पश्चिम महाराष्ट्र में बीजेपी के समर्थन में चीनी मालिक, कांग्रेस-एनसीपी कमजोर

23 अक्टूबर 2019
आर मोदी/दिनोदिया फोटो
आर मोदी/दिनोदिया फोटो

महाराष्ट्र में हाल में सम्पन्न विधान सभा चुनावों से पहले कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व गृह राज्य मंत्री सतेज पाटील ने कोल्हापुर दक्षिण सीट से उम्मीदवार और भतीजे ऋतुराज पाटील के लिए चुनाव प्रचार किया. कोल्हापुर जिला महाराष्ट्र की चीनी पट्टी का हिस्सा है और यहां पाटील परिवार का खासा रसूख है. परिवार जिले में स्कूल, कॉलेज और डी वाई पाटिल सहकारी शकर कारखाना चलाता है. यह कारखाना चीनी सहकारिता है जिसके 30 हजार किसान सदस्य हैं.

चीनी सहकारिता पर पकड़ के चलते, ऐतिहासिक तौर पर पश्चिमी महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का प्रभुत्व रहा है. इस गठजोड़ ने पार्टियों को धन और संगठन शक्ति दी जो चुनाव जीतने में मददगार रहीं. लेकिन पिछले पांच सालों में कई बड़े चीनी उद्योगपति बीजेपी में शामिल हो गए हैं. खुद सतेज मानते हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी ने चीनी सहकारिताओं से कांग्रेस और एनसीपी को खदेड़ दिया है.

उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक गन्ने की खेती महाराष्ट्र में होती है. उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें निजी लोगों के हाथों में हैं लेकिन महाराष्ट्र में अधिकतर मिलें सहकारी हैं. 1950 में उद्योगपति विठ्ठलराव विखे पाटील ने राज्य के अहमदनगर जिले में पहली चीनी सहकारिता स्थापित की थी. ठीक उसी समय बैंकिंग, कर्ज देने वाली समितियां, मार्केटिंग समितियां, मत्स्य पालन समितियां और पोल्ट्री समितियां अस्तित्व में आईं. लेकिन चीनी फैक्ट्रियां सहकारिता का वर्चस्व कायम रहा और ये महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित करती रहीं.

कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने मुझे एनसीपी और कांग्रेस के शासनकाल में चीनी सहकारिताओं के कामकाज के बारे में समझाया. उन्होंने बताया कि किसान अपना गन्ना सहकारिता को बेचते नहीं थे बल्कि चीनी बनाने के लिए उपलब्ध कराते थे. “गन्ने से चीनी बनाने का लागत खर्च काटकर बाकी रकम किसान को दे दी जाती है. इस व्यवस्था की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें बिक्री नहीं होती, इसलिए फैक्ट्रियों को आयकर नहीं देना पड़ता. इसके अतिरिक्त मिल का अध्यक्ष उत्पादन खर्च को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सकता है, सहकारिता के सदस्य की संख्या को तोड़मरोड़ सकता है, नकली खाता बही और बिल बना सकता है और बेनामी लेनदेन का पैसा चुनाव पर लगा सकता है.”

जब तक एनसीपी और कांग्रेस की सरकार थीं तब विधायक और चीनी फैक्ट्रियां सुरक्षित थे. इस धंधे में हुए नफे को चीनी मालिकों ने दूसरे व्यवसाय खासकर, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में लगाया, जिससे बहुत लोगों को काम मिला.

तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.

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