8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय खंडपीठ ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में मध्यस्थता के लिए सर्वोच्च अदालत के पूर्व जज एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया और 8 सप्ताह के भीतर किसी प्रकार का सहमति वाला समाधान पेश करने को कहा. इस माह सर्वोच्च न्यायालय ने इस पैनल की समय सीमा को 15 अगस्त तक बढ़ा दिया है.
फिलहाल मध्यस्थता समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट दायर नहीं की है लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संस्था विश्व हिंदू परिषद (विहिप) पैनल की आलोचना कर रहा है. उत्तर प्रदेश के हरिद्वार में 20 जून को विहिप की केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में पैनल की आलोचना की गई. विहिप के उपाध्यक्ष और आरएसएस प्रचारक चंपत राय ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल की यह कह कर आलोचना की कि यह पैनल “हिंदुओं के हित में काम नहीं कर रहा है.”
केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया, “अपने भाषण में चंपत ने सुप्रीम कोर्ट के पैनल को “अयोध्या मामले पर हिंदुओं को उनके अधिकारों से वंचित करने का षडयंत्र बताया.” राय ने इस बैठक में यह भी कहा कि “जब भी हिंदुओं ने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी है तो उनकी जीत हुई है लेकिन मध्यस्थता के चक्कर में वे हारे हैं.”
केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के एक अन्य सदस्य ने भी राय के उपरोक्त दावे की पुष्टि की. इस सदस्य ने भी मुझे रिपोर्ट में उसका नाम न छापने का अनुरोध किया. विहिप के उपाध्यक्ष चंपत राय मध्यस्था समिति में विहिप का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. अब वे ही इस पैनल को “तीन तमिलों की साजिश बता रहे हैं.” समिति के 3 सदस्य यानी अध्यक्ष कलीफुल्ला, वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु रविशंकर तमिलनाडु से आते हैं.
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