विजेता

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की जीत का गणित

2024 के चुनावों के दौरान अखिलेश यादव की एक रैली, जिसमें समाजवादी पार्टी ने दलित और ओबीसी समुदायों के प्रतिनिधित्व को अपना केंद्रीय चुनावी मुद्दा बनाया. पीडीए-पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक उनका मुख्य नारा था. सौजन्य : अखिलेश यादव
2024 के चुनावों के दौरान अखिलेश यादव की एक रैली, जिसमें समाजवादी पार्टी ने दलित और ओबीसी समुदायों के प्रतिनिधित्व को अपना केंद्रीय चुनावी मुद्दा बनाया. पीडीए-पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक उनका मुख्य नारा था. सौजन्य : अखिलेश यादव

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(एक)

3 अप्रैल, 2023 को उत्तर प्रदेश के मान्यवर कांशीराम महाविद्यालय में, जो स्वामी प्रसाद मौर्य का कॉलिज है, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण कार्यक्रम था. इस मौके पर धारीदार नेहरू जैकिट और इस कान से उस कान तक पसरी मुस्कान के साथ मौर्य ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का फूलों से सजे मंच पर स्वागत किया. मौर्य के लिए वह बड़ा दिन था. प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम में राज्य के अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता मौजूद थे. ओबीसी नेता मौर्य ने बसपा से राजनीति की शुरुआत की थी. समाजवादी पार्टी ने, जो यादवों की पार्टी कही जाती है, कार्यक्रम से कुछ दिनों पहले ही उन्हें महासचिव नियुक्त किया था.

ग़ौरतलब है कि अनावरण कार्यक्रम गांधी परिवार के गढ़, रायबरेली में हो रहा था. मौर्य की योजना के तहत ही अखिलेश लोक सभा चुनाव से पहले पिछड़ी जातियों को जोड़ने की कोशिश कर रहे थे. कार्यक्रम में अखिलेश ने कहा, “कांशीराम ने कई राज्यों से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफ़लता नहीं मिली. लेकिन नेताजी (मुलायम सिंह यादव) और समाजवादी पार्टी के लोगों ने उस समय की स्थिति को समझा और मान्यवर कांशीराम को इटावा से लोक सभा भेजा.” 1991 के लोक सभा चुनावों में सपा के समर्थन से कांशीराम को पहली बार लोक सभा चुनाव में जीत हासिल हुई थी. अखिलेश ने कहा कि, “1991 के चुनाव ने यूपी में एक नई राजनीति की शुरुआत की थी.”

1993 में हिंदू भीड़ द्वारा बाबरी मस्जिद को गिरा दिए जाने के बाद हुए विधान सभा चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन ने राज्य की 422 में से 176 सीटें जीत कर सरकार बनाई थी. उन दिनों “मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम” नारा ख़ूब लोकप्रिय हुआ था. तीन दशक बाद, 2024 के चुनावों से पहले, एक बार फिर अखिलेश और अति पिछड़ा वर्ग के नेताओं का एक समूह 1993 वाला चमत्कार दोहराने की कोशिश करता दिख रहा था. हालांकि इस बार उन्हें बसपा के बिना ऐसा करना था क्योंकि मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का फ़ैसला कर लिया था. अनावरण के मौक़े पर 2024 लोक सभा चुनाव की अपनी रणनीति की घोषणा करते हुए अखिलेश ने दावा किया, “पीडीए यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक की एकता ही देश के लिए एक सुनहरा भविष्य लाएगी.”