We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing
20 नवंबर को उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा के लिए उपचुनाव होने हैं. 2027 को होने जा रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले के इन उपचुनावों को सभी दलों के लिए बहुत ख़ास माना जा रहा है. यह योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व और अखिलेश यादव के पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) नीति की परीक्षा भी है. इन चुनावों में बसपा भी पहली बार उपचुनाव लड़ रही है.
अंबेडकर नगर की कटेहरी विधानसभा, मिर्जापुर की मझवां विधानसभा, मुज़फ़्फरनगर की मीरापुर विधानसभा, कानपुर सिटी की सीसामऊ विधानसभा, मैनपुरी की करहल विधानसभा, फूलपुर विधानसभा, अलीगढ़ की खैर विधानसभा, मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा और गाजियाबाद विधानसभा में 90 प्रत्याशी मैदान में हैं.
इनमें से आठ सीटें लोकसभा चुनाव में विधायकों के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई थीं, जबकि सीसामऊ सीट समाजवादी पार्टी के विधायक इरफ़ान सोलंकी को एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद खाली हुई थी.
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सीसामऊ, कटेहरी, करहल, मिल्कीपुर और कुंदरकी सीट पर सपा का कब्जा था, जबकि बीजेपी ने फूलपुर, गाजियाबाद, खैर सीटें जीती थीं. मझवां सीट पर निषाद पार्टी ने जीत हासिल की थी. मीरापुर सीट राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के पास थी. बीजेपी ने नौ विधानसभा सीटों में से आठ पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि एक सीट अपने सहयोगी, रालोद के लिए छोड़ी है. वहीं कांग्रेस पार्टी सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी का समर्थन कर रही है.
बीजेपी ने फूलपुर से दीपक पटेल और मझवां सीट से सुचिस्मिता मौर्या को उम्मीदवार बनाया है. बीजेपी ने कुल चार ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं. उसके सहयोगी दल रालोद ने मीरापुर से मिथिलेश पाल को उतारा है.
2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें जीती थीं. इसके 25 सांसद पिछड़ी जातियों के थे. इसी नीति पर आगे बढ़ते हुए सपा ने गाज़ियाबाद सीट से दलित समुदाय के उम्मीदवार को टिकट दिया है. कानपुर की सीसामऊ से नसीम सोलंकी, फूलपुर से पूर्व विधायक मुस्तफ़ा सिद्दीकी, कुंदरकी से पूर्व विधायक मोहम्मद रिज़वान और मीरापुर सीट से सुंबुल राणा को टिकट मिला है. पार्टी ने ज्योति बिंद को मझवां और जाटव समाज की चारू कैन को अलीगढ़ की खैर सीट से उम्मीदवार बनाया है. समाजवादी पार्टी ने नौ में से चार सीटों पर मुस्लिम, दो पर दलित और तीन पर ओबीसी समुदाय के उम्मीदवार खड़े किए हैं. बसपा ने कटेहरी से अमित वर्मा, करहल से अवनीश कुमार शाक्य, गाज़ियाबाद से परमानंद गर्ग, सीसामऊ से वीरेंद्र शुक्ला, फूलपुर से जितेंद्र कुमार सिंह, मीरापुर से शाहनज़र और मझवां से दीपक तिवारी को उम्मीदवार बनाया है.
अंबेडकर नगर से सांसद चुने गए लालजी वर्मा के इस्तीफ़े से खाली हुई कटेहरी सीट पर बीजेपी ने धर्मराज निषाद को समाजवादी पार्टी की शोभावती वर्मा के ख़िलाफ़ उतारा है. धर्मराज निषाद और लालजी वर्मा, दोनों बसपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
इन सीटों पर रिपोर्टिंग के दौरान कटेहरी विधानसभा के आशुतोष वर्मा ने हमें बताया, “इस विधानसभा से 12 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं. मुख्य मुक़ाबला सपा और बीजेपी में है. दोनों ने पिछड़े समाज के व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया है. अकबरपुर विधानसभा से बसपा के अमित वर्मा चुनाव लड़ रहे हैं." वर्मा मानते हैं, "यहां पर जाति के नाम पर ही वोट दिया जाता है. उसके बाद लोग पार्टी का नाम लेते हैं."
गौरतलब है कि यह सीट पहले बसपा का गढ़ हुआ करती थी लेकिन जब से बसपा नेता लालजी वर्मा और रामअचल राजभर सपा में गए तब से यहां सपा का प्रभाव बढ़ गया है.
इन विधानसभा उप चुनाव में सबसे रोचक मुक़ाबला मझवां विधानसभा सीट में देखने को मिल रहा है. यहां से एनडीए गठबंधन की सहयोगी पार्टी, अपना दल(एस), की नेता और मिर्ज़ापुर से लगातार तीन बार की सांसद केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की साख़ दांव पर लगी है. इसलिए अनुप्रिया पटेल और उनके पति कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल लगातार इस सीट पर चुनाव प्रचार में सक्रिय भी हैं. यह सीट 2022 में बीजेपी की सहयोगी, निषाद पार्टी, के कोटे में गई थी. इस सीट पर अनुप्रिया पटेल से लोकसभा चुनाव हार चुके समाजवादी पार्टी के नेता रमेश बिंद की बेटी ज्योति बिंद समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. ख़ुद रमेश बिंद इस सीट से लागातर तीन बार, 2002, 2007 और 2012 में, चुनाव जीत चुके हैं, वहीं बीजेपी की ओर से पूर्व विधायक सुचिस्मिता मौर्य चुनाव लड़ रही हैं.
इस विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले बीबीसी पत्रकार हरिश्चंद्र केवट ने हमें बताया, “मझवां का यह उपचुनाव दो पार्टियों और दो प्रत्याशियों के बीच साख़ की लड़ाई है." उन्होंने आगे कहा, "मझवां के जातिगत समीकरण की समीक्षा करें तो यहां 3,85,000 मतदाता हैं. इनमें 72,000 बिंद, 68,000 दलित, 65,000 ब्राह्मण, 38,000 मौर्य, 28,000 मुस्लिम, 26,000 पाल, 25,000 यादव, 20,000 राजपूत, 16,000 पटेल हैं. जातिगत समीकरण से साफ है कि मझवां में बिंद, ब्राह्मण और दलित मतदाता जीत-हार में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन अन्य जातियों के मतदाता भी बड़ा उलटफेर करने की क्षमता रखते हैं." केवट मानते हैं कि समाजवादी पार्टी का पीडीए फार्मूला मझवां में सफल हो सकता है क्योंकि मझवां में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों की संख्या और समस्या एक ही हैं. अधिकतर पिछड़ों और दलितों के गांवों में बुनियादी सुविधाओं का अभी भी अभाव है और बीजेपी के पिछले दो विधायकों ने कुछ ख़ास काम नहीं किया. उन्होंने कहा, "मझवां के दलित और पिछड़े परिवारों की महिलाओं में एक बड़ी संख्या खेत मजदूरों की है. इस बार दो महिला प्रत्याशी मैदान में हैं, तो महिलाओं की चुनाव में भागीदारी को प्रमुखता से लिया जाएगा.”
इस उपचुनाव में पूर्वांचल की एकमात्र विधानसभा सीट में चुनाव हो रहा है. पूर्वांचल के महत्व को जानते हुए, इस सीट को राजनीतिक दलों के लिए 2027 की तैयारी के रूप में लिया जा रहा है.
फूलपुर विधानसभा के अमरसापुर गांव के रहने वाले मुलायम सिंह यादव ने हमें बताया, "यहां पर मुस्लिम, यादव, दलितों की संख्या ज्यादा है. 35,000 के आस-पास कुर्मी हैं, और तकरीबन 15,000 मौर्या समाज के लोग हैं." यहां से सपा के मुस्तफ़ा सिद्दीकी, बीजेपी के दीपक पटेल और कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सुरेश चंद यादव निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि पार्टी की नाफ़रमानी के लिए कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया है. बसपा ने ठाकुर समाज के जितेंद्र सिंह को टिकट दिया है. मुलायम सिंह यादव ने बताया, "यहां पर अतिपिछड़ा समाज— निषाद, कुम्हार, नाई— अभी बीजेपी के साथ ही हैं. सवर्णों की संख्या बामुश्किल 25,000 के आसपास होगी. बीजेपी हमेशा ओबीसी को टिकट देती है क्योंकि उसकी हिम्मत नहीं वह किसी सवर्ण को यहां से खड़ा करे. लोकसभा हो या विधानसभा हो पूरा माहौल पीडीए का है.”
बीजेपी के मुरादाबाद जिला के जिला उपाध्यक्ष गजेंद्र सिंह नें हमें बताया, “हमारे प्रत्याशी ठाकुर रामबीर सिंह 2012 से चुनाव लड़ रहे हैं और हार रहे हैं. 2022 के पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें 99,000 वोट मिले थे. सपा से प्रत्याशी हाजी रिज़वान तीन बार से यहां के विधायक हैं. हमारे इस क्षेत्र में कोई काम नहीं हुआ. इस इलाके में मुसलमानों पर अनेक मुक़दमे लगे हैं. इस वजह से ही मुस्लिम समाज ने भी इस बार बीजेपी को वोट देने का मन बनाया है. इस सीट पर मुस्लिम आबादी 65 प्रतिशत है और 30,000 ठाकुर, 30,000 सैनी, 35,000 दलित हैं. यहां प्रत्याशी और स्थानीय मुद्दे सबसे आगे हैं. हमारी सरकार से यहां का मुसलमान भी ख़ुश है क्योंकि अराजकता और गुंडागर्दी कम हुई है.”
गजियाबाद विधानसभा के रमन गौतम बताते है, “इस चुनाव में थोड़ा सन्नाटा है. पब्लिक भी इसको उस तरह नहीं ले रही है जैसे आम चुनाव को लेती है. यहां पर सबसे ज्यादा वोट जाटव समाज के हैं. उसके बाद मुस्लिम समाज का नंबर आता है. शहर में बीजेपी का अपना एक कोर वोटबैंक है. अखिलेश यादव ने जाटव समाज के व्यक्ति को टिकट देकर यहां पर सबको चौंका दिया है. उपचुनाव में अक्सर सत्ताधारी पार्टी चुनाव जीतती है पर इस बार ऐसा नहीं लग रहा है. इस बार समीकरण बदले नज़र आ रहे हैं.”
गजियाबाद में पुराने बस अड्डे पर अपना एक कोचिंग चलाने वाले राहुल स्नेहलि कहते हैं, “पिछले चुनावों की तरह इस बार यह सीट एकतरफा नहीं है. यहां कई बड़े नेता आ चुके हैं. इसके बाद भी वे इस चुनाव में कोई जान नहीं फूंक पा रहे. इस बार लग रहा है बीजेपी अपनी इज्जत बचाने में लगी है. वह जनता का मूड नहीं समझ पा रही है. जनता खामोश है.”
कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष सहदेव शर्मा ने हमें बताया, “कांग्रेस ने उपचुनाव नहीं लड़कर सही फैसला लिया है. कांग्रेस पार्टी के बारे में अगर मैं साफ़ कहूं तो इस पार्टी के कार्यकर्ता अब मेहनत नहीं करना चाहते. जबकि सपा अच्छा काम कर रही है.”
बीजेपी के नेता और पूर्व एमएलसी सुरेश कश्यप दावा करते हैं कि गाजियाबाद बीजेपी का गढ़ है और बना रहेगा. वह कहते हैं, "यहां जाटव समाज की संख्या सबसे ज़्यादा है. बीजेपी ने इसी समाज के अपने नेताओं की ड्यूटी अपने समाजों को साथ लाने के लिए लगाई है. बीजेपी हर चुनाव में पूरी मेहनत करती है. वह हर चुनाव को गंभीरता से लेती है."
गजियाबाद जिला दिल्ली से सटा है. पार्टी ने अपने अधिकतर अभियान गाजियाबाद से शुरू किए हैं. इसका असर दिल्ली की राजनीति पर भी दिखता है. सुरेश कश्यप कहते हैं, "जहां हमारे सामने मुस्लिम प्रत्याशी होता है, वहां हमारी पार्टी को कोई दिक्कत नहीं होती. मीरापुर में हमारे गठबंधन के प्रत्याशी मिथलेश पाल ने अपने पोस्टर में महर्षि वाल्मीकि, महर्षि कश्यप, दक्ष प्रजापति, विश्वकर्मा भगवान, ज्योतिबा फुले, अहिल्याबाई होल्डर और अंबेडकर को जगह दी है. वह जानती हैं कि हमारे कोर वोटर कौन हैं. उपरोक्त सभी अति पिछड़े समाज के हीरो हैं. वाल्मीकि, कश्यप, प्रजापति, सैनी और पाल समाज के पास एक लाख के आस-पास वोट हैं.”
कवाल गांव के रहने वाले तौफ़ीक कहते हैं, “मीरापुर विधानसभा में सपा और लोकदल के बीच टक्कर है. यहां मैदान पर मुस्लिम प्रत्याशी अधिक हैं." उनका कहना है कि ऐसे होने से मुस्लिम वोट विभाजित होगा और इसीलिए सपा के लिए यहां जीतना आसान नहीं है." वह कहते हैं, "हम लोगों ने पहले चंदन चौहान को वोट दिया था. तब वह सपा के साथ गठबंधन में थे. इस बार वह बीजेपी के साथ हैं. हमें लगता है हमारे वोट का कोई मोल नहीं है.”
मीरपुर में चुनाव प्रचार के दौरान हमारी मुलाक़ात निशा से हुई, जो सपा के पर्चे बांट रही थी. उन्होंने हमें बताया कि वह 300 रुपए दिहाड़ी पर यह काम कर रही हैं.
हम मीरापुर थाना के पास दलित बस्ती में भी गए जहां करीब 10 लोग बैठे बात कर रहे थे. उनके पीछे अंबेडकर की बड़ी सी मूर्ति लगी थी. सुरेश कुमार, अनुज कुमार और संतोष कुमार ने हमें बताया कि यहां मिथलेश पाल और सुंबुल राणा के बीच टक्कर है. वे कहते हैं, “हमारे बीच अभी तक ना तो आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) का कोई आया और ना ही कोई बसपा से आया. हमारे यहां 1500 वोट हैं. हमारे समाज की यह बड़ी बस्ती है. यहां का पूरा वोट बसपा का होता था पर पिछले समय से हमको पार्टी में क्या हो रहा है कुछ नहीं पता चलता.”
हम मीरापुर में मिथलेश पाल के चुनावी कार्यालय में भी गए जहां हमारी बात मिंतर पाल और धर्मपाल गुजर्र से हुई. मिंतर पाल ने हमें बताया, “मिथलेश पाल रालोद से पहले भी विधायक रही हैं, बीच में वह बीजेपी में चली गई थीं. अब दोनों दल गठबंधन में हैं. 2017 चुनाव में 22,000 वोट मिले थे. मिथलेश अतिपिछड़े समाज से आती हैं. उन्होंने अपने प्रचार में भी अतिपिछड़े समाजों को जगह दी है. जिस धर्मशाला में हम लोग बैठे हैं वह सैनी समाज की है. और हमारे साथ अतिपिछड़े समाज के लोग प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. जाट और गुजर्र थोड़ा नाराज़ हैं लेकिन उससे फर्क नहीं पड़ेगा.”
धर्मपाल गुजर्र ने भी हमें बताया कि टिकट की मांग जाट और गुजर्र समाज के लोग कर रहे थे. उनका कहना था, "चूंकि पिछले दो चुनावों से गुजर्र विधायक रहे हैं इसलिए जाट और गुजर्र नाराज़ हैं कि उन्हें इस बार क्यों टिकट नहीं दिया गया. लेकिन इससे हमारे चुनाव पर उतना असर नहीं होगा. मिथलेश भारी मतों से चुनाव जीतेंगी."
निषाद पार्टी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी जयभगवान कश्यप ने बताया, “हमारे कार्यकर्ताओं में बीजेपी को लेकर थोड़ी नाराज़गी है. हमारी दो सीट बनती थीं— एक मझवां और दूसरी कटेहरी. बीजेपी ने हमको कोई सीट नहीं दी. हम जब अपने लोगों के पास जा रहे हैं तो वे हमसे सीट को लेकर सवाल पूछ रहे हैं. इसके अलावा हमारे आरक्षण के सवाल पर भी बीजेपी ने कुछ नहीं किया. मीरापुर में हम कश्यप समाज के लोगों में इस बात की नाराज़गी है. जाट और गुजर्र भी नाराज़ हैं. हम लोग मिथलेश के लिए अतिपिछड़े होने के नाम पर वोट मांग रहे हैं. हमारे समाज का वोटर लोकदल को वोट नहीं करता पर निषाद पार्टी ने 2022 और 2024 में वोट कराया था लेकिन बीजेपी ने हमारे दल के साथ अच्छा नहीं किया. इस बात से हमारे कार्यकर्ता खफ़ा हैं.”
Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute