15 दिसंबर की रात होली फैमिली अस्पताल में अफरा-तफरी का माहौल था. मैंने वहां भर्ती कई छात्रों के परिजनों से बात की. वहां एक बात समान थी कि इन लोगों को पता ही नहीं था कि उनके घायल रिश्तेदार कहां और किस हाल में हैं. इनमें से कई लोगों को अस्पताल के भीतर जाने तक नहीं दिया गया. लोग अस्पताल के गेट पर मौजूद गार्डों से भीतर जाने देने की फरियाद कर रहे थे. वहां बड़ी संख्या में सैन्य पोशाक में दिल्ली पुलिस के जवान मौजूद थे. ये जवान अस्पताल के अंदर और गेट पर मौजूद थे और मरीजों के परिजनों और पत्रकारों को वहां से हटा रहे थे. रुक-रुक कर गेट खुलता लेकिन केवल पुलिस की गाड़ियों को प्रवेश दिया जाता.
परिजनों के अलावा जामिया के कई छात्र और शिक्षक होली फैमिली अस्पताल के बाहर खड़े होकर अंदर जाने का इंतजार कर रहे थे. पुलिस का रवैया दोस्ताना नहीं था. जब मैं इलाज करा रहे एक छात्र के दोस्त से बात करने लगा तो दो दर्जन से ज्यादा पुलिस वालों ने हमें घेर लिया और वहां से चले जाने को कहने लगे. जब मैंने कहा कि मुझे इंटरव्यू खत्म कर लेने दिया जाए तो पुलिस वाले ने धमकाते हुए कहा, “चल तुम्हारा इंटरव्यू करते हैं.” एक छात्र ने जब पुलिस वालों से पूछा कि वह उस अस्पताल के बाहर क्यों नहीं खड़ा हो सकता जहां उसके दोस्त और परिवार के सदस्य इलाज करा रहे हैं तो एक अधिकारी ने जवाब दिया, “हम घर भिजवा देंगे, जा” और हमें वहां से हटा दिया.
जामिया के एक छात्र ने बताया, “यह लोग हमारी बात नहीं सुन रहे थे, बस हमें दंडों से पीट रहे थे. पुलिस वाले बहुत गुस्से में थे. लग रहा था किसी चीज का बदला ले रहे हों हमसे.”
कई प्रत्यक्षदर्शियों छात्रों ने मुझे बताया कि उस शाम पुलिस जामिया परिसर के अंदर आई जहां पिछले दो दिनों से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ छात्र धरने पर बैठे थे. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पुलिस जामिया में बेवजह आई थी. शाम 5 बजे पुलिस ने जामिया के चारों तरफ से परिसर में प्रवेश किया और वहां मौजूद छात्रों को पीटने लगी. पुलिस ने लाइब्रेरी, शौचालय और कैंटीन में घुसकर छात्रों की पिटाई की. सोमवार को विश्वविद्यालय प्रशासन ने बताया कि पुलिस उसकी अनुमति के बिना परिसर में घुसी थी जो “स्वीकार्य” नहीं है. हालांकि पुलिस का कहना है कि वह पत्थर मारने वाले छात्रों का पीछा करती हुई परिसर में घुसी थी.
होली फैमिली अस्पताल के अलावा घायल छात्रों को इलाज के लिए राजधानी के अन्य अस्पतालों में- अलशिफा अस्पताल, अपोलो अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल और एम्स में भर्ती कराया गया था. आधी रात के बाद मैं अलशिफा अस्पताल गया जहां का प्रशासन आने वाले लोगों के प्रति नरम था. मैंने वहां पुलिस के हमले में घायल हुए पांच छात्रों से बात की. इन छात्रों ने मुझे पुलिस की बर्बरता की कहानी बयान की. उनके साथ हुई बातचीत से पता चलता है कि दिल्ली पुलिस छात्रों को पीटने का इरादा बना कर परिसर में दाखिल हुई थी.
दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि उसके जवान परिसर में हिंसा में शामिल लोगों को पकड़ने घुसे थे. लेकिन यह साफ है कि पुलिस के जवान पुस्तकालय, शौचालय और कैंटीन में घुसे थे जहां प्रदर्शन नहीं हो रहा था. जामिया के छात्र सद्दाम हुसैन ने मुझे बताया कि उसने कभी कल्पना नहीं की थी कि पुलिस पुस्तकालय में घुसकर छात्रों को पीट सकती है. “जनवरी में मेरा यूपीएससी का एग्जाम होने वाला है इसलिए मैंने प्रदर्शनों में भाग नहीं लिया. मैंने सोचा कि लाइब्रेरी में रहना सुरक्षित होगा इसलिए मैं वहां जाकर पढ़ाई कर रहा था. लेकिन मैं गलत था.”
पुलिस की पिटाई में सद्दाम हुसैन का पैर टूट गया और उसके सिर पर चोट आई है. मैं सद्दाम से अलशिफा अस्पताल में मिला. उसके पैर पर प्लास्टर चढ़ा था और सिर पर पट्टी बंधी थी. उसके पूरे शरीर पर चोट के निशान थे. सद्दाम ने बताया, “करीब 20 से 25 पुलिस वाले लाइब्रेरी का दरवाजा तोड़कर दाखिल हुए और घुसते ही उन्होंने सभी को पीटना शुरू कर दिया. बहुत बेरहमी से मारा उन्होंने. मेरे साथ वहां 10-15 छात्र मौजूद थे, उन्हें भी पुलिस ने बेरहमी से पीटा.”
सद्दाम ने आगे बताया, “पुलिस वाले मुझे खींच रहे थे और पिटाई कर रहे थे.” सद्दाम ने बताया कि पुलिस वाले सभी जगह मौजूद थे. “एक पुलिस वाले ने मुझे सीढ़ियों से फेंक दिया और मेरा पैर टूट गया.” सद्दाम को बहुत दर्द हो रहा था और वह चल भी नहीं पा रह था. लेकिन पुलिस वाले उसे पीटते रहे. “मैं उठ रहा था, गिर रहा था और वे मारे जा रहे थे.” सद्दाम ने बताया कि एक पुलिस वाला उन को पीटते हुए कह रहा था, “तुझे आजादी देता हूं, तू आजादी चाहता है न.” जब सद्दाम ने पुलिस वालों से कहा कि उसे अस्पताल पहुंचा दें तो वे लोग उसे भद्दी-भद्दी गालियां देने लगे.
अंजुम रिजवान भी पुलिस हमले के वक्त लाइब्रेरी में मौजूद थे. पुलिस वाले लाइब्रेरी के अंदर आंसू गैस के गोले दाग रहे थे. बहुत सारे छात्र बेहोश होकर गिर पड़े. “मैं पीछे के दरवाजे से भाग गया लेकिन जो लोग पहले फ्लोर पर थे वे लोग फंसे रह गए.” रिजवान ने बताया कि वह एक महिला छात्र को बचा रहे थे तो पुलिस वालों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया. हमले में रिजवान की ठोड़ी और सिर पर चोट आई. पुलिस की पिटाई में उनका का एक दांत भी टूट गया.
वाहिब इस्लाम ने बताया कि उन्होंने विश्वविद्यालय की दीवार फांद कर हॉस्टल की तरफ दौड़ लगा दी. जामिया में पढ़ रहे इस्लाम ने बताया कि पुलिस वाले लड़कियों के बाथरूम में घुस गए और वहां मौजूद लड़कियों को पीटने लगे. हुसैन ने बताया कि पुलिस वाले उनसे कह रहे थे, “तुम्हें पाकिस्तान ने पाल रखा है, हम देंगे तुमको आजादी, तुम जिहादी हो.” इस्लाम ने बताया कि पुलिस ने महिला छात्रों से कहा, “तुम लोग जिहादियों को खुश करती हो.”
मैंने अस्पताल में व्हीलचेयर पर बैठे मोहम्मद रिजवान से भी बात की. आंसू गैस का गोला उनके नजदीक आकर फटा था और उनके पैरों में चोट आई थी. पुलिस हमले के वक्त रिजवान और अन्य सैकड़ों छात्र कैंटीन में थे. “कोई भी छात्र किसी तरह की गैरकानूनी गतिविधि नहीं कर रहा था.” रिजवान ने बताया कि वे लोग सिर्फ खाना खा रहे थे. पुलिस वालों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और उनकी पिटाई करने लगे. “अचानक से हम पर क्यों हमला हुआ हम यह नहीं समझ पा रहे थे. सब इधर-उधर भाग रहे थे. तब अचानक मेरे पैर के पास आकर एक आंसू गैस का गोला फटा. मुझे लगा कि मेरा पैर उड़ गया. मैं जमीन पर घिसटते हुए वहां से निकलने लगा लेकिन पुलिस वाले मुझे डंडों से मारने लगे.”
रविवार की सुबह से ही स्थानीय लोग नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने के लिए जुलेना पार्क में इकट्ठा होने लगे थे. इससे पहले दो दिनों तक जामिया के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया था और स्थानीय लोग छात्रों के साथ अपनी एकता का इजहार करने के लिए विश्वविद्यालय के गेट पर जमा हुए थे. प्रदर्शन के दूसरे दिन पुलिस ने लाठी चार्ज किया और आंसू गैस से हमला किया. इसके बाद प्रदर्शनकारी परिसर के भीतर ही विरोध दर्ज कराने लगे और बाहर की भीड़ में शामिल नहीं हुए. रविवार का आयोजन स्थानीय लोगों ने किया था. पुलिस का कहना है कि उपद्रव तब शुरू हुआ जब लोग जुलेना पार्क से माता मंदिर मार्ग की ओर मार्च निकालने लगे. दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता एमएस रंधावा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि पुलिस स्थानीय लोगों को जामिया वापस भेज रही थी और वह सीमित रूप से बल प्रयोग कर रही थी. रंधावा ने दावा किया कि उस वक्त छात्र पथराव करने लगे.
अस्पताल में मेरी मुलाकात जामिया के छात्र तौशिफ रहमान से हुई. रहमान ने जो बताया वह रंधावा के दावे के विपरीत था. रहमान ने बताया कि वे स्थानीय लोगों का समर्थन करने जुलाना पार्क गए थे. रहमान के अनुसार स्थानीय लोगों ने किसी तरह की हिंसक गतिविधि नहीं की. उन्होंने बताया कि विरोध प्रदर्शन में अधेड़ उम्र की महिलाएं भी शामिल थीं. “पुलिस अचानक वहां आई और लाठीचार्ज करने लगी. उन्होंने लाठीचार्ज कम किया और आंसू गैस के गोले ज्यादा दागे. वे लोग बिना सोचे-समझे गोले दाग रहे थे.” पुलिस के हमले के चलते स्थानीय लोग भड़क गए और पथराव करने लगे. रहमान ने यह भी कहा कि ओखला रोड़ पर किसी भी प्रदर्शनकारी ने बसों को आग नहीं लगाई. इसके बाद ऐसे वीडियो भी सामने आए जिसमें दिखाई पड़ता है कि पुलिस बसों में कुछ तरल पदार्थ उड़ेल रही है. पुलिस ने इन आरोपों का खंडन किया है.
रहमान के घुटनों में आंसू गैस का गोला आकर लगा. उनके पैर में प्लास्टर चढ़ा दिया गया है. लेकिन उन्होंने कहा कि वह नागरिकता संशोधन कानून की खिलाफत करते रहेंगे. उन्होंने बताया कि वह ठीक होने के बाद फिर प्रदर्शनों में भाग लेंगे. “हिंदुस्तान सबका है, चाहे कोई भी हो- हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई. ऐसा नहीं है कि मुस्लिम को निकाल दो और देश सिर्फ हिंदूओं का ही रहे. सब का खून मिला है यहां की मिट्टी में. सब रहेंगे, हमेशा के लिए रहेंगे. कोई किसी को निकाल नहीं सकता यहां से. ऐसा हुआ तो हम फिर लड़ेंगे इसके लिए, पीछे नहीं हटेंगे.”
जब मैं अस्पताल में था तो छात्रों के परिवारों के बीच यह अफवाह फैल गई कि उनके बेटों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अस्पताल में छापा मारने वाली है. मैं अस्पताल में दो घंटे तक रहा और इस बीच अंजुम और रिजवान की छुट्टी कर दी गई और गंभीर रूप से घायल हुसैन और रहमान भर्ती रहे.
अलशिफा अस्पताल में मरीजों के इंचार्ज इनामुल हसन ने मुझे बताया कि अस्पताल में स्थानीय लोगों सहित 60 छात्र भर्ती हुए थे जो पुलिस के हमले में घायल हुए थे. इनमें से 11 महिला छात्र थी जिनमें से एक को गंभीर चोट आई थी. हसन ने बताया कि महिला छात्र को आंसू गैस का गोला लगा था और घुटनों के पास से उनका पैर अलग हो गया था. “ऐसा लग रहा था कि चमड़ी से पैर लटका हुआ है. वह लड़की सब्जी खरीदने बाहर निकली थी लेकिन अफरा-तफरी में फंसकर नहीं निकल पाई क्योंकि उसके एक पैर पर लकवा है.” हसन ने बताया कि तीन छात्रों को गोली लगने जैसी चोट आई थी लेकिन अभी मेडिकल रिपोर्ट नहीं आई है.
दिल्ली पुलिस के कुछ जवानों ने महिला हॉस्टल में घुसने का भी प्रयास किया. वहां रहने वाले एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि पुलिस के जवान हॉस्टल के बाहर जमा हुए लेकिन अंदर नहीं जा पाए क्योंकि महिलाओं ने गेट में बैरिकेडिंग कर दी और पुलिस वालों का प्रतिरोध करने लगीं.