“संघ में हमें सिखाया जाता था कि अहिंसा कायराना है”, आरएसएस छोड़ने वाले दलित अधिकार कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी

16 मार्च 2020
सौजन्य : रफकट प्रोडक्शन
सौजन्य : रफकट प्रोडक्शन

1980 के दशक में दलित समाज से आने वाले 13 साल के भंवर मेघवंशी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाना शुरू किया. तब उन्हें संघ के बारे में बहुत ज्यादा पता नहीं था. शाखा में मेघवंशी ने मुसलमानों से नफरत करने का पाठ सीखा और उन्हें अपने हिंदू होने पर गर्व था. संघ में रहते हुए वह हिंदू राष्ट्र के प्रति समर्पित हुए और सैन्य तालीम भी ली. बाद में उन्हें एहसास हुआ कि संघ का नजरिया सवर्णों और दलितों में भेदभाव करने वाला है.

फिलहाल मेघवंशी एक पत्रकार और कार्यकर्ता है. 2019 में उनकी किताब आई थी मैं एक कारसेवक था. हाल में इस किताब का अंग्रेजी अनुवाद आई कुड नॉट बी हिंदू : द स्टोरी ऑफ ए दलित इन द आरएसएस नाम से नवयाना ने प्रकाशित की है.

आरएसएस में उनके अनुभव के बारे में पत्रकार सुशील कुमार ने उनसे बातचीत की.

 सुशील कुमार : आप कब से कब तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सक्रिय रहे?

भंवर मेघवंशी : मैं 1987 से 1991 तक सक्रिय था. मैंने 1990 की पहली कारसेवा में हिस्सा लिया. मैं तो घर से निकला था बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिए लेकिन वहां तक पहुंच नहीं पाया क्योंकि उस समय मुलायम सिंह की सरकार थी. हम उस वक्त उनको “मुल्ला मुलायम सिंह” कहते थे यानी कि मौलाना मुलायम. तो उस समय उनकी सरकार ने मुझे टुंडला स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया और दस दिनों तक आगरा जेल में रखा. तब तक वहां जो कारसेवा होनी थी वह हो चुकी थी. फिर हम अपने घर लौट आए.

सुशील कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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