2017 अगस्त में मुख्य रूप से बिहार और झारखंड में आधार वाली जनता दल (युनाइटेड) ने “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के आरोप में पार्टी के संस्थापक नेता शरद यादव को पार्टी से बाहर कर दिया. 7 बार सांसद रहे शरद यादव 2006 से 2016 तक जदयू के अध्यक्ष थे. उनके नेतृत्व में जूदयू ने 2015 में बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से गठबंधन किया. शरद यादव के अनुसार जदयू नेता नीतीश कुमार ने लालू यादव से 25 बार मुलाकात की लेकिन बाद में उनकी सिफारिशों के कारण ही वह गठबंधन बना पाया था. चुनाव में गठबंधन की जीत हुई थी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे.
जदयू 2003 से 2013 तक बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा थी. इसके राजद और कांग्रेस के साथ बने महागठबंधन को बिहार की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत माना गया. एनडीए के साथ गठबंधन कर जदयू ने दो बार विधान सभा चुनाव जीता था. 2008 से 2013 शरद यादव एनडीए के कंवीनर थे लेकिन 2013 में नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने का जदयू ने विरोध किया. 2014 में मोदी को एनडीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने का भी जदयू ने विरोध किया. इसके बाद दोनों पार्टी के बीच एक दशक लंबी साझेदारी का अंत हो गया.
2017 में जदयू, महागठबंधन से अलग हो कर दुबारा एनडीए में शामिल हो गई. इस निर्णय का विरोध करने के चलते शरद यादव को पार्टी से बाहर होना पड़ा. पार्टी से बाहर होने के कुछ हफ्तों बाद शरद यादव ने दिल्ली में एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें 16 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों ने भाग लिया. सम्मेलन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित कई नेताओं ने 2019 के आम चुनावों के लिए महागठबंध की योजना पर विचार विमर्श आरंभ किया. इस मीटिंग का नाम “साझी विरासत बचाओ” था. मई 2018 में शरद यादव ने “लोकतांत्रिक जनता दल " का गठन किया. हाल में उनकी पार्टी बिहार में कांग्रेस-राजद गठबंधन के साथ है.
इस साल 9 मार्च को गठबंधन के कयास के बीच शरद यादव ने रांची में लालू प्रसाद यादव से भेट की. जिस वक्त यह मुलाकात हो रही थी पटना में राजद की संसदीय दल की बैठक जारी थी. यादव, गठबंधन की एकता पर स्पष्ट हैं लेकिन सहयोगियों के मध्य सीटों के बंटवारे की विस्तृत जानकारी देने से इनकार करते हैं. मीटिंग के बाद राजद ने घोषणा की कि महागठबंधन पर अंतिम निर्णय लालू प्रसाद यादव करेंगे.
शरद यादव ने आगामी लोक सभा चुनावों पर कारवां के स्टाफ राइटर सागर और रिपोर्टिंग फेलो तुषार धारा से बात की. यादव ने महागठबंधन, उसकी चुनावी रणनीति और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार जैसे सवालों का जवाब दिया. वे कहते हैं, “यह विपक्ष के गठबंधन का चरित्र होता है कि वह अपने नेता की घोषणा पहले नहीं करता. चुनाव के बाद एकमत से सहमति बना ली जाती है.”
सागर और तुषार धारा : आपने कहा था आगामी लोक सभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को हराने के लिए संभावित एकता और पूर्ण एकता की संभावना है. क्या इस विषय में विस्तार से बताएंगे?
शरद यादव : मेरा यह कहना था कि 2014 का बीजेपी का वोट प्रतिशत 31 है और इससे बाहर 69 प्रतिशत है. तो 69 प्रतिशत के लिए हम लोगों की कोशिश है कि एक मोटी-मोटी एकता हो जाए. यदि मान लें कि वह एकता नहीं बनती तो भी एक संभावित एकता तो हो ही जाएगी.
देखिए बंगाल में ममता (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री) जीतेंगी या लेफ्ट जीतेगी या कांग्रेस जीतेगी. ये तीनों बीजेपी के खिलाफ हैं. उत्तर प्रदेश में जो भी दल लड़ रहे हैं, वे सब बीजेपी के खिलाफ प्रतिबद्ध दल हैं. तो मैंने कहा कि संभावित एकता भी हो जाएगी और चुनाव के बाद पूर्ण एकता भी हो जाएगी.
सागर-धारा : क्या इसका मतलब यह है कि यदि गठबंधन साझेदार उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत हासिल करते हैं तो गैर-कांग्रेसी उम्मीदवार प्रधानमंत्री बन सकता है?
शरद यादव : देखिए 1977 में कोई प्रधानमंत्री घोषित नहीं हुआ था. (जनता सरकार में जनता मोर्चा और वाम दल शामिल थे. जनता मोर्चा स्वयं कांग्रेस (ओ), भारतीय जनसंघ, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोक दल से मिल कर बना था.) मोरारजी भाई बन गए. मोरारजी भाई से अधिक संख्या में लोक दल के सांसद थे. 1989 में जन मोर्चा के 5 से 10 सांसद थे. (1989 के आम चुनाव में राष्ट्रीय फ्रंट की जीत हुई. यह बीजेपी, वाम मोर्चा और जनता दल से मिल कर बना था. 1988 में विभिन्न दलों से मिल कर जनता दल बनी थी.) चौधरी देवी लाल का चयन किया गया. सहमति बनी की चौधरी देवी लाल प्रधानमंत्री बनेंगे. (चुनाव के बाद देवी लाल ने वी. पी. सिंह के नाम का प्रस्ताव दिया और खुद उप प्रधानमंत्री बन गए.) 1996 में युनाइटेड फ्रंट गठबंधन था और प्रधानमंत्री का चयन चुनाव के बाद हुआ. जनता दल के नेता देवगौडा प्रधानमंत्री बने. विपक्ष के गठबंधन का चरित्र ही होता है कि पहले से किसी नेता के नाम की घोषणा नहीं की जाती. चुनाव के बाद एकमत से सहमति बन जाती है.
सागर-धारा : आपको क्या लगता है, प्रधानमंत्री कांग्रेस से बनेगा या महागठबंध से?
शरद यादव : अभी इस पर मैं कुछ कहने को ठीक नहीं मानता. लेकिन सबसे बड़ी संख्या तो कांग्रेस की ही आएगी.
सागर-धारा : कितनी आएगी?
शरद यादव : सबसे अधिक आएगी अब इसका गणित क्या है. उसके पास उत्तर प्रदेश है, देश की सभी जगह से उसका कोई न कोई सांसद तो आएगा ही.
सागर-धारा : बिहार में, महागठबंधन आपकी पार्टी को कितनी सीटें देगा?
शरद यादव : अभी हम लोगों में सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है. बातचीत चल रही है. सवाल सीटों के बंटवारे का नहीं है. हम लोग देश का संविधान और लोकतंत्र बचाने के लिए साथ खड़े हुए हैं. मैं जदयू का संस्थापक था. 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में महागठबंधन को दो तिहाई सीटें मिली थीं. बीजेपी को विपक्ष के रूप में काम करने का मौका जनता ने दिया था. जदयू ने मतदाता के साथ जो करार था, उसे तोड़ दिया. करार का मतलब ईमान होता है. उस ईमान को आप कैसे तोड़ सकते हो. हम इसके खिलाफ खड़े हुए.
सागर-धारा : क्या आपकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेगी, जैसा की कुछ पत्र-पत्रिकाओं में खबर है.
शरद यादव : अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया है.
सागर-धारा : चुनावी रैलियों में नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि बीजेपी मजबूत सरकार देगी जबकि गठबंधन मजबूर सरकार. इस बारे में आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
शरद यादव : वे खुद गठबंधन सरकार चला रहे हैं. बीजेपी स्वयं कई बार गठबंधन सरकार का हिस्सा रही है : 1977, 1989 और 1998 में. अटल जी की सरकार क्या गठबंधन सरकार नहीं थी? मोदी स्वयं गठबंधन सरकार में रहे हैं तो ऐसा बोलने का क्या मतलब है.
सागर-धारा : क्या लोक सभा चुनाव आप बिहार से लड़ेंगे?
शरद यादव : हां, मैं मधेपुरा से चुनाव लड़ूंगा.
सागर-धारा : मधेपुरा के सांसद निर्दलीय विधायक राजेश रंजन (पप्पू यादव) हैं. पिछली बार आप उनसे इस सीट पर हारे थे. क्या आप उनसे बातचीत कर रहे हैं?
शरद यादव : इसका क्या मतलब है? हम वहां से चुनाव लड़ेंगे. कौन वहां से चुनाव लड़ रहा है इसकी कोई परवाह नहीं.
सागर-धारा : एनडीए के खिलाफ आपकी चुनावी रणनीति क्या होगी?
शरद यादव : हम लोगों ने पांच बार साझा विरासत का आयोजन किया है. साझा विरासत का मतलब है साझा संस्कृति बचाओ, संविधान बचाओ. वह इंदौर में आयोजित हुआ, फिर उसके बाद मुंबई में और फिर दिल्ली में हुआ. उसके बाद ममता बनर्जी की रैली हुई. ऐसी बहुत सी रैलिया हो रहीं हैं. हाल में हम लोगों ने चंद्रबाबू नायडू के यहां बैठक की.
सागर-धारा : इन बैठकों में किस तरह की रणनीति बनाई गई?
शरद यादव : जब हम सब एकजुट हैं तो रणनीति की क्या जरूरत है.
सागर-धारा : यदि केन्द्र में गठबंधन सरकार बनती है तो क्या आरक्षित कोटे को 50 प्रतिशत किया जाएगा. आपकी सहयोगी पार्टी राजद इस मांग को उठा रही है.
शरद यादव : हम इस पर विचार करेंगे.
सागर-धारा : इस पर आपका विचार क्या है?
शरद यादव : यह इतना बड़ा मामला है कि मैं दो मिनट में इस बारे में कुछ नहीं कह सकता.
सागर-धारा : हाल में जो आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत कोटा लाया गया है उस पर आपके क्या विचार हैं?
शरद यादव : संविधान में आरक्षण के लिए सिर्फ एक दिशानिर्देश है : सामाजिक गैर बराबरी. जातिवादी व्यवस्था के कारण पैदा होने वाली सामाजिक गैर बराबरी को दूर करने के लिए आरक्षण एक छोटा कदम है. संविधान की उस व्यवस्था में बीजेपी ने आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए धारा 16 (4) डाल दी. इन लोगों ने 10 करोड़ नौकरियों का वादा किया था. क्योंकि इसे पूरा नहीं कर सके तो लोगों के हाथों में झुनझुना पकड़ा दिया. लेकिन इस झुनझुने में कोई दाना नहीं है. यह बजेगा नहीं.
सागर-धारा : नीतीश कुमार की राजनीति के बारे में आपको क्या कहना है?
शरद यादव : मतदाताओं ने उनकी राजनीति और महागठबंधन को दो तिहाई वोट दिया था. उन्होंने कहा था कि वे मर जाएंगे लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. उन्होंने यह करार जनता के साथ किया था. फिर इस करार को तोड़ दिया. मैंने इसका विरोध किया तो उन्होंने मुझे बहुत से मंत्री पदों की पेशकश की. मैं साल 2022 तक के लिए राज्य सभा का सांसद था लेकिन मैंने सब कुछ छोड़ दिया.
सागर-धारा : 1998 और 2004 के लोक सभा चुनावों में मधेपुरा सीट से लालू प्रसाद यादव ने आपको पराजित किया था. क्या उनके साथ आपके संबंध ठीक हो गए हैं?
शरद यादव : गजब सवाल पूछ रहे हो आप. हम लोग साथ घूम रहे हैं. हम सब महागठबंधन के हक में हैं. महागठबंधन में कौन मजबूरी में आया है.
सागर-धारा : क्या महागठबंधन के पास एक साझा योजना है?
सभी पार्टियां इस पर काम कर रही हैं. इस वक्त एजेंडे का खुलासा करने की जरूरत नहीं है.