“लक्षद्वीप को गुजरात का उपनिवेश बनाया जा रहा है”, स्थानीय लोगों पर कहर बरपा रहे प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के अलोकतांत्रिक फैसले

स्थानीय लोगों को अपने रोजगार, शिक्षा और अन्य अधिकारों की चिंता सता रही है. साभार : अब्दुल रहिमन
15 June, 2021

5 दिसंबर 2020 को भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल खोड़ा पटेल ने केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) लक्षद्वीप के प्रशासक का कार्यभार संभाला. पटेल, जो पहले से ही एक अन्य केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक हैं, को एक ऐसे पद पर नियुक्त किया गया जो इस द्वीपसमूह में परंपरागत रूप से सेवानिवृत्त नौकरशाहों के लिए होता है. लक्षद्वीप में उनका कार्यकाल आरंभ से ही विवादास्पद रहा है. पद पर आसीन होने के छह दिन बाद पटेल ने बित्रा द्वीप पर एक बर्फ संयंत्र के उद्घाटन कार्यक्रम में बाहर से आने वालों के लिए लागू यूटी के कोविड-19 प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ा दीं.

प्रोटोकॉल के तहत यूटी में बाहर से आने वालों के लिए होम क्वारंटीन अनिवार्य था. पिछले प्रशासन की कठोर मानक संचालन प्रक्रिया के कारण तब तक यूटी में वायरस संक्रमण का एक भी मामला नहीं आया था. कल्पेनी द्वीप के निवासी साजिद मन्नेल ने मुझे बताया, “यहां लोग महीनों से कोविड नियमों का पालन कर रहे थे. इसलिए 9 दिसंबर से लोगों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए उनके खिलाफ पोस्टर लगाए जो क्वारंटीन नियमों का पालन नहीं कर रहे थे.”

22 दिसंबर को लक्षद्वीप प्रशासन ने बाहर से आने वालों के लिए अनिवार्य क्वारंटीन नियमों को हटा दिया. मन्नेल ने मुझे बताया कि लक्षद्वीप में लोगों का मानना ​​है कि पटेल ने आलोचना से ध्यान भटकाने के लिए कोविड-19 प्रतिबंध हटाए. “उन्हें विरोध पसंद नहीं आया इसलिए उन्होंने मानक संचालन प्रक्रिया को हटाने का आदेश दे डाला," मन्नेल ने कहा. ठीक तीन हफ्ते बाद लक्षद्वीप में कोरोनवायरस का पहला मामला सामने आया और 10 जून 2021 तक यूटी में संक्रमण के 8874 मामले दर्ज किए गए. महज 66000 से अधिक की आबादी में 42 मौतें दर्ज की गईं.

यह विरोध पटेल और द्वीपों के निवासियों के बीच तकरार की श्रृंखला का पहला मामला था. अपनी नियुक्ति के बाद के महीनों में पटेल ने ऐसे कई कार्यकारी निर्णय लिए हैं जिससे अशांति पैदा हुई है और लोगों में भारी चिंता फैल गई है. यहां अधिकांश अनुसूचित जनजातियों के मुस्लिम हैं. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने मुझे बताया कि पटेल ने द्वीपों में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए बनी कोविड-19 सावधानियों को हटा दिया और बाद में स्थानीय लोगों की तृतीयक चिकित्सा देखभाल तक पहुंच को भी कमजोर बना दिया. जनवरी में पटेल ने प्रिवेंशन ऑफ एंटी-सोशल एक्टिविटीज रेगुलेशन- जिसे आमतौर पर गुंडा एक्ट कहा जाता है- का मसौदा पेश किया जिसके बारे में निवासियों और स्थानीय नेताओं ने मुझे बताया कि यह केंद्र शासित प्रदेश में असंतोष को दबाने का एक प्रयास है. प्रशासन ने पटेल के फैसलों से उपजे विरोध पर नकेल कसना शुरू कर दिया है.

इसके अलावा पटेल ने अप्रैल में लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन का मसौदा पेश किया. विवादास्पद प्रावधानों वाला यह मसौदा मूल निवासियों को असुरक्षित करते हुए व्यापक उपयोग के लिए भूमि को जब्त करने की अनुमति प्रशासन को देता है. प्रशासन के इन फैसलों ने स्थानीय लोगों की आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. व्यापक शिकायतें मिली हैं कि पटेल की कार्यशैली एकतरफा है. वह द्वीपवासियों के साथ कोई परामर्श नहीं करते और संसद के मौजूदा सदस्य मोहम्मद फैजल सहित स्थानीय जनता का कोई भी प्रतिनिधि उनसे नहीं मिल सकता. पटेल के फैसलों ने लक्षद्वीप और पड़ोसी राज्य केरल दोनों में व्यापक गुस्से और विरोध को जन्म दिया है.

स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि पटेल को लेकर शुरू से ही चिंताएं थीं क्योंकि उनकी नियुक्ति को राजनीतिक रूप में देखा जाता था. 4 दिसंबर 2020 को लक्षद्वीप के प्रशासक के रूप में कार्यरत भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी दिनेश्वर शर्मा का निधन हो गया था. अगले ही दिन पटेल को लक्षद्वीप के नए प्रशासक के रूप में अतिरिक्त प्रभार दिया गया. वह क्रमशः 2014 और 2016 से दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली के प्रशासक हैं. 26 जनवरी 2020 को दोनों क्षेत्रों को एक प्रशासनिक इकाई में मिला दिया गया था. पटेल पहले ही पद का बेजा इस्तेमाल करने वाले एक विवादास्पद व्यक्ति रहे हैं. 2019 के आम चुनावों में अवैध रूप से बीजेपी की सहायता करने का प्रयास करने के लिए उनकी सार्वजनिक रूप से आलोचना हुई थी और यहां तक ​​कि तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य और सात बार सांसद रहे मोहन देलकर की आत्महत्या में उनकी भूमिका को लेकर भी आरोप लगे थे. प्रधानमंत्री मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में थे तो पटेल उनके गृह राज्यमंत्री थे.

लक्षद्वीप के सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने मुझे बताया कि पटेल का ट्रैक रिकॉर्ड जानकर वे उनकी नियुक्ति के दिन से ही चिंतित हो गए थे. लक्षद्वीप की भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की स्थानीय समिति के सदस्य पीपी रहीम ने कहा, "यदि आप उनके अतीत को देखें, खासकर बीजेपी के एक शक्तिशाली नेता के रूप में, तो आप देख सकते हैं कि वह आसानी से पीछे नहीं हटेंगे.”

मानक संचालन प्रक्रिया में ढील देने का पटेल का निर्णय, जिसका शर्मा के प्रशासन द्वारा कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए सख्ती से पालन किया गया था, द्वीप में तेजी से उभरती स्थिति का पहला संकेत था. तब तक स्वास्थ्य विभाग फेरी द्वारा द्वीपों से जुड़े केरल के कोच्चि और कर्नाटक के मंगलुरु से लक्षद्वीप लौटने वाले प्रत्येक व्यक्ति का परीक्षण कर रहा था. यहां तक ​​​​कि जिन लोगों की जांच रिपोर्ट नेगेटिव रही उन्हें भी अनिवार्य रूप से 14 दिनों के लिए होम क्वारंटीन में रहना पड़ता था.

मन्नेल ने मुझे बताया कि "ऐसी कई परियोजनाएं थीं जिनका उद्घाटन पिछले प्रशासक की मृत्यु के समय किया जाना था." उन्होंने आगे कहा, "जब प्रफुल्ल पटेल यहां आए, तो वह अपने नाम की आधारशिला रखने के लिए अधिक से अधिक स्थानों का दौरा करना चाहते थे." मन्नेल ने कहा कि पटेल परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए लगभग सभी द्वीपों में गए. "वह उनका एजेंडा था." उन्होंने आगे कहा, "यदि किसी व्यक्ति को किसी स्थान पर आकर शासन करना है, तो उसे एक छोटे से मुद्दे पर इतना बड़ा निर्णय नहीं लेना चाहिए था." लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल पीपी ने कहा कि उन्होंने भी पटेल को कोविड दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए कहा था. उन्होंने मुझे बताया, "मेरे कार्यालय ने उन्हें कई बार यह बताने की कोशिश की कि यहां एक क्वारंटीन प्रणाली है. लेकिन फिर हमने इसे जाने दिया. लेकिन बाद में उन्होंने जो निर्णय लिया, उसका द्वीपों के लोगों ने कड़ा विरोध किया. 22 दिसंबर की अधिसूचना के छह दिन बाद, कवरत्ती में एक बड़ा विरोध शुरू हो गया और प्रशासन ने उसके जवाब में दमन का सहारा लिया.

24 मई 2021 को स्वास्थ्य सेवा विभाग ने एक नया सर्कुलर जारी किया जिसने यूटी की स्वास्थ्य स्थिति को और खराब कर दिया. नए नियमों में कहा गया है कि बाहरी द्वीपों से कवरत्ती द्वीप, राजधानी, अगत्ती द्वीप और कोच्चि जाने के लिए एम्बुलेंस की आवश्यकता वाले रोगियों को चार सदस्यीय समिति द्वारा जांच के लिए अपने दस्तावेज जमा करने होंगे. समिति तब सिफारिश करेगी कि मामला जाने के लिए उपयुक्त है या नहीं. लेकिन आदेश ऐसी कोई समय सीमा नहीं बताता है जिसके भीतर ऐसे प्रत्येक आवेदन की प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए. डेक्कन हेराल्ड ने उल्लेख किया कि इस कदम के खिलाफ स्थानीय लोगों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया गया था और केरल उच्च न्यायालय ने मांग की कि लक्षद्वीप प्रशासन दस दिनों के भीतर कोविड रोगियों को निकालने के लिए दिशानिर्देश तैयार करे.

कोविड​​​​-19 को लेकर पटेल के फैसले और उसके बाद के विरोध को उनके अगले प्रमुख नीतिगत कदम, गुंडा अधिनियम की शुरूआत से जोड़ा जा सकता है. मन्नेल ने मुझे बताया कि जब पटेल ने कोविड-19 दिशानिर्देशों में ढील दी, तो छात्रों, पंचायत सदस्यों, नागरिक समाज और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने कवरत्ती में सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. लक्षद्वीप छात्र संघ की केंद्रीय समिति के सचिव अब्दुल रहिमन ने इसकी पुष्टि की. एलएसए 50 साल पुराना छात्र संघ है जिसने मुख्य भूमि भारत के कॉलेजों में लक्षद्वीप के छात्रों का प्रतिनिधित्व किया है. "उन्होंने 22 दिसंबर के बाद एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया," मन्नेल ने मुझे बताया. रहिमन ने कहा कि एलएसए, राष्ट्रवादी युवा कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की युवा शाखा, अन्य दलों और पंचायत सदस्यों ने सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और मांग की कि क्वारंटीन प्रोटोकॉल को बहाल किया जाए. फैजल ने मुझे बताया, “मेरी अगुवाई में एक प्रतिनिधीमंडल कलेक्टर से मिला और उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वह प्रशासक से परामर्श करेंगे. 29 दिसंबर के दिन कवरत्ती पंचायत ने ग्राम सभा की बैठक बुलाई और सभी लोगों ने सचिवालय तक मार्च निकाला. अब लक्षद्वीप एक ऐसे क्षेत्र में बदल गया है जहां वायरस से संक्रमण की दर उच्चतम है.”

हालांकि, जैसे-जैसे विरोध जारी रहा, पुलिस ने कदम बढ़ाए. “30 दिसंबर को, कवरत्ती में विरोध प्रदर्शन के एक सप्ताह बाद, कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया. उन्हें अगले दिन रिमांड पर लिया गया और जमानत देने से इनकार कर दिया गया,” मन्नेल ने मुझे बताया. वीडियो दिखाते हैं कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने प्रशासनिक विभाग के कूड़ेदान में आग लगा दी. मन्नेल और रहिमन ने मुझे बताया कि इसके बाद कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया. उन दोनों ने मुझे बताया कि लोगों को केरल उच्च न्यायालय ने लगभग दो सप्ताह बाद जमानत दे दी और उन्हें मोटी जमानत राशि का भुगतान करना पड़ा था.

इसके तुरंत बाद, 28 जनवरी को लक्षद्वीप प्रशासन ने लक्षद्वीप प्रिवेंशन ऑफ एंटी-सोशल एक्टिविटीज रेगुलेशन का मसौदा पेश किया, जिसमें अन्य श्रेणियों के अपराधों सहित "अवैध सामान बनाने-बेचने वालों, खतरनाक व्यक्तियों, ड्रग अपराधियों की निवारक हिरासत" के गैर-जमानती प्रावधान हैं. प्रशासन और बीजेपी के प्रतिनिधियों ने तर्क दिया है कि लक्षद्वीप में नशीली दवाओं के व्यापार के कारण गुंडा अधिनियम की आवश्यकता है लेकिन लक्षद्वीप के अपराध के आंकड़ों पर एक नजर डालने से यह दावा खारिज हो जाता है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, यूटी में देश में सबसे कम अपराध दर हैं, जिसमें केवल 13 मामले शराब और ड्रग्स से संबंधित हैं और इस वर्ष द्वीपों में 16 हिंसक घटनाएं दर्ज की गई हैं जिनमें बलात्कार, हत्या और अपहरण जैसे कोई बड़े अपराध नहीं थे.  

हालांकि, प्रशासन यूटी को नशीले पदार्थों का अड्डा बताने की अपनी राय पर कायम है. 27 मई को लक्षद्वीप के कलेक्टर अस्केर अली ने कोच्चि में मीडिया से कहा, "निहित स्वार्थों के चलते लक्षद्वीप प्रशासन के सुधार लाने के प्रयासों के खिलाफ एक गलत सूचना अभियान चलाया गया है." उन्होंने 15 मार्च की एक घटना का जिक्र किया, जब मिनिकॉय द्वीप के तट से श्रीलंकाई नौकाओं से 3000 करोड़ रुपए के हथियार और ड्रग्स जब्त किए गए थे. मन्नेल ने मुझे बताया कि यह लक्षद्वीप को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी और मादक पदार्थों की तस्करी करने वाले संगठनों के साथ फर्जी ढंग से जोड़ने का एक प्रयास था. उन्होंने मुझे बताया, "भारतीय तटरक्षक बल ने अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में श्रीलंकाई नौकाओं से मादक पदार्थ जब्त किए हैं. हमने कई लेख देखे जो इसे लक्षद्वीप से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, यह कहते हुए कि हम ड्रग पेडलर हैं या हमें आईएसआईएस से जोड़ रहे हैं."

कई स्थानीय कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि गुंडा अधिनियम का उद्देश्य अपराध के बजाय लक्षद्वीप में असहमति पर नकेल कसना है. लक्षद्वीप के एक सरकारी कर्मचारी ने नाम न जाहिर करते हुए मुझे बताया कि द्वीपों में विरोध प्रदर्शनों को लेकर प्रशासन की प्रतिक्रिया बहुत भारी रही है. सरकारी कर्मचारी ने कहा, 'द्वीपों में रिजर्व बटालियन, नेवी, कोस्ट गार्ड समेत बड़ी संख्या में फोर्स मौजूद है. "हमारे द्वीप में जिन पंचायत प्रतिनिधि ने आंदोलन में भाग लिया था, उन्हें जेल में डाल दिया गया."

इसके अलावा, पटेल का प्रशासन उन लोगों पर भी नकेल कसता दिख रहा है, जिन्होंने पटेल के सत्ता संभालने से पहले हुए अन्य विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया था. एक साल से अधिक समय पहले, 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिकता पंजिका के खिलाफ देशव्यापी विरोध के चरम के दौरान, लक्षद्वीप के निवासियों ने भी कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था. माकपा कार्यकर्ता रहीम ने मुझे बताया, “छात्रों सहित करीब पांच हजार लोगों ने आंदोलन में हिस्सा लिया था. विरोध के समय से कुछ फ्लेक्स बोर्ड अभी भी कवरत्ती द्वीप में लगे हुए थे. इस दौरान कोई समस्या नहीं हुई जबकि जनवरी 2020 में राष्ट्रपति का दौरा भी हुआ था.” रहीम ने मुझे बताया कि पटेल के सत्ता संभालने के बाद चीजें तेजी से बदलीं. उन्होंने कहा, "जब प्रफुल्ल पटेल ने प्रशासक के रूप में कार्यभार संभाला, तो उन्होंने यहां एनआरसी विरोधी प्रदर्शन आयोजित करने वालों के खिलाफ जांच और आगे की कार्रवाई का आदेश दिया."

एक अन्य माकपा प्रतिनिधि रहीम और एक स्थानीय कांग्रेस नेता को 16 दिसंबर को बीजेपी और मोदी की आलोचना वाले नारे प्रकाशित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. रहीम ने कहा, "हमने कवरत्ती की जेल में चार दिन बिताए. हमें यहां की एक उप अदालत ने इस शर्त पर जमानत दी थी कि हम द्वीप से बाहर नहीं निकलेंगे. अब उन्होंने हमारे खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाया है.” मामला कवरत्ती जिला अदालत में विचाराधीन है.

निवासियों ने कहा कि असंतोष पर कार्रवाई करने के अलावा, पटेल लक्षद्वीप के लोगों को उनकी आजीविका से उजाड़कर भूखा मारने की कोशिश कर रहे हैं. फरवरी 2021 में लक्षद्वीप प्रशासन ने पर्यटन विभाग के 193 कर्मचारियों और मध्याह्न भोजन योजना के तहत काम करने वाले 103 कर्मचारियों को बिना किसी पूर्व सूचना के निकाल दिया. यूटी के कृषि विभाग के कई लोगों को भी निकाल दिया गया. कृषि विभाग, चार अन्य विभागों के साथ पहले जिला पंचायत के अधीन था लेकिन 12 मई को उन्हें केंद्रीय प्रशासन ने नियंत्रण में ले लिया. कवरत्ती के शाहजहां टीके ने मुझे बताया, “मैं कृषि विभाग में दिहाड़ी मजदूर के रूप में कार्यरत था. हम में से 75 मजदूर दस द्वीपों में कार्यरत थे और हम सभी दो दशकों से अधिक समय से यहां काम कर रहे थे. हमें 30 मार्च को बिना किसी पूर्व सूचना के बर्खास्त कर दिया गया." शाहजहां ने आगे कहा, “हमारे परिवारों के पास जीने का कोई साधन नहीं है. हमें बताया गया कि सब चीजों का निजीकरण होने जा रहा है. हमें लिखित में कुछ नहीं दिया गया.”

शाहजहां ने कहा कि उन्हें पिछले एक महीने की मजदूरी का भुगतान किया गया और जाने के लिए कहा गया. मैंने जिस किसी से भी बात की, उसने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में सरकारी सेवाओं में रोजगार ज्यादातर अनुबंध पर होता है. शाहजहां ने कहा, "चूंकि पूरे भारत में लॉकडाउन है इसलिए हम दूसरी नौकरियों की तलाश में नहीं जा सकते. हमने अपने जीवन का एक चौथाई हिस्सा इस विभाग की सेवा में बिताया है. भले लोग हमारी मदद कर रहे हैं लेकिन हमें सरकार से कोई सहायता नहीं मिली.” शाहजहां ने मुझे बताया कि कृषि विभाग के कर्मचारी अपनी बहाली के लिए केरल उच्च न्यायालय में अपील करने पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "हम अदालत के दरवाजे तक भी नहीं जा सकते क्योंकि विभाग ने जानबूझकर हमें बर्खास्तगी का दस्तावेजी सबूत नहीं दिया है. अगर कृषि विभाग अभी भी पंचायत के नियंत्रण में होता, जैसे कि पटेल से पहले था, तो हमारी नौकरी न जाती."

फरवरी में लक्षद्वीप के पशुपालन विभाग ने जानवरों के संरक्षण से संबंधित एक मसौदा कानून को अधिसूचित किया जो गायों, बैलों और सांडों के वध पर रोक लगाता है. गोहत्या पर प्रतिबंध के साथ-साथ, लक्षद्वीप प्रशासन यूटी के पशु-पालन विभाग को भी कम कर रहा है.

21 मई को पशु-पालन विभाग के सचिव ओपी मिश्रा ने आदेश दिया कि विभाग के स्वामित्व वाले सभी डेयरी फार्मों में सभी जानवरों की नीलामी के बाद उन्हें बंद कर दिया जाए. विभाग दो प्रमुख डेयरियां चलाता है. मिश्रा के इस आदेश के लगभग हफ्ते भर बाद गुजरात स्थित दुग्ध सहकारी अमूल ने विभिन्न द्वीपों पर दुकानें खोल लीं. 24 मई को प्रशासन ने अमूल को कवरत्ती में दुकान लगाने की जगह दी थी. ऑनलाइन समाचार पोर्टल मकतूब मीडिया ने कवरत्ती के पंचायत अध्यक्ष अब्दुल खादर के हवाले से कहा, “लक्षद्वीप को गुजरात के एक उपनिवेश के रूप में ढालने का प्रयास किया जा रहा है. वे गुजरात से सब कुछ आयात कर रहे हैं. डेयरियों के बंद होने से कई स्थानीय लोग भी बेरोजगार हो गए हैं.”

लक्षद्वीप में 7 जून को केंद्र सरकार से पटेल और अस्केर अली को हटाने की मांग को लेकर महिलाओं ने भूख हड़ताल की. साभार : अब्दुल रहिमन

23 अप्रैल को केंद्र शासित प्रदेश सरकार ने यूटी के शिक्षा निदेशालय द्वारा संचालित द्वीपों के कई स्कूलों को भी बंद कर दिया और अन्य स्कूलों के विलय का आदेश दिया. इससे शिक्षण स्टाफ के कई सदस्य बेरोजगार हो गए. स्कूलों में मिड-डे मील को लेकर प्रशासन के फैसले से स्थानीय निवासी पहले से ही परेशान थे. 28 फरवरी को लक्षद्वीप स्थित एक ऑनलाइन समाचार पोर्टल द्वीप डायरी ने बताया कि शिक्षा विभाग ने द्वीपों के स्कूलों में मध्याह्न भोजन में मांस को शामिल करने पर रोक लगा दी थी. रिपोर्ट में कहा गया है, "भले ही स्कूल जिले की पंचायतों के दायरे में हैं लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा अनुमत भोजन की सूची प्रकाशित की गई थी."

लक्षद्वीप में 7 जून को केंद्र सरकार से पटेल और अस्केर अली को हटाने की मांग को लेकर महिलाओं ने भूख हड़ताल की. लक्षद्वीप में कई लोगों को डर है कि पटेल के कई फैसलों का प्राथमिक लक्ष्य लक्षद्वीप को पर्यटन के लिए एक स्वर्ग बनाना है और प्रशासन स्थानीय लोगों की उपस्थिति को इसके लिए एक बाधा मानता है.

स्कूलों को बंद करना और विलय करने का निर्णय निवासियों के लिए अच्छा नहीं रहा. लक्षद्वीप के सरकारी कर्मचारी ने कहा, "आप पूछ सकते हैं कि लक्षद्वीप की आबादी को देखते हुए इतने सारे स्कूलों की क्या जरूरत है. लेकिन बच्चे एक द्वीप से दूसरे द्वीप की यात्रा कैसे कर सकते हैं? द्वीपों के बीच काफी दूरी है." सरकारी कर्मचारी ने कहा, “यहां के लोग सरकारी नौकरियों पर अत्यधिक निर्भर हैं. पटेल ने इन कारकों पर विचार किए बिना यह निर्णय किया है.”

सरकारी नौकरियों के अलावा आबादी का एक बड़ा हिस्सा मछली पकड़ने पर निर्भर है. यह द्वीपों में कई परिवारों के लिए एक पारंपरिक व्यवसाय है. 28 अप्रैल को कवरत्ती द्वीप के किनारे पर खड़े एक मछुआरे का एक वीडियो व्यापक रूप से प्रसारित किया गया, जिसमें वह अपने पीछे ध्वस्त शेड की ओर इशारा करते हुए कह रहा था, "आप सभी को इसे देखना चाहिए. उन्होंने कवरत्ती को बर्बाद कर दिया है. उन्होंने मछुआरों के जीवन को तबाह कर दिया है. कल वह तुम्हारे देश में आएंगे और उसे तबाह कर देंगे. उन्होंने रमजान के पवित्र महीने में ऐसा किया है.” शेड का उपयोग मछली पकड़ने के उपकरण और ईंधन भरने वाली नौकाओं के लिए स्टॉक डीजल को स्टोर करने के लिए किया जाता था.

कवरत्ती के एक मछुआरे ने नाम न उजागर करने का आग्रह करते हुए कहा कि कोविड-19 प्रतिबंधों के कारण समुद्र तट खाली हो गया होता. "कलेक्टर और अन्य ने स्थिति का फायदा उठाया और हमारे शेड को नष्ट कर दिया." उन्होंने कहा कि शेड के बाद, हाल ही में 15 मई को द्वीपों से गुजरे चक्रवात तौकते में उन्होंने अपनी नाव खो दी. “यही हमारी आय का एकमात्र जरिया है. हम मछुआरों के पास मछली पकड़ने के लिए, अपनी नावों को बांधने और शेड बनाने के लिए खुद का एक तट होना चाहिए.”

जनता दल (यूनाइटेड) की लक्षद्वीप शाखा के नेता और सेव लक्षद्वीप फोरम के समंवयक मोहम्मद सादिक केपी ने मुझे बताया कि द्वीपों में मछुआरों को चक्रवात तौकता ने बुरी तरह प्रभावित किया था. एसएलएफ पटेल के हालिया आदेशों के विरोध में 30 मई को गठित एक विभिन्न पार्टियों का दबाव समूह है. इसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या माकपा के स्थानीय नेता, दो पूर्व संसद सदस्य और यहां तक ​​कि स्थानीय बीजेपी इकाई के एक सदस्य भी शामिल हैं. सादिक ने मुझे बताया, "लक्षद्वीप में स्वरोजगार मिलने की संभावना बहुत कम है. अब यहां मानसून है. पिछले चक्रवात ने पहले ही मछुआरों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. उन्होंने वह स्थान भी खो दिया जहां वह अपनी नावों की मरम्मत किया करते थे. मुझे जानकारी मिली है कि लगभग 107 नावों को पूर्ण या आंशिक क्षति हुई है. जब हम 107 नावें कहते हैं, तो प्रत्येक नाव में दस लोग सवार होते हैं. उन दस लोगों के आधार पर दस परिवार चलते हैं. इसका मतलब है कि एक हजार परिवार आर्थिक संकट से जूझने वाले हैं.” उन्होंने मुझे बताया कि 1977 में आए चक्रवात के बाद मोरारजी देसाई सरकार ने दो साल के लिए मुफ्त राशन मुहैया कराया था. "हम मांग कर रहे हैं कि वह अब भी ऐसा ही करें. अभी तक, केंद्र सरकार ने मछुआरों को दो महीने के लिए राशन उपलब्ध कराया है. उसके बाद कोई घोषणा नहीं की गई है."

माकपा कार्यकर्ता रहीम ने मुझे बताया कि पटेल की हरकतों में सबसे विवादास्पद 28 अप्रैल को लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेगुलेशन या एलडीएआर का मसौदा तैयार करना रही है. मसौदा कानून सरकार को, जिसे प्रशासक के रूप में पहचाना जाता है, योजना और विकास प्राधिकरणों का गठन करने के लिए "खराब लेआउट या अप्रचलित विकास" के रूप में पहचाने जाने वाले किसी भी क्षेत्र के विकास की योजना बनाने की अनुमति देता है. पीडीए भूमि के मालिक को अपना कब्जा सौंपने के लिए एक महीने का नोटिस जारी करेगा. प्रावधान के अनुसार, "और यदि नोटिस में निर्दिष्ट अवधि के भीतर ऐसी हकदारी नहीं जताई जाती है, तो योजना और विकास प्राधिकरण भूमि पर जबरन कब्जा कर लेगा और इस तरह की भूमि पूरी तरह से सभी बाधाओं से मुक्त योजना और विकास प्राधिकरण में निहित होगी."

मसौदा कानून का वाक्यांश इस हद तक अस्पष्ट है कि उदाहरण के लिए, यह "विकास" को "भवन, इंजीनियरिंग, खनन, उत्खनन या अन्य कार्यों को जमीन पर, ऊपर या नीचे" के रूप में परिभाषित करता है. यह केंद्र शासित प्रदेश के अधिकारियों को विकास योजना के काम में बाधा डालने के लिए किसी को भी कैद करने का अधिकार देता है. केवल छावनी क्षेत्रों को मसौदा कानून से छूट दी गई है. छात्र संघ के नेता रहिमन ने मुझे बताया कि मसौदा प्रकाशित होने के बाद से वह विरोध कर रहे थे. "मसौदा भूमि विनियमन हमारे लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य है क्योंकि इसमें प्रस्ताव है कि जब भी वह हमसे कहें तो हमें अपनी जमीन छोड़नी होगी."

रहीमन ने मुझे बताया कि लक्षद्वीप की पर्यटन क्षमता को विकसित करने की योजनाएं पटेल के अधिग्रहण से बहुत पहले से गति में थीं. जुलाई 2018 में, लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल ने केंद्र शासित प्रदेश के लिए केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय की योजनाओं के बारे में संसद में एक सवाल उठाया था. इस सवाल के जवाब में, तत्कालीन पर्यटन राज्य मंत्री केजे अल्फोंस ने कहा, “समग्र विकास योजना में इन द्वीपों की वहन क्षमता के अनुसार होटल आवास, कनेक्टिविटी और अन्य पर्यटक सुविधाओं के पहलू शामिल हैं. इसके अलावा, मिनिकॉय में एक हवाईअड्डा भारतीय वायु सेना द्वारा निर्माण के लिए प्रस्तावित किया गया है जो नागरिक विमानों द्वारा उपयोग के लिए भी होगा.

अगस्त 2018 में नीति आयोग ने लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में परियोजनाओं के निर्माण के लिए निजी कारोबारियों को आमंत्रित करते हुए "भारत के अतुल्य द्वीप" नामक एक निवेशक सम्मेलन का आयोजन किया. लक्षद्वीप के लिए सरकारी निकाय ने घोषणा की कि मिनिकॉय और सुहेली द्वीपों में दो जल विला परियोजनाएं शुरू होने के लिए तैयार हैं. नीति आयोग ने मिनिकॉय द्वीप में हवाई अड्डे और मौजूदा कवरत्ती जेट्टी के आधुनिकीकरण सहित ढांचागत परियोजनाओं के लिए कई अन्य द्वीपों को भी चिन्हित किया है. संभावित निवेशकों को दिखाई गई प्रस्तुति में तटीय विनियमन क्षेत्रों के भीतर भी शराब और बार लाइसेंस के लिए अनुमोदन का वादा किया गया था. इसने पर्यटन गतिविधियों के लिए "निर्माण की सहमति" अनुमोदन का भी वादा किया. यह भी नोट किया गया कि गंभीर अनुमोदन "विकास अवधि में पर्याप्त रूप से जोखिम को कम करने के उद्देश्य से रियायती प्राधिकरण द्वारा अग्रिम रूप से प्रदान किए जाएंगे."

कम से कम एक कार्यकारी आदेश में, यह स्पष्ट है कि पटेल लक्षद्वीप में पर्यटन के लिए नीति आयोग की योजनाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं. लक्षद्वीप एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश था जिसने बंगाराम के निर्जन द्वीप को छोड़कर, जहां एक रिसॉर्ट और एक बार स्थित है, शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगा दिया था. 23 फरवरी को प्रशासन ने पर्यटकों के लिए द्वीपों को खोलने के घोषित इरादे के साथ, तीन बसे हुए द्वीपों, कवरत्ती, कदमत और मिनिकॉय पर रिसॉर्ट्स के लिए शराब लाइसेंस की अनुमति देकर इस प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से हटा दिया. गुजरात, जहां से पटेल हैं, वहां सख्त शराबबंदी कानून हैं. मन्नेल ने मुझे बताया कि लक्षद्वीप में शराब पर प्रतिबंध हटाने के साथ-साथ गोमांस पर प्रतिबंध लगाने को लक्षद्वीप में इस्लामी रीति-रिवाजों के खिलाफ एक कदम के रूप में देखा गया.

रहीमन ने कहा कि द्वीपों में असहमति के खिलाफ कार्रवाई लक्षद्वीप को पर्यटकों के लिए पनाहगाह बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है. उन्होंने मुझे बताया, "छोटे-मोटे मसलों पर देशद्रोह के मामले, गुंडा अधिनियम, अन्य फैसलों के साथ, लोगों को यह विश्वास दिलाने का एक तरीका है कि हम यहां जीवित नहीं रह सकते हैं और हमे यहां से चले जाने को मजबूर करते हैं."

नेता सादिक ने मुझे बताया कि उन्होंने लक्षद्वीप बचाओ फोरम की चिंताओं पर चर्चा करने के लिए पटेल से मिलने का प्रयास किया था. “मैं जनवरी में प्रफुल्ल पटेल से मिला था. तब तक उन्होंने नियम जारी नहीं किए थे,” उन्होंने मुझे बताया. “कानून सार्वजनिक होने के बाद, मैंने उनसे मिलने के लिए समय मांगा लेकिन मुझे समय नहीं मिला. जब गुंडा एक्ट जारी किया गया तो मैंने इसका विस्तार से अध्ययन किया और पुलिस अधीक्षक को अपनी आपत्तियां प्रस्तुत कीं. मैंने लक्षद्वीप भूमि विकास प्राधिकरण के संबंध में भी आपत्तियां दर्ज कराई हैं.” उन्होंने कहा कि उन्होंने मछुआरों के मुद्दों पर कई शिकायतें प्रस्तुत की थीं "लेकिन अब से, सभी कार्रवाई एसएलएफ के माध्यम से होगी." एसएलएफ ने भी 7 जून को भूख हड़ताल की थी. “लोग अपने घरों से तख्तियां के साथ शामिल हुए. उन्होंने कहा, “हम आगे भी विरोध के लोकतांत्रिक तरीकों को जारी रखेंगे. साथ ही, हम कानूनी रास्ता अपनाएंगे और जरूरत पड़ने पर केरल हाई कोर्ट का रुख करेंगे और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.

सादिक की तरह, रहिमन ने मुझे बताया कि वह पटेल से नहीं मिल सके. “वह अपना समय किसी से मिलने के लिए नहीं निकालते, यहां तक कि संसद के सदस्य से भी नहीं मिलते. उनका किसी के विचारों को सुनना या बातचीत शुरू करने का कोई इरादा नहीं है." रहिमन ने कहा कि पटेल द्वारा कई बार नजरअंदाज किए जाने के बाद उन्होंने विरोध करने का फैसला किया. उन्होंने मुझे बताया "एलडीएआर अस्वीकार्य है, गुंडा अधिनियम का पैटर्न है. अगर हम किसी मुद्दे पर अपनी आवाज उठाते हैं, तो यह हमें बिना किसी मुकदमे या सबूत के एक साल के लिए जेल भेजा जा सकता है. इन दो कानूनों ने हमें विरोध करने के लिए मजबूर किया. जब तक ये जारी रहेंगे हम चुप नहीं रह सकते."

पटेल के साथ स्पष्ट बातचीत नहीं कर पाने से सांसद फैजल भी उतना ही निराश थे. "जब वह पहली बार लक्षद्वीप आए, तो पंचायत सदस्यों और मैंने उनसे मुलाकात की," उन्होंने मुझे बताया. “इन मुद्दों के सामने आने के बाद, मैं उनसे मिलने और मसौदा अधिसूचनाओं में समस्याओं को बताने के लिए दमन गया था. तब तक एक जनहित याचिका अदालत में थी. उन्होंने बातचीत से बचने के बहाने के रूप में इसका इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि कोर्ट को फैसला करने दीजिए. यह मुलाकात करीब 15 जनवरी को हुई थी. उसके बाद, मैं अब तक उनसे नहीं मिल पाया हूं."

21 मई को, छात्र संघ एलएसए ने एलडीएआर और गुंडा अधिनियम के खिलाफ वीटू पडिक्कल समरम-हर घर के बाहर पोस्टरों के साथ विरोध-प्रदर्शन शुरू किया. रहिमन ने बताया, "हम विरोध करने के तरीकों के बारे में सोच रहे थे. हमें कोविड-19 और लॉकडाउन के कारकों पर विचार करना था. साथ ही इसका असर प्रशासन पर भी पड़ा.” उन्होंने कहा कि जब उन्होंने पोस्टर और प्रचार वीडियो जारी किए तो उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया मिली. “राजनीतिक प्रतिनिधियों और नागरिक समाज के सदस्यों ने इसमें भाग लिया. हमने नए नियमों में समस्याओं के विवरण के साथ दस्तावेज भी परिचालित किए. वीटू पडिक्कल समरम के बाद, हमने एक साइबर स्ट्राइक का आयोजन किया जिसमें अपने मुद्दों को आगे बढ़ाने के लिए फेसबुक और ट्विटर पर हैशटैग का उपयोग करना शामिल था. #savelakshadweep सबसे प्रमुख हैशटैग था. हम पूरे भारत में काफी प्रभाव डालने में सक्षम थे.”

लक्षद्वीप में विरोध काफी हद तक ऑनलाइन रहा है. लक्षद्वीप के सरकारी कर्मचारी ने मुझे बताया, "बाहर से कई लोग फोन करते हैं और पूछते हैं कि हम लक्षद्वीप में विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं करते हैं?" उन्होंने आगे कहा, ''अगर किसी अन्य स्थान पर विरोध प्रदर्शन होता है, तो उसकी रक्षा के लिए एक अदालत होगी. स्थानीय राजनीतिक दल इसकी रक्षा कर सकते हैं. अगर लोगों को गिरफ्तार किया जाता है या नौकरी से निकाल दिया जाता है, तो वे नहीं जानते कि मदद के लिए किससे संपर्क करें."

लक्षद्वीप के लोगों का समर्थन करने वाले बढ़ते सोशल मीडिया अभियान के बाद के दिनों में उनकी आशंका सही साबित हुई. स्थानीय पुलिस ने 25 मई को तीन बच्चों समेत चार लोगों को बित्रा और अगत्ती द्वीप से प्रशासक के फोन पर संदेश भेजने के आरोप में गिरफ्तार किया. 28 मई को लक्षद्वीप के कलेक्टर अली का पुतला फूंकने के बाद 12 युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं को किल्टन द्वीप में गिरफ्तार किया गया. द्वीप के निवासियों ने मुझे बताया कि अली निर्विवाद रूप से पटेल के आदेशों को लागू कर रहे हैं.

2021 की शुरुआत में जैसे-जैसे विरोधों ने गति पकड़ी, द्वीप पर बीजेपी की पकड़ कम होती गई. मन्नेल ने मुझे बताया कि द्वीपों में बीजेपी की मौजूदगी पहले से ही नगण्य थी. नए कानूनों को लेकर बढ़ते रोष के बीच, पार्टी को इस क्षेत्र में मिले थोड़े से समर्थन से हाथ धोना पड़ रहा है. 24 मई को, भारतीय जनता युवा मोर्चा के आठ नेताओं ने प्रशासन के उन एकतरफा फैसलों का विरोध करते हुए संगठन छोड़ दिया, जो "लक्षद्वीप में शांति के लिए हानिकारक" हैं.

लक्षद्वीप के साथ-साथ अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों के नेता पटेल को प्रशासक के पद से हटाने की मांग कर रहे हैं. “हमारा सरकार से केवल एक ही अनुरोध है. हमें एक समझदार व्यक्ति दे जो भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को समझे,” फैजल ने मुझे बताया. “श्री प्रफुल्ल पटेल से पहले के दो प्रशासक वास्तव में लोगों के अनुकूल थे. वह सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी थे. पटेल एक राजनीतिज्ञ हैं. जाहिर है कि अंतर है.” 

सभी पार्टियों के नेताओं ने नए नियमों की निंदा की है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक ट्वीट में लक्षद्वीप के नेताओं द्वारा पटेल को लक्षद्वीप के प्रशासन से वापस बुलाने की मांग का समर्थन किया है. तमिलनाडु स्थित विदुथलाई चिरुथिगल काची-लिबरेशन पैंथर्स पार्टी ने भी पटेल को वापस बुलाने की मांग की है.

25 मई को केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने ट्वीट किया कि "अपराधियों को रोकना'' चाहिए ताकि विवादास्पद नियमों पर आगे बढ़ने से बचा जा सके. “उनके जीवन, आजीविका और संस्कृति पर थोपी गई चुनौतियों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. केरल का एलडी के साथ एक मजबूत रिश्ता है, एलडी के साथ सहयोग का एक लंबा इतिहास है. इसे विफल करने के कुटिल प्रयासों की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं." 30 जनवरी को जब केरल के तीन माकपा नेता लक्षद्वीप के निवासियों से इस बारे में बात करने के लिए कि पटेल के आदेशों ने उन्हें कैसे प्रभावित किया था, लक्षद्वीप का दौरा करने जा रहे थे, यूटी प्रशासन ने नए यात्रा प्रतिबंध पेश किए, जिसके तहत प्रवेश के लिए परमिटों को अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट से अधिकृत कराने की आवश्यकता थी. तीनों नेताओं को प्रवेश से वंचित कर दिया गया. एक दिन बाद केरल में विधानसभा ने सर्वसम्मति से द्वीपों के लोगों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया.

रहिमन ने कहा कि अतीत में प्रशासक निर्णय लेने से पहले आमतौर पर क्षेत्र के स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ चर्चा करते थे. "पटेल का दृष्टिकोण एक ऐसे व्यक्ति का रहा है जो आपके घर में आता है जहां आप वर्षों से सही तरीके से रह रहे हैं, आपके साथ एक अजनबी की तरह व्यवहार करता है और आपको घर से बाहर निकाल देता है."

जिन लोगों से मैंने बात की उनमें से कइयों ने कहा कि पटेल के निरंकुश तरीकों ने इस बारे में चर्चा पैदा कर दी कि क्या लक्षद्वीप को अपनी विधानसभा की आवश्यकता है. वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेश के नागरिकों के पास यह तय करने का कोई अधिकार नहीं है कि उनके जीवन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कानूनों को लागू करने के लिए कौन पदों पर काबिज है. सांसद उनका एकमात्र निर्वाचित प्रतिनिधि होता है. लक्षद्वीप के एक सरकारी कर्मचारी ने मुझे बताया, “बचपन से ही मैं लक्षद्वीप में विधानसभा की मांग सुनता रहा हूं. लेकिन हम देख सकते हैं कि दिल्ली और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों के विचारों को भी नहीं सुना जाता है. यह प्रणाली एक समस्या है." उन्होंने कहा, “प्रफुल्ल पटेल भले ही चले जाएं लेकिन यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है. लक्षद्वीप के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वालों को प्रशासन में आवाज उठानी चाहिए.”

सादिक ने मुझे बताया कि लक्षद्वीप में लोकतंत्र की चाहत को दशकों से लगातार कुंद किया जा रहा है. उन्होंने मुझे बताया, “1968 से ही लक्षद्वीप के लोग एक मिनी असेंबली की मांग उठाते रहे हैं." उन्होंने बताया कि लक्षद्वीप में पहले तीन निर्वाचित पार्षदों वाली परिषद हुआ करती थी जिसकी अध्यक्षता प्रशासक करता था. "लेकिन 1994 में इसे जिला पंचायत द्वारा बदल दिया गया था जिसका अध्यक्ष एक निर्वाचित सदस्य था. लेकिन यहां भी, सरकार पूरी शक्तियां सौंपने के लिए अनिच्छुक थी. कुछ सीमितयों ने अधिकार हासिल करने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी लेकिन अब नए प्रशासक के तहत पंचायत से वित्तीय और अन्य शक्तियां वापस ले ली गई हैं.”

मन्नेल ने मुझे बताया कि उन्हें द्वीपों में लोकतंत्र के भविष्य की चिंता है. उन्होंने मुझसे कहा, “हम किसी को चोट नहीं पहुंचा रहे हैं. यहां के लोगों की महत्वाकांक्षाएं भी नहीं हैं. आपको खाना मिलता है और आपका जीवन यहां ठीक है. वह ऐसी जगह का भगवाकरण करने की कोशिश कर रहे हैं.” मन्नेल को इस बात की चिंता थी कि जब पटेल दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों से वापस केंद्र शासित प्रदेश आएंगे, तो उन्हें और भी गुस्सा आने वाला है. अब हमें नहीं पता कि वह क्या करने जा रहा है. उन्होंने कहा, "इनमें से कोई भी आदेश अभी तक लागू नहीं किया गया है. असहमति जाहिर करने के लिए यहां बहुत सीमित तरीके हैं. यहां कर्फ्यू लगा है. कोई बाहर नहीं जा सकता. वे हम पर जुर्माना लगा सकते हैं या हमारे खिलाफ मामला दर्ज कर सकते हैं. यह इस आंदोलन को कुचलने का एक तरीका है.”