ब्रिटेन की लेबर पार्टी के कश्मीर प्रस्ताव से विभाजित दक्षिण एशियाई

कश्मीर मामले पर भारत के कदम का लंदन में विरोध करते प्रदर्शनकारी. यूई मॉक/पीए इमेजिस/गैटी इमेजिस
18 November, 2019

ब्रिटेन में 12 दिसंबर को होने वाले आम चुनावों से ब्रेक्सिट का भविष्य तय होना है लेकिन सभी मतदाओं के लिए ब्रेक्सिट ही असली मुद्दा हो, यह जरूरी तो नहीं.

ब्रिटेन के दक्षिण एशियाई समुदाय- विशेष रूप से भारतीय और पाकिस्तानी- में ऐसे बहुत से लोग हैं जो कश्मीर में भारत सरकार के हालिया कदमों पर अपने-अपने उम्मीदवारों के रुख से प्रभावित होकर वोट डाल सकते हैं. 5 अगस्त को भारत सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को हासिल विशेष दर्जे को खत्म कर दिया था. इस कदम के बाद भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की कई रिपोर्टें सामने आई हैं.

सितंबर में अपने वार्षिक सम्मेलन में ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने कश्मीर पर एक आपातकालीन प्रस्ताव पारित किया. इस प्रस्ताव में कहा गया है, "कश्मीर में बड़ा मानवीय संकट पैदा हो रहा है," और साथ ही इस "क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के जाने का आह्वान किया." इसने आगे "गायब नागरिकों," "समग्र रूप से मानवाधिकारों के उल्लंघन" "और मुख्यधारा के राजनेताओं और कार्यकर्ताओं की नजरबंदी/ कारावास" पर ध्यानाकर्षित किया. प्रस्ताव में कहा गया है कि "कश्मीर की जनता को आत्मनिर्णय का अधिकार दिया जाना चाहिए."

प्रस्ताव पारित होने के बाद, ब्रिटिश भारतीय समुदाय के कई लोगों ने इसके खिलाफ जबरदस्त प्रतिक्रिया जाहिर की, जिसके बाद लेबर पार्टी को यह स्पष्टीकरण देना पड़ा कि वह कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का "द्विपक्षीय मामला" मानती है. सितंबर में, भारतीय उच्चायोग ने लेबर पार्टी के सदस्य, समर्थक और पदाधिकारी वाले फ्रेंड्स ऑफ इंडिया के साथ रात्रिभोज कार्यक्रम रद्द कर दिया.

इस प्रस्ताव ने ब्रिटेन में भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों को भी नाराज किया है. बीजेपी से जुड़े एक विदेशी लॉबिंग समूह, समुद्रपार बीजेपी मित्र (ओएफबीजेपी) ने ब्रिटेन में भारतीयों से लेबर पार्टी को वोट न देने की अपील की है. ब्रिटेन ओएफबीजेपी के अध्यक्ष कुलदीप सिंह शेखावत ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि वह सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं. उन्होंने ऐसी 48 सीटों की पहचान की है जहां अच्छी-खासी संख्या में भारतीय मूल के मतदाता हैं.

मैंने 8 नवंबर को शेखावत से बात की. उन्होंने कहा “अड़तालीस तो संख्यात्मक रूप से कहा है, ये पचास भी हो सकती हैं और बीस भी. लेकिन लेबर पार्टी के सांसदों ने भारतीय समुदाय को नाराज कर दिया है. कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, लेबर पार्टी क्यों हस्तक्षेप कर रही है?” उन्होंने आगे कहा,“ समुद्रपार बीजेपी मित्र एक गैर-राजनीतिक दबाव समूह है जो ब्रिटेन में भारत के हितों की रक्षा के लिए काम करता है. रणनीतिक रूप से पहली बार हमने लेबर पार्टी के खिलाफ मतदान का फैसला किया है.”

शेखावत ने आगे कहा कि 100 से अधिक अन्य भारतीय संगठनों ने पार्टी के कश्मीर प्रस्ताव के खिलाफ लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन को लिखा है. उन्होंने कहा कि भारतीय समुदाय "भारत विरोधी रुख" के लिए लेबर सांसदों से बहुत नाराज था.

हालांकि, 11 नवंबर को, शेखावत ने अपनी पहले की टिप्पणी पर स्पष्टीकरण देते हुए मुझे एक बयान भेजा. इसमें कहा गया था कि "हालिया मीडिया रिपोर्टों में मुझे ब्रिटेन चुनावों के संबंध में उद्धृत किया गया है. मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मेरी टिप्पणी ब्रिटिश भारतीयों के बीच राजनीतिक सक्रियता का एक सामान्य इजहार था. वह निहायत ही निजी टिप्पणी थी और निश्चित रूप से @बीजेपी4इंडिया के इशारे पर या समुद्रपार बीजेपी मित्र की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की आम राय से जारी नहीं की गई थी.” शेखावत ने कहा, “यह कहते हुए, मुझे यकीन है कि ब्रिटिश भारतीय बहुत सावधानी से देख रहे होंगे कि वे आगामी चुनावों में किसे वोट देंगे और वे (पार्टी की परवाह किए बिना) उन उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे जो उनके समुदायों के हितों का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करेंगे.”

लेबर पार्टी के प्रस्ताव के बाद, पार्टी को "हिंदू विरोधी" और "भारत विरोधी" बताने वाले व्हाट्सएप संदेश प्रवासी भारतीय समुदाय में शेयर हो रहे हैं. संदेश में ब्रिटिश हिंदुओं से पार्टी के खिलाफ वोट देने का आग्रह किया गया है.

लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी ने कहा कि ये संदेश ब्रिटिश भारतीय समुदाय को विभाजित करने का एक प्रयास था. उन्होंने एक ट्वीट में कहा, "मैं अपने हिंदू और सिख ब्रिटिश हमवतनों से गुजारिश करता हूं कि धार्मिक कट्टरपंथियों की विभाजनकारी रणनीति का शिकार मत बनो, जो हमारे समुदाय को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. वे मुझ जैसों को खामोश नहीं कर सकते जो मानवाधिकारों की आवाज उठाते हैं."

शेखावत ने कहा कि ओएफबीजेपी ढेसी की सीट पर कंजर्वेटिव पार्टी के उम्मीदवार के लिए प्रचार कर रहा है. ढेसी स्लाव निर्वाचन क्षेत्र से दुबारा उम्मीदवारी दे रहे हैं. इस निर्वाचन क्षेत्र में पाकिस्तानी मूल के 17.7 प्रतिशत और भारतीय मूल के 15.6 प्रतिशत निवासी हैं. ढेसी, ब्रिटिश मुसलमानों के लिए ऑल पार्टी पार्लियामेंटरी ग्रुप का भी हिस्सा हैं.

ढेसी ने मुझसे कहा, "मैं इस बात की कद्र करता हूं कि कश्मीर पर आपातकालीन प्रस्ताव से पार्टी और समुदाय के बीच कुछ मतभेद जरूर हुआ है, जिसकी हम में से कई लोगों ने चर्चा की है और पार्टी नेतृत्व इसे देख रहा है. कुछ लोग ऐसा दर्शाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन इसके विपरीत, लेबर पार्टी भारत-विरोधी, पाकिस्तान-विरोधी या किसी की भी विरोधी नहीं है. हम तो बस बिना किसी पृष्ठभूमि, रंग या पंथ की परवाह किए बिना सभी के मानवाधिकारों के लिए खड़े हैं."

बर्मिंघम एजबेस्टन निर्वाचन क्षेत्र से लेबर पार्टी की उम्मीदवार प्रीत कौर गिल ने कहा कि वह व्हाट्सएप के जरिए फैलाए जा रहे संदेशों को लेकर चिंतित नहीं हैं. यह निर्वाचन क्षेत्र भी उन सीटों में से एक है जहां शेखावत ने कहा था कि ओएफबीजेपी ने कंजरवेटिव पार्टी के लिए प्रचार करने की योजना बनाई है. गिल ने कहा, "लोग सांसदों की पिछली उपलब्धियों के आधार पर वोट देते हैं. मुझे अपने अश्वेत और अल्पसंख्यक जातीय (बेम) समुदायों से अत्यधिक समर्थन मिला है. मेरी स्पष्ट राय है कि कश्मीर पर, भारत और पाकिस्तान के बीच दुबारा वार्ता शुरू हो”

ईलिंग साउथहॉल के लेबर पार्टी के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने कश्मीर पर अपनी पार्टी के रुख को लेकर नाराजगी जताई है. इसलिए ओएफबीजेपी उनका समर्थन कर रहा है.

इस बीच, ब्रिटेन में दक्षिण एशियाई मतदाता कश्मीर प्रस्ताव पर विभाजित हैं और क्या यह समुदाय के चुनावी विकल्पों को प्रभावित करेगा. स्लोग के मानवाधिकार कार्यकर्ता, नाजर लोधी ने कहा, "मैं तान ढेसी को न केवल इसलिए वोट दूंगा क्योंकि मैं लेबर पार्टी का सदस्य हूं, बल्कि इसलिए भी उन्हें वोट दूंगा क्योंकि उन्होंने कश्मीरियों के मानवाधिकारों के मुद्दे उठाए हैं."

मैंने कश्मीर की आजादी के मुखर समर्थक और ब्रिटेन की संसद की ऊपरी सदन, हाउस ऑफ लॉर्ड्स, के सदस्य नजीर अहमद से भी बात की. उन्होंने कहा, "मुझे यकीन है कि लोग प्रत्येक पार्टी की नीति को देखेंगे और उसके अनुसार मतदान करेंगे. मैं चुनाव के परिणाम की भविष्यवाणी नहीं कर सकता लेकिन मुझे यकीन है कि लोग उम्मीदवारों से कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार के संबंध में उनके समर्थन के बारे में पूछेंगे.”

अन्य लोगों ने विरोधी विचार भी व्यक्त किए. बर्मिंघम के शिक्षाविद् और शोधकर्ता डॉ. सुजिंदर सिंह संघा ने लिबरल डेमोक्रेट्स पार्टी का जिक्र करते हुए कहा, "कई ब्रिटिश-भारतीय मतदाता कंजर्वेटिव पार्टी की ओर जा रहे हैं और कुछ लोग लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर आकर्षित हो रहे हैं. ऐसा लगता है कि कई ब्रिटिश-भारतीय मतदाता लेबर पार्टी के नेतृत्व को ब्रिटेन में कश्मीरी-अलगाववादी लॉबी से प्रभावित मानते हैं." उन्होंने कहा, "कई हिंदू, जिन्हें मैं जानता हूं, कई सिखों की तरह, खुद को खासे धार्मिक परिप्रेक्ष्य से नहीं देखते हैं. वे अपने सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक विचारों के अनुसार मतदान करते हैं.” उन्होंने आगे कहा, “ज्यादातर लोग कश्मीर के बारे में लेबर पार्टी के रुख को अस्वीकार करते हैं, जो मतदानों को प्रभावित कर सकता है.”

एलिंग साउथॉल से कंस्टीटुएंसी लेबर पार्टी के कोषाध्यक्ष अवतार सिंह बुट्टर ने उस ध्रुवीकरण का वर्णन किया जो उन्होंने चुनाव से पहले अपने क्षेत्र में देखा है. केस्टीटुएंसी लेबर पार्टी या सीएलपी, लेबर पार्टी के सदस्यों की एक शाखा है जो किसी संसदीय क्षेत्र में होती है. उन्होंने कहा कि "हम ऐसे हिंदू घरों में गए जिनका कहना था कि वे लेबर पार्टी को वोट नहीं देंगे और ऐसे मुस्लिमों से भी मिले जो कहते हैं कि वे लेबर पार्टी को वोट देंगे बशर्ते कि पार्टी का उम्मीदवार हिंदू न हो."

हैरो ईस्ट निर्वाचन क्षेत्र में लेबर पार्टी के लिए प्रचार करने वाले एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर एक ऐसा ही किस्सा साझा किया. हैरो ईस्ट में काफी ज्यादा संख्या में भारतीय रहते हैं जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. उसने कहा, "हमने कई दरवाजे खटखटाए हैं जिन्होंने हमारे मुंह पर कहा कि हमारे मंदिरों ने हमें लेबर पार्टी को वोट न देने के लिए कहा है क्योंकि वह हिंदू-विरोधी है."

इस प्रतिक्रिया के जवाब में, लेबर पार्टी ने स्वीकार किया है कि उसके इस कदम ने भारतीय समुदाय को नाराज किया है. पार्टी ने आगे स्पष्ट किया कि वह कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मामले के रूप में देखती है. 10 अक्टूबर को भारत के लेबर फ्रेंड्स को लिखे एक पत्र में, कॉर्बिन ने स्वीकार किया कि प्रस्ताव में "प्रयुक्त की गई भाषा" की कुछ हद तक भारत और प्रवासी भारतीयों के खिलाफ होने के रूप में गलत व्याख्या की जा सकती है. उस पत्र में कहा गया है, "लेबर पार्टी ब्रिटेन में भारतीय समुदाय की कश्मीर को लेकर जो चिंताएं हैं उन्हें समझती है और इन चिंताओं को बहुत गंभीरता से लेती है." हालांकि, यह भी नोट किया गया कि लेबर पार्टी "कश्मीर के सभी नागरिकों के मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता का सम्मान करती है और इस पर कायम है.”

11 नवंबर को लेबर पार्टी के अध्यक्ष इयान लैवरी ने एक और पत्र जारी किया जिसे स्थिति को नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. पत्र में कहा गया है, "हम मानते हैं कि आपातकालीन प्रस्ताव में इस्तेमाल की गई भाषा ने प्रवासी भारतीय समुदाय के कुछ वर्गों और खुद भारत को भी नाराज किया है. हम इस बात पर सहमत हैं कि कश्मीर मुद्दे पर गहराई से महसूस किए गए और वास्तव में जो मतभेद हैं उन्हें यहां ब्रिटेन में समुदायों को एक दूसरे के खिलाफ बांटने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए." इसने दावा किया कि "लेबर पार्टी के पास भारतीय प्रवासी समुदाय का सर्वाधिक समर्थन है."

पत्र में कहा गया है, “कश्मीर, भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मामला है जिसे दोनों को मिलकर शांतिपूर्ण तरीकों से ऐसे हल करना है जो कश्मीरी लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करता हो और अपने भविष्य पर निर्णय लेने के उनके अधिकार का सम्मान करता हो. लेबर पार्टी किसी भी अन्य देश के राजनीतिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करती है." पत्र में आगे स्पष्ट किया गया कि यह ध्यान में रखते हुए कि पार्टी "वर्तमान स्थिति में सभी लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करने की इच्छा से प्रेरित है, लेबर पार्टी कश्मीर पर भारत-विरोधी या पाकिस्तान-विरोधी किसी भी स्थिति को नहीं अपनाएगी.”

ब्रिटेन स्थित अंतर्राष्ट्रीय खालसा संगठन, जिसके सदस्य सभी धर्मों के हैं, इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मैं नवंबर की शुरुआत में मिली. मैंने संगठन के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह से बात की. उन्होंने कहा, "हालांकि कश्मीर मुद्दा हमारे कई सदस्यों के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन अधिकांश लोगों ने कहा कि वे पार्टी के घोषणापत्र के अनुसार मतदान करेंगे."

लंदन एसेंबली के सदस्य डॉ. ओंकार सहोता ने भी इसी तरह के विचार जाहिर किए. उन्होंने कहा, "हालांकि कश्मीर को लेकर लेबर पार्टी के बीच बहस जारी है और लोगों के वोट देने पर इसका बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन मामूली असर हो सकता है. जहां मानवाधिकारों का उल्लंघन हो, वह कश्मीर हो या यमन, हमें टिप्पणी करने का अधिकार है. हालांकि, हमें अन्य देशों की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. मुझे लगता है कि कश्मीर मुद्दे को भारत और पाकिस्तान के बीच ईमानदारी से चर्चा से हल किया जा सकता है. भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति से इस देश की बेहतरी प्रभावित नहीं होनी चाहिए. हमें ब्रेक्जिट, राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा, एनएचएस (इंग्लैंड की सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली), शिक्षा के बारे में चिंता करने की आवश्यकता है."

मध्य इंग्लैंड के कोवेंट्री शहर के एक कॉलेज के एक छात्र के अनुसार, कश्मीर मुद्दे का छात्रों के वोटों पर सीधा असर नहीं होगा. इस छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "कश्मीर का मुद्दा ब्रिटेन के कुछ भारतीय और पाकिस्तानी लोगों के दिमाग में है लेकिन ऐसे लोग पुरानी पीढ़ी के हैं. युवाओं को अपनी प्राथमिकताएं पता हैं."