एक औरत माइक पर बुलंद आवाज में कह रही थी, “अमित शाह ने कहा है कि वह सीएए (नागरिकाता संशोधन कानून) पर एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे, तो हम भी उनसे कहना चाहते हैं कि हम यहीं पर डटे रहेंगे एक मिलीमीटर भी पीछे नहीं हटेंगे.” ये हैं शाहीन बाग की दिलेर औरतें जो आंचल को परचम बनाकर सत्ता को ललकार रही हैं.
इन औरतों और इस विरोध प्रदर्शन को समझने के लिए शाहीन बाग को समझना जरूरी है. आखिर कौन लोग हैं जिन्होंने 25 दिन से हाईवे रोक रखा है. खुद तो कोशिश कर ही रहे हैं, औरों को भी राह दिखा रहे हैं. लोग जुड़ रहे हैं कारवां बन रहा है.
ख्वाब देखने और उसकी ताबीर पाने के लिए जद्दोजहद करने वाले मेहनतकश लोगों का मोहल्ला है शाहीन बाग. पूरे जामिया नगर इलाके में, जिसमें बाटला हाउस, जाकिर नगर, अबुल फजल, गफ्फार मंजिल, नूर नगर, गफूर बस्ती वगैरह शामिल हैं, शाहीन बाग सबसे नई आबादी है. 1984-85 तक यहां छोटे-मोटे सब्जियों के खेत देखने को मिल जाते थे. उसी दौरान हिंदू गुज्जरों ने प्लॉट काट कर बेचने शुरू किए. इस वक्त तक आसपास जामिया नगर की आबादी काफी घनी हो चुकी थी, तो लोगों ने यहां पर सस्ती जमीन खरीदनी शुरू कर दी. काफी ऐसे लोगों ने भी प्लॉट खरीद कर डाले जो अरब देशों में छोटी-बड़ी नौकरियां कर रहे थे. सन 1990 तक भी यहां सड़कें कच्ची ही थी, न तो सीवर लाइन थी और न ही बिजली. 1989-90 तक यहां कुल पचास साठ घर ही रहे होंगे. खरीद कर छोड़ दिए गए प्लॉटों में चूंकी पानी भरा रहता था तो मच्छर भी गजब के थे. इद्रीस साहब जो उस वक्त यहां रहते थे, हंसते हुए बताते हैं, “मच्छरदानी बाहर से बिलकुल काली हो जाती थी. बिजली होती नहीं थी तो अंदर जो मच्छर घुस जाते थे उन्हें टॉर्च की रोशनी में देख-देख कर मारते थे.” सन 1992 में बाबरी मस्जिद के ढाए जाने के बाद यहां पर आबादी कई गुना बढ़ गई. मिली-जुली कॉलोनियों से मुसलमान तब तहफ्फुज (सुरक्षा) की खातिर यहां आ बसे. तब यहां कुछ हिंदुओं और सिखों के भी मकान थे जिन्हें वह अच्छे दामों में बेचकर चले गए.
आज तो यहां बहुत घनी आबादी है. अब तो ऊंचे-ऊंचे अपार्टमेंट नजर आते हैं. जिन प्लॉटों पर यह तामीर हैं वह 25 गज से लेकर 300-400 गज तक के भी हैं. उसी तरह की रंग-बिरंगी आबादी है. यहीं घर मकान तामीर करने वाले गरीब मजदूर, प्लंबर, कारपेंटर, वेल्डर, ग्रिल बनाने वाले सभी परवाज खोज रहे हैं और यहीं जामिया के प्रोफेसर हजरात और रईस कारोबारी बसे हैं. पतली, तंग गलियां भी हैं और चालीस फुटा रोड भी. बस्ती के एक तरफ रोड के पार यमुना है और दूसरी तरफ यमुना के दो गंदे नाले बहते हैं, जहां कूड़े का अंबार है. एक नाला पाट कर उस पर दो मोहल्ला क्लीनिक, मेट्रो तक जाने का पुल और एक पार्क की पट्टी सी बना दी गई है. इस पार्कनुमा पट्टी पर कुछ बेंचें पड़ी हैं और वर्जिश वाले पहिए और साईकल जड़ी हैं जहां औरतें और बच्चे धूप सेकते और वर्जिश करते नजर आ जाते हैं. इसके एक किनारे पर आम आदमी पार्टी के विधायक अमानातुल्लाह खान का दफ्तर भी है. अब बिजली के मीटर लग गए हैं और सीवर लाइनें भी पड़ी हैं. लेकिन म्युनिसिपालिटी का पीने लायक पानी अब भी मुहय्या नहीं है. उसे तो हर गरीब-अमीर परिवार को खरीदना ही पड़ता है. अगर आप सड़कों पर से गुजरेंगे तो ठेले पर पानी के कैन बेचने के लिए आवाज लगाते लोग नजर आ जाएंगे. ज्यादा ही गरीब परिवारों के बच्चे दूर लगे म्युनिसिपालिटी के नलों से पानी भरने में दिन के कई घंटे खराब करते हैं. नाले के दूसरी तरफ जसोला विहार के डीडीए फ्लैट्स और बंगले हैं. यह साफ-सुथरा इलाका है. मेरा बसेरा यहीं पर है. शाहीन बाग के बहुत से बाशिंदों के लिए इस अरमानों की बस्ती की तरफ लांघना कोई आसान बात नहीं है. लेकिन धीरे-धीरे कई सारे लोगों ने जसोला विहार में घर खरीदे हैं. दक्षिण सिम्त पर जी डी बिरला मार्ग से आगे जाने पर कालिंदी कुंज होता हुआ रास्ता नोएडा से जुड़ता है. इस रोड पर काफी सारे फैक्ट्री आउटलेट हैं. शाहीन बाग के पूर्व की तरफ अब एक बड़ा कब्रिस्तान है. यह जगह पहले उत्तर प्रदेश में आती थी. लोगों की कोशिशों से पुरानी सरकार ने यह कब्रिस्तान के लिए दे दी थी. तब जगह-जगह एक विधायक को शुक्रिया कहते हुए ढेरों पोस्टर दीवारों पर लगे थे. रोजमर्रा की बुनियादी सहूलियतों की शदीद कमी की सूरत में सियासत गरमाई रहना लाजमी है. आवाज बुलंद किए बगैर- खुशामद, रिश्वतखोरी और वोटों के खरीद फरोख्त से- कुछ गाड़ी चल जाती थी, लेकिन अब तो जान ही पर बन आई तो सड़क पर उतरना पड़ा.
शाहीन बाग की हर दूसरी गली में आपको कोई कम फीस वाला प्राइवेट स्कूल या फिर कोचिंग और ट्यूशन सेंटर जरूर मिल जाएगा. दो सौ, तीन सौ गज में बने छोटे प्राइमरी और मिडिल स्कूल चल रहे हैं और अच्छा पैसा बना रहे हैं. कुछ के नाम मजेदार हैं- नेशनल वेलफेयर, न्यू विजन, विजडम, ग्रीन ट्रीज पब्लिक स्कूल वगैरह. तालीम के जरिए आगे बढ़ने की राह तलाश रहे लोग बच्चों की ‘अंग्रेजी’ और ‘बेहतर शिक्षा’ की खातिर इनमें काफी ज्यादा फीस भरनी होती है.
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