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27 मई, 2022 को उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू करने के उद्देश्य से एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया. इसके लगभग दो साल बाद, 7 फ़रवरी, 2024 को राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने यूसीसी विधेयक राज्य विधान सभा में पारित किया, और उसी चुनावी साल में, 12 मार्च, 2024 को यूसीसी अधिनियम, 2024 अधिसूचित कर दिया गया. फिर, 27 जनवरी, 2025 को उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी नियम, 2025 को अधिसूचित किया और राज्य में समान नागरिक सहिंता को लागू कर दिया. अधिनियम को चुनौती देती तक़रीबन एक दर्जन याचिकाएं उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल में दायर हैं. सुप्रीम कोर्ट की सीनियर वकील वृंदा ग्रोवर इनमें से दो याचिकाओं की पैरवी उच्च न्यायालय में कर रही हैं. 27 फ़रवरी को इस पर पहली सुनाई हुई. वृंदा सुनवाई के लिए नैनीताल में मौजूद थीं. कारवां के असिस्टेंट एडिटर पारिजात ने उनसे यूसीसी पर लंबी बातचीत की. यहां उस बातचीत का संक्षिप्त और संपादित हिस्सा दिया जा रहा है.
पारिजात : उत्तराखंड में हाल ही में लागू समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के ख़िलाफ़ नैनीताल उच्च अदालत में दायर दो याचिकाओं की पैरवी आप कर रही हैं. आपकी याचिकाओं की प्रमुख मांगें क्या हैं?
वृंदा ग्रोवर : उत्तराखंड देश का पहला राज्य है जिसने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को विधान सभा में पारित किया है. यूसीसी के बारे में भारत के संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांत में लिखा है कि, ‘राज्य भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा.’ ऐसा इसलिए कहा गया है, क्योंकि आज़ादी के समय, गणतंत्र बनने के समय संविधान बना, लेकिन आज तक हमारे जीवन के कुछ निजी फ़ैसले अलग-अलग धर्म पर आधारित होते हैं. जैसे ब्याह-शादी, तलाक, विरासत, दत्तकग्रहण, संरक्षण, उत्तराधिकार, ये सभी निर्णय इस आधार पर होता हैं कि आप किस धर्म में पैदा हुए हैं या किस धर्म को मानते हैं.
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