10 नवंबर की दोपहर को मध्य महाराष्ट्र के नांदेड़ शहर का वजीराबाद चौरस्ता तुरहियों, ढोल, झांझ और देशभक्ति के गीतों से गुंजायमान था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लगभग सौ स्थानीय कार्यकर्ता अपने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का स्वागत करने के लिए जमा हुए थे. गांधी के सूर्यास्त से पहले पहुंचने की उम्मीद थी और वह एक रैली को संबोधित करने वाले थे. एक कोने में दर्जनों युवा राष्ट्रीय ध्वज लिए खड़े थे.
चौराहे के बीच ब्राह्मण पुजारी एक स्वर में श्लोकों का उच्चारण कर रहे थे. यह गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का 64वां दिन था, जिसमें वह कन्याकुमारी से श्रीनगर तक लगभग 3500 किलोमीटर की पदयात्रा कर रहे थे. गांधी ने दो हफ्ते पहले तेलंगाना में एक भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था, “आप सभी ने देखा होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के लोग देश में नफरत और हिंसा फैला रहे हैं, भाई को भाई से लड़ा रहे हैं.” उन्होंने कहा कि उनकी यात्रा का उद्देश्य इस नफरत और हिंसा के साथ-साथ बेरोजगारी, महंगाई और क्रोनी कैपिटलिज्म के खिलाफ खड़ा होना है.
शाम 4.30 बजे तक चौराहे पर भीड़ उमड़ पड़ी. स्थानीय पुलिस ने लगभग एक किलोमीटर उत्तर की दिशा में रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाली सड़क पर यातायात को रोक दिया था. मार्च को देखने के लिए सड़क के दोनों ओर लोग अपनी दुकानों और घरों के बाहर खड़े थे. उन्हें सबसे पहले एक एक खुली छत वाला ट्रक नजर आया, जिसके ऊपर लगभग एक दर्जन कैमरा ऑपरेटर खड़े थे. उन सभी के लेंस उत्तर दिशा की ओर थे. ट्रक के पीछे एक पिकअप वैन थी, जिसमें मार्च को हर एंगल से फिल्माने के लिए कैमरा जिब (कैमरा लगाने के लिए एक विशेष प्रकार की क्रेन) लगा हुआ था. ठीक इसके पीछे गांधी आधा दर्जन आमंत्रित मेहमानों के साथ चल रहे थे, जिनमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की नेता सुप्रिया सुले, महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नाना पटोले और बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह शामिल थे. नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी उस शाम रैली को संबोधित किया.
बीच-बीच में गांधी सड़क किनारे खड़े दर्शकों का हाथ हिला कर अभिवादन कर रहे थे. वह लगभग सौ पुलिस कर्मियों द्वारा बनाए गई घेरे के भीतर एक मोटी रस्सी पकड़े आगे बढ़ रहे थे. मुझे पूर्वाभास था कि कोई भी उनसे संपर्क कर सकता है, उनसे हाथ मिला सकता है या उन्हें गले लगा सकता है, जैसा कि यात्रा के बारे में कई सोशल-मीडिया वीडियो में दिखाया जा रहा था, लेकिन ऐसा नहीं था. कई लोग उनका नाम लेकर “राहुल!” चिल्ला रहे थे. चौराहे पर पहुंचने के बाद उन्होंने पूर्वी दिशा में अपनी यात्रा जारी रखने से पहले पुजारियों और पार्टी कार्यकर्ताओं को देख हाथ हिलाया.
मैं सड़क के किनारे एक मंच से यह सब देख रहा था और लगभग आधा किलोमीटर तक गांधी के पीछे चलता रहा. अचानक भीड़ में एक दर्जन तिरंगों के बीच एक अंबडेकरवादी मानक की मौजूदगी ने मेरा ध्यान खींचा- समानता, दलित गौरव और प्रतिरोध का प्रतीक अशोक चक्र वाला चौकोर नीला झंडा. घेरे से थोड़ी दूरी पर कुछ महिलाएं यह झंडे थामे चल रही थी. मैं उनके पास गया और उनसे पूछा कि वह किन कारणों से यात्रा का समर्थन कर रही हैं? उन्होंने बताया कि वह यात्रा का हिस्सा नहीं हैं. वह प्रकाश अंबेडकर के राजनीतिक दल वंचित बहुजन अघाड़ी के एक अन्य कार्यक्रम से लौट रहे थे. उनमें से एक महिला ने मुझे बताया कि चूंकि स्थानीय प्रशासन ने सड़कों को बंद कर दिया था, इसलिए उन्हें यात्रा के मार्ग पर चलना पड़ा. उनका कहना था, “हम जय भीम वाले हैं. हम उनके साथ नहीं हैं.”
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