"अबकी बार, हिंदू सरकार”, दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में विश्व हिंदू परिषद की रैली में लगे सांप्रदायिक नारे

12 अप्रैल की शाम रामनवमी, के अवसर पर विश्व हिंदू परिषद ने दिल्ली में लगभग 300 लोगों की राम शोभायात्रा निकाली. जो शहर के कई मुस्लिम बाहुल्य स्थानों से होकर गुजरी. शाहिद तांत्रे/कारवां
15 April, 2019

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12 अप्रैल की शाम, हिंदू भगवान राम के जन्म दिन रामनवमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन, विश्व हिंदू परिषद, ने दिल्ली में लगभग 300 लोगों की राम शोभायात्रा निकाली. इस शोभायात्रा में अन्य धार्मिक संगठनों ने भी भाग लिया. शोभायात्रा का जुलूस शहर के कई मुस्लिम बहुल स्थानों से होकर गुजरा. जुलूस में शामिल पुरुषों ने सिरों पर भगवा पगड़ियां बांध रखी थीं और कुछ लोगों के हाथों में तलवारें थीं. वीएचपी के सदस्य राज कुमार ने मुझे बताया कि इस जुलूस का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है और यह मुसलमानों को डराने के लिए नहीं है. राज कुमार ने दावा किया, “यह रैली हिंदुओं की रैली है. अबकी बार हिंदू सरकार.”

रैली की शुरुआत रामलीला मैदान से हुई. रैली से पहले इंद्रप्रस्थ विश्व हिंदू परिषद और अन्य धार्मिक संगठनों ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया. यहां से निकल कर रैली सदर बाजार और दरियागंज के मुस्लिम बहुल इलाकों से होकर करोल बाग में जाकर खत्म हुई. इंद्रप्रस्थ वीएचपी के कार्य अध्यक्ष वागीश इस्सार ने मुझे बताया, “राम शोभायात्रा पिछले 15 सालों से हर साल निकाली जा रही है”. उन्होंने बताया कि अक्सर यह रैली चांदनी चौक से हो कर निकलती है लेकिन इस बार निर्माण कार्य की वजह से इसे दरियागंज से निकालना पड़ा.

जगह-जगह पर रैली में शामिल लोगों ने तलवारें उठाकर जय श्रीराम के नारे लगाए. ऐसे नारे लगाने वालों में एक का नाम कुमार था. कुमार का कहना है कि उनकी तलवार धारदार नहीं है और वह किसी को मारने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे. मैंने उससे पूछा कि जुलूस में तलवारों का क्या काम है तो उनका कहना था, “यदि हथियारों की काम नहीं है तो राम और रावण की लड़ाई में इनका इस्तेमाल क्यों हुआ था”. मैंने कुमार से पूछना चाहे कि ऐसे जुलूस का आसपास की मुस्लिम आबादी पर क्या असर पड़ेगा तो उन्होंने मेरी बात बीच में ही काटते हुए कहा, “हमारे पास तो बस तलवार है, लेकिन उनके पास एके-47 हैं. उनके हाथों में फूल नहीं है.”

जुलूस के पीछे चल रहे ट्रकों और बैल गाड़ियों में हिंदू भगवानों की प्रतिमाओं वाली झांकियां सजी थीं. कुमार ने कहा, “हम सिर्फ अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं”. एक ट्रक पर सजी मंदिर नुमा झांकी पर लिखा था, “अयोध्या में भावी श्रीराम जन्मभूमि मंदिर. रामलला हम आयेंगे, मंदिर भव्य बनायेंगे”.

रैला में इंडिया गेट के पास हाल ही में बने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की झांकी भी थी. शाहिद तांत्रे/कारवां

इंडिया गेट के पास हाल ही में बने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की झांकी भी जुलूस की शोभा बढ़ा रही थी. उस झांकी के नीचे लगे बैनर में 25 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इसके उद्घाटन की विस्तृत जानकारी दी गई थी. भारतीय सेना और पुलिस अधिकारियों की खाकी वर्दी जैसे लिबास में तीन आदमी झांकी के साथ सट कर खड़े थे. इस्सार ने बताया कि इन लोगों ने यह कपड़े अपनी मर्जी से पहने हैं. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि वे लोग रक्षा बलों का राजनीतिकरण करने का प्रयास कर रहे हैं. “सेना और भगवान राम के बीच कोई संबंध नहीं है”.

इस्सार ने जोर दिया कि रैली का उद्देश्य सांप्रदायिक तनाव भड़काना नहीं है. “यहां कितने मुस्लिम भाई हैं जो हमारा स्वागत कर रहे हैं”.उनका ऐसा कहते ही गोल टोपी पहने तीन अचानक प्रकट हो गए और लोगों पर फूल बरसाने लगे”.

जुलूस में शामिल लोगों में पिस्तौल लिए दिल्ली विश्वविद्यालय का एक छात्र भी था. उसने पिस्तौल के साथ अपनी फोटो खींचनें से मुझे मना कर दिया लेकिन दावा किया कि वह धर्म को बचाने के लिए किसी भी हथियार का इस्तेमाल करने को तैयार है. उसने कहा, “चाहे पिस्तौल हो, तोप हो, बम हो या फिर ग्रेनेड हो.” उसने मुझे यह नहीं बताया कि उसके धर्म को किससे खतरा है.

जुलूस के रास्ते में दो दर्जन से ज्यादा पुलिसकर्मी अलग-अलग स्थानों में तैनात थे लेकिन वे जुलूस के साथ नहीं चल रहे थे. सदर बाजार के रहने वाले 49 वर्षीय सैयद मोहम्मद असलम ने बताया कि उन्होंने इलाके में हिंदू और मुसलमानों की बहुत सी रैलियां देखी हैं. असलम ने आगे बताया, “पिछले दो सालों से वीएचपी और उसकी युवा शाखा बजरंग दल के लोग स्थानीय मस्जिद, शैखान, के बाहर नारेबाजी करने लगे हैं. उनके अनुसार इस साल यह जुलूस मस्जिद के सामने रुक कर नारे लगा रहा था, “भगवा लहराएगा, टोपी वालों का सर झुक जाएगा.” पुलिस ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.

यहां रहने वाले दूसरे मुसलमानों ने भी मुझे बताया कि इन जुलूसों से एक किस्म के डर का माहौल बन गया है. सदर बाजार में दुकान चलाने वाले 55 साला अब्दुल हमीद कहते हैं, “पिछले 5 सालों से मुस्लिम लोग डर के साए में जी रहे हैं. वह कहते हैं, “यह आरएसएस की सरकार है. यह लोग आरएसएस का एजेंडा चला रहे हैं और कुछ हद तक इस में कामयाब भी हो गए हैं”. 36 साल के उमर फारूक, जिन्होंने मुझे बताया कि वे दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के मुस्लिम सलाहकार समिति में रह चुके हैं, कहते हैं पिछली सरकारों में भी मुसलमानों के साथ अत्याचार हुआ था लेकिन इस तरह से उन्हें कभी निशाना नहीं बनाया गया. उन्होंने बताया, “इस जुलूस में शामिल लोगों ने मस्जिद के सामने पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी की. हम उनके नारों का समर्थन करते हैं लेकिन वे लोग हमें क्यों डराना चाहते हैं?