आज से लगभग 11 साल पहले नवंबर 2008 में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने आर्ट्स फैकल्टी के कमरा नंबर 22 में “सांप्रदायिकता, फासीवाद, लोकतांत्रिक शब्दाडंबर और यथार्थ” विषय पर सेमिनार आयोजित किया था. सेमिनार के मुख्य वक्ता थे विश्वविद्यालय में अरबी भाषा के कश्मीरी मुस्लिम प्रोफेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी.
गिलानी से बेहतर इस विषय पर बात रखने वाला देश में शायद ही कोई और था. 2002 में संसद में हुए हमले में उनकी कथित भूमिका को लेकर अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी. मीडिया ने ट्रायल चलाकर अदालत का फैसला आने से पहले ही गिलानी को आतंकवादी घोषित कर दिया था. लेकिन आगे के तीन सालों में दिल्ली उच्च अदालत और सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया. उस सेमिनार में दमनकारी राज्य मशीनरी द्वारा उन पर लगाए आरोपों और सांप्रदायिकता पर गिलानी अपने विचार रखने वाले थे.
ऊंचे मंच पर रखी एक बड़ी मेज के पीछे गिलानी के साथ 21 साल के उमर खालिद बैठे थे. 2016 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए विवाद के बाद खालिद पर भी देशद्रोह का आरोप लगा. इन दोनों के साथ मंच पर थे रामचंद्रन जो फिलहाल द ट्रिब्यून के संपादक हैं.
जैसे ही गिलानी मंच पर जा कर बैठे, एक विद्यार्थी उनके करीब आया और उनकी तरफ झुक गया. लग रहा था मानो वह गिलानी से कुछ कहना चाहता हो. वह छात्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का सदस्य था. गिलानी पर उसने दो बार थूका. गिलानी अचकचा गए और अपनी कुर्सी पर धंस-से गए.
इस कार्यक्रम को बिगाड़ने के लिए यह एक पूर्वनियोजित साजिश थी. फिर एबीवीपी के सदस्य चिल्ला-चिल्ला कर गिलानी और अन्य वक्ताओं को गालियां देने लगे. गिलानी ने बेखौफ रहकर अपनी बात कहनी शुरू की. एबीवीपी के सदस्य कमरे में तोड़फोड़ करने लगे और कुछ लोगों ने वक्ताओं के साथ मारपीट भी की. एबीवीपी की तत्कालीन अध्यक्षा नूपुर शर्मा, जिन्होंने बाद में हुए विधानसभा चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ा, आईं और घोषणा की कि गिलानी विश्वविद्यालय में अपनी बात नहीं रख सकते.
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