एकजुटता की मजदूरी

किसान आंदोलन : विजयी किसान संगठनों पर दलित समाज का कर्ज

04 सितंबर 2022
2021 में दिल्ली की टिकरी सीमा पर प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते किसान संघ के नेता. वामपंथी झुकाव वाले पंजाब के संगठन आंदोलन में शामिल होने वाले खेतिहर मजदूर समाजों के लिए कहीं अधिक खुले थे.
शाहिद तांत्रे/कारवां
2021 में दिल्ली की टिकरी सीमा पर प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते किसान संघ के नेता. वामपंथी झुकाव वाले पंजाब के संगठन आंदोलन में शामिल होने वाले खेतिहर मजदूर समाजों के लिए कहीं अधिक खुले थे.
शाहिद तांत्रे/कारवां

27 दिसंबर 2021 को हरियाणा के एक कस्बे रोहतक में संकल्प सभा में शामिल होने वाले 500 से ज्यादा किसानों के बीच खुशी का माहौल था. एक महीने पहले यहां से 70 किलोमीटर दूर दक्षिण में यानी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी जिन्होंने साल भर चले भीषण प्रतिरोध आंदोलन को जन्म दिया था. रैली आंदोलन की जीत की खुशी में एकजुटता जाहिर करने के लिए आयोजित गईं कई रैलियों में से एक थी. इसका आयोजन रोहतक के नागरिक. समाज समूह किसान मजदूर संघर्ष सहयोग मंच द्वारा किया गया था.इसके साथ ही स्थानीय प्रोफेसरों, विश्वविद्यालय के छात्रों और कारख़ाना मजदूर भी इसमें शामिल थे जिन्होंने दिल्ली के टिकरी बॉडर पर बड़े पैमाने पर धरने में सहायता की थी. रैली में आंदोलन में मारे गए राज्य के किसानों की याद में हरियाणवी रागणी भी गाई गई .

कार्यक्रम में अखिल भारतीय किसान सभा के इंद्रजीत सिंह ने उस दिन हुई एक घटना के बारे में बताया जब सिंघू और टिकरी के आंदोलन स्थलों को हटाया जा रहा था और विजयी किसान अपने गांवों को लौटने लगे थे. जब कुछ किसान बीसवीं सदी की शुरुआत के एक जाट नेता छोटू राम, जिन्होंने हरियाणा और पंजाब में किसानों और मजदूरों को एकजुट किया था, की मूर्ति पैक कर रहे थे, तो उन्होंने ‘‘किसान एकता जिंदाबाद’’ का नारा लगाया. तभी पास खड़े एक खेतिहर मजदूर ने उनसे पूछा, ‘‘इस नारे में मजदूर कहां है’’ लगभग तभी सभी किसानों ने अपना नारा बदलकर ‘‘किसान मजदूर एकता जिंदाबाद’’ कर लिया.

ये मजदूर दलित समुदायों के प्रति एकजुटता और सम्मान को दिखाता था. जिन्हें मैं सिंघू और टिकरी बॉडर के आंदोलनों स्थलों में अक्सर देखता था. ये ज्यादातर पंजाब के वामपंथी झुकाव वाले, किसान संघों द्वारा आयोजित किए गये थे. लेकिन गाजीपुर सीमा पर भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन में इस एकजुटता का अभाव था जिसके कार्यकर्ता मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के आस-पास के क्षेत्र से थे, जिसे मैं अपना घर कहता हूं.

मैं दिसंबर 2020 में समान विचारधारा वाले लेखकों, कलाकारों और कार्यकर्ताओं द्वारा प्रकाशित द्वि-पाक्षिक समाचार पत्र ट्रॉली टाइम्स के सह.संपादक के रूप में किसान आंदोलन में शामिल हुआ था. उस अनिश्चित समय के दौरान, जब सरकार ने आंदोलन स्थलों पर इंटरनेट बंद कर दिया और मुख्यधारा के मीडिया ने खुद को सरकारी तोते की भूमिका तक गिरा दिया था, तब ट्रॉली टाइम्स आंदोलन के बारे में जानकारी के मुख्य आधार स्रोतों में से एक के रूप में उभरा. इसने किसानों को कृषि कानूनों से पैदा होने वाले खतरों के बारे में शिक्षित करने का काम किया और खेती और ग्रामीण समाज से संबंधित बड़े सामाजिक मुद्दों के साथ-साथ नेताओं और आंदोलन के प्रतिभागियों के साक्षात्कार और प्रोफाइल के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की. विरोध प्रदर्शनों के सांस्कृतिक स्थान में काफी केंद्रीय भूमिका निभाने के बावजूद मैंने देखा कि मैंने जानबूझ कर गाजीपुर जाने से परहेज किया था, इसके बजाय मैं ज्यादातर सिंघू और टिकरी के बारे में रिपोर्ट करता रहा. यह उस क्षेत्र से मेरे सांस्कृतिक और भाषाई संबंधों के बावजूद था, जहां से गाजीपुर के कई प्रदर्शनकारी आए थे.

यह कोई दुर्घटना नहीं थी. मैं खेतिहर मजदूर परिवार से आता हूं. और किसानों ने ऐतिहासिक रूप से इस वर्ग के हितों पर कोई ध्यान नहीं दिया है. सम्मान और ज्यादा मजदूरी की मांग करने वाले मजदूरों को या तो भूमिधारी कृषक समुदायों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया या इन मांगों के लिए उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ा था. पंजाब के किसान संघों ने इस दुश्मनी को पहचाना और यह भी महसूस किया कि कृषि कानूनों को निरस्त करने का संघर्ष श्रमिक समुदायों के समर्थन के बिना सफल नहीं हो सकता, जो ग्रामीण बहुसंख्यक हैं. जब ‘‘किसान मजदूर एकता जिंदाबाद’’ का नारा कलाकारों और कार्यकर्ताओं ने लोकप्रिय बना दिया, तब भी आंदोलन करने वाले किसानों ने इसे स्वीकार करने में महीनों लगा दिए. हालांकि कई लोगों ने नारे को ग्रामीण स्तर पर अन्यायपूर्ण सामाजिक विभाजन को मिटाने के आह्वान के रूप में स्वीकार नहीं किया, लेकिन कम से कम कुछ लोगों ने इसे नवउदारवादी कृषि नीतियों के खिलाफ लड़ाई जीतने की आवश्यकता के रूप में तो देखा ही.

शिवम मोघा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम्स में रिसर्च स्कॉलर हैं. वह ट्रॉली टाइम्स के सह-संपादक हैं.

कमेंट