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दिसंबर के मध्य में मुझे न्यू यॉर्क से आए कुछ दिन ही हुए थे. मैं कोलंबिया विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में मास्टर्स कर लौटी हूं. मेरे आने के तुरंत बाद, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. इस कानून में धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है लेकिन मुसलमानों को इसका फायदा नहीं मिलेगा. 15 दिसंबर को दिल्ली पुलिस ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में घुस कर निर्दोष छात्र-छात्राओं पर बेरहमी से हमला किया. हमले में कई छात्र घायल हुए और एक छात्र तो एक आंख में अंधा ही हो गया.
लेकिन देश भर में प्रदर्शनकारी दहाड़ते हुए सड़कों पर उतर आए. यह तो बस शुरुआत थी.
19 दिसंबर की सुबह, मैंने मंडी हाउस जाने के लिए मेट्रो ली. उस दिन वहां विरोध रैली बुलाई गई थी. मेरे बैग में कैमरा, पानी की बोतल और जामिया की तरह के आंसू गैस के हमले के खतरे को देखते हुए एक तैराकी वाला चश्मा था. मुझे पता चला कि विरोध के मद्देनजर मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन को बंद कर दिया गया है. उस दिन कम से कम 17 मेट्रो स्टेशनों को अस्थाई रूप से बंद कर दिया गया था. राजधानी के कई हिस्सों में एसएमएस और इंटरनेट सेवा भी रोक दी गई थी. मैं मंडी हाउस से पहले, जनपथ मेट्रो स्टेशन पर उतर गई.
बाहर आकर मैंने देखा कि 500 के आसपास लोग रैली निकालते हुए जंतर-मंतर की ओर कूच कर रहे हैं. मंडी हाउस से आरंभ होकर जो रैली कहीं और जाने वाली थी, उसे जंतर-मंतर की ओर मोड़ दिया गया. दिल्ली पुलिस ने मंडी हाउस और लाल किला में धारा 144 लगा दी थी जिसके तहत इन स्थानों में पांच से अधिक लोग एक साथ नहीं रह सकते. जल्द ही ऐसी खबरें आने लगीं कि लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है.
मैं और मेरा एक दोस्त जनपथ से मंडी हाउस के लिए निकले. वहां दर्जनों की तादाद में पुलिस और सुरक्षाकर्मी मौजूद थे. वहां कई सारी बसें, हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों को ले जाने के लिए खड़ी थीं. पुलिसवालों को राइफल, डंडे और बुलेटप्रूफ जैकिटों में देखना डरावना एहसास था.
जिस दिन जामिया में हिंसा हुई थी उस दिन झारखंड में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ हिंसा करने वालों को “कपड़ों से पहचाना जा सकता". उनका इशारा मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए था और इसकी बहुत आलोचना हुई. मंडी हाउस में मैंने कुछ ऐसा देखा जिससे में सिहर गई. लगा कि जैसे मोदी के इशारे ने पुलिसवालों को छूट दे दी है कि वह मुसलमानों के साथ जैसा चाहे वैसा बर्ताव कर सकते हैं. मैंने वह दृश्य अपने कैमरे में रिकार्ड कर लिया.
वहां एक आदमी सफेद कुर्ता और गोल टोपी पहन कर जब जेबरा क्रॉसिंग से सड़क पार कर रहा था तब पुलिस ने उसे देख लिया. जहां तक मुझे समझ में आया वह आदमी यूं ही वहां से गुजर रहा था और प्रदर्शन से उसका कोई लेना-देना नहीं था. तीन पुलिसवाले वहां मौजूद सभी को छोड़ उस आदमी के पास पहुंच गए और उसे पकड़ कर उसके साथ जोर-जबर्दस्ती करने लगे. उस आदमी ने उकसाने वाला कोई काम नहीं किया था और ऐसा भी नहीं लग रहा था कि वह प्रदर्शन में शामिल होने जा रहा था. मैं सड़क पर दौड़ती हुई उस घटना का वीडियो बनाने लगी.
अचानक एक और आदमी दिखाई दिया जो नीले रंग की कमीज और जैकिट पहने हुए था. उसकी पोशाक से उसके धर्म का पता नहीं चलता था.
"उसको कपड़ों से पहचान रहे हैं”, नीली कमीज का आदमी चिल्लाया, “यह मोदी का देश है.” पहले तो मैं डर गई क्योंकि मुझे लगा कि दूसरा आदमी मुस्लिम व्यक्ति को डांट रहा है. नीली कमीज वाला आदमी चिल्ला रहा था और पुलिस मुस्लिम आदमी को धकेल कर वहां खड़ी एक बस की ओर ले जा रही थी.
पुलिसवालों ने चिल्ला रहे आदमी को कुछ नहीं किया जबकि अन्य लोगों को पकड़कर बस में डाल रही थी. नीली कमीज वाला आदमी लगातार चिल्ला रहा था, "यह भला आदमी बस यहां से गुजर रहा था और उन्होंने उसे गिरफ्तार कर लिया है." उसने ऐसा कहा ही था कि उसे भी पुलिस ने पकड़ लिया.
मैं डर गई थी और जब शाम को मैं घर आई तो मैंने वीडियो को एडिट कर सोशल मीडिया में अपलोड कर दिया. उसके एक हिस्से को मैंने जानबूझकर कुछ सेकेंड स्लो कर दिया ताकि पुलिस की करतूत साफ देखी जा सके. वह वीडियो वाइरल हो गया. कई लोगों ने मुझे बताया कि उन्होंने भी ऐसी गिरफ्तारियां देखी हैं जिनमें खासतौर पर मुसलमानों को निशाना बनाया गया है.
उस दिन प्रदर्शनकारी मार्च के लिए दो स्थानों में इकट्ठा हु हुए. पुलिस ने एक हजार से अधिक लोगों को हिरासत में लिया और उन्हें जबरन बसों में डाला. जैसाकि वीडियो में देखा जा सकता है गिरफ्तार किए गए लोगों में ऐसे लोग भी थे जो विरोध प्रदर्शन में शामिल होने नहीं जा रहे थे. पकड़े गए लोगों को पश्चिमी दिल्ली के नांगलोई क्षेत्र में सूरजमल स्टेडियम और उत्तरी पश्चिमी दिल्ली के बवाना के राजीव गांधी स्टेडियम में ले जाया गया.
जब से विरोध प्रदर्शन शुरू हुए हैं तब से उत्तर प्रदेश और असम में दो दर्जन से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. बड़ी तादाद में लोग घायल हुए हैं. इन सब के बावजूद विरोध और पुलिस बर्बरता जारी है. लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेने से मानव अधिकारों के हनन की चिंता के बिना धर्म के नाम पर बर्बरता का खौफ पैदा हो गया है. डर लगता कि आगे क्या होगा.
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