“जो मुस्लिम नामों को बर्दाश्त नहीं कर सकता वह प्रधानमंत्री मुसलमानों को क्या खाक बर्दाश्त करेगा”, शाहीन बाग की औरतें

शाहिद तांत्रे

पिछले 16 दिसंबर से लगातार हर शाम दक्षिणी दिल्ली के ओखला के जाकिर नगर के लोग, नागरिकता (संशोधन) कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका के खिलाफ जलती मोमबत्तियां लेकर सड़क किनारे प्रदर्शन कर रहे हैं. जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से लगभग एक किलोमीटर दूर बसा यह इलाका सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों और उनके खिलाफ पुलिस की क्रूरता का केंद्र रहा है. शाम को होने वाले इन जुलूसों का उद्देश्य जामिया के छात्रों पर पुलिस की हिंसक कार्रवाई के खिलाफ विरोध को दर्ज करना भी है.

12 दिसंबर को संशोधित कानून के पारित हो जाने के बाद से ही सीएए के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. जाकिर नगर का यह विरोध प्रदर्शन इसी का एक हिस्सा है. देश भर में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पीटा, उन पर आंसू गैस से हमले किए और सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया.

23 दिसंबर की रात जब मैं जाकिर नगर के इस जुलूस को देखने पहुंची, तो स्थानीय मस्जिद की ओर जाने वाली सड़क के दोनों तरफ लोग शांति से खड़े थे. बच्चे शायर अल्लामा इकबाल की नज्म “सारे जहां से अच्छा” गा रहे थे. कुछ लोग दिल्ली के ठंडे दिसंबर की रात में बहादुरी से डटे लोगों को बिस्कुट और चाय बांट रहे थे. इस दौरान वहां मौजूद लोग इस नए कानून के परिणामों के बारे में बातचीत करने में लगे थे. जाकिर नगर में लोगों के इरादे बुलंद दिखाते थे. उनके भीतर नरेन्द्र मोदी सरकार का रत्ती भर खौफ न था.

सड़क के एक तरफ, औरतें पोस्टर थामें सीएए को रद्द किए जाने के नारे लगा रहीं थीं. ज्यादातर औरतों के लिए किसी सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन में भाग लेने का यह पहला मौका था. जाकिर नगर की रहने वाली निशात ने बताया, ''आज तक हम कभी सड़कों पर नहीं उतरीं, लेकिन आज सवाल पूरे देश का है.'' उनके पोस्टर पर लिखा था, ''लाठी, गोली नहीं, रोजगार, रोटी दो.'' अन्य प्रदर्शनकारियों के बारे उन्होंने बताया, "बुर्का और हिजाब पहनने वाली औरतें अपने हकों के लिए यहां खड़ी हैं." निशात ने बताया कि औरतें दिन के समय जामिया में विरोध प्रदर्शन में शामिल हो रही हैं और फिर शाम को अपने इलाके में हो रहे विरोध में भाग लेती हैं.

निशात ने बताया, "प्रधानमंत्री ने आज तक एक भी अच्छा फैसला नहीं लिया है. वह आम आदमी पर बोझ बढ़ाते हैं, चाहे नोटबंदी हो, जीएसटी हो या बाबरी मस्जिद का मामला हो. उनके अब तक के किसी भी फैसले का लोगों की भलाई से कुछ लेना-देना नहीं है बल्कि उनके फैसले बड़ी कंपनियों के मालिकों के फायदे के लिए होते हैं.” देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने उनके भीतर उम्मीद जगा दी है. उन्होंने कहा कि इन प्रदर्शनों को वह मोदी के खिलाफ मुस्लिम समुदाय के प्रतिरोध के रूप में देखती हैं.

एक अन्य प्रदर्शनकारी फौजिया ने कहा कि जब मोदी को भारतीय सैनिकों जैसे "बड़े लोगों" की कोई चिंता नहीं है तो आम मुसलमानों की क्या बिसात. “आपने देखा कि मोदी ने सीमाओं पर लड़ रहे सैनिकों के लिए क्या किया? अगर वह उन सैनिकों को धोखा दे सकते हैं जो हमारे लिए अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं तो हम क्या चीज हैं?” फौजिया ने आरोप लगाया कि मोदी ने 14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले का पता चलने के बावजूद दि डिस्कवरी चैनल के शो की शूटिंग जारी रखी. इस हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के चालीस जवान मारे गए थे. मोदी ने बाद में लोक सभा चुनाव से पहले हुई भारतीय जनता पार्टी की रैलियों में पुलवामा हमले के कई संदर्भ दिए.

फौजिया बीआर आंबेडकर की तस्वीर लेकर विरोध प्रदर्शन में पहुंची थी. धर्मनिरपेक्ष संविधान की तुलना सीएए के सांप्रदायिक बदलावों से करते हुए उन्होंने कहा, "उनके द्वारा बनाए गए कानूनों पर हमला हो रहा है. उन्होंने केवल एक धर्म विशेष के लिए कानून नहीं बनाया था. उन्होंने सभी के लिए कानून बनाया था. कानूनों का मसौदा तैयार करते समय उन्होंने कोई भेदभाव नहीं किया था.”

एक अन्य प्रदर्शनकारी शबाना खान ने विरोध प्रदर्शनों की शांतिपूर्ण प्रकृति पर रोशनी डालते हुए कहा कि वे इन विरोधों में भाग लेने में कोई डर या शर्म महसूस नहीं करतीं क्योंकि हमने हिंसा का सहारा नहीं लिया है. खान ने मुझसे कहा, "जब तक मोदी सरकार कानून वापस नहीं लेती, इंशा अल्लाह तब तक हम विरोध जारी रखेंगे. जनता से मेरी अपील है कि हम आपके लिए खड़े हुए हैं इसलिए आप हमारे लिए खड़े होइए." खान सहित कई अन्य प्रदर्शनकारियों ने कहा कि उन्हें यकीन है कि मोदी सरकार आखिरकार हिंदुओं को भी बांटने की पूरी कोशिश करेगी. फौजिया ने कहा, "इस कानून को पारित करने के बाद और मुसलमानों के खिलाफ इतना बुरा करने के बाद, अब क्या गारंटी है कि मोदी हिंदुओं के खिलाफ कुछ बुरा नहीं करेंगे." वहां मौजूद एक अन्य प्रदर्शनकारी नज्मा, उनकी बातों से पूरी तरह सहमत दिखीं. उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिंदुओं को "ऊंची जाति और नीची जाति" में बांटने का एजेंडा है.

जाकिर नगर की प्रदर्शनकारी औरतों ने यह भी कहा कि बीजेपी सरकार देश के इतिहास के हर उस पहलू को मिटा रही है जिसमें मुसलमान शामिल हैं. "अगर किसी शहर का नाम मुस्लिम नाम पर है तो इससे आपको क्या दिक्कत है?" निशात ने पूछा. नज्मा ने कहा, "एक ऐसा शख्स जो मुस्लिम नामों को बर्दाश्त नहीं कर सकता, वह मुसलमानों को कैसे बर्दाश्त कर सकता है? जामिया के छात्रों को पता है कि क्या सही है और क्या गलत है. सबसे अच्छी बात यह है कि जामिया के छात्र हमारे लिए उठ खड़े हुए हैं.” नज्मा का मानना है कि हर वह शख्स जिसने सीएए के विरोध प्रदर्शन में भाग लिया है, वह इस बात को अच्छे से समझता है कि धर्म के आधार पर कानून नहीं बनाया जा सकता.

औरतों ने यह भी माना कि जामिया के छात्रों को पुलिस की ज्यादतियों का सामना इसलिए भी करना पड़ा क्योंकि इस विश्वविद्यालय को मुस्लिम माना जाता है, जो कि एक गलत सोच है. एक बुजुर्ग प्रदर्शनकारी नसीमा बेगम ने कहा, "हर जाति, हर समुदाय के बच्चे विश्वविद्यालय में पढ़ाई करते हैं." उनकी पोती भी जामिया में पढ़ती हैं. “आप यहां से शिक्षा पाते हैं और फिर मंत्री और अधिकारी बनते हैं फिर आप उन्हीं छात्रों को पीटते हैं और उनके विश्वविद्यालय को बर्बाद करते हैं, क्यों?” बेगम ने कहा कि सरकार मुस्लिमों को विदेशी बताने की कोशिश कर रही है. "जब वोट मांग रहे थे तब तो सरकार ने यह नहीं देखा कि हम नागरिक हैं या नहीं. अब वे देश को बांटना चाहते हैं."

फौजिया ने भी इसी तरह की बातें कहीं. उनका मानना है कि मोदी ने मुसलमानों को अनपढ़ मानकर उनके लिए अपमानजनक धारणा बनाई है. "मोदी हम पर हंसते हैं और सोचते हैं कि हमें पता नहीं है कि सीएए क्या है, एनआरसी क्या है? हम अब और मूर्ख नहीं बनेंगे. हमने अनपढ़ों को भी पढ़ाया है. हर कोई समझता है कि क्या चल रहा है.”

फौजिया ने गुस्से में आकर कहा, “देश अंग्रेजों से आजाद हो गया लेकिन हम लड़ते रहेंगे. हमें अपनी जान की परवाह नहीं है.” गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “मोदी, अमित शाह या योगी, उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय भले ही हमारे साथ खड़े हों या न हों लेकिन आवाम की आवाज सबसे ताकतवर होती है.”

रात 10.30 बजे तक प्रदर्शनकारी अगली रात वापस आने के लिए लौटने लगे थे. एक नौजवान पास की एक इमारत की सीढ़ियों पर खड़ा होकर धीरे-धीरे बढ़ती भीड़ के सामने सीएए के बारे में जानकारी साझा कर रहा था.