स्कैनिया बस विवाद : नितिन गडकरी के प्लॉट में खड़ी थी बस, फिर क्यों कहते हैं कि कोई लेना-देना नहीं

गडकरी ने "किसी भी स्कैनिया बस" या "उससे जुड़े किसी भी फर्म या व्यक्ति" से संबंध होने से इनकार किया है लेकिन कारवां की पड़ताल बताती है कि केंद्रीय मंत्री का उक्त दावा झूठा है और बस गडकरी के प्लांट पर मौजूद थी और जिन कंपनियों से बस का संबंध है उन कंपनियों के उनके बेटों- सारंग और निखिल- के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं. सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
गडकरी ने "किसी भी स्कैनिया बस" या "उससे जुड़े किसी भी फर्म या व्यक्ति" से संबंध होने से इनकार किया है लेकिन कारवां की पड़ताल बताती है कि केंद्रीय मंत्री का उक्त दावा झूठा है और बस गडकरी के प्लांट पर मौजूद थी और जिन कंपनियों से बस का संबंध है उन कंपनियों के उनके बेटों- सारंग और निखिल- के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं. सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी पर हाल में अवैध रूप से जमीन हासिल करने और बड़ा कर्ज लेने के लिए उसे गिरवी रखने का आरोप लगा है.

10 मार्च 2021 को स्वीडन के समाचार चैनल एसवीटी ने खबर दी कि स्वीडन की कमर्शियल-व्हीकल्स (वाणिज्यिक वाहन) निर्माण कंपनी स्कैनिया ने दिसंबर 2016 में गडकरी की बेटी की शादी में "गहरे लाल रंग की चमड़े की सीट वाली" एक लक्जरी बस उपहार में दी थी. एसटीवी ने स्कैनिया की आंतरिक जांच रिपोर्ट के आधार पर यह खबर दी है. एसवीटी ने आगे बताया कि "सूत्रों ने स्कैनिया की मूल कंपनी फॉक्सवैगन को जानकारी दी है कि भारतीय मंत्री को यह उपहार सरकार से काम हासिल करने की नीयत से दिया गया है. गडकरी ने "किसी भी स्कैनिया बस" या "उससे जुड़े किसी भी फर्म या व्यक्ति" से संबंध होने से इनकार किया है लेकिन कारवां की पड़ताल बताती है कि केंद्रीय मंत्री का उक्त दावा झूठा है और बस गडकरी के प्लांट पर मौजूद थी और जिन कंपनियों से बस का संबंध है उन कंपनियों के उनके बेटों- सारंग और निखिल- के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं.

एसवीटी ने यह रिपोर्ट जेटीडीएस और कॉन्फ्यूएंस मीडिया के साथ मिलकर की है. ये दोनों जर्मनी और भारत की समाचार संस्थाएं हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि “यह बस गडकरी परिवार से जुड़ी एक कंपनी को एक डीलर के मार्फत दी गई थी. स्कैनिया के प्रेस मैनेजर और वरिष्ठ सलाहकार हांस डेनियल्सन ने मुझे बताया कि कंपनी ने एक मोटर लिंक एचडी बस बेंगलुरु के डीलर ट्रांसप्रो मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड को 2016 में दी थी. उन्होंने कहा कि स्कैनिया की अपनी पड़ताल के अनुसार ट्रांसप्रो ने यह बस एक दूसरी भारतीय कंपनी सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को किराए पर दी थी.

डेनियल्सन ने कहा कि स्कैनिया को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि वह बस गडकरी को तोहफे में दी गई थी. लेकिन उन्होंने यह माना कि बस की डिलीवरी से संबंधित हस्तांतरण के दस्तावेजों को सटीक रूप से नहीं रखे जाने से पड़ताल करने में मुश्किल आ रही है. इस खबर के प्रकाशित होने तक अन्य किसी कंपनी या व्यक्ति ने इस पर टिप्पणी नहीं की. मैंने गडकरी और उनके बेटों और ट्रांसप्रो मोटर्स और सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से भी सवाल पूछे थे.

कारपोरेट मंत्रालय में दायर दस्तावेजों से पता चलता है कि सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी का संबंध सारंग और निखिल गडकरी की कंपनियों मानस एग्रो इंडस्ट्रीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और सियान एग्रो इंडस्ट्रीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड से है. सारंग मानस एग्रो के और निखिल सियान एग्रो के निदेशक हैं. इसके अतिरिक्त कारपोरेट मंत्रालय के दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि सारंग गडकरी की मानस एग्रो ने सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को 2016-17 में 35 लाख रुपए का असुरक्षित कर्ज दिया था. यह तथ्य भी गडकरी के दावे को झूठलाता है.

केवल कुछ ही मीडिया संगठनों ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया है जबकि बहुसंख्यक मुख्यधारा के मीडिया ने गडकरी के खंडन को ही प्रकाशित किया है. खबर का खुलासा होने के एक दिन बाद गडकरी के ऑफिस ने ट्वीट करते हुए आरोपों को दुर्भावनापूर्ण, मनगढंत और आधारहीन बताया और दावा किया कि किसी भी स्कैनिया बस की खरीद और बिक्री से उनका संबंध नहीं है. 31 मार्च को प्रिंट ने गडकरी का साक्षात्कार प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने दावा किया कि एसवीटी की रिपोर्ट में जिस बस का जिक्र है वह एथेनॉल चालित बस है जिसका निर्माण स्कैनिया करती है, उसे सड़क यातायात मंत्रालय द्वारा ग्रीन बस पहल के तहत नागपुर लाया गया था. लेकिन यह दावा भी सही नहीं लगता क्योंकि स्कैनिया की एथेनॉल चालित बस मोटर लिंक एचडी से अलग है और एथेनॉल से नहीं चलती. और भी जरूरी बात यह है कि गडकरी का बयान इन सवालों के स्पष्टीकरण नहीं देता कि उन्होंने सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के साथ अपने संबंध के बारे में क्यों छिपाया और क्यों एक मेट्रोलिंक बस, जुलाई 2018 में उनके परिसर में खड़ी थी जिसके बारे में दो साल बाद पता चल रहा है कि वह उन्हें गिफ्ट में मिली थी.

मैं जुलाई 2018 की एक दोपहर में नागपुर स्थित पूर्ति सोलर सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के परिसर में पहुंचा. यह कंपनी केंद्रीय सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से जुड़ी है. वह परिसर एकदम खाली था और जंगली घांस की घनी चादर फैली हुई थी. लग रहा था मानो फैक्ट्री बहुत लंबे समय से बंद पड़ी है. इधर-उधर औजार बिखरे पड़े थे और किसी कामगार का नामो निशान नहीं था लेकिन ताज्जुब तब हुआ जब मैंने वहां एक बड़ी सफेद स्कैनिया मेट्रोलिंक बस खड़ी देखी. मैंने उस बस एक वीडियो बना लिया. उस वीडियो में साफ देखाई देता है कि बस में दो स्टीकर लगे हैं. एक चालक के दरवाजे के पास जिसमें लिखा है स्कैनिया मेट्रोलिंक और दूसरा बड़े अक्षरों वाला स्टीकर बस की साइड में लगा है जिसमें सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी लिखा था.

आधिकारिक रिकॉर्ड में इंगित होता है कि पूर्ति सोलर कॉम्पलेक्स में खड़ी वह बस गडकरी को उपहार में दी गई स्कैनिया बस ही है.

नितिन गडकरी जो पहले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल के ताकतवर नेताओं में आंके जाते हैं. सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय के अतिरिक्त उनके पास लघु और मझोले उद्यम मंत्रालय का दायित्व भी है. अप्रैल 2018 के कारवां में प्रकाशित गडकरी की प्रोफाइल में बताया गया है कि पत्रकार, कारोबारी, नौकरशाह और बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता मानते हैं कि आरएसएस यदि कभी मोदी को बदलने की सोचेगा तो उनका स्थान गडकरी ही लेंगे. इस बीच ट्रिटॉन ऐसी की सहायक कंपनी स्कैनिया दुनिया की बड़ी कमर्शियल व्हीकल निर्माता कंपनियों में है. यह कंपनी यानी ट्रिटॉन ऐसी जर्मनी की कार निर्माता वॉक्सवैगन समूह की कंपनी है. लेकिन इसके बावजूद एसवीटी की रिपोर्ट ने भारत में वैसा तहलका नहीं मचाया जैसा आम तौर पर ऐसी खबर के बाद होना चाहिए.

वह बस मुझे तब दिखी जब मैं पूर्ति सोलर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड पर लगे धोखाधड़ी के मामलों की पड़ताल कर रहा था. गडकरी पर आरोप लगे थे कि शेल कंपनियों के जरिए पूर्ति समूह में बड़े निवेश हुए हैं. पूर्ति समूह की पांच कंपनियों में गडकरी के ड्राइवर डायरेक्टर थे और पूर्ति ग्रुप के प्रबंध निदेशक सुधीर डब्लू दीवे थे जो पहले एक नौकरशाह रह चुके थे और एक जमाने में गडकरी के पर्सनल सेक्रेटरी हुआ करते थे. इस स्कैंडल के सामने आने के बाद गडकरी ने पूर्ति समूह से स्वयं को बाहर कर लिया. फरवरी 2016 में कोर्ट का एक फैसला आया और पूर्ति समूह की कुछ कंपनियां मानस एग्रो इंडस्ट्रीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड में विलय कर दी गईं. उसी साल गडकरी के बेटे सारंग एग्रो के निदेशक नियुक्त हुए थे.

मानस एग्रो इंडस्ट्रीज में पूर्ति सोलर सिस्टम का विलय नहीं हुआ. उसका पंजीकृत पता है जे-17, हिंगणा महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन है. इसी प्लॉट पर स्कैनिया मेट्रोलिंक खड़ी थी. अक्टूबर 2018 में न्यूजलॉन्ड्री ने रिपोर्ट दी थी कि घनश्याम दास राठी, जो एक आरएसएस सदस्य हैं और पॉलीसैक इंडस्ट्रियल कोऑपरेटिव सोसायटी के शेरहोल्डर भी हैं, ने आरोप लगाया है कि गडकरी ने हिंगणा एमआईडीसी प्लॉट अवैध रूप से कोऑपरेटिव सोसाइटी से प्राप्त किया था. राठी ने आरोप लगाया था कि गडकरी ने, जो स्वयं आईसीएस के सदस्य हैं, शेयरधारकों को विश्वास में लिए बिना जमीन पूर्ति सोलर सिस्टम को हस्तांतरित कर दी. इसके बाद पूर्ति सोलर सिस्टम ने एक बोर्ड प्रस्ताव पारित कर 42.83 करोड रुपए के कर्ज के एवज में जमीन जीएमटी माइनिंग और पावर लिमिटेड के समक्ष गिरवी रख दी. कम से कम जुलाई 2014 तक गडकरी के बेटे जीएमटी के बोर्ड में थे. जीएटी माइनिंग मानस एग्रो में विलय हुईं कंपनियों में से एक है.

नागपुर प्लॉट में मुझे 290 रुपए का पिछले माह का एक बिजली का बिल मिला. वह बिल पूर्ति सोलर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम का था. इस बिल से यह प्लॉट पूर्ति सोलर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड का होने की पुष्टि होती है. मुझे यहां पीआईसीएस के नाम पर मई और जून 2018 के पानी के बिल भी मिले. प्रवेश द्वार से मात्र 20 फीट की दूरी पर सफेद स्कैनिया मेट्रोलिंक बस खड़ी थी.

बस का लाइसेंस नंबर “एमएच 31 ईएम 1530” था. एसवीटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में स्कैनिया के प्रबंधकों और स्वीडन के प्रबंधकों के बीच ईमेलों में बताया गया है कि “बस की डिलीवरी भारत में कंपनी के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है.” जब गडकरी ने रिपोर्ट का खंडन किया तो एसवीटी ने अपनी फॉलोअप रिपोर्ट में एक ईमेल का अंश छापा जिसमें कहा गया था, “यातायात मंत्री बस प्राप्त करने का इंतजार कर रहे हैं. यह जरूरी है कि डिलीवरी दिसंबर के मध्य में हो क्योंकि वह बस का प्रयोग एक महत्वपूर्ण पारिवारिक आयोजन में करना चाहते हैं.” गडकरी की बेटी केतकी का विवाह 4 दिसंबर को, बस के रजिस्ट्रेशन के दो दिन पहले, संपन्न हुआ और 8 दिसंबर को रिसेप्शन था.

वाहन रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र में वाहन के मालिक का भी नाम है लेकिन उस नाम के प्रत्येक दूसरे अक्षर को मालिक की पहचान छिपाने के लिए मिटा दिया गया है. नाम ऐसे लिखा है : “*/* *R*N*P*O * O*O*S *V* *T*.” तीन दिनों की माथापच्ची के बाद अंततः मुझे समझ आया कि इसका मतलब है “एम/एस ट्रांसप्रो मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड.” यह उस स्थानीय डीलरशिप का नाम है जिसने स्कैनिया खरीदी थी. इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं की है वह वही बस थी. एसवीटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि स्कैनिया ने गहरे लाल रंग के चमड़े की सीटों वाली नई-नई पेंट की गई मेट्रोलिंक एचडी बस दी है. मैं बस के अंदर नहीं जा पाया लेकिन 3 जून 2017 को सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने अपनी फेसबुक वॉल में एक फोटो पोस्ट की थी जिसमें गडकरी लाल चमड़े के सीटों वाली बस पर बैठे नजर आ रहे हैं. उनके साथ उनके बेटे सारंग और महाराष्ट्र बीजेपी के महासचिव चंद्रशेखर बवनकुले भी हैं और उनके आसपास कई लोग खड़े हैं. कंपनी के फेसबुक पेज की एक अन्य पोस्ट में एक और वैसी ही लाल चमड़े की सीटों वाली बस दिखाई दे रही है हालांकि यह नहीं बताया जा सकता कि यह वही बस है जिसकी रिपोर्ट एसवीटी ने की है.

मैंने इस संबंध में पूर्ति सोलर सिस्टम और सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को ईमेल भेजे थे लेकिन दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया. बवनकुले और गडकरी बंधुओं ने भी फोटो का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया.

ट्रांसप्रो मोटर्स द्वारा कारपोरेट मामले के मंत्रालय में वर्ष 2016-17 के लिए दायर दस्तावेज में एक लोन समझौते का उल्लेख है जो उसने अगस्त 2016 में फॉक्सवैगन फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड के साथ किया था. मंत्रालय की वेबसाइट में अपलोड किए गए इन दस्तावेजों में यह लोन समझौता भी है जो बताता है कि फॉक्सवैगन फाइनेंस में ट्रांसप्रो मोटर्स को 22 लाख 19 हजार का वाहन लोन दिया था. सीईआरएसएआई पर उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि जो बस मैंने पूर्ति सोलर परिसर में देखी थी उसी बस के लाइसेंस नंबर वाली कार के एवज में यहां लोन दिया गया था. फॉक्सवैगन समूह की एक सहायक कंपनी ने ट्रांसप्रो मोटर्स को 22 लाख 19 हजार का एक लोन दिया था ताकि वह स्कैनिया मेट्रोलिंक फॉक्सवैगन समूह की एक दूसरी कंपनी से खरीद पाए.

डेनियल्ससन के मुताबिक कंपनी की जांच से पता चला है कि ट्रांसप्रो मोटर्स ने उस बस को बाद में सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को भाड़े पर दे दिया था. सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने अपने खातों में बस को मूर्त संपत्ति बताया है. यह पहली बार वित्त वर्ष 2017 के वित्तीय विवरण में उल्लेखित है. यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों इस बस को संपत्ति बताया गया है जबकि डेनियल्ससन ने कहा था कि स्कैनिया की जांच से इंगित होता है कि ट्रांसप्रो मोटर्स ने यह बस सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को किराए पर दी थी बेची नहीं थी. लेकिन न तो ट्रांसप्रो मोटर्ल और न सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने बस के संबंध में मेरे द्वारा भेजे गए ईमेलों का जवाब दिया. जिसके चलते यह सुनिश्चित कर पाना मुश्किल है कि मालिकाने की प्रकृति कैसी है.

ट्रांसप्रो मोटर्स और सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी द्वारा जमा दस्तावेजों में बस के मूल्य में अंतर है. फॉक्सवैगन फाइनेंस और ट्रांसप्रो मोटर्स के बीच हुए ऋण समझौते में बस की कीमत 22 लाख 19 हजार रुपए बताई गई लेकिन सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने 2017 की अपनी बैलेंसशीट में बस की कीमत 33 लाख 57 हजार बताई है. यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों दस्तावेजों में कीमतों का अंतर क्यों है. एक बड़ी भारतीय कंपनी के साथ काम करने वाले एक बस डीलर ने नाम का उल्लेख न करने की शर्त पर मुझे बताया कि स्कैनिया मेट्रोलिंक की कीमत बड़ी आसानी से एक करोड़ रुपए से ऊपर होगी. यह स्पष्ट नहीं है कि फॉक्सवैगन फाइनेंस और ट्रांसप्रो मोटर्स के बीच हुए समझौते में कीमत 22 लाख 19 हजार रुपए क्यों दिखाई गई है?

परिसर में मिले बिजली और पानी के बिल. कारवां / कौशल श्रॉफ

इसके अलावा सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी द्वारा वर्ष 2019 के लिए दायर स्वतंत्र ऑडिटर रिपोर्ट में कहा गया है कि बस का मूल्यह्रास हो रहा है लेकिन इससे कमाई नहीं हो रही है. वित्तीय विवरणों में दर्ज है कि संपत्ति का प्रतिवर्ष 15 फीसदी की दर से मूल्यह्रास हो रहा है. हॉस्पिटैलिटी की वर्ष 2018 की बैलेंसशीट में संपत्ति का मूल्य 28 लाख 25 हजार बताया गया है जो वर्ष 2019 की बैलेंस शीट में घटकर 23 लाख 78 हजार रह गया. ऑडिटर ने लिखा है, “कंपनी के पास एक बस है जिसके मूल्यह्रास का दावा वह करती है लेकिन उससे प्राप्त होने वाला राजस्व न के बराबर है.” ऑडिटर लेन-देन के रिकॉर्ड पर भी प्रश्न खड़े करता है. ऑडिटर की रिपोर्ट कहती है, “यह लेन-देन संदेहास्पद है. प्रबंधन द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं है.” रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख नहीं है कि सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने क्या स्पष्टीकरण दिया था हालांकि रिपोर्ट कहती है कि उपरोक्त वित्तीय विवरणों में वह जानकारी है जो कंपनी एक्ट द्वारा आवश्यक है लेकिन यह एकाउंटिंग सिद्धांत में मान्य सच्ची और स्पष्ट जानकारी नहीं है.

2016 में बस के रजिस्ट्रेशन के बाद सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी और ट्रांसप्रो मोटर्स के बीच वर्ष 2017 में 60 लाख रुपए का लेन-देन वित्तीय खातों में दिखाई देता है जो “एडवांस फॉर कस्टमर” हैड में है. इसके अगले साल “सिक्योरिटी डिपॉजिट” के नाम से 75 लाख रुपए सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से प्राप्त होने का उल्लेख वर्ष 2019 के वित्तीय विवरण में मिलता है लेकिन इनमें से किसी रिकॉर्ड में यह नहीं बताया गया है कि क्या यह भुगतान बस के लिए है. ये एंट्रियां सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के वित्तीय दस्तावेजों में नहीं मिलती लेकिन वर्ष 2020 की उसकी बैलेंसशीट से पता चलता है कि बस कंपनी की संपत्ति नहीं रह गई है. सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी की ऑडिटर की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस संपत्ति को वित्तीय संस्था ने 31 मार्च 2020 को लोन भुगतान में डिफॉल्ट के कारण वापस ले लिया है. ट्रांसप्रो मोटर्स द्वारा उसी वर्ष के लिए दायर ऑडिटर रिपोर्ट में संकेत मिलता है कि फॉक्सवैगन फाइनेंस ने बस को अपने कब्जे में ले लिया है क्योंकि कंपनी लोन नहीं चुका पाई थी.

स्कैनिया की सहायक कंपनी ने बस को कब्जे में ले लिया था लेकिन स्कैनिया फिर भी कहती है कि उसे बस कहां है इसकी जानकारी नहीं है. डेनियल्ससन ने मुझे बताया, “इसका सीधा सा कारण यह है कि बस कहां है इसकी जानकारी उनके पास नहीं है.” उन्होंने कहा कि ट्रांसप्रो मोटर्स के साथ कंपनी के लेन-देन का पर्याप्त रूप से दस्तावेजीकरण नहीं किया गया था और ऐसा कारोबार स्कैनिया नहीं करती इसलिए जो स्कैनिया कर्मचारी इस लेन-देन में शामिल थे व​​ह अब कंपनी में नहीं हैं. डेनियल्ससन ने कहा कि बस कहां है इसके बारे में सवाल बस के मालिक से उठाया जाना चाहिए “जो हमारी जानकारी के अनुसार ट्रांसप्रो मोटर्स है.” मैंने कार्बन ए ट्रांसप्रो को कॉल किया और ईमेल भेजे लेकिन वह नंबर इनवेलिड था और ईमेल डिलीवर नहीं हुआ. बेंगलुरु में उसके पंजीकृत कार्यालय में जाकर पता चला कि ट्रांसप्रो मोटर्स का ऑफिस बंद हो गया है और उसकी जगह स्कैनिया का ऑफिस खुल गया है.

फॉक्सवैगन फाइनेंसियल सर्विसेज के प्रेस प्रवक्ता स्टीफन वोगस का कहना था कि वह अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकते क्योंकि पब्लिक प्रोसिक्यूटर जांच कर रहे हैं. वोगस ने जांच की ज्यादा जानकारी नहीं दी. जब मैंने दुबारा संपर्क किया तो कहा गया कि कंपनी के वित्त विभाग के प्रवक्ता डिनीज आसनहावर से संपर्क करूं लेकिन जब उनसे संपर्क किया तो उन्होंने टिप्पणी नहीं की. फॉक्सवैगन फाइनेंसियल सर्विसेज की भारतीय शाखा ने भी बस कब्जाने वाली बात पर टिप्पणी नहीं की.

परिसर में मौजूद स्कैनिया बस. कारवां/कौशल श्रॉफ

समाचार वेबसाइट द प्रिंट के शेखर गुप्ता द्वारा लिए गए एक साक्षात्कार में गडकरी ने फॉक्सवैगन फाइनेंस पर भी बात की. गडकरी ने बताया कि एसवीटी में जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है वह नागपुर महानगरपालिका (एनएमसी) और स्कैनिया के बीच के समझौते का मामला है जिसे उन्होंने सड़क परिवहन मंत्री होने के नाते फैसिलिटेट किया था ताकि एथेनॉल चालित बसें भारत में चलाई जा सकें. उन्होंने कहा कि जिस बस का उल्लेख रिपोर्ट में है वह भारत की पहली एथेनॉल चालित बस थी जिसे ट्रायल के लिए नागपुर लाया गया था. उन्होंने बताया कि अंततः इसके बाद नागपुर में ग्रीन बस परियोजना आरंभ हुई जिसके तहत 35 एथेनॉल चालित स्कैनिया बसें भारत आईं.

गडकरी ने जोर देकर कहा कि उनका इस लेन-देन से कोई लेना-देना नहीं है और यह एनएमसी और स्कैनिया के बीच का मामला है. उन्होंने यह भी कहा कि फॉक्सवैगन फाइनेंस ने स्कैनिया को 85 लाख रुपए का लोन बस के लिए दिया था और स्कैनिया ने 45 लाख रुपए लगाए थे. इंटरव्यू के अंत में गडकरी ने कहा कि बस की कीमत एक करोड़ 35 लाख रुपए है. लेकिन गुप्ता ने उनसे यह नहीं पूछा कि यह कीमत कहां से आई. गुप्ता ने गडकरी से काउंटर सवाल नहीं पूछा. गुप्ता ने इस तरह का साक्षात्कार लिया जैसे वह मंत्री को स्पष्टीकरण के लिए एक मित्रवत प्लेटफार्म उपलब्ध कराना चाहते थे. उन्होंने बसों को भारत लाने के लिए मंत्री के योगदान की प्रशंसा की. यदि गुप्ता चाहते तो वह गडकरी को बता सकते थे कि उनका दावा झूठा है. एसवीटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि स्कैनिया ने गडकरी को यह बस दो निजी कंपनियों के मार्फत उपहार में दी थी. ये कंपनियां हैं- ट्रांसप्रो मोटर्स और सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी. इसलिए एनएमसी को मिली एथेनॉल चालित बस की बात का कोई मतलब नहीं है. कारपोरेट मंत्रालय में दर्ज दस्तावेजों से स्पष्ट है कि सफेद मेट्रोलिंक एचडी वह स्कैनिया ग्रीन बस नहीं है जिसे कंपनी ने ट्रांसप्रो को दिया था और जो मुझे पूर्ति सोलर सिस्टम के परिसर में दिखाई दी थी.

गडकरी का दावा गुमराह करने वाला है इसके अन्य साक्ष्य भी हैं. स्कैनिया की पहली एथेनॉल बस पायलेट प्रोजेक्ट के लिए अगस्त 2014 में नागपुर लाई गई थी. यानी मेट्रोलिंक द्वारा ट्रांसप्रो को बेचे जाने से दो साल पहले. इसके अलावा कारपोरेट मंत्रालय में उपलब्ध दस्तावेज, जो स्कैनिया इंडिया ने जमा किए हैं, बताते हैं कि वित्त वर्ष 2014-15 में फॉक्सवैगन फाइनेंस के साथ कोई लेन-देन नहीं हुआ था इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि गडकरी ने किस आधार पर यह दावा किया कि फॉक्सवैगन फाइनेंस ने पायलट बस के लिए स्कैनिया को 85 लाख रुपए का लोन दिया था. स्कैनिया कमर्शियल और फॉक्सवैगन फाइनेंस के बीच पहला लेन-देन वित्त वर्ष 2016 में हुआ था जो 17 लाख 17 हजार रुपए का था और वित्त वर्ष 2019 के लिए दायर दस्तावेज में दस करोड़ 99 लाख रुपए के लेन-देन का उल्लेख है. इसके अलावा एनएमसी द्वारा संचालित एथेनॉल चालित ग्रीन बसें स्कैनिया के मॉडल से संभवतः बिल्कुल अलग हैं. दिसंबर 2016 में गडकरी ने एनएमसी की “अपनी बस” परियोजना का शुभारंभ किया. इस परियोजना के तहत 195 बसें चलाई जानी थी जिनमें 55 एथेनॉल चालित ग्रीन बस थीं जिनकी निर्माता स्कैनिया है. इन बसों में से एक के पंजीकरण प्रमाण पत्र में मॉडल का नाम स्कैनिया सिटी एलई 270 4X2 है. यानी यह मेट्रोलिंक बस नहीं है. जब यह पूछा गया कि क्या एनएमसी की सभी ग्रीन बसें एक ही मॉडल की हैं तो स्कैनिया के प्रवक्ता डेनियल्ससन ने जवाब दिया, “आप एथेनॉल बस मॉडल के बारे में सही हैं. मेट्रोलिंक का कोई एथेनॉल मॉडल नहीं है.”

एसटीवी की रिपोर्ट के एक दिन बाद गडकरी के ऑफिस ने ट्वीट करते हुए आरोपों को दुर्भावनापूर्ण, मनगढंत और आधारहीन बताया और दावा किया कि किसी भी स्कैनिया बस की खरीद और बिक्री से उनका संबंध नहीं है. गडकरी के कार्यालय ने यह भी कहा कि यह मामला स्कैनिया का आंतरिक मामला है और स्कैनिया के प्रवक्ता के बयान से “स्पष्ट है कि श्री गडकरी और उनके परिजनों का स्कैनिया बस खरीद से कोई लेना-देना नहीं है और न ही किसी कंपनी या व्यक्ति से जो खरीद या बिक्री में जुड़ा है.”

जून 2017 को सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने अपनी फेसबुक वॉल में एक फोटो पोस्ट की थी जिसमें गडकरी लाल चमड़े के सीटों वाली बस पर बैठे नजर आ रहे हैं. उनके साथ उनके बेटे सारंग और महाराष्ट्र बीजेपी के महासचिव चंद्रशेखर बवनकुले भी हैं.

कारवां की पड़ताल से सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी और सारंग गडकरी और निखिल गडकरी द्वारा संचालित मानस एग्रो इंडस्ट्रीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और सियान एग्रो इंडस्ट्रीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के बीच संबंधों का एक गहरा संजाल उभर कर आता है. मानस एग्रो चीनी, बिजली, डिस्टलरी, बायोफर्टिलाइजर और एलपीजी का कारोबार करती है और सियान एग्रो मसाले, खाने का तेल, होम केयर, सैनिटेशन और कृषि उत्पादों का व्यवसाय करती है. नितिन गडकरी अपने बेटों के कारोबारी कौशल का बखान करते नहीं अघाते. फरवरी 2018 में हिंगणा में आयोजित एमआईडीसी इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के स्थापना दिवस कार्यक्रम में उन्होंने बताया था कि सारंग और निखिल के कारोबार का टर्नओवर 11 करोड़ रुपए है और दोनों का इरादा इसे पांच हजार करोड़ रुपए करना है.

गडकरी ने 2020 दिसंबर में एमआईडीसी नागपुर की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि उनके बेटों के कारोबार का टर्नओवर 1300 करोड़ रुपए हो गया है. सारंग और निखिल 2016 से अपनी-अपनी कंपनियों के निदेशक हैं. सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी, मानस एग्रो और सियान एग्रो से जुड़ी कंपनियों का व्यापक नेटवर्क गडकरी के व्यापार साम्राज्य की सफलता में भूमिका निभाता है. एक दूसरे से जुड़े वित्तीय विवरण उन जानकारियों पर कई सवाल खड़े करते हैं जो कारपोरेट मंत्रायल में उपलब्ध हैं. इनमें से कई कंपनियों ने लगातार घाटा दिखाया है और अपनी नकारात्मक कीमत बताई है. इनके लेन-देन में असुरक्षित लोन भी हैं जिनके चलते कई स्वतंत्र ऑडिटरों ने सवाल खड़े किए हैं. ये लेन-देन इस तथ्य के कारण और भी शंकास्पद हो जाते हैं कि इन कंपनियों के कई निदेशक एक ही लोग हैं. अंततः कंपनियों का नेटवर्क और उनका लेन-देन यह दिखाता है कि सारंग और निखिल का व्यवसाय साम्राज सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से जुड़ा है जो गडकरी के दावों का पूरी तरह से खंडन करता है. सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी एंड मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड नागपुर स्थित कंपनी है जो जून 2015 में स्थापित हुई थी. इसे प्रियदर्शन पांडे और गौरी पांडे दंपति चलाते हैं. ये दोनों कंपनी के निदेशक हैं. कारपोरेट मंत्रालय के दस्तावेजों के मुताबिक इस कंपनी का 100 फीसदी टर्नओवर “एकोमेडेशन और फूड सर्विसेज” से आता है. दस्तावेजों में उल्लेखित कंपनी का वित्तीय लेन-देन कंपनी की मजबूत तस्वीर पेश नहीं करता.”

कारपोरेट मंत्रालय में उपलब्ध सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के पांच वर्ष के वित्तीय विवरणों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2017 को छोड़कर अन्य सभी सालों में उसे लगातार नुकसान हुआ है. वित्त वर्ष 2017 वही वर्ष है जब इस कंपनी ने स्कैनिया मेट्रोलिंक खरीदी थी जिसके लिए उसे मानस एग्रो से 35 लाख रुपए का असुरक्षित लोन प्राप्त हुआ था. यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों यह लोन उसे दिया गया और क्यों गडकरी का कार्यालय दावा कर रहा है कि गडकरी परिवार का इस कंपनी से कोई लेना-देना नहीं है जबकि गडकरी के बेटे की कंपनी ने उसे इतना बड़ा असुरक्षित लोन दिया है. मानस एग्रो और सारंग गडकरी ने सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के साथ अपके संबंधों और असुरक्षित लोन के संबंध में मेरे द्वारा भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया.

सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने लगातार अपनी नेट वर्थ या शुद्ध संपत्ति नकारात्मक दिखाई है और वित्त वर्ष 2020 में इस कंपनी की देनदारियां उसकी संपत्ति की तुलना में 10 लाख 48 हजार रुपए अधिक थी. इसके बावजूद वह कंपनी से जुड़े लोगों और निदेशकों को बार-बार लोन देती रही. वित्त वर्ष 2020 की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी ने निदेशक प्रियदर्शन को 20 लाख 21 हजार रुपए का लोन दिया है. ऑडिटर ने लिखा है, “लोन का उद्देश्य नहीं बताया गया है और प्रबंधन द्वारा दिया गया कारण संतोषजनक नहीं है.”

उस साल सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने एक अन्य कंपनी श्रीनिवास हॉस्पिटैलिटी एंड मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को बिना ब्याज का चार लाख रुपए का लोन दिया था. प्रियदर्शन और गौरी श्रीनिवास हॉस्पिटैलिटी के निदेशक हैं और कंपनी को मानस एग्रो से सहायता मिलती रही है. वित्त वर्ष 2019 में मानस एग्रो ने श्रीनिवास हॉस्पिटैलिटी को 18 लाख रुपए का असुरक्षित लोन दिया था और वित्तीय विवरण में श्रीनिवास हॉस्पिटैलिटी ने उस लोन को सहायक कंपनी और समान प्रबंधन से प्राप्त लोन बताया है. विवरण में लोगों के नाम नहीं हैं लेकिन लगता है कि मानस एग्रो और श्रीनिवास हॉस्पिटैलिटी का प्रबंधन समान है. मानस एग्रो के वित्तीय विवरण में सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी और श्रीनिवास हॉस्पिटैलिटी का नाम नहीं है. सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी का निखिल गडकरी की सियान एग्रो के साथ संबंध है. वित्त वर्ष 2019 के सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के वित्तीय विवरणों में दिखाया गया है कि कंपनी को एमएम एक्टिव साइ-टैक कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड से 416502 रुपए प्राप्त होने हैं. एमएम एक्टिव के पास दिसंबर 2020 में सियान एग्रो के 100000 शेयर थे.

गडकरी के बेटों से सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को जोड़ने वाली एक और कंपनी है सैक-वन इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड. सैक-वन इंफ्रास्ट्रक्चर के निदेशक केवल पटेल सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के 50 फीसदी शेयरधारक हैं और वह पूर्व में सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के निदेशक रह चुके हैं. सैक-वन का और उसके निदेशकों का मानस एग्रो और सियान एग्रो और साथ ही पूर्ति सोलर सिस्टम्स से संबंध है.

2014 में नागपुर में स्कैनिया एथेनॉल चालित बस का शुभारंभ करते गडकरी. पीटीआई

सैक-वन इंफ्रास्ट्रक्चर की वित्त वर्ष 2019 की बैलेंसशीट के अनुसार कंपनी पर सियान एग्रो का तीन करोड़ 33 लाख रुपए का कर्ज है जो अगले साल उसने चुका दिया. सैक-वन इंफ्रास्ट्रक्चर का सियान एग्रो के प्रति चालू देनदारी वित्त वर्ष 2019 में 2 लाख 50 हजार रुपए थी जो अगले साल बढ़कर 96 लाख 82 हजार रुपए हो गई. वित्त विवरणों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2019-20 में पूर्ति सोलर सिस्टम्स का उस पर एक करोड़ 94 लाख रुपए का कर्ज है जो उसने शॉर्ट टर्म लोन के रूप में दिखाया है.

सैक-वन इंफ्रास्ट्रक्चर ने पूर्ति मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड से एक करोड़ 26 लाख रुपए का एक और शॉर्ट टर्म लोन लिया है. दिसंबर 2020 में पूर्ति मार्केटिंग के पास सियान एग्रो के 45 लाख 20 हजार रुपए के शेयर अथवा 16.15 प्रतिशत शेयर थे. सैक-वन के एक अन्य निदेशक अमेया किरण फलटंकर पूर्ति कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं और पूर्ति कॉन्ट्रैक्ट के पास सियान एग्रो के 38 लाख 70 हजार रुपए के शेयर हैं जो 13.83 प्रतिशत शेयर होते हैं.

गडकरी के बेटों और सैक-वन इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच दूसरा महत्वपूर्ण संबंध एक कंपनी अविनाश फ्यूल्स प्राइवेट लिमिटेड के जरिए भी है. वित्त वर्ष 2019 में अविनाश फ्यूल्स ने सैक-वन को 9 करोड़ 70 लाख रुपए उधार दिए थे. अविनाश फ्यूल्स ने मानस एग्रो और सियान एग्रो में निवेश किया है. मानस में अविनाश के 3857 शेयर हैं जिनकी कीमत वित्त वर्ष 2019 के खातों में 78 करोड़ 13 हजार रुपए बताई गई है. दिसंबर 2020 में सियान एग्रो के 26.13 प्रतिशत शेयर अविनाश के पास थे जिनकी कीमत 17 करोड़ 74 लाख रुपए थी. गडकरी को सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से जोड़ने वाली कंपनियों का सघन नेटवर्क है कारपोरेट मंत्रालय के डेटाबेस की खुदाई करने पर नए-नए संबंध निकलते जाते हैं. ये कंपनियां गडकरी के दावों का स्पष्ट खंडन करती हैं. यहां दो अन्य कंपनियों का जिक्र करना बहुत जरूरी है. इनके नाम हैं : फनसिटी रिजॉर्ट्स एंड रीक्रिएशन प्राइवेट लिमिटेड और ग्रीनएज कंस्ट्रक्शंस प्राइवेट लिमिटेड.

वही प्रियदर्शन, जो सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी एंड और श्रीनिवास हॉस्पिटैलिटी के निदेशक हैं, वह फनसिटी रिजॉर्ट के भी निदेशक हैं. यह कंपनी उल्लेखित सभी कंपनियों में सबसे बुरा प्रदर्शन कर रही है. फनसिटी ने लगातार अपनी शुद्ध संपत्ति शून्य या नकारात्मक दिखाई है. इसके ज्यादातर लेन-देन अपारदर्शी हैं. इसमें वित्त वर्ष 2020 में एक अज्ञात स्रोत से एक करोड़ 30 लाख रुपए का लोन भी शामिल है.

उस साल फनसिटी रिजॉर्ट को ग्रीनएज कंस्ट्रक्शन से, जो सियान एग्रो की प्रमोटर है, 75 लाख रुपए का लोन मिला था. दिसंबर 2020 में ग्रीनएज के पास सयान एग्रो के 3.09 फीसद शेयर थे. वित्त वर्ष 2019 के वित्त विवरण बताते हैं कि मानस एग्रो के साथ उसने पिछले साल और उस साल वित्तीय लेन-देन किया था. फनसिटी के एक और निदेशक संदीप मेंडजोगे, जो अविनाश फ्यूल्स और पूर्ति सिस्टम्स के भी निदेशक हैं, उनके पास वित्त वर्ष 2019 में ग्रीनएज के 10 हजार शेयर थे.

शुद्ध संपत्ति अथवा राजस्व या लाभ के मामले में मानस एग्रो ने तीव्र तरक्की की है. वित्त वर्ष 2017 में कंपनी का शुद्ध लाभ 9 करोड़ 64 लाख रुपए था जो इससे पहले के वित्त वर्ष में मात्र 46 लाख 16 हजार रुपए था. वित्त वर्ष 2020 में कंपनी ने 16 करोड़ 93 लाख रुपए शुद्ध लाभ कमाया. इसी तरह वित्त वर्ष 16 में कंपनी का राजस्व 524.10 करोड़ रुपए था जो वित्त वर्ष 20 में बढ़कर 668.71 करोड़ रुपए हो गया. इसी दौरान कंपनी की शुद्ध संपत्ति 40 प्रतिशत बढ़कर 478.76 करोड रुपए हो गई.

इसी प्रकार सियान एग्रो ने भी तरक्की की है. वित्त वर्ष 2017 में उसका राजस्व 112.80 करोड रुपए था जो वित्त वर्ष 2020 में बढ़कर 213.97 करोड रुपए हो गया. वित्त वर्ष 2017 में उसे एक करोड़ रुपए से अधिक का मुनाफा हुआ था जो वित्त वर्ष 2019 में बढ़कर 4.16 करोड़ रुपए हो गया.

सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी, मानस एग्रो और सियान एग्रो से जुड़ी कंपनियों के जाल की पड़ताल करने से यह समझना मुश्किल हो जाता है कि गडकरी ने क्यों कहा कि उनका बस से जुड़ी कंपनियों से कोई संबंध नहीं है. गडकरी उनके बेटे और इन कंपनियों के अधिकारियों को भेजे गए ईमेलों का जवाब नहीं मिला. बस या गडकरी के साथ उनके कारोबार के बारे में प्रियदर्शन से पूछे गए सवालों का जवाब भी मुझे नहीं मिला. पूर्ति सोलर सिस्टम्स के निदेशक मेंडजोगे ने भी कंपनी के परिसर में बस की उपस्थिति से संबंधित मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया.

उस बस में एक तीसरा स्टीकर भी लगा था जिस पर लिखा था ऑरेंज टूर्स एंड ट्रैवल्स. इस कंपनी की वेबसाइट बंद है लेकिन वेबसाइट की कैश्ड कॉपी इंटरनेट पर उपलब्ध है जिसमें प्रियदर्शन को इसका मालिक बताया गया है.


कौशल श्रॉफ स्वतंत्र पत्रकार हैं एवं कारवां के स्‍टाफ राइटर रहे हैं.