उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी कांड के आरोपी “सही सलामत खुला घूम रहे” हैं क्योंकि “राजनीतिक दबदबे के चलते पुलिस उनका कुछ नहीं कर सकती.” शिव कुमार त्रिपाठी ने 8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में पेश अपने आवेदन में यह बात कही. त्रिपाठी ने इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी जिसके चलते शीर्ष अदालत ने मामले की निगरानी शुरू की है. मामले का मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बेटा है.
टेनी ने 2020 में कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को धमकाया था जिसके कुछ दिनों बाद उनके बेटे के काफिले की गाड़ियों ने लखीमपुर खीरी में प्रदर्शन कर रहे किसान को रौंद दिया था. मामले में दर्ज पहली सूचना रिपोर्ट में कहा गया था कि यह घटना टेनी और उनके बेटे दोनों द्वारा "नियोजित साजिश" का नतीजा थी. लेकिन इसमें केवल आशीष को आरोपी बनाया है. सुप्रीम कोर्ट में अपने 8 नवंबर को दायर आवेदन में त्रिपाठी ने लिखा था कि टेनी पर, जिसे उन्होंने "मुख्य आरोपी/अपराधी" के रूप में वर्णित किया है, "उक्त हत्या में मिलीभगत" के लिए कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.
त्रिपाठी ने कहा कि अगर टेनी मंत्री बने रहते हैं तो जांच "निष्पक्ष" नहीं होगी. ऐसा मानने वाले वह अकेले नहीं हैं. विभिन्न दलों के कई विपक्षी नेताओं ने टेनी के पद पर बने रहने पर सवाल उठाया है और प्रधानमंत्री से उन्हें हटाने की मांग की है. यहां तक कि संसद में भी इस मांग को लेकर विरोध हो चुका है. लेकिन घटना के तीन महीने बाद भी मोदी इस पर चुप हैं. यहां तक कि कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भी टेनी पर उनकी चुप्पी जारी है.
टेनी का मंत्री पद बने रहना मामले की जांच पर प्रश्नचिन्ह लगाता है. हत्याकांड के बाद से जारी सरकारी प्रेस विज्ञप्ति और पोस्ट स्वयं प्रदर्शित करते हैं कि एक मंत्री के रूप में राज्य के पुलिस प्रमुखों और केंद्रीय गृह सचिव से लेकर खुफिया अधिकारियों तक टेनी की पहुंच है. वास्तव में, टेनी जिस कुर्सी पर हैं ये सारे अधिकारी उनके अधीन आते हैं. हालांकि इससे फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने जांच को प्रभावित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया है लेकिन यह निश्चित रूप से जांच की निष्पक्षता पर संदेह पैदा करता है. इसके अलावा सत्ताधारी पार्टी का राज्य और केंद्रीय नेतृत्व एक शक्तिशाली मीडिया की सहायता से टेनी के पक्ष में घटना के इर्द-गिर्द कहानी को बुनता हुआ प्रदर्शनकारी किसानों और मामले के तथ्यों को बेशर्मी से गलत तरीके से पेश कर रहे हैं.
तीन महीने से अधिक के दौरान हुई कई घटनाओं ने जांच के बारे में इस तरह के संदेह को और बढ़ा दिया है. मसलन, टेनी की दूसरी पुलिस रिमांड पर उनसे सात अन्य आरोपियों के साथ पूछताछ की जानी थी. लेकिन, इससे पहले कि ऐसा हो पाता, उन्हें स्वास्थ्य आधार पर अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया. लगभग उसी समय मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल के प्रमुख उपेंद्र अग्रवाल को भी अदालत की अनुमति के बिना एक अलग पुलिस रेंज में स्थानांतरित कर दिया गया. मामले में अब तक के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पता चलता है कि वह इसको लेकर कुछ चिंतित है.
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