कानून वापसी के बाद भी बीजेपी को करना पड़ेगा जन विरोध का सामना : जोगिंदर सिंह उगराहां

शाहिद तांत्रे/कारवां

Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.

20 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की, जिनके खिलाफ हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से अधिक समय से आंदोलन कर रहे थे. तभी से विपक्षी दल मोदी के फैसले से पीछे हटने के इस कदम को पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर करने की कोशिश बता रहे हैं. लेकिन भारतीय किसान यूनियन के एकता उगराहां धड़े के बैनर तले दिल्ली की सीमा पर किसानों के सबसे बड़े दल का नेतृत्व करने वाले जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा कि इस फैसले से बीजेपी को कोई फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि राज्यों में किसानों के बीच उसकी छवि पहले ही खराब हो चुकी है. उन्होंने कहा, 'पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड यहां तक ​​कि भारत में कहीं पर भी इन कानूनों को वापस लेने से बीजेपी को फायदा नहीं होगा. "हम कोशिश करेंगे कि जनता के बीच 2014 में सत्ता में आने के बाद से भाजपा की जनविरोधी फैसले, 1947 से और यहां तक की देश की आजादी से पहले आरएसएस की भूमिका को लेकर सच्चाई सामने लेकर आएं." कारवां के पत्रकार प्रभजीत सिंह के साथ हुई बातचीत में उगराहां ने कहा कि इन कानूनों को वापस लेना देश में लोकतंत्र के लिए चलने वाली लंबी लड़ाई का पहला कदम था. उन्होंने कृषि के निगमीकरण को लेकर विश्व व्यापार संगठन के आदेश सहित मोदी सरकार के अन्य आदेशों जैसे अनुच्छेद 370 हटाना, सीएए और एनआरसी का विरोध करने के लिए विपक्षी दलों के कमजोर पड़ने की भी बात कही.   

प्रभजीत सिंह : दिल्ली की सीमाओं पर साल भर तक चले किसान आंदोलन को आप किस तरह आंकते हैं?

जोगिंदर सिंह उगराहां : कई उतार-चढ़ाव आए हैं क्योंकि मोदी सरकार किसान आंदोलन को पूरी तरह से तहस-नहस करने पर तुली हुई थी. लेकिन यह धीरे-धीरे किसान आंदोलन से जन आंदोलन बन गया. जिस तरह सरकार ने सीएए विरोधी आंदोलन को दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़काकर दबाने की कोशिश की, उसी तरह वे हमें भी दबाना चाहते थे. एक षडयंत्र के तहत वे 26 जनवरी को हमें अलगाववादी सिख बताकर ऐसा ही करना चाहते थे. लेकिन हम एकजुट और मजबूती से डटे रहे. लखीमपुर हत्याएं और उसके बाद निहंग नेता द्वारा एक गरीब व्यक्ति की हत्या भी बीजेपी की इसी योजना का हिस्सा थी. हमने लोगों तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है इसलिए पूरे देश से हमें भारी समर्थन मिला. इस आंदोलन में करीब सात सौ किसानों ने अपनी जान गंवाई. लेकिन हम कभी डिगे  नहीं और मुद्दों पर केंद्रित रहे.

प्रभजीत सिंह : भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में आंदोलनों की क्या भूमिका है?

जोगिंदर सिंह उगराहां : आंदोलनों से लोकतंत्र पहले से विकसित और मजबूत हुआ है. जो लोग आवाज उठाने से डरते थे, वे अब लोकतंत्र की प्रासंगिकता/महत्व को समझ रहे हैं. इस आंदोलन ने देश की जनता को एक नया साहस प्रदान किया है.

प्रभजीत सिंह : कृषि कानूनों को लाने और उसके बाद हुए आंदोलन से निपटने में मोदी की भूमिका को लेकर आप क्या कहेंगे?

जोगिंदर सिंह उगराहां : जो स्वंय को पूरे समाज से बड़ा समझते हैं, उन्हें हमेशा झुकना पड़ता है. मोदी ने सोचा होगा कि मोदी है तो सब मुमकिन है लेकिन हमने उन्हें गलत साबित कर दिया. लखीमपुर हत्याकांड के बाद उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला. सिंघू सीमा पर एक व्यक्ति की हत्या करने वाले निहंग नेता की केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर के साथ अखबारों में तस्वीर छपने के बाद उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा. यहां तक ​​कि जिस तरीके से मोदी ने तीनों कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की वह भी अलोकतांत्रिक तरीका था. उन्होंने न तो कैबिनेट में इस पर चर्चा की और न ही सार्वजनिक स्तर पर कोई चर्चा होने दी. हालांकि हम इस घोषणा का स्वागत करते हैं, मैं केवल देश के प्रधानमंत्री के अलोकतांत्रिक दृष्टिकोण की ओर इशारा कर रहा हूं. हमारे सामने चुनौती उनके अहंकार को तोड़ने की थी. कानून निरस्त करने की घोषणा करते समय उन्होंने कहा कि वह हमें कानून ठीक तरह से समझा नहीं सके. यह उनके अहंकार को दर्शाता है. कश्मीर, सीएए, एनआरसी या भूमि अधिग्रहण कानूनों पर उनके सभी जनविरोधी फैसलों को कभी भी सार्वजनिक स्तर पर बहस के लिए नहीं लाया गया.

प्रभजीत सिंह : आपको क्या लगता है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी कैसा प्रदर्शन करेगी और क्या कृषि कानूनों को रद्द करने का असर परिणामों पर पड़ेगा?

जोगिंदर सिंह उगराहां : अगर बीजेपी को लगता है कि कानून वापस लेने से वे चुनाव जीत जाएंगे तो उनका ऐसा सोचना गलत होगा. चाहे पंजाब हो, उत्तर प्रदेश या उत्तराखंड भारत में कहीं भी इन कानूनों को वापस लेने से बीजेपी को फायदा नहीं मिलने वाला है. हम ध्यान रखेंगे कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से बीजेपी द्वारा लिए गए विमुद्रीकरण, अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण, भूमि अधिग्रहण कानून, एनआरसी और सीएए जैसे जन-विरोधी फैसलों के बारे में चर्चा करना और विरोध करना जारी रहे. हम 1947 से और देश की आजादी से भी पहले आरएसएस के कारनामों का पर्दाफाश करेंगे. जिसके बाद बीजेपी अपने गलत फैसलों के कारण पंजाब में लोगों के गुस्से का सामना करती रहेगी. हम सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान शाहीन बाग गए थे और हमने इस मुद्दे पर मलेरकोटला में एक विशाल रैली भी आयोजित की थी. हम फासीवाद के खिलाफ उठ खड़े होने वाले इन आंदोलनों में हमेशा साथ खड़े रहेंगे.

प्रभजीत सिंह : तो क्या आपका संगठन बीजेपी के खिलाफ इस लड़ाई जारी रखेगा?

जोगिंदर सिंह उगराहां : हमारी लड़ाई बीजेपी के खिलाफ नहीं बल्कि उसकी हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा के खिलाफ है. बीजपी ने सत्ता हासिल करने के लिए इस विचारधारा का सहारा लिया ताकि वह अपनी फासीवादी, कॉरपोरेट समर्थक और पूंजीवादी आर्थिक नीतियों को लागू कर सके. यह एक बड़ी लड़ाई है और अकेले हमारा संगठन इससे नहीं जीत सकता. हम सभी को संगठित होने की जरूरत है. धीरे-धीरे लोग इस बात को समझ रहे हैं. अब मैं पूछना चाहता हूं कि क्या बीजेपी ने अपनी विचारधारा से इस देश के हिंदुओं की स्थिति में कोई सुधार किया है? नहीं, ऐसा नहीं हुआ है. शाहीन बाग के आंदोलन को लेकर मोदी के रवैये को देखिए. उन्होंने मुस्लिमों का दमन किया, उन्हें मार डाला और फिर मुस्लिमों को उनके ही साथियों की हत्याओं के जुर्म में जेल में डाल दिया. उन्होंने अपने फासीवादी और सांप्रदायिक कार्यों के जरिए हिटलर बनने की कोशिश की.

प्रभजीत सिंह : आंदोलनकारी किसानों ने राज्यों को अधिक शक्ति देने की भी मांग की है, आप इसे कैसे देखते हैं?

जोगिंदर सिंह उगराहां : यह एक जटिल राजनीतिक सवाल है. और एक लंबी चर्चा का विषय है जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. इस बारे में फिर कभी बात करते हैं. आज जिन लोगों ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव, अखिल भारतीय अकाली सम्मेलन द्वारा 1978 का एक प्रस्ताव, जिसमें अन्य मुद्दों के साथ-साथ संघवाद की मांग की थी, उठाया वे इसके बारे में और बात नहीं करते हैं. आप इसके कारण पर नजर डाल सकते हैं.

प्रभजीत सिंह : लेकिन कृषि और जीएसटी ऐसे क्षेत्र हैं जो राज्य के नीति निर्माण के क्षेत्र से जुड़े हैं. आप इस बारे में बात करने से क्यों पीछे हट रहे हैं?

जोगिंदर सिंह उगराहां : मैं मानता हूं कि कृषि राज्य का विषय है, लेकिन राज्य सरकारें भी विश्व व्यापार संगठन के निर्देशों का पालन करती हैं. यहां तक ​​कि राज्य सरकारें भी कृषि को कॉरपोरेट क्षेत्र के नियंत्रण में ला रही हैं. वर्तमान में किसी भी राज्य के सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के पास ऐसा मॉडल नहीं है जिसके साथ वह केंद्र की नीतियों का मुकाबला कर सके. इसलिए, राज्यों को और अधिक शक्तियां देने की बात करने का कोई मतलब नहीं है जब तक कि हमारे पास कोई बेहतर मॉडल नहीं हो.

प्रभजीत सिंह : साल भर से चल रहे इस आंदोलन का पंजाब के लोगों पर क्या असर पड़ा है?

जोगिंदर सिंह उगराहां : पंजाब में लोंगो के बीच चर्चा के स्तर में काफी सुधार हुआ है. जो पार्टियां पहले सिर्फ रियायतों की घोषणा करके ही वोट मांगने का काम करती थीं, उन्हें अब लोगों के कड़े सवालों का सामना करना पड़ रहा है. नए रोजगार उपलब्ध कराना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे प्रमुख क्षेत्रों को लेकर दलों की क्या योजना है, जैसे सवाल उठने लगे हैं और अब लोग इन बहसों में कॉरपोरेट लॉबी को निशाना बना रहे हैं जोकि किसान आंदोलन की एक और उपलब्धि है.[

प्रभजीत : किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी किसानों के हाथों में सीधे निर्णय लेने की शक्ति देने के लिए किसान संगठनों के चुनाव लड़ने का समर्थन करते हैं. आपकी इस पर क्या राय है?

जोगिंदर सिंह उगराहां : हम समझते हैं कि सभी राजनीतिक दल उस उद्देश्य को पूरा करने में विफल हो रहे हैं जिसके लिए चुनाव कराए जाते हैं. सभी दल कॉरपोरेट क्षेत्र का समर्थन करने वाले विकास मॉडल से जुड़े हुए हैं. वे सभी कृषि ऋण माफ करने का वादा करते हैं, लेकिन उनके पास विकास के स्थायी मॉडल से जुड़े बुनियादी सवालों का जवाब नहीं है, जहां लोगों को कर्ज के जाल में फंसना ही न पड़े. उदाहरण के लिए, कृषि से होने वाली आय को कृषि क्षेत्र के विकास के लिए निवेश या खर्च नहीं किया जा रहा है. आंतरिक रूप से देखा जाए तो किसानों के इस आंदोलन ने सभी राजनीतिक दलों को बेचैन कर दिया है. लेकिन मैं दूसरों की चुनावी महत्वाकांक्षाओं पर टिप्पणी नहीं कर सकता. मैं केवल अपने संगठन के बारे में बात करूंगा.