लगभग तीन से चार हजार साल पहले यूरेशियाई स्टेप से लोगों के यहां आने के बाद के हजार सालों में भारतीय आबादी एक जबरदस्त मंथन से गुजरी है. आज लगभग हर भारतीय में स्टेप और अस्तिवमान सिंधु घाटी की आबादी के जीनों के अलग-अलग अनुपात का मिश्रण है. और फिर हजारों सालों के मिश्रण के बाद वह मंथन, जिसने हम सभी को पैदा किया, थम गया.
आनुवंशिकीविद डेविड राइक के मुताबिक, भारत की आबादी बहुत बड़ी तो है लेकिन यह कुल मिला कर छोटे-छोटे समूहों का एक बड़ा गुच्छा है. राइक ने एक निबंध में लिखा है, "एक ही गांव में साथ-साथ रहने वाले भारतीय जाति समूहों के बीच आनुवंशिक फर्क का स्तर आमतौर पर उत्तरी और दक्षिणी यूरोपीय लोगों के बीच आनुवंशिक फर्क की तुलना में दो से तीन गुना ज्यादा है. भारत में शायद ही कोई समूह हो जो जनांकिकी या डीमॉग्रफिक के हिसाब से बहुसंख्यक कहा जा सकता हो.” वह लिखते हैं कि इसके उलट “चीन के हान वास्तव में एक बड़ी आबादी हैं जो हजारों सालों से अधिकता से मिक्स हो रहे हैं.”
एक-दूसरे से अलग इस सहजातीय समूहों को हम आज जाति कहते हैं. उन्हें वर्णानुसार वर्गीकृत किया गया है. जातियों की इस दर्जाबंदी की शरुआत कहीं ना कहीं तब हुई होगी जब आपस में मिक्स होने का दौर खत्म हो गया था या उसके तुरंत बाद. राइक का कहना है, "जाति व्यवस्था में कम से कम 4600, और कुछ के मुताबिक तो लगभग 40000 सहजातीय समूह शामिल हैं. हरेक का वर्ण व्यवस्था में एक खास दर्जा है लेकिन मजबूत और पेचीदा सहगोत्रीय नियम अलग-अलग जातियों के लोगों को एक-दूसरे के साथ मिक्स होने से रोकते हैं, भले ही वे एक ही वर्ण स्तर के हों.”
आज यह पता लगाना मुश्किल है कि दर्जाबंदी में अपमानजनक दर्जों पर पहुंचाए गए लोगों ने इस स्थिति को स्वीकार कैसे किया. कोई भी समूह ऐसी स्थिति को खुशी-खुशी मानने वाला तो नहीं था. संभवतः इसके लिए धार्मिक औचित्य और बल प्रयोग की की जरूरत पड़ी होगी ताकि ऐसे समुदाय इस स्थिति को चुनौती ना दे सकें. हालांकि उपरोक्त दावा हाइपॉथेटिकल अथवा अनुमानिक है और इसकी पुष्टि करना या इसके पक्ष में सबूत जुटाना मुश्किल है, लेकिन अब हमारे सामने वैसा ही कुछ हो रहा है जो है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तहत भारत के मुसलमानों की स्थिति में गिरावट और उनका हाशियाकरण.
मुख्तलिफ पैमाने पर इसमें लगभग वे सभी घटक उपस्थित हैं जो किसी आबादी को उन जातियों से नीचे स्थापित करते हैं जो खुद को ऊंची जातियां कहती हैं. इनमें अंतर-विवाह पर प्रतिबंध, आबादी का घेटोआइजेशन, भोजन को खास समुदायों से जोड़ना और सामाजिक सत्ता संरचना में भागीदारी से वंचित करना शामिल है.
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