टेनी के पद पर बने रहते लखीमपुर किसान हत्याकांड की निष्पक्ष जांच असंभव

गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने 7 जुलाई 2021 को अपने आधिकारिक आवास पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. पिछले साल अक्टूबर में टेनी ने कृषि कानूनों का विरोध करने वालों को धमकी दी जिसके कुछ दिनों बाद उनके बेटे के काफिले ने लखीमपुर खीरी में प्रदर्शनरत किसानों को कुचल दिया. विपक्षी नेताओं ने टेनी को मंत्रीपद से हटाने की मांग की है. लेकिन घटना के तीन महीने बाद भी मोदी चुप हैं. पीआईबी
07 January, 2022

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी कांड के आरोपी “सही सलामत खुला घूम रहे” हैं क्योंकि “राजनीतिक दबदबे के चलते पुलिस उनका कुछ नहीं कर सकती.” शिव कुमार त्रिपाठी ने 8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में पेश अपने आवेदन में यह बात कही. त्रिपाठी ने इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी जिसके चलते शीर्ष अदालत ने मामले की निगरानी शुरू की है. मामले का मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बेटा है.

टेनी ने 2020 में कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को धमकाया था जिसके कुछ दिनों बाद उनके बेटे के काफिले की गाड़ियों ने लखीमपुर खीरी में प्रदर्शन कर रहे किसान को रौंद दिया था. मामले में दर्ज पहली सूचना रिपोर्ट में कहा गया था कि यह घटना टेनी और उनके बेटे दोनों द्वारा "नियोजित साजिश" का नतीजा थी. लेकिन इसमें केवल आशीष को आरोपी बनाया है. सुप्रीम कोर्ट में अपने 8 नवंबर को दायर आवेदन में त्रिपाठी ने लिखा था कि टेनी पर, जिसे उन्होंने "मुख्य आरोपी/अपराधी" के रूप में वर्णित किया है, "उक्त हत्या में मिलीभगत" के लिए कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.

त्रिपाठी ने कहा कि अगर टेनी मंत्री बने रहते हैं तो जांच "निष्पक्ष" नहीं होगी. ऐसा मानने वाले वह अकेले नहीं हैं. विभिन्न दलों के कई विपक्षी नेताओं ने टेनी के पद पर बने रहने पर सवाल उठाया है और प्रधानमंत्री से उन्हें हटाने की मांग की है. यहां तक ​​कि संसद में भी इस मांग को लेकर विरोध हो चुका है. लेकिन घटना के तीन महीने बाद भी मोदी इस पर चुप हैं. यहां तक कि कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भी टेनी पर उनकी चुप्पी जारी है.

टेनी का मंत्री पद बने रहना मामले की जांच पर प्रश्नचिन्ह लगाता है. हत्याकांड के बाद से जारी सरकारी प्रेस विज्ञप्ति और पोस्ट स्वयं प्रदर्शित करते हैं कि एक मंत्री के रूप में राज्य के पुलिस प्रमुखों और केंद्रीय गृह सचिव से लेकर खुफिया अधिकारियों तक टेनी की पहुंच है. वास्तव में, टेनी जिस कुर्सी पर हैं ये सारे अधिकारी उनके अधीन आते हैं. हालांकि इससे फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने जांच को प्रभावित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया है लेकिन यह निश्चित रूप से जांच की निष्पक्षता पर संदेह पैदा करता है. इसके अलावा सत्ताधारी पार्टी का राज्य और केंद्रीय नेतृत्व एक शक्तिशाली मीडिया की सहायता से टेनी के पक्ष में घटना के इर्द-गिर्द कहानी को बुनता हुआ प्रदर्शनकारी किसानों और मामले के तथ्यों को बेशर्मी से गलत तरीके से पेश कर रहे हैं.

तीन महीने से अधिक के दौरान हुई कई घटनाओं ने जांच के बारे में इस तरह के संदेह को और बढ़ा दिया है. मसलन, टेनी की दूसरी पुलिस रिमांड पर उनसे सात अन्य आरोपियों के साथ पूछताछ की जानी थी. लेकिन, इससे पहले कि ऐसा हो पाता, उन्हें स्वास्थ्य आधार पर अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया. लगभग उसी समय मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल के प्रमुख उपेंद्र अग्रवाल को भी अदालत की अनुमति के बिना एक अलग पुलिस रेंज में स्थानांतरित कर दिया गया. मामले में अब तक के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पता चलता है कि वह इसको लेकर कुछ चिंतित है.

17 नवंबर को, इसने जांच की निगरानी के लिए उच्च न्यायालय के एक ऐसे पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त किया गया जिनका "राज्य में कोई आधार" नहीं है. यह मामला तब तक एक एसआईटी के नेतृत्व में था जिसमें मुख्य रूप से स्थानीय पुलिस शामिल थी. न्यायाधीशों ने सरकार को भारतीय पुलिस सेवा के तीन और अधिकारियों, जो उत्तर प्रदेश से न हों, के साथ अपनी स्थानीय जांच टीम को अपग्रेड करने का भी आदेश दिया. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उस दिन "जांच की धीमी गति, तरीके और परिणाम" पर अपनी चिंता व्यक्त की. त्रिपाठी ने मुझसे कहा, "अगर टेनी से पूछताछ नहीं की जाती है, तो हम जांच को अधूरा मानेंगे और टेनी से पूछताछ के आदेश के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक और आवेदन दायर करेंगे."

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गृह मंत्रालय के तीन राज्य मंत्रियों में टेनी रैंक में अमित शाह के बाद हैं. भारत का सारा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, आंतरिक खुफिया एजेंसियां ​​और आपदा प्रबंधन बल मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. गृह मंत्रालय का एक पुलिस विभाग है, जो अन्य बातों के अलावा, भारतीय पुलिस सेवा के सदस्यों के प्रदर्शन मूल्यांकनकर्ता के रूप में कार्य करता है. घटना के बाद से, उन्होंने पुलिस और खुफिया अधिकारियों के साथ कई आधिकारिक बैठकें की हैं, जो अगर चाहें तो आसानी से अपने पक्ष में जांच कर सकते हैं.

20 और 21 नवंबर को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के पुलिस मुख्यालय में आयोजित पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के राष्ट्रीय सम्मेलन में टेनी का बतौर अतिथि शामिल होना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. डीजीपी किसी राज्य का सर्वोच्च रैंक वाला पुलिस अधिकारी होता है और राज्य के पूरे पुलिस बल का प्रभारी होता है. आईजी दूसरे नंबर पर आता है. उपस्थित लोगों में पूरे भारत के कुल 62 डीजीपी और आईजीपी शामिल थे. खुफिया ब्यूरो के विभिन्न रैंकों के लगभग चार सौ अधिकारी भी सम्मेलन में शामिल हुए.

मेहमानों में मोदी, शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक अरविंद कुमार और गृह सचिव अजय भल्ला थे. 20 नवंबर को प्रियंका गांधी और वरुण गांधी -क्रमशः कांग्रेस और बीजेपी के राज्य प्रभारी-दोनों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर टेनी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. लेकिन मोदी बेफिक्र रहे और उन्होंने सम्मेलन में भागीदारी की. हालांकि उन्होंने टेनी के साथ मंच साझा नहीं किया. सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई तस्वीरों- अजय मिश्रा टेनी नामक एक फेसबुक अकाउंट पर- में टेनी को केंद्रीय गृह मंत्रालय के अन्य राज्य मंत्रियों, निसिथ प्रमाणिक और नित्यानंद राय से साथ सोफे पर बैठे हुए दिखाया गया है. शाह उनके बगल में एक सोफे पर बैठे थे. एक तस्वीर में टेनी एक पोडियम पर खड़े थे और उन्हें पुलिसकर्मियों की सलामी ली.

इधर, लखीमपुर खीरी कांड के बाद सरकार ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के माध्यम से शांति बनाए रखने का प्रयास किया. राज्य सरकार की ओर से शीर्ष अदालत के समक्ष दायर एक स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ रेंज से एक आईजीपी और एक अतिरिक्त डीजीपी, "कड़ी निगरानी" सुनिश्चित करने के लिए स्थल पर मौजूद थे. सरकार ने लिखा है कि "आईजीपी, पुलिस मुख्यालय की देखरेख में अन्य कर्मियों के बीच जमीन पर नौ अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, 11 पुलिस उपाधीक्षक, 20 स्टेशन-हाउस अधिकारी, रैपिड एक्शन फोर्स की दो कंपनियां और 200 कांस्टेबल तैनात किए गए थे.

मामले की जांच के लिए एसआईटी के गठन के तुरंत बाद पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बताया कि एक कैबिनेट मंत्री के सामने खड़े होने वाले पुलिस कर्मियों को दुविधा का सामना करना पड़ेगा. यादव ने पत्रकारों से कहा, "केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और उनके बेटे के खिलाफ आरोप लगे हैं, कृपया कोई मुझे समझाए कि अगर कोई पुलिस अधिकारी गृह राज्य मंत्री के घर जांच के लिए जाता है, तो उसे पहले गृह राज्य मंत्री को सलामी देनी होगी. और एक अधिकारी जो उन्हें सलाम करता है, वह मंत्री के परिवार की जांच कैसे करेगा?'' उसी हफ्ते, राहुल गांधी ने भी ट्वीट किया, "इस मंत्री को बर्खास्त न करके बीजेपी न्याय की प्रक्रिया में बाधा डाल रही है." किसान संघ के नेता राकेश टिकैत ने कई बार दोहराया है कि टेनी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी के तहत आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया जाना चाहिए. किसानों ने टेनी के इस्तीफे की मांग के लिए "रेल रोको" का भी आह्वान किया.

लेकिन केंद्र सरकार टेनी के साथ मजबूती से खड़ी होती दिख रही है. 29 अक्टूबर को शाह ने लखनऊ में आयोजित एक राजनीतिक रैली के दौरान टेनी, मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट और राज्य के पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के साथ मंच साझा किया और बीजेपी के कार्यकर्ताओं को अपने-अपने क्षेत्रों में सदस्यता अभियान चलाने को कहा. चूंकि राज्य का गृह विभाग भी बिष्ट के पास है इसलिए उत्तर प्रदेश पुलिस को उनके माध्यम से लखीमपुर खीरी मामले से संबंधित कोई भी फाइल पास करनी होगी. 

इससे पहले, 21 अक्टूबर को नई दिल्ली में राष्ट्रीय पुलिस स्मारक में श्रद्धांजलि समारोह में टेनी मुख्य अतिथि थे. वह अपने साथी राज्य मंत्री राय; आईबी निदेशक कुमार; केंद्रीय गृह सचिव भल्ला और दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना के साथ बैठे थे. मोदी सरकार ने अक्टूबर 2018 में ड्यूटी के दौरान शहीद हुए पुलिसकर्मियों के सम्मान में ग्रेनाइट पत्थर का एक बड़ा स्मारक बनाया था. विभिन्न पुलिस इकाइयां वर्ष में कम से कम एक बार वहां अपने-अपने स्मारकों का आयोजन करती हैं. दो दिन बाद, 23 अक्टूबर को, सीमा सुरक्षा बल, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है, ने स्मारक पर अपना श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया. यहां भी टेनी मुख्य अतिथि ​थे. सार्वजनिक कार्यक्रमों के अलावा टेनी ने गृह मंत्रालय की बैठकों में भी भाग लिया. 

यहां यह उल्लेखनीय है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो और केंद्रीय गृह सचिव सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करते हैं, जो शाह के बाद टेनी और दो अन्य राज्य मंत्रियों को अपना बॉस देखता है. हालांकि पुलिस व्यवस्था राज्य का विषय है लेकिन प्रत्येक राज्य पुलिस के शीर्ष पद, जैसे कि पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक और अधिकांश पुलिस अधीक्षक भारतीय पुलिस सेवा से आते हैं. आईपीएस की वेबसाइट के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय में पुलिस डिवीजन इसका "कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी" है. यह आईपीएस अधिकारियों के लिए "कैडर पुष्टिकरण, पैनल, प्रतिनियुक्ति, वेतन और भत्ते और अनुशासनात्मक मामलों" के लिए जिम्मेदार है. इसके अलावा, डिवीजन उनके वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन के प्रबंधन के लिए भी जिम्मेदार है जिसमें "प्रदर्शन, चरित्र, आचरण का आकलन" शामिल है. डिवीजन भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिए गए पदकों सहित विभिन्न प्रकार के पदकों के लिए आईपीएस अधिकारियों की उनके प्रदर्शन के आधार पर अनुशंसा करता है. इसलिए भले ही शीर्ष पुलिस अधिकारी अपनी-अपनी राज्य सरकारों के प्रति जवाबदेह हों, उनका प्रदर्शन, उनकी वृद्धि, पुरस्कार, वेतन और भत्ते केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. ऐसी व्यवस्था में टेनी का आईपीएस अधिकारियों और इसलिए राज्य पुलिस पर बहुत नियंत्रण होता है. अपग्रेड की गई एसआईटी में पांच आईपीएस अधिकारी हैं, जिनमें तीन अदालत द्वारा नियुक्त किए गए हैं.

केवल पुलिस अधिकारी ही नहीं खीरी का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद सदस्य होने के नाते टेनी नियमित रूप से जिले के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बातचीत करते दिखाई देते हैं. अक्टूबर के अंत में लखीमपुर खीरी में बाढ़ आ गई थी. अजय मिश्र टेनी के फेसबुक अकाउंट से जारी एक लाइव वीडियो के अनुसार 7 नवंबर को मंत्री व्यक्तिगत रूप से प्रभावित परिवारों को बाढ़ राहत सामग्री वितरित करने के लिए लखीमपुर खीरी की निघासन तहसील पहुंचे. घटना स्थल पर बाढ़ राहत वितरण केंद्र में टेनी ने उस जिले के सर्वोच्च रैंक वाले नागरिक अधिकारियों- निघासन तहसीलदार राकेश पाठक, निगम की डिप्टी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट श्रद्धा सिंह और जिला मजिस्ट्रेट महेंद्र बहादुर सिंह- के साथ मंच साझा किया. 2 दिसंबर को अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक अन्य लाइव वीडियो में, टेनी को फिर से लखीमपुर खीरी में कृषि नवाचार पर जिला मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट जैसे जिला प्रशासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों से लेकर कृषि अधिकारियों और कृषि ऋण संस्थानों के अधिकारियों के साथ मंच साझा करते हुए देखा गया था.

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लखीमपुर खीरी की घटना को अलग-अलग ढंग से पेश करने की कोशिश हुई और ऐसे कई प्रश्न हैं जो उस दिन मौकाए वारदात पर टेनी और बीजेपी कार्यकर्ताओं के गढ़े नैरेटिव के बारे में कोई जवाब नहीं देते हैं. लेकिन मीडिया में रिपोर्ट किए गए कई प्रत्यक्षदर्शियों के बयान आशीष और अन्य के खिलाफ किसानों को कुचलने के लिए प्राथमिकी में किए गए दावों का समर्थन करते हैं.

यह प्राथमिकी घटना के करीब 12 घंटे बाद 4 अक्टूबर को एक प्रदर्शनकारी किसान की शिकायत पर दर्ज की गई थी. शिकायतकर्ता जगजीत सिंह ने लिखा है कि किसान लखीमपुर खीरी में "जिले से किसानों को बाहर करने के बारे में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अजय मिश्रा टेनी द्वारा दी गई धमकी के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए एकत्र हुए थे." टेनी ने नरसंहार से कुछ दिन पहले पास के एक गांव पलिया में एक सभा में यह टिप्पणी की थी. उसने कहा था, "सुधार जाओ या मैं सुधार दूंगा. इसमें केवल दो मिनट लगेंगे." टेनी ने कहा था, 'मैं सिर्फ मंत्री या सांसद नहीं हूं. जो लोग जानते हैं कि चुने जाने से पहले मैं कौन था, वे जानते हैं कि मैं कभी चुनौती से नहीं भागता.

किसान 3 अक्टूबर को दोपहर लगभग 3 बजे इसके खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के बाद लौट रहे थे. प्राथमिकी में कहा गया है कि आशीष “बनबीरपुर से तीन गाड़ियों के काफिले में 15-20 लोगों के साथ आया, जिनके पास ​हथियार थे. आशीष मिश्रा उर्फ ​​मोनू ने अपनी थार महिंद्रा कार में बाईं सीट पर बैठकर भीड़ को कुचल दिया और उन पर गोली चला दी.'' प्राथमिकी में कहा गया है कि किसानों से टकराने के बाद वाहन संतुलन खो बैठे और गड्ढे में गिर गए, जिससे कई लोग घायल हो गए. मीडिया रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है कि आशीष भीड़ पर फायरिंग करते हुए घटनास्थल से "गन्ने के खेत में" "भाग गया".

कई प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा है कि आशीष और अन्य आरोपियों ने हंगामे के दौरान गोलियां चलाईं. जबकि किसानों ने कहा कि प्रदर्शनकारियों में से एक की मृत्यु गोली के घाव से हुई. हालांकि गोली का घाव दो पोस्टमार्टम रिपोर्टों में नहीं दिखा. लेकिन लखीमपुर खीरी कांड की जांच कर रहे विशेष जांच दल द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार, आशीष की एक राइफल और एक रिवॉल्वर सहित आरोपियों के पास से चार हथियार जब्त किए गए. जिला सरकार के एक वकील ने कथित तौर पर कहा, "फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी जांच के दौरान जब्त हथियारों पर फायरिंग के सबूत हैं." स्थानीय बीजेपी पार्षद सुमित जायसवाल, जो टेनी से जुड़े काफिले का हिस्सा थे, ने घटना के बारे में एक जवाबी शिकायत दर्ज की. लेकिन इस तथ्य के तीन महीने बाद भी उनके दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत मिलना मुश्किल है. अपनी शिकायत में, जायसवाल ने खुद को और अपने सहयोगियों को एक अप्रत्याशित घात लगाकर किए गए हमले के शिकार के रूप में चित्रित किया. उन्होंने लिखा कि विरोध कर रहे किसानों ने काफिले पर "लाठी और ईंटों, पत्थरों" से हमला किया, जिससे सामने वाले वाहन के चालक के सिर पर चोट लग गई, जिसके बाद उन्होंने कार को साइड में रोक दिया. जायसवाल ने यह भी दावा किया कि किसानों ने ड्राइवर को खींच लिया और "तलवारों और लाठियों" से उसकी पिटाई शुरू कर दी. इसके बाद कार सवार अन्य लोगों ने भागने की कोशिश की. हालांकि घटना के तुरंत बाद वायरल हुए वीडियो में स्पष्ट रूप से थार महिंद्रा बिना किसी उकसावे के किसानों को पीछे से रौंदते हुए दिखाई दे रही थी. जायसवाल की शिकायत पर “अज्ञात दंगाइयों” के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. फिर भी, घटना के बाद के सप्ताह में बीजेपी नेतृत्व ने अक्सर समाचार चैनलों की मदद से जिन्हें अक्सर गोदी मीडिया कहा जाता है, किसानों का विरोध करके जायसवाल की बात को प्रचारित किया.

घटना के बारे में मंत्री की अपनी कहानी काफी हद तक निर्विवाद रही है. घटना के करीब दो हफ्ते बाद टेनी ने पत्रकारों से कहा कि बीजेपी कार्यकर्ताओं की मौत के लिए पुलिस जिम्मेदार है. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि टेनी ने "आरोप लगाया कि पुलिस ने खुफिया इनपुट के बावजूद इलाके की उचित रेकी नहीं की ... मार्ग पर कोई बैरिकेड्स नहीं लगाया गया था." अभी तक इस तरह की कोई सूचना नहीं मिली है. लेकिन इससे एक और सवाल उठता है- टेनी को इन इनपुट्स के बारे में कब पता चला? अगर उन्हें घटना से पहले इसके बारे में पता था-चूंकि आईबी भी गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है-तो उनके कार्यकर्ताओं का काफिला उधर गया ही क्यों?

जबकि सरकार ने उन राजनीतिक नेताओं पर रोक लगा दी जो घटना के तुरंत बाद जिले के मृतक परिवारों से मिलने जाना चाहते थे, सरकार समर्थक समाचार एजेंसी एएनआई ने टेनी से बात की जिससे उन्हें घटना के बारे में अपनी बात को स्थापित करने में मदद मिली. 3 अक्टूबर को रात करीब 9.45 बजे एएनआई ने टेनी का एक "सेल्फ-मेड वीडियो" पोस्ट किया जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें तिकोनिया में उनके खिलाफ किसानों की भीड़ के बारे में पहले से जानकारी थी. टेनी ने कहा, “हमें पहले से ही इस बात की जानकारी थी कि कुछ किसान वहां शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन कर रहे हैं और काले झंडे दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, ऐसा इसलिए हुआ कि लोकतंत्र में इस तरह का विरोध सामान्य होता है... जब हम जगह पर पहुंच रहे थे, तो जिला प्रशासन ने हमारा रास्ता बदल दिया और हमें दूसरी तरफ से कार्यक्रम स्थल पर ले जाया गया. वीडियो में मिश्रा ने कहा कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता "उन्हें रिसीव करने जा रहे थे" और जब उन्हें "डायवर्सन" के बारे में पता चला तो वे "उस दिशा में आगे बढ़ने लगे." यदि टेनी को विरोध के बारे में पता था, उनका मार्ग बदल दिया गया था और बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी इसके बारे में पता था, तो उनसे जुड़ा काफिला प्रदर्शनकारी किसानों की ओर क्यों बढ़ा?

टेनी ने लखीमपुर खीरी में विरोध कर रहे किसानों को भी गलत तरीके से पेश किया और खुद को और अपने बेटे को पीड़ित के रूप में पेश किया. वीडियो में टेनी ने कहा कि "अराजकतावादी तत्व" किसानों के आंदोलन में घुस गए और नरसंहार के लिए उन्हें दोषी ठहराया. टेनी ने अपराध स्थल पर अपनी और अपने बेटे की उपस्थिति से इनकार किया. उन्होंने आगे कहा कि उनके तीन "कार्यकर्ता" और उनके "अपने ड्राइवर" इसमें मारे गए. उन्होंने कहा, "हमारी प्राथमिकी दर्ज होने के बाद, मैं खुद अदालत तक मामले को आगे बढ़ाऊंगा और उन्हें सजा दिलवाउंगा." टेनी ने कहा कि वह हत्या के आरोप में आईपीसी की धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराएंगे.

एक घंटे बाद रात करीब 11 बजे एएनआई ने टेनी का एक और सेल्फ मेड वीडियो अपलोड किया. उन्होंने कहा, “किसानों के बीच बदमाश छिपे थे. किसान आंदोलन की शुरुआत के बाद से, बब्बर खालसा जैसे कई आतंकवादी संगठन देश में अराजक स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं ... मुझे लगता है यह घटना उसी का परिणाम थी." लखीमपुर खीरी कांड में प्राथमिकी दर्ज होने से पहले ही टेनी ने प्रतिबंधित संगठन को जिम्मेदार ठहराया था. घटना के तीन महीने बाद भी मामले की जांच के सिलसिले में बब्बर खालसा के नाम का कहीं जिक्र नहीं किया गया, यहां तक ​​कि सरकारी वकीलों ने भी नहीं. एएनआई ने वीडियो में टेनी के दावे पर सवाल नहीं उठाया. उसी रात एएनआई ने आशीष मिश्रा को भी जगह दी. उन्होंने अपने पिता की बताई कहानी को थोड़ा कुंद कर दिया: "कुछ अनियंत्रित तत्वों ने ... हमारे कार्यकर्ताओं पर हमला किया. उनमें से चार-पांच को मार डाला. मैं दो दिनों से अपराध स्थल पर नहीं गया हूं." इस वीडियो को छोड़ दें तो 9 अक्टूबर तक आशीष का कोई पता नहीं चला था.

नरसंहार के एक हफ्ते बाद ही बीजेपी का नेतृत्व टेनी का बचाव करता नजर आया. लखीमपुर खीरी में हुई मौतों का जिक्र करते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में कहा, "कोई भी कानून से ऊपर नहीं है." लेकिन उन्होंने तुरंत एक टिप्पणी की जो टेनी की बात के पक्ष में थी. नड्डा ने कहा, "एक नया चलन विकसित हो रहा है- असहमति का. उस पर भी हमें विचार करना चाहिए. यह भी चिंता का विषय है. कई घटनाएं हो रही हैं- राह चलते गाड़ी पर हमला हो रहा है.” उन्होंने कहा, "मैं इस घटना का जिक्र नहीं कर रहा हूं." 25 सितंबर को पलिया में किसानों के खिलाफ टेनी की टिप्पणी का जिक्र करते हुए बिष्ट ने न्यूज18 को दिए एक साक्षात्कार में कहा, "राजनीतिक भाषण और धमकियों में अंतर होता है." उन्होंने कहा, "एक व्यक्ति अपने देश, समय और परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक बयान देता है. इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए." उन्होंने यह भी कहा कि घटना के बाद मृतक के परिवारों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे कई विपक्षी नेता "वास्तव में हिंसा और दंगे में शामिल हो सकते हैं."

4 अक्टूबर को बीजेपी के आईटी सेल के राष्ट्रीय प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया कि मृतक कार्यकर्ताओं में से एक के परिवार के अनुसार प्रदर्शनकारी किसान नेता तजिंदर सिंह विर्क के समाजवादी पार्टी के साथ संबंध थे. मालवीय ने लिखा, "सपा और कांग्रेस विरोध के नाम पर लखीमपुर में राजनीति कर रहे हैं." बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा और उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और राज्य के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह- दोनों ने विपक्ष पर इस घटना को लेकर राजनीति करने का आरोप लगाया है. जबकि इस घटना में टेनी की भागीदारी पर कोई टिप्पणी नहीं की.

लखीमपुर खीरी पर मोदी की चुप्पी साफ है. घटना के एक दिन बाद 5 अक्टूबर को उन्होंने आजादी के 75 वें वर्ष का जश्न मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम के लिए लखनऊ का दौरा किया. उन्होंने उस घटना के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा. इसने कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय मीडिया में तूफान ला दिया था. समाजवादी पार्टी के नेता यादव ने ट्वीट किया, “उत्तर प्रदेश किसानों की हत्या के शोक में है. यह जश्न मनाने का समय नहीं है." उस दिन, मोदी ने कहा था, "मुझे यह विचार पसंद आया कि देश भर के विशेषज्ञ एक साथ आने वाले हैं और नए शहरी भारत पर विचार-मंथन करेंगे." जब मोदी ने विशेषज्ञों के लखनऊ आने के विचार की सराहना की तो नेताओं को लखीमपुर खीरी पहुंचने से रोका जा रहा था.

अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में अमेरिका के आधिकारिक दौरे के दौरान हार्वर्ड केनेडी स्कूल में हुई बातचीत में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मोदी की चुप्पी के बारे में पूछा गया. सीतारमण ने कहा कि घटना "निंदनीय" है. लेकिन उन्होंने केवल इस तरह के मुद्दों को न उठाने के लिए कहा "क्योंकि यह एक ऐसा राज्य है जहां बीजेपी सत्ता में है." उन्होंने कहा, "मेरे कैबिनेट सहयोगी का एक बेटा शायद मुश्किल में है और वह यह भी मानती हैं कि वह उन्होंने ही किया है और किसी और ने नहीं." तब तक मीडिया ने आशीष और टेनी के पलिया में दिए भाषण के खिलाफ गवाहों की गवाही पर सूचना दी थी. विरोध कर रहे किसानों का जिक्र करते हुए सीतारमण ने यह भी कहा, "हमें यह नहीं बताया गया है कि वे किस बात का विरोध कर रहे हैं और मंत्री आज भी बात करने को तैयार हैं." यह एक झूठ था क्योंकि जनवरी 2021 तक इस मुद्दे पर किसान संघ की सरकार के साथ 11 दौर की बातचीत हो चुकी थी.

इस बीच, टेनी ने यह दिखाने की कोशिश की कि राज्य की बीजेपी सरकार अपनी जांच में निष्पक्ष है. उन्होंने 8 अक्टूबर को पत्रकारों से कहा, "अगर यह कोई अन्य राजनीतिक दल होता, तो शायद मेरे पद के कारण प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की जाती."

प्राथमिकी दर्ज होने में 12 घंटे लग गए- इन 12 घंटों में सोशल मीडिया पर भारी आक्रोश देखा गया क्योंकि विरोध करने वाले किसानों के माध्यम से उनसे जुड़े एक काफिले का वीडियो वायरल हो गया था. किसी भी तरह से प्राथमिकी दर्ज करना निष्पक्षता का संकेत नहीं था बल्कि घटना के तुरंत बाद शुरू हुए मुखर विरोध को रोकने के लिए एक दांव था. दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान संगठनों ने तुरंत देश भर के सभी जिलाधिकारियों के कार्यालयों के बाहर देशव्यापी विरोध का आह्वान किया. काशी, प्रयागराज, वाराणसी, मेरठ सहित पूरे उत्तर प्रदेश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और यहां तक ​​कि पंजाब के मोहाली सहित बाहर भी और शिमला हिमाचल प्रदेश में. उत्तर प्रदेश सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 लागू कर दी. उसने राजनीतिक नेताओं के लिए हेलीकॉप्टरों की लैंडिंग पर भी प्रतिबंध लगा दिया.

स्थिति थोड़ी हल्की तब हुई जब प्रशासन ने किसान नेता टिकैत के हस्तक्षेप के बाद मृतक किसान परिवारों द्वारा उठाई गई कुछ मांगों को पूरा किया. इसके बाद, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने सुझाव दिया कि वह चाहते हैं कि इस मामले पर राजनीतिक ध्यान हट जाए. उन्होंने 4 अक्टूबर को ट्वीट किया , ''किसानों और प्रशासन के बीच समझौता हो गया है. राजनीतिक गिद्ध जो अवसर की तलाश में थे, उन्हें अपने वातानुकूलित कमरों में लौट जाना चाहिए.''

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पिछले तीन महीनों के दौरान, राज्य पुलिस और राज्य के वकील मामले में टेनी के पक्ष में दिखाई दिए हैं. राज्य सरकार ने इस मामले में कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में केवल एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है. सुनवाई के दौरान ही जब अदालत ने पूछताछ की तो उनकी जांच में खामियां नजर आईं.

याचिकाकर्ता त्रिपाठी ने मुझे बताया कि राज्य सरकार ने उनके साथ केवल 7 अक्टूबर को दायर अपनी पहली स्थिति रिपोर्ट साझा की थी. उन्होंने कहा कि मामले में प्रगति जानने के लिए उन्हें अदालत की सुनवाई पर निर्भर रहना होगा. 8 नवंबर को त्रिपाठी ने न्यायाधीशों के सामने इसे उठाया कि उन्हें मामले में दायर सभी स्थिति रिपोर्ट प्रदान की जानी चाहिए.

पहली स्थिति रिपोर्ट में अन्य बातों के अलावा, 33 वर्षीय पत्रकार रमन कश्यप की मृत्यु के बारे में विवरण शामिल था. एसआईटी ने बीजेपी कार्यकर्ता जायसवाल द्वारा दर्ज प्राथमिकी में उनका नाम शामिल किया था. कश्यप के परिवार ने शुरू से ही यह दावा किया है कि काफिले ने उन्हें कुचला, न कि किसानों ने पीट-पीटकर मार डाला. 8 नवंबर को सरकारी वकील ने सुप्रीम कोर्ट के सामने स्वीकार किया कि "किसानों और पत्रकार को कार से कुचला गया था." अदालत ने कहा कि यह धारणा दी गई थी कि कश्यप को पीट-पीटकर मार डाला गया था, जो जायसवाल की कहानी से मेल खाती है. यह अंतर नड्डा के 8 अक्टूबर के बयान के साथ असंगत था कि लखीमपुर खीरी मामले में "पेशेवर और वैज्ञानिक जांच" की जाएगी. 8 नवंबर की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों में से एक ने राज्य के वकील हरीश साल्वे से कहा, "यही कारण है कि निगरानी की आवश्यकता है, वह निर्दोष पत्रकार, उसकी मौत का कारण पूरी तरह से अलग था जिसे पेश करने की मांग की गई थी." अदालत ने कहा कि वह मामले में "निष्पक्षता" की जांच की निगरानी के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों और बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या के लिए दायर दो मामलों में "सबूतों का कोई अंतर नहीं है" एक पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति कर रही है. सरकार द्वारा दायर नवीनतम स्थिति रिपोर्ट को देखने के बाद, पीठ ने कहा, "प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि एक विशेष आरोपी को लाभ दिया जाना है."

स्वयं अभियोजक होने के बावजूद, साल्वे अदालत की सुनवाई की शुरुआत से ही प्रतिवादियों का पक्ष लेते हुए प्रतीत होते हैं. एक जज ने साल्वे से पूछा कि सिर्फ आशीष का फोन ही क्यों जब्त किया गया. साल्वे ने अदालत से कहा, "दूसरों ने कहा है कि उनके पास फोन नहीं थे." यह एक झूठ है जिसका जवाब पुलिस के रिकॉर्ड में मिल सकता है. जायसवाल ने अपनी प्राथमिकी में लिखा है कि उनके पास "दो मोबाइल थे जिनके नंबर 8081905100/9792189684 थे और दूसरे फोन सैमसंग ए70 में सिम नहीं था." जायसवाल किसानों की प्राथमिकी में भी आरोपी है और फिलहाल न्यायिक हिरासत में है.

8 अक्टूबर को अदालत ने बताया कि पुलिस ने आशीष को पुलिस स्टेशन में पेश होने के लिए नोटिस भेजा है. भले ही उस पर हत्या का आरोप लगाया गया हो लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया गया था. साल्वे ने जवाब दिया कि किसानों ने "कहा कि गोली लगने का आरोप था लेकिन पोस्टमॉर्टम में गोली लगने की बात नहीं है." भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जो बेंच पर थे, ने कहा, "यह आरोपी को हिरासत में नहीं लेने का एक आधार है?"

“आरोप 302 का है. उसके साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा हम अन्य मामलों में आरोपियों के साथ करते हैं,” रमण ने सुनवाई के दौरान कहा . साल्वे ने आरोप को कम करने की कोशिश की. उन्होंने उत्तर दिया, "संभवतः 302." सीजेआई ने साल्वे को याद दिलाया कि "चश्मदीद गवाह थे." अगले दिन आशीष ने लखीमपुर खीरी में पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. करीब बारह घंटे की पूछताछ के बाद शाम को उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

21 अक्टूबर को न्यायाधीशों ने साल्वे से पूछा कि उस समय के 44 गवाहों में से केवल चार के बयान मजिस्ट्रेट के सामने क्यों दर्ज किए गए. जिस पर साल्वे ने कहा कि ऐसा दशहरे की छुट्टियों के कारण हुआ है. सीजेआई ने जवाब दिया, "दशहरा की छुट्टी और आपराधिक अदालतों के बीच क्या संबंध है?" बेंच ने कहा, 'हमें लगता है कि आप अपने पैर पीछे खींच रहे हैं. अदालत चाहती थी कि बयान जल्द से जल्द मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए जाएं क्योंकि इसका पुलिस के सामने दर्ज बयानों की तुलना में अधिक मूल्य होता है.

अन्य घटनाओं ने भी जांच पर संदेह जताया. 22 अक्टूबर को - अदालत द्वारा चेतावनी दिए जाने के बाद - एसआईटी ने आशीष को उसकी गिरफ्तारी के बाद दूसरी बार दो दिन के रिमांड पर लिया. शुक्रवार की शाम को आशीष, अंकित दास, शेखर भारती और लतीफ को रिमांड पर लिया गया था. सुबह से ही जायसवाल, शिशुपाल, सत्य प्रकाश त्रिपाठी और नंदन सिंह पहले से ही रिमांड पर थे. हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, जांच "के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब आशीष मिश्रा को पहले से तीन दिनों के लिए रिमांड में लिया गया था तभी उसके पास कई प्रश्नों का उत्तर नहीं था. उन्होंने कहा कि आशीष मिश्रा और तीन अन्य को चार अन्य आरोपियों के सामने जिरह करने के लिए हिरासत में लिया गया था. लेकिन आशीष को कथित तौर पर स्वास्थ्य संबंधी कारणों से इलाज के लिए शनिवार शाम को वापस जिला जेल भेज दिया गया. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, रविवार की सुबह जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने आशीष की जांच की और दो दिन की पुलिस हिरासत में डेंगू से संक्रमित पाए जाने के बाद “शूगर लेवल गंभीर स्तर” पर होने के कारण उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया. (16 अक्टूबर को, फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट की गई तस्वीरों के अनुसार, टेनी ने लखीमपुर-खीरी जिला अस्पताल के डॉक्टरों और पैरामेडिक्स को कोविड से संबंधित चिकित्सा उपकरण वितरित किए.) हिंदुस्तान टाइम्स ने बताया कि “एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि आशीष मिश्रा की बीमारी से जांच बाधित हो गई थी. सात अन्य आरोपियों को उनके साथ रिमांड पर लेने से पहले जांचकर्ता उसकी जिरह जारी रखने में असमर्थ थे. उन्होंने कहा कि बीमारी के कारण शनिवार को भी मिश्रा जिरह में शामिल नहीं हो सका.

22 अक्टूबर को उप महानिरीक्षक उपेंद्र अग्रवाल, जो 5 अक्टूबर से एसआईटी का नेतृत्व कर रहे थे, को भी लखनऊ रेंज से देवीपटना रेंज में डीआईजी के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया था. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में अज्ञात सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अग्रवाल का नया कार्यालय लखीमपुर खीरी से 200 किलोमीटर दूर है और "उनके लिए रोजाना लखीमपुर खीरी आना और जांच की निगरानी करना संभव नहीं होगा.” त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी प्रस्तुति में कहा कि अग्रवाल के स्थानांतरण "राजनीतिक" है और यह "गंभीर चिंता का विषय" है.

पुलिस ने सिंह की ओर से दर्ज कराई गई प्राथमिकी में मंत्री के बेटे और जायसवाल समेत 13 लोगों को गिरफ्तार किया है. जायसवाल की शिकायत पर चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है. स्थानीय निचली अदालत ने आशीष की जमानत याचिका खारिज कर दी है. इस बीच दिसंबर के मध्य में एसआईटी ने अदालत को बताया कि लखीमपुर खीरी की घटना एक पूर्व नियोजित साजिश का परिणाम थी. त्रिपाठी ने मुझे बताया, “एसआईटी अदालत द्वारा नियुक्त पूर्व न्यायाधीश राकेश जैन के अधीन काम कर रही है. इसलिए ऐसा नहीं है कि एसआईटी को जल्दबाजी में कुछ मिल गया... प्रभाव नहीं होता तो मंत्री से अब तक पूछताछ हो चुकी होती. यह स्पष्ट है." उन्होंने कहा, "टेनी को मंत्री बने रहने का कोई अधिकार नहीं है." कारवां ने टेनी को सवाल ईमेल किए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.