बौद्ध भिक्षु सुमित रत्न बौद्ध धर्म का प्रचार करने और बहुजन समुदाय के कल्याण की दिशा में काम करने वाले सामाजिक संगठन "श्रमण संस्कृति रक्षा संघ" के प्रमुख हैं. श्रमण संस्कृति रक्षा संघ ने इस साल 24 जून से उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और उत्तराखंड में कई बहुजन मैत्री सम्मेलन आयोजित किए हैं. रत्न के अनुसार इन सम्मेलनों को स्थानीय सामाजिक संगठनों की सहायता से आयोजित किया गया है. इन सम्मेलनों का उद्देश्य बौद्ध धर्म की स्वीकारिता बढ़ाना, संविधान की रक्षा के लिए आंदोलन की जरूरत और बहुजन समाज को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के विरूद्ध संगठित होने की आवश्यकता के लिए लोगों को जागरूक करना है. रत्न ने कारवां के रिपोर्टिंग फेलो सुनील कश्यप के साथ भारत में बौद्ध धर्म की स्थिति, 2020 के कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन को समर्थन उनके समर्थन देने का कारण और उत्तर प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक संगठनों के बारे में अपने विचार साझा किए.
सुनील कश्यप : श्रमण संस्कति रक्षा संघ क्या है? और संविधान की रक्षा के लिए आंदोलन की क्या जरूरत है?
सुमित रत्न : बहुजन मैत्री सम्मेलन हमारे देश के वंचित, सताए हुए, कमजोर और मजलूम लोग जिन्हें एक षड्यंत्र के तहत हाशिए पर धकेला गया है, उनका समहू है. मेरा मतलब है कि मेहनत कर कमाने-खाने वाले वे लोग जो समता में विश्वास रखते हैं, वे सारे लोग मिल कर श्रमण संस्कृति का निर्माण करते हैं.
अगर इस देश में ईसाई और मुस्लिम सम्मान से रह रहे हैं तो यह सिर्फ संविधान की वजह से है और देश में महिलाओं को मिले अधिकार भी संविधान की वजह से हैं. अगर संविधान न होता तो हालात बेहद बुरे होते. यदि संविधान की ताकत खत्म हुई तो यहां पर राजशाही होगी और मनुस्मृति के आधार पर शासन चलेगा. संविधान द्वारा दिए गए सभी अधिकार छीन लिए जाएंगे. इसलिए हम लोग संविधान की सुरक्षा के लिए आंदोलन चला रहे हैं.
सुनील कश्यप : बहुजन मैत्री सम्मेलन क्या है? इन सम्मेलनों में क्या किया जाता है और इनकी जरूरत क्यों हैं?
सुमित रत्न : देखिए, बहुजन शब्द 2500 साल पहले बुद्ध ने दिया था. उन्होंने कहा था कि समान विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों का एक बड़ा समूह जिनकी समस्याएं समान हों, वे बहुजन हैं. जिन लोगों ने भारत में जातियां बनाईं वे सब खुश हैं. जिन्होंने इस देश को बनाया है वे लोग पूरी तरह हाशिए पर चले गए हैं और जिनका कोई योगदान नहीं रहा है वे आनंद ले रहे हैं. हम बहुजन मैत्री सम्मेलन के जरिए इसी षड्यंत्र को लोगों को समझा रहे हैं.
हम लोगों को बताते हैं कि व्यक्ति या संगठन बड़ा नहीं होता बल्कि विचारधारा बड़ी होती है. पहले हम जातियों में विभक्त थे. अब अनेक संगठनों में विभक्त हो गए हैं. बाबा साहब ने सभी को संगठित होने लिए कहा था लेकिन लोग हजारों संगठन बनाने में लग गए. इस समय बाबा साहब और अन्य महापुरुषों के नाम से लाखों संगठन देश में मौजूद हैं. बहुजनों की संख्या ज्यादा जरूर है पर वे संगठनों में बंटे हुए हैं. इसलिए वे लुटे जा रहे हैं. उसके अधिकार छीने जा रहे हैं. यह असहाय, कमजोर और अधिकारों से वंचित बहुजनों को एक जुट करके सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से सबल बनाने का प्रयास है. हम भारत के सभी जिलों तक पहुंचना चाहते हैं भले ही इसमें दो साल क्यों न लगें. पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के कुल 45 जिलों में यह सम्मेलन हो चुका है. अभी हम उत्तर प्रदेश के जिलों में काम कर रहे हैं.
सुनील कश्यप : बाबा साहब के बाद भारत में बौद्ध धर्म को अपनाने वाले दलितों को किस तरह देखते हैं?
सुमित रत्न : दयनीय स्थिति में रहने वालों को बाबा साहब ने बौद्ध धर्म अपनाकर एक अंतरराष्ट्रीय पहचान दी. हमारे देश में जाति का प्रभुत्व चलता है. बाकि देशों में भी अनेक धर्म हैं लेकिन हमारी तरह जातियां नहीं हैं. बौद्ध धर्म में कभी जाति जैसी अवधारणा नहीं रही. ऊंची या नीची जाती के नाम पर कभी कोई भेदभाव नहीं रहा. जबकि ब्राह्मण धर्म में जाति का महत्वपूर्ण स्थान है. इसलिए बाबा साहब ने बौद्ध दर्शन को अपनाया था. लेकिन जिन्हें बाबा साहेब की वजह से पानी मिला, उनकी वजह से धनवान बने, पढ़े और लिखे, अपने अधिकार प्राप्त किए और प्रधानमंत्री तक बने, वे नाकारा निकले. उन्होंने बाबा की बात न मानते हुए बौद्ध धर्म स्वीकार नहीं किया. अगर वे सभी अहसानमंद होते तो बाबा की बात मान लेते और भारत की आधी आबादी आज बौद्ध धर्म की अनुयाई होती. तब न ही किसी दलित को पीटा जाता, न उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार होता और न ही दलितों से कोई उनका हक छीन पाता.
सुनील कश्यप : वर्तमान केंद्र सरकार के रहते हुए बौद्ध धर्म के सामने किस तरह की चुनौतियां हैं?
सुमित रत्न : भारत में बौद्ध धर्म को अलग मान्यता और अलग पहचान दिलाने का संघर्ष अभी भी जारी है. मनमोहन सिंह की सरकार में आनंद मैरिज एक्ट बनाया गया था लेकिन बौद्ध धर्म का कोई मैरिज एक्ट नहीं है. हमें हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी करनी पड़ती है. हमारा पर्सनल लॉ भी नहीं है. हम लोग इसी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हमें अल्पसंख्यक वर्ग में रखा गया है लेकिन हमारे पास कोई अधिकार नहीं है, कोई सुविधा नहीं है और न ही बराबरी का दर्जा दिया गया है.
इसलिए मैं कहता हूं कि वे हमसे छुआछूत करते हैं. वे हमसे रोटी-बेटी का रिश्ता नहीं रखते. हमें मूंछें नहीं रखने देते, हमें अच्छे घर नहीं बनाने देते. इसलिए मैं ब्राह्मण धर्म में नहीं रहना चाहता. वे मानते हैं कि सिख, जैन और बौद्ध धर्म हिंदू धर्म की शाखाएं हैं. बुद्ध ने इस बात का विरोध किया क्योंकि वह समानता में विश्वास करते थे. उन्होंने मनुष्यों में भेदभाव नहीं किया. हम भी इस ब्राह्मणवादी समाज में नहीं रहना चाहते क्योंकि विभिन्न बहुजन जातियों के पूर्वज बौद्ध धर्म के अनुयाई रहे हैं. इसलिए हम किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करते हैं. हम बस घर वापसी की अवधारणा पर काम करते हैं. हमने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है. सुप्रीम कोर्ट कहती है कि जब आप जनगणना के अनुसार एक प्रतिशत भी नहीं हो तो आपको अलग धर्म की पहचान कैसे दे दी जाए. जबकि सारी जातियों के पुरखे बौद्ध रहे हैं. इनको बुद्ध से चुनौती मिलती है क्योंकि वह समता की बात करते हैं. ये असमानता की बात करते हैं वे आदमी-आदमी में भेद नहीं करते. ये अंतर करते हैं. वह सब मानव को एक समान मानने की बात करते हैं और ये ऐसा नहीं मानते. ये ऊंच-नीच मानने वाले लोग हैं.
सुनील कश्यप : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कहता है कि बौद्ध, जैन और सिख धर्म हिंदू धर्म की शाखाएं हैं. इस विचार पर आपकी क्या राय है.
सुमित रत्न : किसी भी प्राचीन ग्रंथ में हिंदू शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है. उनमें वैदिक धर्म और सनातन धर्म लिखा है लेकिन हिंदू धर्म नहीं लिखा है. भारत की मूल संस्कृति धर्मनिरपेक्ष है. यह देश अलग-अलग भाषा, खान-पान और संस्कृतियों से बना देश है. कुछ लोग इसे सिर्फ एक ही रंग में रंग देना चाहते हैं. वे इस देश की मूल प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं. अन्य धर्मों को अपने धर्म की ही शाखा बता कर अपनी संख्या बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन हम उनकी यह बात बिल्कुल नहीं मानते इसलिए हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. पूरे भारत में हजारों ऐसे स्थान है जंहा बुद्ध की विरासत ने छाप छोड़ी है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण बुद्ध की वजह से काम कर रहा है. आप भारत के किसी भी कोने में चले जाइए, जमीन के नीचे से जो भी निकलता है वह बुद्ध से जुड़ा हुआ होता है.
सुनील कश्यप : आरएसएस युवा बहुजनों के बीच काम कर रहा है और देखा जाता है कि युवा वर्ग आरएसएस से जल्दी जुड़ जाता है. आप इसे कैसे देखते हैं?
सुमित रत्न : आरएसएस को बनाने वाले लोग भ्रम फैलाते हैं. उच्च जाति के लोगों की संख्या कम होने के बावजूद वे अधिक संगठित और मजबूत रहते हैं. वे लोग निचली जातियों को अपना नौकर मानते हैं. पिछले 90 सालों से आरएसएस वाले यही काम कर भी रहे हैं. लेकिन मैं ऐसे कम से कम 100 लोगों को जानता हूं जिन्होंने आरएसएस को छोड़कर पुनः बुद्ध धर्म अपना लिया है. इस देश में दो तरह के लोग हैं एक देश को जोड़ने वाले और दूसरे बांटने वाले. आरएसएस बांटने वालों में है.
सुनील कश्यप : वर्तमान समय में आप पिछड़ी जातियों के बौद्ध धर्म के साथ जुड़ाव को किस तरह देखते हैं?
सुमित रत्न : लालू प्रसाद यादव, मूलायम सिंह यादव और मायावती जैसे नेताओं ने जातियों के अपने-अपने गढ़ तैयार किए हैं. लेकिन ये लोग कितनी भी महनत कर लें सामंतियों और मनुवादियों के सामने इनके गढ़ टिक नहीं सकते. हम कहते है कि सभी शोषित लोगों को इकट्ठा करो तो मनुवाद उनकी ताकत को कभी नहीं भेद पाएगा. भले ही कोई आंबेडकरवादी हो या बुद्धिस्ट हो, उसके अंदर भी ब्राह्मणवादी, जतिवादी और मनुवादी सोच का अंश होता है. एक आंबेडकरवादी और एक बुद्धिस्ट कभी आपस में शादी नहीं करते हैं. ये लोग भी पूरी तरह ब्राह्मणवादी व्यवस्था में घुले-मिले हुए हैं.
सुनील कश्यप : आप 2019 में अखिलेश यादव से मिले थे. उनकी राजनीति सोच को लेकर आपकी क्या राय है.
सुमित रत्न : हम चाहते हैं कि अखिलेश यादव धर्मनिरपेक्ष रहें. हमारे संविधान और देश की प्रकृति का मिजाज सेक्युलर है. हमने कहा कि आप जितना दुलार हिंदुओं से करते हो, उतना हमसे भी कीजिए. और जितना लगाव मुस्लिमों से है, उतना ही सिखों से भी रखिए. अगर आप भी भेदभाव करेंगे तो समाजवादी पार्टी और बीजेपी में कोई अंतर नहीं रह जाएगा. सिर्फ हिंदुओं से प्यार करना बीजेपी की रणनीति रही है. अखिलेश से मिलने का मकसद उन्हें यह बताना था कि बुद्ध का यह आंदोलन सबसे बड़ा आंदोलन है. अन्य जातियों के आंदोलन छोटे हैं.
सुनील कश्यप : कांशीराम के बहुजन आंदोलन और मायवती को लेकर अपके क्या विचार हैं?
सुमित रत्न : मान्यवर का आंदोलन बुद्ध के विचार से मिलता-जुलता था. वह अधिकारों से वंचित किए गए असहाय लोगों की लड़ाई लड़ रहे थे. इस लोकतंत्र में वोटों की अपनी अहमियत है. उन्होंने इस बात को बखूबी समझा और अपने समाज के लोगों को संगठित किया. वह उस समय अपनी रैलियों में नारा लगाया करते थे कि वोट बेचना अपनी बेटी बेचने के बराबर है. इससे लोगों के भीतर स्वाभिमान जागा. लेकिन वह नहीं जानते थे कि उनकी उत्तराधिकारी ऐसी निकलेंगी. और यह कमी अपने नेता की चापलूसी या पूजने से पैदा हुई है.
डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि यदि व्यक्ति की पूजा और वंदना की जाएगी तो वह तानाशाह बन जाएगा. और उसका पतन भी निश्चित होगा. बहुजन समाज भी नायक वंदना में लीन हो गया है.
सुनील कश्यप : बीजेपी ने भी 2016 में बनारस से बौद्ध यात्रा शुरू की थी. उसको लेकर क्या सोचते है?
सुमित रत्न : वियतनाम में एक सम्मेलन हुआ था जिसमें वेंकैया नायडू शामिल हुए थे. वह कहने की कोशिश कर रहे थे कि हम बुद्ध की संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं. यह दोहरे चरित्र वाले लोग हैं. मोदी भारत में कुछ और कहेंगे और विदेश में कुछ और. यहां वे हिंदुओं की बात करेंगे और बाहर जाकर बुद्ध की बात करेंगे. लेकिन अब हम उनकी बातों को समझ रहे हैं और जनता के सामने उनके झूठ को उजागर कर रहे हैं.
सुनील कश्यप : कन्नौज में भगवान बुद्ध की मूर्ति को तोड़ने वाली घटना क्या थी?
सुमित रत्न : कन्नौज में छिबरामऊ नाम की एक जगह है. उस पूरे क्षेत्र में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं. पंचायत की अनुमति मिलने के बाद वहां के स्थानीय लोगों ने बुद्ध की प्रतिमा लगाई थी. मूर्ति को तोड़ने वाले लोगों ने कहा कि अगर बुद्ध की प्रतिमा लगाई जा सकती है तो महाराणा प्रताप की क्यों नहीं. यह पूरी घटना जाति से जुड़ी हुई थी. वे बुद्ध का विरोध करते हैं क्योंकि बुद्ध समानता की बात करते हैं, भेदभाव की नहीं. वह जाति में विश्वास नहीं करते.
सुनील कश्यप : दिल्ली और उत्तर प्रदेश के गजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में शामिल होने का अनुभव कैसा रहा?
सुमित रत्न : जब पुलिस ने किसानों को मारा-पीटा, उन पर आंसू गैस के गोले दागे तो वह सब देख कर मेरा मन विचलित हो उठा. किस तरह भारत के अन्नदाता के साथ अन्याय किया जा रहा था, यह सब किसके कहने पर कर रहे थे. यह सरकार उद्योगपतियों और आरएसएस मिल कर चला रहे हैं. न्याय की उम्मीद उनसे की जाती है जिनके स्वभाव में न्याय करना हो. इस सरकार का ऐसा स्वभाव नहीं है. मैं किसानों और उनके इस आंदोलन के साथ हूं.
सुनील कश्यप : बहुजन मैत्री सम्मलनों की अगले विधानसभा चुनाव में क्या भूमिका रहेगी?
सुमित रत्न : हम इन सम्मेलनों में खुल कर बोल रहे हैं कि बीजेपी हमारी विचारधारा को नहीं मानती है. वे ऊंची और नीचली जाति के आधार पर भेद करते हैं. अगर कोई निर्दलीय उम्मीदवार भी बीजेपी को हराता है तो हम बाकी पार्टियों को भूल जाएंगे. हम सम्मेलनों में कह रहे हैं कि बीजेपी का विरोध करने वालों को आपस में नहीं बंटना है क्योंकि अगर ऐसा होता है तो वे जीत जाएंगे. हमारा लक्ष्य बीजेपी को हराना है.
सुनील कश्यप : क्या आप चुनावी राजनीति में शामिल होंगे?
सुमित रत्न : नहीं, मैं कभी भी सीधे तौर पर किसी भी तरह की राजनीति का हिस्सा नहीं बनूंगा. हमने यह प्रण लिया है. कुछ लोगों को सामाजिक बदलाव लाने के लिए निजी तौर पर बलिदान देना चाहिए और एक बड़े उद्देश्य के लिए काम करना चाहिए.