हर तरफ धुएं का गुबार है. उसके पीछे से चमकीले केसरिया गमछा ओढ़े एक आदमी भाग रहा है. पीछे झंडों पर भी वही रंगत झिलमिलाती है. यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में सांप्रदायिक हिंसा की किसी भी अन्य तस्वीर की तरह लग सकता है, अगर इसके निचले हिस्से में दिखाई देने वाले पटाखे और धुएं के पीछे से झांकते भगवान राम न होते.
यह तस्वीर 22 जनवरी की थी, जिसे उस दिन मुंबई में भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय के बाहर, अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक का जश्न मनाने के समय कैद किया गया था. यह दृश्य जनवरी के तीसरे सप्ताह में भारत के किसी भी हिस्से का हो सकता है; देश के कई हिस्सों में, युवाओं की हाथों से लेकर मुगल-युग के सफदरजंग के मकबरे के अंदर तक राम की तस्वीर और "जय श्री राम" शब्दों के साथ भगवा रंग हर जगह दिखाई दिया. रिक्शों, कारों और ट्रकों, तंबूओं, बालकनियों में, घरों और कार्यालयों में पर लहराते भगवा झंडे हर्षोल्लास की पहचान बने हुए थे. हिंदू राष्ट्रवाद की विजय अपरिहार्य थी. यहां तक कि जिन क्षेत्रों में विचारधारा को लेकर आक्रामक विरोध देखा गया है, जैसे पंजाब, कश्मीर और पश्चिम बंगाल, वहां भी इस दिन को चिह्नित करने के लिए कुछ कार्यक्रम देखे गए.