दिया. मैं तारकेश्वर सिंह से भी संपर्क करने में असमर्थ था क्योंकि दिल्ली पुलिस नियंत्रण कक्ष और दयालपुर पुलिस स्टेशन ने पूर्व एसएचओ का नंबर नहीं दिया. मैंने इन पुलिस अधिकारियों के उपलब्ध नंबरों पर संदेश छोड़ दिए और दो एसीपियों और तारकेश्वर से संबंधित अपने प्रश्न रंधावा को भेजे.
22 जून को सूर्या ने मुझे यह बताने के लिए फोन किया कि उन्होंने पहले ही रंधावा को जवाब भेज दिया है. इस बीच, तीन दिन बाद जब मैंने पहली बार रंधावा से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क करने और इस श्रृंखला की पहली रिपोर्ट प्रकाशित होने के अगले दिन पीआरओ ने रात में मुझे फोन किया और दावा किया कि प्रश्न "सटीक नहीं थे." रंधावा ने आगे कहा, "कई सारी शिकायतों पर तो बात की, लेकिन आपने कोई विशेष शिकायत नहीं बताई है.' यह देखते हुए कि उनसे पूछे गए सवालों ने बीजेपी नेताओं और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ फरवरी की हिंसा में शिकायत के जवाब के लिए जवाब मांगा था, रंधावा की प्रतिक्रिया लापरवाही से यह स्वीकारती हुई लगती है कि ऐसी कई शिकायतों हुईं थी. पीआरओ ने कहा, "हमें आपकी रिपोर्ट पढ़ने के बाद ही विशिष्ट शिकायतों के बारे में पता चला, और अब हम उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देंगे." मैंने अपने फोन कॉल के बाद सवालों की एक और सूची रंधावा को भेजी. फिर भी इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक न तो पीआरओ और न ही अन्य पुलिस अधिकारियों ने कोई प्रतिक्रिया दी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
शिकायत दर्ज करने में सफल रहने वाले उत्तर-पूर्वी दिल्ली के निवासियों में से कई ने कहा कि उन पर पुलिस ने कई बार शिकायत वापिस लेने के लिए दबाव डालती रही. मैं कारवां के फोटो जर्नलिस्ट शाहिद तांत्रे के साथ इन शिकायतकर्ताओं से मिला और उनके वीडियो बयान दर्ज किए. परवीन ने मुझे बताया, "मैं पूरे दो महीने तक रात को सो नहीं सकी. मुझे हमेशा डर रहता कि वे किसी कोने से आ जाएंगे." उन्होंने कहा कि पुलिस ने उसे धमकी दी है, "अगर तुम शिकायत दर्ज कराओगी तो हम तुम्हारी जिंदगी खराब कर देंगे और तुमको 302 के मामले में फंसा देंगे." परवीन ने कहा कि उन्हें पुलिस और स्थानीय लोगों का डर है, जिन्होंने उन पर हमला किया था. उन्होंने मुझसे कहा, "जब भी मुझे वह याद आता है तो मैं रोना बंद नहीं कर पाती क्योंकि जो लोग गोलियों की चपेट में आ गए, जिनके सिर में घाव हो गए, जिन महिलाओं को पीटा गया मैंने यह सब अपनी आंखों से देखा."
परवीन ने कहा कि वे फिर भी शिकायत को आगे बढ़ाने के खिलाफ दबाव बनाने के लिए पुलिस के प्रयासों का विरोध कर रही थीं. उन्होंने कहा कि दयालपुर स्टेशन से पुलिस लॉकडाउन के दौरान कई बार उनके घर पर आई है, और उन्हें हर बार अपनी शिकायत वापस लेने के लिए कहा, यहां तक कि उनके यह पूछने पर भी कि क्या उसकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई है. उन्होंने कहा, "पुलिस अधिकारियों ने बार-बार मुझसे कहा, 'अपनी शिकायत वापस ले लो या तुम एक लंबे कानूनी मामले में फंस जाओगे'. लेकिन मैंने उनसे कहा, 'मैं अपनी शिकायत वापस नहीं लूंगी. भले ही मेरे साथ फिर जो भी हो, मैं अपना हक पाकर रहूंगी.'”
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