इस साल 25 सितंबर को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधिक करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र सरकार की स्वामित्व योजना के बारे में कहा, “हम लोगों को उनके घर और जमीन का डिजिटल रिकॉर्ड देने में जुटे हैं. ये डिजिटल रिकॉर्ड प्रॉपर्टी पर विवाद कम करने के साथ ही एक्सेस टू क्रेडिट (बैंक लोन) तक लोगों की पहुंच बढ़ा रहा है.”
लेकिन झारखंड में केंद्र सरकार की इस योजना के खिलाफ आदिवासी समाज तेजी से गोलबंद हो रहा है. इस योजना को पंचायती राज मंत्रालय ने पिछले साल पायलट चरण में छह राज्यों में लागू किया था जिनमें से महाराष्ट्र को छोड़ कर सभी बीजेपी शासित राज्य हैं. हालांकि पायलट चरण में लागू होने के बाद इसके खिलाफ किसी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं देखा गया.
दूसरे चरण में जिन 20 राज्यों में इस योजना की शुरुआत होनी है उनमें आदिवासी बहुल राज्य झारखंड और छत्तीसगढ़ शामिल हैं. इसी कड़ी में इस योजना की प्रक्रिया की सुगबुगाहट जैसे ही झारखंड पहुंची आदिवासी व मूलवासियों के बीच इसके विरोध में स्वर फूटने लगे हैं.
26 अक्टूबर को झारखंड के खूंटी जिला उपायुक्त कार्यलय के समीप जदूर अखड़ा मैदान में इस योजना के विरोध में सभा आयोजित हुई, जहां आदिवासियों ने स्वामित्व योजना को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए और इस योजना को आदिवासी-मूलवासी विरोधी बताया. इस सभा में आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, आदिवासी एकता मंच, मुंडारी खूटकट्टी परिषद समेत एक दर्जन संगठनों के बैनर तले खूंटी के करीब तीन दर्जन से भी अधिक ग्राम प्रधानों और दो हजार से भी ज्यादा आदिवासी व मूलवासी समाज के ग्रामीण जुटे थे.
सभा के बाद खूंटी के उपायुक्त को इस योजना के विरोध में प्रधानमंत्री और खूंटी उपायुक्त के नाम से एक पत्र सौंपा गया, जिसमें इस योजना को रद्द किए जाने की मांग की गई. संगठनों का कहना है कि इस मामले में जल्द ही झारखंड के मुख्यमंत्री से मिलकर भी मांग पत्र सौंपा जाएगा.
कमेंट