अमित शाह और अन्य नेताओं के स्वास्थ्य पर पारदर्शिता जरूरी

14 सितंबर 2020
गृहमंत्री अमित शाह पिछले छह सप्ताहों में तीन बार अस्पताल में भर्ती हुए हैं. लेकिन उनकी स्वास्थ्य स्थिति के बारे में बहुत कम जानकारी दी जा रही है.
संचित खन्ना / हिंदुस्तान टाइम्स / गैटी इमेजिस
गृहमंत्री अमित शाह पिछले छह सप्ताहों में तीन बार अस्पताल में भर्ती हुए हैं. लेकिन उनकी स्वास्थ्य स्थिति के बारे में बहुत कम जानकारी दी जा रही है.
संचित खन्ना / हिंदुस्तान टाइम्स / गैटी इमेजिस

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पिछले छह सप्ताहों में तीन बार अस्पताल में भर्ती हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता अमित शाह ने 2 अगस्त को ट्विटर पर जानकारी दी थी कि उन्हें नोवेल कोरोनावायरस संक्रमण हुआ है. उसके बाद शाह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती हो गए थे. उनकी स्वास्थ्य स्थिति के विषय में उनके डिस्चार्ज होने के बाद तक यानी 14 अगस्त तक कोई अपडेट नहीं दिया गया था. लेकिन अस्पताल से छुट्टी मिलने के तीन दिन बाद 17 और 18 अगस्त की दरमियानी रात 2 बजे उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कोविड के उभरने के बाद दिए जाने वाले उपचार के लिए फिर भर्ती किया गया. शाह को 30 अगस्त को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया लेकिन दो सप्ताह के भीतर ही 12 सितंबर को देर रात उन्हें एक बार फिर एम्स में भर्ती किया गया है.

इस प्रकार अमित शाह लगभग पूरे अगस्त अस्पताल में भर्ती रहे और उस पूरे महीने भारत के पास सक्रिय गृहमंत्री नहीं था. अबकी शाह दो सप्ताह तक चलने वाले संसदीय सत्र के दो दिन पहले भर्ती हुए हैं. यह संसदीय सत्र आज यानी 14 सितंबर से शुरू हो गया है. यह भी निश्चित नहीं है कि गृहमंत्री सत्र की अवधि के भीतर ठीक हो पाएंगे. 13 सितंबर को जारी एम्स की एक प्रेस रिलीज के अनुसार शाह को संसदीय सत्र से पहले पूर्ण मेडिकल जांच के लिए एक-दो दिनों के लिए भर्ती किया गया है. इन छुटपुट जानकारियों के अलावा अस्पताल ने और गृह मंत्रालय ने मंत्री के स्वास्थ्य के बारे में कोई खास जानकारी साझा नहीं की है और ना ही इस बारे में बताया है कि क्या शाह राष्ट्रीय महत्व के मामलों को देखने में सक्षम हैं.

शाह के अस्पताल में भर्ती होने का मतलब है कि गृहमंत्री महत्वपूर्ण नीतिगत मामलों में संसद को जानकारी नहीं दे सकेंगे. शाह के मंत्रालय के तहत आंतरिक सुरक्षा के गंभीर विषय आते हैं जिनमें कोविड-19 महामारी भी शामिल है जिसमें अब भारत ब्राजील को पीछे छोड़कर दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित देश बन गया है और यहां मामलों में रोज दुनिया भर में सबसे ज्यादा वृद्धि हो रही है. इसके साथ ही शाह दो महत्वपूर्ण केंद्र शासित राज्यों को भी देखते हैं - लद्दाख और जम्मू और कश्मीर. लद्दाख में चीन घुसपैठ कर रहा है और जम्मू-कश्मीर में आंतरिक सुरक्षा अस्थिर है. मंत्री के सामने जो तत्कालीन मुद्दे हैं उनमें इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस को लद्दाख में चीन सीमा में तैनात करना, नियुक्ति समिति में सभी वरिष्ठ नौकरशाही नियुक्तियों पर हस्ताक्षर करना और नागा शांति प्रक्रिया को संभालना शामिल है जो 23 सालों से जारी वार्ता के बाद अंधी गली में फंस गया है. इसके साथ ही अमित शाह सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति के भी सदस्य हैं जो सैन्य कार्यवाही के मामलों पर फैसला लेती है.

अस्पताल में भर्ती रहने या बीमारी की थकान की वजह से ऐसे गंभीर मामलों पर फैसला ले पाना शायद मुमकिन न हो. सार्वजनिक पद पर नियुक्त एक निर्वाचित प्रतिनिधि के काम करने की क्षमता सार्वजनिक चिंता का विषय होनी चाहिए लेकिन भारत में सार्वजनिक पदों पर बैठे निर्वाचित लोगों के स्वास्थ्य का मामला निजी मामला माना जाता है. उसे एक ऐसा मामला समझा जाता है जो निजता से संबंधित है और जिस पर सार्वजनिक चर्चा नहीं की जानी चाहिए.

अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के मामले में भी यही देखा गया था. दोनों गंभीर रूप से अस्वस्थ और संभवतः शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर रहने के बावजूद अपने-अपने पदों पर बने रहे. मनोहर पार्रिकर का मामला तो और भी हैरान करने वाला था. पेनक्रिएटिक या अग्नाशय कैंसर के बावजूद पर्रिकर गोवा के मुख्यमंत्री के पद पर बने रहे. और तो और वह ऑक्सीजन ट्यूब और इंट्रावेनस बोतलों को लगाए हुए सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेते रहे.

भारत भूषण दिल्ली स्थित पत्रकार हैं.

Keywords: Amit Shah COVID-19 Arun Jaitley Sushma Swaraj Manohar Parikkar Health
कमेंट