महाराष्ट्र में हाल में सम्पन्न विधान सभा चुनावों से पहले कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व गृह राज्य मंत्री सतेज पाटील ने कोल्हापुर दक्षिण सीट से उम्मीदवार और भतीजे ऋतुराज पाटील के लिए चुनाव प्रचार किया. कोल्हापुर जिला महाराष्ट्र की चीनी पट्टी का हिस्सा है और यहां पाटील परिवार का खासा रसूख है. परिवार जिले में स्कूल, कॉलेज और डी वाई पाटिल सहकारी शकर कारखाना चलाता है. यह कारखाना चीनी सहकारिता है जिसके 30 हजार किसान सदस्य हैं.
चीनी सहकारिता पर पकड़ के चलते, ऐतिहासिक तौर पर पश्चिमी महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का प्रभुत्व रहा है. इस गठजोड़ ने पार्टियों को धन और संगठन शक्ति दी जो चुनाव जीतने में मददगार रहीं. लेकिन पिछले पांच सालों में कई बड़े चीनी उद्योगपति बीजेपी में शामिल हो गए हैं. खुद सतेज मानते हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी ने चीनी सहकारिताओं से कांग्रेस और एनसीपी को खदेड़ दिया है.
उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक गन्ने की खेती महाराष्ट्र में होती है. उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें निजी लोगों के हाथों में हैं लेकिन महाराष्ट्र में अधिकतर मिलें सहकारी हैं. 1950 में उद्योगपति विठ्ठलराव विखे पाटील ने राज्य के अहमदनगर जिले में पहली चीनी सहकारिता स्थापित की थी. ठीक उसी समय बैंकिंग, कर्ज देने वाली समितियां, मार्केटिंग समितियां, मत्स्य पालन समितियां और पोल्ट्री समितियां अस्तित्व में आईं. लेकिन चीनी फैक्ट्रियां सहकारिता का वर्चस्व कायम रहा और ये महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित करती रहीं.
कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने मुझे एनसीपी और कांग्रेस के शासनकाल में चीनी सहकारिताओं के कामकाज के बारे में समझाया. उन्होंने बताया कि किसान अपना गन्ना सहकारिता को बेचते नहीं थे बल्कि चीनी बनाने के लिए उपलब्ध कराते थे. “गन्ने से चीनी बनाने का लागत खर्च काटकर बाकी रकम किसान को दे दी जाती है. इस व्यवस्था की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें बिक्री नहीं होती, इसलिए फैक्ट्रियों को आयकर नहीं देना पड़ता. इसके अतिरिक्त मिल का अध्यक्ष उत्पादन खर्च को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सकता है, सहकारिता के सदस्य की संख्या को तोड़मरोड़ सकता है, नकली खाता बही और बिल बना सकता है और बेनामी लेनदेन का पैसा चुनाव पर लगा सकता है.”
जब तक एनसीपी और कांग्रेस की सरकार थीं तब विधायक और चीनी फैक्ट्रियां सुरक्षित थे. इस धंधे में हुए नफे को चीनी मालिकों ने दूसरे व्यवसाय खासकर, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में लगाया, जिससे बहुत लोगों को काम मिला.
कांग्रेस नेता के अनुसार, राजनीति में सक्रिय चीनी मालिकों ने सहकारी समितियों के सदस्यों को चुनाव प्रचार मे लगाया. सहकारी समितियां अपने सदस्यों को अतिरिक्त सेवाएं देकर उनसे खास संबंध बनाती थीं. मिलें, किसानों को बाजार भाव से कम में खाद और ड्रिप सिंचाई सुविधा भी उपलब्ध कराती थीं. यहां तक कि जब गन्ना किसान कर्ज लेते तो सहकारी समितियां उनकी गारंटर बन जातीं. इसका नतीजा यह निकला कि एनसीपी और कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को टिकट न देकर, चीनी उद्योगपतियों को टिकट देने लगे. इस तरह पश्चिमी महाराष्ट्र में इन पार्टियों का ढांचा कमजोर हो गया.
महाराष्ट्र की कई चीनी मिलें कर्ज तले दबी हुई हैं. सतेज ने बताया, “सहकारिता का मॉडल ऐसा है कि मिलों को चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ता है. चीनी बिक्री की वसूली में एक-दो साल का वक्त लगता है जबकि, महाराष्ट्र गन्ना मूल्य नियामक कानून, 2013 मिल मालिकों को किसानों को गन्ना प्राप्त करने के 14 दिन के अंदर भुगतान करने को बाध्य करता है. कर्ज का बढ़ना चीनी मिल के मूल्य पर असर डालता है, इससे बैंक अधिक कर्ज देने में आनाकानी करने लगते हैं.
जब तक कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन सरकार चला रहा था तब तक सहकारिता के कर्ज की गारंटी राज्य सरकार लेती थी, सतेज ने बताया. लेकिन पिछले 5 सालों में बीजेपी ने कांग्रेस और एनसीपी नेताओं कि सहकारिता के लिए यह गारंटी नहीं ली है, “यदि यह गारंटी नहीं लेंगे तो मैं खत्म हो जाऊंगा.” बीजेपी इसी चाल का इस्तेमाल कर रही है.
वरिष्ठ पत्रकार स्मृति कोप्पिकर ने मुझे बताया कि बीजेपी के नेता कांग्रेस-एनसीपी के इस नेटवर्क को हथियाना चाहते हैं. बिना नेटवर्क के जमीनी राजनीति नहीं की जा सकती. सहकारिता के नेटवर्क को नियंत्रण करने वाली राजनीति पहले भी बीजेपी की तरफ झुक रही थी लेकिन पिछले दो सालों में यह निर्णायक रूप से इस पार्टी के पक्ष में चली गई है.
जब से बीजेपी ने राज्य की सरकार बनाई है एनसीपी और कांग्रेस के कई पुराने सदस्य सत्तारूढ़ पार्टी में चले गए हैं. सतेज ने बताया कि कोल्हापुर जिले की 19 चीनी सहकारिताओं में से अब सिर्फ चार कांग्रेस और एनसीपी के नियंत्रण में हैं. कॉरपोरेटिव चीनी फैक्ट्रियां रोजाना किसानों से लेन-देन करती हैं. बीजेपी इस प्रभाव को तोड़ना चाहती थी, इसलिए उसने कई स्थापित नेताओं को अपने में मिला लिया.
2019 के लोकसभा चुनाव के पहले एनसीपी के वरिष्ठ नेता विजयसिंह मोहिते पाटिल बीजेपी में शामिल हो गए. वह महर्षी शंकरराव मोहिते पाटिल चीनी सहकारिता के निदेशक हैं, जो सोलापुर जिले में है. महाराष्ट्र में पहला चीनी कॉआपरेटिव स्थापित करने वाले विठ्ठलराव के पोते राधाकृष्ण विखे पाटिल कांग्रेस से पांच बार शिरडी के विधायक रहे. इस साल लोकसभा चुनाव के बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए. राधाकृष्ण विखे पाटिल पश्चिमी महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की चीनी सहकारिता के निदेशक हैं.
2014 से 2019 तक कोल्हापुर के एनसीपी सांसद धनंजय महादिक इस साल 1 सितंबर को बीजेपी में शामिल हो गए. उनका परिवार 30 करोड़ रुपए कीमत का सहकारिता भीमा सहकारी शकर कारखाना लिमिटेड चलाता है. सितंबर में ही, 1999 से 2004 तक कांग्रेस की सरकार में सहकारिता मंत्री रहे हर्षवर्धन पाटिल भी बीजेपी में शामिल हो गए.
सतेज ने जो बातें मुझसे कही थीं उस पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने सहमति जताई. उन्होंने बताया कि ये लोग डर गए थे और एक के बाद एक कांग्रेस और एनसीपी छोड़कर बीजेपी में चले गए
“ऐसा क्यों किया यह रहस्य बना हुआ है, विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है,” उन्होंने बताया.
उनकी टिप्पणी आधारहीन नहीं लगती क्योंकि सितंबर में प्रवर्तन निदेशालय ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार, उनके भतीजे अजित पवार और अन्य लोगों के खिलाफ मुद्राशोधन का मामला दर्ज किया था. यह मामला कथित 25 हजार करोड़ रुपए के महाराष्ट्र राज्य को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले से संबंधित है. कुछ दिनों पहले राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की ऑडिट रिपोर्ट में चीनी फैक्ट्रियों और स्पिनिंग मिल को कर्ज देने के लिए कई सारे बैंकिंग कानूनों के उल्लंघन और कर्ज वसूली और भुगतान में लगातार हुए डिफॉल्ट का खुलासा हुआ था.
“कांग्रेस एनसीपी गठजोड़ अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है क्योंकि चुनाव जीतने का पैमाना यदि पैसे की ताकत और बाहुबल है तो हम हार रहे हैं,” वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने मुझे बताया. “सहकारिता हाथ से छिन जाने के बावजूद यदि लोग इस गठजोड़ का साथ देते हैं तो हमारे पास जीतने का मौका होगा.”
अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में पूर्व मुख्यमंत्री और पश्चिमी महाराष्ट्र के कराड दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार पृथ्वीराज चौहान ने रिपोर्टरों को बताया था, “बीजेपी का चुनाव अभियान विशुद्ध रूप से दूसरी पार्टी के नेताओं को तोड़ना है.” जब से महाराष्ट्र बना है यानी 1960, तभी से कांग्रेस कराड दक्षिण विधानसभा सीट जीतती आई है. चौहान ने कहा, “पिछले पांच सालों में बीजेपी शिवसेना सरकार की विफलताओं को केंद्र में रखकर हम चुनाव लड़ेंगे हालांकि हमें विपक्ष में और मेहनत करनी चाहिए थी.”
जब मैंने एनसीपी की नेता सुप्रिया सुले से हाल ही में एक साक्षत्कार में पूछा था कि चीनी सहकारिताओं से एनसीपी-कांग्रेस को बेदखल करने के बीजेपी के प्रयासों के बारे में वह क्या सोचती हैं, तो उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया. उन्होंने बस यह कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह सरकार संस्थाओं को पसंद नहीं करती, यह संस्थाओं को नुकसान पहुंचा रही है जो दीर्घावधि में नुकसानदेह होगा. मुझे नहीं पता कि लोग चीनी फैक्ट्रियों को क्यों खराब कर रहे हैं. इन फैक्ट्रियों ने किसानों के लिए धन और रोजगार निर्माण किया है.”