कांग्रेस की पंजाब इकाई में गहमागहमी का दिन था. “सुखी पाजी, अगर मैं मुख्यमंत्री बन भी जाऊं, तो भी सरकार तो आपने ही चलानी है. इसलिए आप ही मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालें.” इस बातचीत के दौरान वहां मौजूद पार्टी के एक सदस्य का कहना है कि ये शब्द नवजोत सिंह सिद्धू के थे, जो उन्होंने सुखजिंदर सिंह रंधावा से कहे थे. “चलिए घोषणा करते हैं.”
यह तारीख थी 19 सितंबर 2021. इससे एक दिन पहले ही कांग्रेस नेता और पंजाब के दो बार के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पार्टी की राज्य इकाई में अंदरूनी रस्साकस्सी के बीच अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. अमरिंदर के खिलाफ बागी धड़े का नेतृत्व उसी वर्ष जुलाई में राज्य इकाई के प्रमुख के रूप में नियुक्त किए गए सिद्धू और कांग्रेस के पुराने नेता व गुरदासपुर से विधानसभा के तीन बार के सदस्य रंधावा कर रहे थे. वहां मौजूद कांग्रेस सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि 19 सितंबर की सुबह सिद्धू आश्वस्त थे कि रंधावा को ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए.
पूरे दिन कांग्रेस के विधायकों को अपनी पसंद के मुख्यमंत्री की पैरवी के लिए चंडीगढ़ के जेडब्ल्यू मैरियट होटल और एक-दूसरे के घरों के अंदर-बाहर दौड़-भाग करते देखा जा सकता था. सिद्धू, रंधावा और कुछ अन्य कांग्रेसी नेता पार्टी के आलाकमान (गांधी परिवार) द्वारा चयन प्रक्रिया की निगरानी के लिए नियुक्त किए गए तीन सदस्यों के साथ मैरियट में थे. वहां मौजूद कांग्रेस सदस्य के अनुसार पर्यवेक्षकों में से एक ने स्पष्ट किया था कि वह सिर्फ अगले पांच महीने के लिए किसी को मुख्यमंत्री नियुक्त करना चाह रहे हैं क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में सिद्धू का नाम तय था.
राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने मुझे बताया कि मामले को सुलझाने के लिए पर्यवेक्षकों ने पार्टी के सभी विधायकों को मतदान के लिए बुलाया. जाखड़ ने कहा कि पंजाब कांग्रेस में ऐसी वोटिंग आखिरी बार 1977 में हुई थी. 2021 की इस अंदरूनी वोटिंग के अंतिम परिणाम के बारे में वह कहते हैं: “मुझे 42 वोट मिले. सुखजिंदर रंधावा को 16 वोट मिले. महारानी परनीत कौर को 12 वोट मिले.” पटियाला से सांसद परनीत अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं. जाखड़ ने बताया कि राज्य के तत्कालीन मंत्री और राज्य विधानसभा में विपक्ष के पूर्व नेता चरणजीत चन्नी को मात्र 2 वोट मिले. “और... सिद्धू को शायद 6 वोट मिले थे.”
तब तक सिद्धू की मंशाओं में भी फेरबदल हो चुका था. उस दिन वहां मौजूद कांग्रेस सदस्य के अनुसार सिद्धू की मांग थी, “न सुखी, न जाखड़. मुझे मुख्यमंत्री बनाओ.” जाखड़, जो एक पंजाबी हिंदू हैं, ने मुझे बताया कि उनकी पार्टी के साथी नेताओं ने फैसला किया कि सिख-बहुल राज्य में एक हिंदू को मुख्यमंत्री बनाना ठीक नहीं होगा. “सुनील को बना दिया तो आग लग जाएगी पंजाब में,” जाखड़ यह वाकया याद करते हुए बताते हैं. उन्होंने कहा कि पंजाब में हिंदू-सिख का दोहरा मापदंड अपनाना “एक पूरे समुदाय के खिलाफ भेदभाव” करने के बराबर है.
सिद्धू के पैंतरे शुरू हो चुके थे. वहां उपस्थित कांग्रेस सदस्य सिद्धू की बात को याद करते हुए दोहराते हैं, “अगर पार्टी के पास कई विकल्प हैं, तो मेरे पास भी कई विकल्प हैं. मैं जानता हूं मुझे क्या करना है. मैं बहुत स्पष्ट हूं.” पुन: बैठक बुलाई गई. पर्यवेक्षकों ने सिद्धू को बताया कि राज्य इकाई में बहुमत की प्राथमिकताओं का आकलन करने के बाद अमरिंदर को भी बाहर कर दिया गया है. उपस्थित कांग्रेस सदस्य बताते हैं, “सिद्धू ने लात मारकर अपने कमरे का दरवाजा खोला और कहा, ‘चलो अपना बैग पैक करो और यहां से चलते हैं.’” सदस्य ने आगे बताया कि सिद्धू को फिर राहुल गांधी से बात करने के लिए कहा गया. “लेकिन वह बहुत गुस्से में थे और उन्होंने अपना गुस्सा छिपाने की कोई कोशिश भी नहीं की. बीच में नेटवर्क की समस्या के कारण कॉल ड्रॉप हो गई और फिर किसी तरफ से वापिस फोन नहीं किया गया.” दोपहर करीब 1.45 बजे सिद्धू मैरियट से बाहर निकल गए.
इस बीच कांग्रेस रंधावा को पंजाब का नया मुख्यमंत्री घोषित करने की तैयारी कर रही थी. वहां मौजूद पार्टी सदस्य ने मुझे बताया कि दोपहर करीब 2.20 बजे “मैंने देखा कि रंधावा के नाम से एक पत्र टाइप करने के निर्देश दिए जा रहे थे.” जीत का जश्न मनाने कुछ विधायक रंधावा के घर की ओर निकल गए. दोपहर 3.15 बजे के करीब कांग्रेस सदस्य प्रीतम कोटभाई ने मीडिया को बताया कि सभी विधायकों ने रंधावा को चुना है और वह पंजाब के अगले मुख्यमंत्री होंगे.
लेकिन कांग्रेस का डगमगाना जारी था. गांधी परिवार सिद्धू को खोना नहीं चाहता था. वहां मौजूद पार्टी सदस्य ने मुझे बताया कि आलाकमान ने राज्य के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल से बात की, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रभाव बनाने के लिए पार्टी को अनुसूचित जाति समुदाय के किसी उम्मीदवार को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव दिया. पंजाब की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा अनुसूचित जाति में आता है. कांग्रेस सदस्य कहते हैं, “बस ये आईडिया जम गया और एक एससी नेता के विकल्प तलाशे जाने लगे. चन्नी के नाम पर सहमति बनी.” अगले ही दिन चन्नी ने पंजाब के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली. ऐसा कर वह अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने.
करीब एक हफ्ते तक सिद्धू इस नियुक्ति से सहमत दिखाई दिए. मीडिया ने यह तक रिपोर्ट किया कि चन्नी सिद्धू के ही मुख्यमंत्री उमीदवार थे. लेकिन 28 सितंबर को सिद्धू ने सोनिया गांधी को एक संशय भरा पत्र भेज कर कहा कि वह कांग्रेस की पंजाब इकाई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहे हैं. इस मौके पर अमरिंदर ने जल्द ही ट्वीट किया, “मैंने आपसे कहा था...ये आदमी स्थिर नहीं है.”
पत्र से यह जाहिर था कि चन्नी ने एक अस्थायी नियुक्ति की तरह काम करने से साफ़ इनकार कर दिया था. उन्होंने महाधिवक्ता के पद के लिए एपीएस देओल का चुनाव किया, जिन्होंने एक सनसनीखेज मामले में पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी का प्रतिनिधित्व किया था. यह मामला 2015 में फरीदकोट के बरगारी गांव में पवित्र सिख ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की कथित बेअदबी और कोटकपूरा और बहबल कलां में मामले का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस की गोलीबारी में दो लोगों की मौत से जुड़ा था. सिद्धू ने देओल की नियुक्ति का विरोध करते हुए कांग्रेस को यह वादा याद दिलाया कि पार्टी ने कभी मामले में न्याय करने का भरोसा दिया था. वह पहले भी कई बार मामले की जांच की धीमी गति के लिए अमरिंदर पर हमला कर चुके थे. सिद्धू ने इकबाल प्रीत सिंह सहोता को डीजीपी नियुक्त करने का भी विरोध किया और उन्हें सैनी का “चहेता” बताया. 5 नवंबर को सिद्धू ने घोषणा की कि वह अपना इस्तीफा वापस ले रहे हैं, लेकिन नए अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति के बाद ही वह पंजाब इकाई के अध्यक्ष के रूप में फिर से कार्यभार संभालेंगे. अपनी वापसी की घोषणा करते हुए एक संवाददाता सम्मेलन में सिद्धू ने नाटकीय रूप से समझाया कि उनका इस्तीफा देने का फैसला क्यों सही था. उन्होंने कहा कि “अगर मुख्य मुद्दों पर अभी भी ध्यान नहीं दिया जाएगा, तो कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाये जाने का क्या मतलब है?” उन्होंने अपनी ही पार्टी की सरकार को लगभग पच्चीस मिनट तक फटकार लगाई और खुद को लगातार एक नैतिक आसन पर विराजमान शख्स के रूप में प्रदर्शित करते रहे. उन्होंने कहा, “सिद्धू का अपना- मेरा कोई वजूद नहीं है. मेरा वजूद ही सच्चाई नाल बणदा है." (सिद्धू की अपनी कोई पहचान नहीं है. मेरी पहचान खुद सच्चाई से बनती है.) चार दिनों के भीतर देओल को इस्तीफा देना पड़ा. सहोता को दिसंबर के मध्य में उनके पद से हटा दिया गया.
पंजाब से बाहर की अधिकांश जनता के लिए 2021 में सिद्धू का स्थानीय राजनीति में एक मुख्य खिलाड़ी के रूप में उभरना आश्चर्य की बात थी. 58 वर्षीय सिद्धू को देश भर में भारतीय क्रिकेट टीम के एक पूर्व बल्लेबाज, मजाकिया क्रिकेट कमेंटेटर और टेलीविजन कॉमेडी शो के रंगीन परिधानों वाले हंसोड़ जज के रूप में अधिक जाना जाता है. सिद्धू का भारतीय जनता पार्टी में बारह साल का कार्यकाल, जिसमें उन्होंने संसदीय चुनावों में पंजाब के सबसे मूल्यवान निर्वाचन क्षेत्रों में से एक अमृतसर में दो बार चौंकाने वाली जीत दर्ज की- और शिरोमणि अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया और बीजेपी के अरुण जेटली के साथ उनके उतार-चढ़ाव भरे संबंधों के बावजूद उन्हें कभी एक विशुद्ध राजनीतिक शख्सियत नहीं समझा गया. पंजाब में सिद्धू की राजनीतिक अपील को समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि उनकी छवि उन दो बड़ी शक्तियों से कैसे मुख्तलिफ है, जिन्होंने पिछले पच्चीस वर्षों में पंजाब पर शासन किया है: बादल और अमरिंदर.
सिखों का प्रतिनिधित्व करने के घोषित उद्देश्य के साथ 1920 में गठित अकाली दल में हमेशा से कई कद्दावर नेता मौजूद रहे. लेकिन 1990 के दशक के अंत तक प्रकाश सिंह बादल अन्य सभी नामों को दरकिनार करते हुए पार्टी को अपनी जागीर बना चुके थे. इसी समय के दौरान पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया, जो लगभग चौबीस वर्षों तक चला. भगवा पार्टी के साथ अपने गठजोड़ के एक बड़े हिस्से के दौरान अकाली दल पंजाब में सबसे प्रभावशाली पार्टी थी.
सत्ता की बागडोर अंततः अकाली दल के मुखिया के इकलौते पुत्र सुखबीर सिंह बादल के हाथ में आई. सुखबीर ने कभी एक कुलीन परिवार के वंशज की अपनी छवि को बदलना नहीं चाहा, जिसे सत्ता कमाने के बजाय विरासत में मिली थी. यही बात सुखबीर के बहनोई और अकाली दल के नेता मजीठिया पर भी लागू होती है, जो एक अन्य शक्तिशाली जाट सिख परिवार से ताल्लुक रखते हैं.
2007 से 2017 तक बादल के शासन के दौरान पूरे कुनबे पर भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के कई आरोप लगते रहे. बादल परिवार ने परिवहन से लेकर केबल-टेलीविजन वितरण जैसे बड़े-छोटे व्यवसायों पर एक मजबूत पकड़ बना ली थी. इसी समय पंजाब में नशीले पदार्थों का अवैध व्यापार पैर पसार रहा था. 2013 में नशीले पदार्थों के व्यापार की एक जांच में मजीठिया का नाम सामने आया, लेकिन बादल शासन के तहत उन्हें किसी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा. उन्हें सजा देने के बड़े-बड़े वादे करने के बावजूद अमरिंदर ने भी 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मजीठिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.
1980 और 1990 के दशक के दौरान राज्य में उग्रवाद से निपटने की तमाम रणनीतिक खामियों के बावजूद अगर कांग्रेस ने पंजाब की राजनीति में अपनी जड़ें जमाए रखी, तो उसकी एक बड़ी वजह थे अमरिंदर सिंह. 1984 में कांग्रेस सरकार ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को सिख कट्टरपंथी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके साथियों के कब्जे से छुड़ाने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था. इस ऑपरेशन में भिंडरावाले को मार गिराया गया लेकिन साथ ही कई सैकड़ों बेगुनाहों की जान भी गई. ऑपरेशन ब्लू स्टार से पनपे रोष के परिणामस्वरूप आगे चलकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी थी. इसके बाद सिखों को निशाना बनाकर नरसंहार किया गया, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगभग तीन हजार लोग मारे गए. इन दंगों में भी एक बार फिर कांग्रेस नेताओं ने बड़ी भूमिका निभाई.
पंजाब में अमरिंदर की सफलता के पीछे एक बड़ा कारण उनकी वह पहचान थी, जिसमें वो कांग्रेस से जुदा नजर आते थे. इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी के मित्र माने जाने वाले अमरिंदर 1980 में पार्टी में शामिल हुए और लोकसभा के लिए चुने गए. ब्लू स्टार का विरोध करने के लिए उन्होंने संसद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. अमरिंदर लगभग सात वर्षों तक अकाली दल में शामिल रहे और फिर उन्होंने एक अलग समूह का गठन किया, जिसका 1998 में कांग्रेस में विलय हो गया. उन्होंने कई बार अपनी ही पार्टी का विरोध किया. उदाहरण के लिए, 2002 से 2007 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने सतलुज-यमुना लिंक नहर के विवाद पर कड़ा रुख अपनाया, जिसमें पंजाब से बहने वाली नदी के पानी के एक बड़े हिस्से को हरियाणा ले जाने का प्रस्ताव था. 2004 में जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नहर का निर्माण करने के लिए कहा, तो अमरिंदर ने कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ जाते हुए पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट, 2004 पारित कर दिया, जिसने राज्य के जल-बंटवारे समझौतों को समाप्त कर दिया. (कानून को बाद में असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था.)
वह आम जनता की नजरों में अपनी महाराजा परिवार के वंशज की छवि पर भी खरे उतरे. एक शाही जाट सिख परिवार के वंशज अमरिंदर एक अभिमानी और मुश्किल नेता के रूप में प्रतिष्ठित हुए. 2007 के आसपास अमरिंदर, उनके बेटे और उनके दामाद पर लुधियाना सिटी सेंटर की करोड़ों रुपए की बुनियादी ढांचा परियोजना से जुड़े भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोप लगाए गए. मुख्यमंत्री के रूप में 2017 से 2021 के बीच अमरिंदर के आखिरी कार्यकाल के दौरान उन्हें इस मामले में क्लीन चिट मिली. उनके आखिरी कार्यकाल में बेअदबी और नशीले पदार्थों से जुड़े उन महत्वपूर्ण मामलों की जांच में भी तेजी देखी गई, जो बादल परिवार को फंसा सकते थे.
दो दशकों से अधिक समय तक बादल और अमरिंदर के बीच सत्ता की पलटती बाजियों ने पंजाब की राजनीति के वर्तमान ढांचे को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई है. हाल के वर्षों में पंजाब की जनता का कई बार इस ढाँचे में रुचि न दिखाना राज्य के इन दो बड़े नामों से हुए मोहभंग की ओर इशारा करता है. राज्य में आम आदमी पार्टी (आप) का मैदान में उतरना इस बात का एक जीवंत उदाहरण है. 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने पंजाब में पदार्पण किया और देशभर में निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद पंजाब में 13 में से 4 सीटें जीतने में सफल रहे. वर्तमान में आप राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुकी है. यहां तक कि हाल ही में हुए किसान आंदोलन से भी एक ऐसी राजनीति का संकेत मिलता है, जो राज्य के स्थापित मानदंडों से अलग है. इस आंदोलन के चलते अकाली दल और बीजेपी गठबंधन में फूट पड़ी, जिसने राज्य में अकाली दल के पतन को और भी उजागर कर दिया. किसान आंदोलन के नेताओं ने दो राजनीतिक दलों का गठन किया है: संयुक्त समाज मोर्चा और संयुक्त संघर्ष पार्टी, जो 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे.
सिद्धू इस बन-बनाई व्यवस्था में एक बाहरी व्यक्ति हैं. एक जाट सिख परिवार के प्रमुख कांग्रेस नेता का बेटा होने के बावजूद उन्हें राजनीतिक सत्ता के उत्तराधिकारी के रूप में नहीं देखा जाता है. उन्होंने एक क्रिकेटर, कमेंटेटर, एंटरटेनर, और फिर एक राजनेता के रूप में अपनी खुद की पहचान बनाई है. उन्होंने हाल के वर्षों में कई दफा बादल-अमरिंदर ढाँचे की खामियों पर बात करते हुए इसे चुनौती देने की इच्छा व्यक्त की है. 2016 में बीजेपी छोड़ने के बाद उन्होंने बयान दिया कि “बादल-अमरिंदर गठजोड़ ने पिछले 15 वर्षों में पंजाब को लूटा है.” पिछले एक साल में उन्होंने अमरिंदर को चोट पहुंचाते हुए राज्य में नशीले पदार्थों की चुनौती और बेअदबी से जुड़े मामलों में धीमी जांच के बारे में बार-बार सवाल उठाए हैं. भले ही एक सेलिब्रिटी के रूप में उनकी साख ने अतीत में उन्हें चुनावों में फायदा पहुंचाया हो, लेकिन सत्ता पर काबिज शक्तियों को ललकारना वर्तमान में उनकी अपील का मुख्य कारण नजर आता है.
सत्ता में आने पर सिद्धू व्यवस्था को बदलेंगे या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन उनके सहपाठियों, साथियों, दोस्तों और सहकर्मियों के साथ बातचीत और उनके इतिहास पर एक नजर डालें, तो एक बड़ा सवाल उभर कर आता है: आखिर एक सार्वजनिक पद के लिए वह कितने उपयुक्त हैं?
सिद्धू किसी भी सुसंगत विचारधारा से जुड़े नजर नहीं आते. क्रिकेट में अपने लगभग दो दशक लंबे करियर के बाद वह 2004 में बीजेपी में शामिल हुए. उनके करीबी एक पत्रकार और उद्योगपति ने मुझे बताया, “मैंने उनसे पूछा कि एक खिलाड़ी और एक भारतीय के रूप में क्रिकेट खेलने के बाद वह बीजेपी जैसी सांप्रदायिक पार्टी में कैसे शामिल हो गए? उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था.” 2016 में बीजेपी में दरकिनार किए जाने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी और अन्य विकल्प तलाशने लगे. वह कांग्रेस और आप दोनों के साथ बातचीत कर रहे थे, लेकिन फिर उन्होंने सिमरजीत और बलविंदर सिंह बैंस के साथ अपनी पार्टी बनाने की कोशिश की, जो कई आपराधिक मामलों में आरोपी होने के लिए कुख्यात राजनेता थे. वह प्रोजेक्ट केवल तीन महीने में असफल हो गया. अंत में 2017 में राज्य चुनावों से ठीक पहले सिद्धू कांग्रेस में शामिल हो गए.
उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी अमरिंदर के साथ उनकी अनबन बहुत कुछ बयां करती है. दोनों ही व्यक्ति एक लंबे समय से एक दूसरे पर हमलावर रहते हुए ऐसे मुद्दों को उठाते रहे हैं, जिनका पंजाब की वास्तविक परिस्थितियों से बहुत कम लेना-देना है. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद अमरिंदर ने कहा कि वह इस पद के लिए सिद्धू के नामांकन का विरोध करेंगे, क्योंकि यह “राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला” है. उन्होंने इस बात के पीछे सिद्धू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री व पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की दोस्ती को मुख्य वजह बताया. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कैसे सिद्धू ने 2018 में खान के शपथ ग्रहण समारोह के समय पाकिस्तान के सेना प्रमुख को गले लगाया था. जवाब में सिद्धू के सलाहकार मोहम्मद मुस्तफा ने ट्वीट किया कि अमरिंदर “14 साल तक एक ज्ञात आईएसआई एजेंट के साथ रहते थे और सोते थे.” मुस्तफा का इशारा अमरिंदर की दोस्त पाकिस्तानी पत्रकार अरोसा आलम की तरफ था. इसके लगभग एक महीने बाद राज्य के गृहमंत्री ने कहा कि वह आलम और पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस के संबंधों की जांच के आदेश देंगे.
सिद्धू से जुड़े जिन लोगों से मैंने बात की, उनमें से अधिकांश उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जानते हैं जो ज्यादातर अकेले रहना पसंद करते हैं और लोगों पर मुश्किल से भरोसा कर पाते हैं. दशकों से सिद्धू को जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार अविनाश सिंह कहते हैं, “उनका एक पैटर्न है. वह अचानक से लोगों से कट जाते हैं और उनका फोन उठाना बंद कर देते हैं.” माना जाता है कि सिद्धू अपनी छवि को नुकसान पहुंचाए जाने को लेकर भी संशय में रहते हैं. 2009 में उन्होंने लोकसभा में एक डिप्टी कमिश्नर के खिलाफ एक विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि अधिकारी ने उन्हें कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की अमृतसर की आधिकारिक यात्रा के दौरान उनसे मिलने से रोका था. इस घटना से परिचित एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने मुझे बताया कि यह केवल उचित प्रोटोकॉल का पालन करने का मामला था.
सिद्धू के साथ काम करने वाले अधिकारियों ने मुझे बताया कि राज्य मंत्री रहने के दौरान उनकी छवि एक ऐसे राजनेता की थी, जिन्हें उनके अविश्वासी और अनिर्णायक रवैये के चलते फाइलों को अटकाए रखने के लिए जाना जाता था. राज्य के एक मंत्री के अनुसार, जब सिद्धू ने 2017-2019 तक अपने अधीन रहे पंजाब के स्थानीय-सरकारी विभाग का कामकाज वापस सौंपा, तो उनके कार्यालय से लगभग सोलह सौ अहस्ताक्षरित फाइलें इकठ्ठा की गई. एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने मुझे बताया कि सिद्धू के कार्यकाल में अधिकारी कोई भी नया कदम उठाने को लेकर आशंकित रहते थे, क्योंकि उनकी प्रतिक्रिया कुछ भी हो सकती थी.
एक क्रिकेटर के रूप में सिद्धू शुरूआती दिनों से ही अपने गर्म मिजाज के लिए जाने जाते हैं. 1988 में उन पर एक रोड-रेज के मामले में एक व्यक्ति की हत्या करने का आरोप लगा था. 1996 में जब वह भारतीय क्रिकेट टीम के लिए एक सलामी बल्लेबाज थे, तो कथित तौर पर एक गलतफहमी के चलते वह एक अंतरराष्ट्रीय दौरा बीच में ही छोड़कर वापस लौट आए थे. खेल पत्रकार विजय लोकपल्ली, जो 1980 के दशक की शुरुआत से सिद्धू को जानते हैं, ने मुझे बताया, “वह खुद को कमजोर महसूस कर रहे थे.”
उनकी अजीबोगरीब छवि ने सार्वजनिक दायरे के बाहर भी उनके काम को प्रभावित किया है. मैंने जिन कई लोगों से बात की, उनके अनुसार सिद्धू घोर अंधविश्वासी हैं और ‘अलौकिक दिव्य दर्शन’ प्राप्त करने का दावा करते हैं. कांग्रेस के एक युवा राजनेता ने मुझे बताया, “वह कोई काम शुरू करने का समय भी ज्योतिष के कहे अनुसार तय करते हैं.” सिद्धू के पूर्व सहयोगियों में से एक ने मुझसे कहा, “वह आपके साथ किसी मीटिंग में बैठे-बैठे अचानक ऐसा व्यवहार करेंगे, जैसे कि वह अपनी आँखें बंद करके सब कुछ देख पा रहे हैं.”
अक्सर फिसलती जुबान के चलते सिद्धू को कभी भी एक विशुद्ध कुशल राजनेता नहीं माना गया. गुजरात में 2012 के विधानसभा चुनावों से पहले नरेन्द्र मोदी के लिए प्रचार करते हुए सिद्धू ने केशुभाई पटेल को “राष्ट्र-विरोधी” करार दिया था. गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता पटेल राज्य के सबसे सम्मानित राजनेता और मोदी के गुरु माने जाते थे. सिद्धू के बचपन के दोस्त और बीजेपी सदस्य आरएस शेरगिल ने मुझे बताया, “केशुभाई ने उस समय गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई थी. लेकिन मोदी और बीजेपी तक ने उनके खिलाफ कोई टिप्पणी करने की हिम्मत नहीं की थी. गुजरात बीजेपी के लोग भी सिद्धू के बयान से खासे नाराज थे.”
कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष के रूप में भी सिद्धू अपनी ही पार्टी के खिलाफ लगातार बयानबाजी करने के लिए जाने जाते हैं. सिद्धू और उनके दोस्त, जिनकी संख्या उनके विरोधियों से बहुत कम है, अक्सर इसे सही ठहराने की कोशिश करते हैं. उनके कॉलेज के एक मित्र ने मुझे बताया, “वह एक ईमानदार व्यक्ति है, इसलिए विवादों में फंस जाता है.” किसी भी संकट की स्थिति में सिद्धू के सहयोगी इस विश्वास पर कायम रहते हैं.
अपने समूचे करियर में शायद पहली बार सिद्धू एक डांवाडोल पिच पर खेलते नजर आ रहे हैं. पिछले कई महीनों से वह कांग्रेस का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनने के लिए पार्टी पर दबाव डाल रहे हैं. पार्टी आलाकमान, जो पिछले साल तक अमरिंदर की जगह सिद्धू को लाने के लिए तैयार थी, अभी तक उनकी मांगों पर चुप्पी साधे हुए है. वहीं चन्नी के रूप में पार्टी को एक ऐसा स्थिर विकल्प मिलता दिखाई दे रहा है, जिसने मुख्यमंत्री के रूप में चार महीनों के कार्यकाल में ही अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है.
कई लोगों का मानना है कि सिद्धू की अधिकांश परेशानियां उनकी आत्म-मुग्धता और ख़ुदपसंदी से पैदा होती हैं. पंजाब के एक विधायक, जो सिद्धू के करीबी हैं, ने मुझे बताया कि एक बार सिद्धू ने कहा कि, “मेरे वरगा कोई पैदा होया? तुस्सी दस्सो. कोई नहीं.” (क्या मेरे जैसा कोई पैदा हुआ है? आप ही बताओ. कोई नहीं!) विधायक आगे कहते हैं, “वह खुद ही अपने दुश्मन हैं.”
20 अक्टूबर 1963 को पटियाला में जन्मे सिद्धू अपने शुरुआती वर्षों में क्रिकेट को एक बोझ समझते थे. उनके पिता भगवंत सिंह एक कांग्रेस नेता थे और 1983 और 1985 के बीच राज्य के एडवोकेट जनरल के पद पर नियुक्त रहे. कई खेल पत्रकार बताते हैं कि किसी समय वह पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन में पदाधिकारी भी थे. भगवंत चाहते थे कि उनका बेटा राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बने. सिद्धू ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था, “मैंने अपने पिता के सपने को साकार करने के लिए क्रिकेट खेला.”
सिद्धू के शुरुआती पारिवारिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है. हाल ही में उनकी एक कथित सौतेल बहन ने मीडिया में सिद्धू पर आरोप लगाए कि उन्होंने अपनी मां और दूसरी बहन के साथ बुरा व्यवहार किया था.
सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी शेरगिल, जो सिद्धू को 1976 से जानते हैं, ने मुझे बताया, “सिद्धू का स्कूल में कोई दोस्त नहीं था.” लेकिन वह एक मेधावी छात्र थे. सिद्धू के पूर्व सहयोगी ने मुझे बताया, “वह सब कुछ अल्पविराम और पूर्ण विराम समेत हर्फ़ दर हर्फ़ याद कर जाते थे.” सिद्धू ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज में दाखिला मिला था, लेकिन रैगिंग कर रहे कुछ सीनियर्स के एक समूह को पर्दे की छड़ से पीटने के चलते उन्हें कॉलेज से निकल दिया गया. उनके पूर्व सहयोगी कहते हैं, “उन्होंने यहां पटियाला के मोहिंद्रा कॉलेज में बीए में दाखिला लिया और टॉप किया.”
सिद्धू ने कई बार कहा है कि एक युवा खिलाड़ी के रूप में वह क्रिकेट अभ्यास से बाहर निकलने के लिए जानबूझ कर जल्दी आउट हो जाया करते थे. फिर भी उन्होंने अपनी किशोरावस्था में ही राज्य स्तर पर खेलना शुरू कर दिया था. पूर्व राष्ट्रीय क्रिकेटर और बाद में सांसद बने कीर्ति आजाद ने मुझे बताया, “जब हम अभ्यास के लिए पटियाला जाते थे, तो वो वहां नजर आते थे. एक शर्मीला लड़का जो अपने पिता के बुलाए जाने पर झट दौड़ कर आता था.”
कभी हरियाणा की टीम से खेलने वाले पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान कपिल देव ने 2017 के एक साक्षात्कार में सिद्धू के शुरूआती समय को याद करते हुए कहा, “मुझे याद नहीं कि उन्हें जानने के पहले चार या पांच वर्षों में मैंने उनकी आवाज भी सुनी हो. वह अपना पटका पहने हुए बस हर समय पढ़ाई करता रहता था और थोड़ा बहुत क्रिकेट खेलता था.”
अक्सर भगवंत पटियाला आए हुए क्रिकेटरों को अपने घर बुलाते थे. अपने बेटे के लिए उनकी महत्वाकांक्षाएं जगजाहिर थीं. देव कहते हैं, “हम मजाक में कहते थे कि अगर अच्छा खाना खाना है तो सिद्धू के घर चलते हैं. और बस वहां उसकी थोड़ी तारीफ़ करनी है. हमें बस इतना ही कहना होता था कि: ‘सर ... शेरी बहुत प्रतिभाशाली है.’ इस पर जवाब मिलता, ‘बटर चिकन लाओ! ड्रिंक्स ले आओ!’” (सिद्धू के पिता उन्हें एक मशहूर शराब के नाम पर शेरी बुलाते थे. इस बारे में सिद्धू ने एक बार कहा था, “तब उन्होंने एक-आध पटियाला पेग लगाया हुआ होगा.”)
सिद्धू की राष्ट्रीय टीम में शुरुआत निराशाजनक रही. नवंबर 1983 में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने पहले टेस्ट मैच में उन्होंने सिर्फ 19 रन बनाए. अपने दूसरे मैच में भी खराब प्रदर्शन के बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया. वह वापस घर लौट गए. इस वाकये को याद करते हुए सिद्धू ने 2010 में टीवी शो 'आप की अदालत' में पत्रकार रजत शर्मा को बताया, “एक दिन मैं बाथरूम से बाहर आया और देखा कि मेरे पिता की आँखों में आँसू थे. मुझे झटका लगा. मैंने कभी उन्हें इस तरह नहीं देखा था. मैंने उनके तकिए के नीचे से कुछ निकाला. ये इंडियन एक्सप्रेस में छपा एक लेख था जिसमें कहा गया था, 'नवजोत सिंह सिद्धू: द स्ट्रोकलेस वंडर.'” प्रसिद्ध क्रिकेट लेखक राजन बाला द्वारा लिखे गए इस लेख में मुझे “चुका हुआ” बताया गया था. सिद्धू ने अखबार की इस कतरन को अपने वॉर्डरोब में चिपका दिया. “मेरी आंखों में आंसू थे. मैंने उन्हें एक गिलास में भरा और पवित्र प्रतिज्ञा ली.”
यहां से सिद्धू ने खुद को क्रिकेट के लिए समर्पित कर दिया. वह शर्मा से कहते हैं, “मैं बिना किसी के जगाए सुबह 4 बजे उठ जाता था. फिर मैं घर के कुछ कामगारों को लेकर ग्राउंड पर जाता, पिच को पानी देता, रोलर चलाता और पूरे दिन अभ्यास करता.” कुछ ही वर्षों में सिद्धू के पिता की मृत्यु हो गई. थोड़े समय के अंतराल के बाद उन्होंने अभ्यास करना जारी रखा.
सिद्धू ने शर्मा को बताया कि फिर देव ने उन्हें 1987 विश्व कप के लिए टीम में मौका दिया. सिद्धू ने टूर्नामेंट में लगातार चार अर्धशतक लगाकर एक रिकॉर्ड बनाया- एक ऐसा रिकॉर्ड जिसकी बराबरी केवल सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली कर पाए हैं. बाला ने बाद में एक और लेख लिखा, जिसका शीर्षक था, “सिद्धू: फ्रॉम स्ट्रोकलेस वंडर टू ए पाम-ग्रोव हिटर.” बाला के दूसरे लेख के छपने के दिन को सिद्धू अपने “जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन” बताते हैं.
जहां उन्हें एक अच्छे बल्लेबाज के रूप में जाना गया, वहीं उन्हें एक बेकार फील्डर माना जाता था, जो गेंद को पकड़ने के लिए डाईव लगाने से हिचकिचाते थे. अविनाश कहते हैं, “लेकिन फिर उन्होंने लगातार अभ्यास किया और टीम में फील्डिंग के सबसे मजबूत स्तंभों में से एक बन गए.” लोकापल्ली ने मुझे बताया, “वह मानसिक रूप से मजबूत हैं और इसी वजह से उन्होंने टीम में कई बार वापसी की है.”
इस बीच सिद्धू अपने गुस्सैल स्वभाव के लिए भी कुख्यात होने लगे थे. शर्मा के साथ अपने साक्षात्कार में सिद्धू ने बताया कि एक बार एक साथी राष्ट्रीय खिलाड़ी मनोज प्रभाकर ने उन्हें फिल्म देखने और रसगुल्ले खाने से रोक दिया था. सिद्धू आगे कहते हैं, “'मैंने फटक दिया (थप्पड़ मारा). वो बिस्तर के नीचे छिप गया. मैंने उसका पैर बाहर खींचा और फिर उसे पीटा.” सिद्धू यह बताते हुए बिलकुल असहज नहीं दिखे.
प्रभाकर के साथ हुए एक अन्य घोटाले ने सिद्धू को उनके क्रिकेट करियर के अंत में सुर्खियों में ला दिया था. 1990 के दशक के अंत में प्रभाकर ने टीम के पूर्व कप्तान देव पर 1994 में पाकिस्तान के खिलाफ एक मैच गंवाने के लिए 25 लाख रुपयों की पेशकश करने का आरोप लगाया. इस कथित रिश्वत के समय सिद्धू प्रभाकर के रूममेट थे. अपने आरोपों को साबित करने के लिए प्रभाकर ने तहलका पत्रिका के एक स्टिंग ऑपरेशन में भाग लिया. द टेलीग्राफ ने इस स्टिंग पर रिपोर्ट करते हुए लिखा: सिद्धू के पटियाला आवास में प्रभाकर ने हिडन कैमरा पर उनसे पूछा कि क्या वो सीबीआई के सामने कपिल का नाम लेंगे? सिद्धू ने प्रभाकर के अनुरोध को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि "पाजी (कपिल) ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है" और वह उन्हें धोखा नहीं देंगे. वह इस बात पर सहमत हुए कि 'चाचा चौधरी' होटल के कमरे में आए थे. सिद्धू ने कहा कि प्रभाकर के लिए कोई भी आरोप साबित करना बहुत मुश्किल होगा.
यह स्पष्ट नहीं था कि सिद्धू किसका जिक्र कर रहे थे, लेकिन "चाचा चौधरी" एक प्रतिष्ठित कार्टून चरित्र का लोकप्रिय नाम है. सिद्धू ने कथित तौर पर मामले की जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो को बताया कि "जब 'प्रस्ताव' दिया गया था, तब वह वहां मौजूद नहीं थे, लेकिन उन्हें प्रभाकर से इसके बारे में पता चला था." 2000 की सीबीआई रिपोर्ट ने बाद में देव को दोष-मुक्त करते हुए कहा कि उनके खिलाफ लगे आरोपों को प्रमाणित करने के लिए "कोई विश्वसनीय सबूत नहीं" था. इस बीच प्रभाकर पर खुद मैच फिक्सिंग का आरोप लगा और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने उनपर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया. बीसीसीआई ने पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन पर भी आजीवन प्रतिबंध लगाया, जिसे 2012 में हटाया गया.
सिद्धू के क्रिकेट करियर की सबसे चर्चित घटना शायद 1996 की गर्मियों के इंग्लैंड दौरे पर घटी, जब वह तत्कालीन कप्तान अजहरुद्दीन के साथ हुए एक विवाद के बाद दौरे के बीच से ही स्वदेश लौट आए. अजहरुद्दीन की कही किसी बात पर सिद्धू नाराज थे. जहां इस घटना ने मीडिया का पूरा ध्यान खींचा, वहीं न तो सिद्धू और न ही अजहरुद्दीन ने आज तक इस मामले पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी की है. लेकिन यह घटना रह रहकर सिद्धू की परेशानी बढ़ाती रहती है. सितंबर 2021 में सिद्धू के पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा देने के तुरंत बाद अमरिंदर ने मीडिया से कहा कि उन्होंने "1996 में भी इंग्लैंड में भारतीय टीम को इसी तरह अधर में छोड़ दिया था."
एक बात तो तय है कि सिद्धू उस समय खासे भड़के हुए थे. खेल पत्रकार अयाज मेमन ने दौरे पर एक लेख में लिखा है कि सिद्धू ने उनसे कहा, “मामला पग तक आ गया है”- (बात अब मेरी पगड़ी तक पहुंच गई है.) अविनाश कहते हैं कि अपनी वापसी के बाद सिद्धू किसी से बात करने के लिए तैयार नहीं थे और बस चिल्लाकर इतना ही कहा था, “आज से और क्रिकेट नहीं.” दौरे में शामिल लोकपल्ली ने कहा कि सिद्धू ने उन्हें एक पत्र दिखाया था, जो वह बीसीसीआई को भेजना चाहते थे. “मैंने उस पत्र को काफी हद तक संशोधित कर दिया था,” लोकपल्ली ने मुझे बताया. पत्र के हल्के संस्करण को पढ़ने के बाद सिद्धू ने यह कहते हुए हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया कि, “इसमें मेरा अपना कुछ भी नहीं बचा है.”
बीसीसीआई ने एक जांच समिति का गठन किया था और लोकपल्ली ने सिद्धू को समझाया कि "जब वह व्यक्तिगत रूप से जांच समिति से मिलते हैं, तो वह जो चाहें उनसे साझा कर सकते हैं." समिति के निष्कर्षों का खुलासा नहीं किया गया. 2011 में बीसीसीआई के पूर्व सचिव जयवंत लेले ने इस घटना पर थोड़ा प्रकाश डाला. अपने संस्मरण 'आई वाज देयर' में लेले ने लिखा है कि जांच के दौरान सिद्धू को उनके वॉकआउट का कारण साझा करने के लिए बहुत मनाना पड़ा. अंतत: उसने खुलासा किया कि हैदराबाद के रहने वाले अजहरुद्दीन उन्हें बुलाते हुए "माँ के" कह के सम्बोधित करते थे. सिद्धू इसे गाली मानते थे. पूछताछ के दौरान पता चला कि यह हैदराबाद में आम बोलचाल की भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला एक स्लैंग है.
लोकापल्ली कहते हैं कि शायद खेल भावना के चलते ही आज भी "एक भी ऐसी रिपोर्ट या उद्धरण नहीं है, जिसमें उन्होंने अजहर के खिलाफ कुछ भी कहा हो या अजहर ने सिद्धू के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कोई बयान दिया हो." जब मैंने अजहरुद्दीन, जो अब कांग्रेस के सदस्य भी हैं, से इस बाबत पुछा तो उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. उन्होंने सिद्धू को "एक बेहतरीन बल्लेबाज और एक टीम प्लेयर" बुलाया. सिद्धू ने अपने जीवन और करियर से जुड़ी इस या अन्य किसी घटना पर मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया.
उन्होंने साक्षात्कार के लिए किए गए कई अनुरोधों का भी जवाब नहीं दिया. बीसीसीआई ने रिपोर्ट को अपने तक सीमित रखते हुए सिद्धू पर घरेलू क्रिकेट से इतर 50 दिन का प्रतिबंध लगाया. सिद्धू बाद में राष्ट्रीय टीम में वापस आए, लेकिन लंबे समय तक नहीं. अपने प्रदर्शन में आई कमी के साथ उन्होंने दिसंबर 1999 में 36 साल की उम्र में सन्यांस की घोषणा कर दी. ईएसपीएन की रिपोर्ट में कहा गया कि "सिद्धू ने क्रिकेट में अपनी सभी उपलब्धियां अपने पिता को समर्पित की."
फिर सदी के नए मोड़ पर सिद्धू के करियर और व्यक्तित्व में अचानक बदलाव आने लगे. उन्होंने क्रिकेट कमेंट्री शुरू की, जहां वह अपने चुटकुलों, शेरो-शायरी और कहावतों के लिए मशहूर होने लगे. इसके कुछ उदाहरण थे: "थर्ड अंपायर को उतनी ही बार और उसी वजह से बदला जाना चाहिए, जैसे लंगोट बदलते हैं." या फिर, "आंकड़े मिनीस्कर्ट की तरह होते हैं. वह जितना छुपाते हैं, उससे कहीं अधिक दिखाते हैं." ओछे किस्म के हास्य के बावजूद सिद्धू की अनूठी आवाज ने उन्हें एक ऐसे मनोरंजनकर्ता के रूप में स्थापित कर दिया, जिसे आज सभी जानते हैं. देव ने 2017 के एक साक्षात्कार में कहा था, "सिद्धू में ये बदलाव कैसे आया, हमें कुछ नहीं पता."
सिद्धू को उनके तड़कते-भड़कते परिधानों के लिए भी जाना जाता है. वह अक्सर अपने सूट से मेल खाती पगड़ी, टाई या पॉकेट स्क्वायर में नजर आते हैं. उन्होंने एक बार कहा था, "लिखने से असर होता है. लेखन से दस गुना असर वाक्पटुता से होता है. और इस से भी पचास गुना असर आपके पहनावे से होता है. अच्छे कपड़े पहनना कोई पाप नहीं है. यह एक ऐसी कला है, जो बहुत कम लोगों के पास है."
अगर सिद्धू के कहे पर विश्वास करें तो 1999 में ध्यान लगाने और स्वामी विवेकानंद के काम को पढ़ने के उपरांत उनके व्यक्तिव में एक बड़ा बदलाव आया. सिद्धू ने शर्मा से आप की अदालत में कहा “मैं 35 साल से एक झूठा था. लेकिन जब से मैंने ध्यान करना शुरू किया है, तब से मुझे कोई चिंता नहीं होती." एक अन्य अवसर पर सिद्धू ने कहा कि जब उन्होंने विवेकानंद को पढ़ा, तब "मैं अपने भीतर देख पाया. मैंने समझा कि धर्म असल में क्या है." लोकपल्ली ने मुझे बताया कि सिद्धू ने एक बार उन्हें विवेकानंद के सभी कार्य भेंट किए थे. हाल के साक्षात्कारों में भी सिद्धू यह दावा करते हैं कि वह हर दिन सुबह 4 बजे उठते हैं और अपने दिन की शुरुआत घंटों ध्यान के साथ करते हैं.
सिद्धू ने जो भी अंदरूनी शांति प्राप्त की हो, लेकिन इससे उन्हें अपनी जुबान पर काबू पाने में कोई मदद नहीं मिली. 2003 में चैनल ईएसपीएन-स्टार के लिए बांग्लादेश-दक्षिण अफ्रीका के एक मैच में कमेन्ट्री करते हुए वह एक साथी कमेंटेटर एलन विल्किंस से उलझ बैठे. सिद्धू ने कथित तौर पर अपशब्दों का इस्तेमाल किया और इस घटना के कुछ ही समय बाद ईएसपीएन-स्टार के साथ उनका कार्यकाल समाप्त हो गया. न चैनल और न ही सिद्धू ने इस मामले में कोई सफाई दी. उन्होंने कमेंटेटर के रूप में काम करना जारी रखा.
बीस साल से अधिक समय तक क्रिकेट को कवर करने वाले पत्रकार जसविंदर सिद्धू ने मुझे बताया कि सालों पहले एनडीटीवी ने उन्हें एक पैनल के लिए एक विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया था, जिसमें सिद्धू भी शामिल थे. जसविंदर ने बताया कि शो के दौरान दोनों के बीच चर्चा चली कि क्या भारत-पाकिस्तान के मैच इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाली एशेज श्रृंखला से बेहतर होते हैं? जसविंदर के मुताबिक उनके तार्किक जवाब से सिद्धू "नाराज" हो गए थे. सिद्धू ने फिर मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर पर एक शेर पढ़ा. जसविंदर याद करते हैं, "उन्होंने अपने नीचे एक रजिस्टर रखा हुआ था और कैमरा बंद होने पर वह उस से पढ़ते रहते थे. खैर इसके बाद मैंने शांति से अपनी बात रखते हुए कहा कि मुझे नहीं पता कि बहादुर शाह जफर ने कितने भारत-पाकिस्तान टेस्ट मैच देखे थे, और उनसे कहा कि उनके शेर का क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं है." सिद्धू इस पर बिफर गए और होस्ट से कहा, "दोस्त, तुम सिद्धू का मुकाबला करने के लिए सिद्धू को ले आए? यह ठीक नहीं है." जसविंदर कहते हैं कि उसके बाद उन्हें फिर कभी शो में नहीं बुलाया गया.
जहां सिद्धू अपने प्रसिद्ध वन-लाइनर्स को याद रखने या उन्हें बनाने और टीवी पर अपनी हाजिरजवाबी के लिए मशहूर हैं, वहीं अविनाश कहते हैं कि उन्होंने ऐसे "पांच रजिस्टर" देखे हैं, जिनका सिद्धू उपयोग करते हैं. वह कहते हैं कि कॉमेडी शो में भाग लेने के दौरान भी वह "कैमरे से छिपाकर टेबल पर एक रजिस्टर रखते थे." सिद्धू पहले भी इसी तरह के आरोपों का सामना कर चुके हैं. देव ने 2017 में कहा था, "बहुत से लोग कहते हैं कि वह अपने पास एक नोटबुक रखता है और फिर ये सब बातें कहता है. मैं लोगों से कहता हूं कि मैं आपको एक नोटबुक दूंगा और फिर आप मुझे उनकी तरह बोल के दिखाइएगा.'"
2000 के दशक में सिद्धू एक मजाकिया सरदार के स्टीरियोटाइप किरदार को निभाते हुए टेलीविजन कॉमेडी शो में दिखाई देने लगे. इस तरह का पहला शो 'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर सीरीज' था, जहां वह अलग-अलग कॉमेडियन को जज करते थे. इसी शो में सिद्धू के जज रहते भगवंत मान, जो 2022 के पंजाब चुनावों में आप का मुख्यमंत्री चेहरा हैं, एक प्रतियोगी के रूप में दिखाई दिए थे.
इस पेशे में भी विवादों ने सिद्धू का दमन नहीं छोड़ा. एक बार सिद्धू ने कथित तौर पर अपने साथी जज शेखर सुमन को "छक्का" बुलाया था. इस शब्द का इस्तेमाल अक्सर ट्रांस समुदाय के लोगों को नीचा दिखाने के लिए किया जाता है. सुमन ने इसपर आहत होते हुए जवाब दिया कि उन्हें सिद्धू "के साथ काम करने में मजा आता है, लेकिन सच यह है कि सिद्धू बहुत असुरक्षित हैं. वह यह नहीं समझते कि वो और मैं केवल जज हैं और यह प्रतिस्पर्धा हमारे बीच नहीं है. आप व्यक्तिगत हमले नहीं कर सकते हैं.”
यह पहली बार नहीं था जब सिद्धू ने अपमान के रूप में इस शब्द का इस्तेमाल किया हो. कई मौकों पर अपनी क्रिकेट की सफलताओं पर चर्चा करते हुए सिद्धू अक्सर कहते हैं कि उन्हें कई छक्के मारने के लिए दिए गए "सिक्सर सिद्धू" शीर्षक से नफरत है, क्योंकि हिंदी में इसका मतलब "छक्का सिद्धू" होगा. कई वर्षों तक वह हिट कॉमेडी कार्यक्रमों 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' और 'द कपिल शर्मा शो' में एक जज के रूप में भी दिखाई दिए. दोनों कार्यक्रमों में नियमित रूप से ट्रांसफोबिक और महिला द्वेषी चुटकुले सुनाये जाते थे.
2017-2019 के बीच जब वह मंत्री थे, तब उनके साथ काम करने वाले एक अधिकारी के अनुसार सिद्धू को 'द कपिल शर्मा शो' के प्रत्येक एपिसोड के लिए 17 लाख रुपए की राशि मिलती थी. अधिकारी ने यह भी बताया कि एक मोटिवेशनल लेक्चर देने के लिए सिद्धू मंच और आयोजकों के हिसाब से पांच लाख से लेकर बीस लाख रुपए तक कमाते थे. वह याद करते हैं कि एक बार सिद्धू ने उनसे कहा था, "जब से मैं मंत्री बना हूं, मेरी कमाई कम हो गई है."
अधिकारी बताते हैं कि उस समय सिद्धू आमतौर पर शुक्रवार की रात को कॉमेडी शो की शूटिंग के लिए पंजाब से निकलते थे और अगले दिन वापसी की उड़ान भरते थे. अधिकारी ने बताया, "वह शूटिंग के बाद उसी सूट में वापस आते थे जो उन्होंने यहां से जाते हुए पहना हुआ होता था." उन्होंने कहा कि सिद्धू की गैरमौजूदगी में उनकी पत्नी उनके निर्वाचन क्षेत्र की देखभाल करती थी.
फरवरी 2019 में पुलवामा में भारतीय सुरक्षा बलों पर आतंकवादी हमले के तुरंत बाद कॉमेडी शो से सिद्धू को चलता कर दिया गया . इस हमले ने देश में पाकिस्तान, जिस पर इस हमले को अंजाम देने का आरोप था, के खिलाफ रोष की लहर पैदा कर दी थी. एक मीडिया कार्यक्रम में सिद्धू ने इस "कायराना और कायरतापूर्ण कृत्य" की निंदा की, लेकिन साथ ही कहा कि "मुट्ठी भर लोगों की वजह से क्या आप पूरे देश या किसी एक व्यक्ति को दोष दे सकते हैं?" इस बयान के कुछ ही दिनों बाद मीडिया में फैली नाराजगी के बीच उन्हें 'द कपिल शर्मा शो' से बाहर कर दिया गया. सिद्धू अपने बयान पर कायम रहे.
पंजाब तीन क्षेत्रों में बंटा हुआ है: माझा, मालवा और दोआबा. माझा, जिसका अर्थ है "बीच में", कभी अविभाजित पंजाब के बीचो-बीच था और 1980 और 1990 के दशक में उग्रवाद का केंद्र हुआ करता था. कई कारणों से प्रतिष्ठित यह जगह सिख पहचान और शक्ति के प्रमुख चिन्हों का घर है. इसमें स्वर्ण मंदिर परिसर आता है- जिसमें सिख धर्म की सर्वोच्च अस्थायी सीट अकाल तख्त- और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति शामिल है, जो कई राज्यों के गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है. इस क्षेत्र में अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन और पठानकोट जिले शामिल हैं. अमृतसर संसदीय क्षेत्र में वर्तमान में नौ विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. सिद्धू का राजनीतिक करियर ज्यादातर अमृतसर के इर्द-गिर्द घूमता रहा है. अमृतसर और एक तरह से माझा पर अपनी पकड़ कायम करने की कोशिशों ने ही उनके सबसे प्रमुख राजनीतिक संघर्षों को आकार दिया है- खासकर अरुण जेटली और मजीठिया के साथ.
फरवरी 2004 में पार्टी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के रूप में प्रदर्शन से प्रभावित होकर सिद्धू बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसके कुछ समय बाद वह भारतीय क्रिकेट टीम के दौरे के लिए एक कमेंटेटर के रूप में पाकिस्तान गए. कभी सिद्धू के करीबी रहे पत्रकार और उद्योगपति ने मुझे बताया कि वाजपेयी ने उस दौरे के दौरान सिद्धू को फोन कर उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में अमृतसर सीट से चुनाव लड़ने के लिए कहा था.
चुनाव प्रचार के दौरान सिद्धू माझा क्षेत्र में इस वादे के चलते लोकप्रिय हुए कि अगर वह चुने गए, तो वह अमृतसर को अपना घर बना लेंगे और कभी पटियाला वापस नहीं जाएंगे. सिद्धू ने मौजूदा कांग्रेस सांसद रघुनंदन लाल भाटिया को शिकस्त दी, जो कुल छह बार अमृतसर की सीट जीत चुके थे. उनकी जीत का अंतर भी बहुत बड़ा था -लगभग एक लाख वोट.
राजनीतिक कर्तव्यों के साथ-साथ सिद्धू अपने लहलहाते टेलीविजन करियर को भी संभाले हुए थे. सिद्धू के कॉलेज के दोस्त के अनुसार, "एक ईमानदार आदमी होने के नाते उन्हें पैसा कमाने के लिए कमेंट्री जैसे यहां-वहां के साइड प्रोफेशन पर निर्भर रहना पड़ा." इसका मतलब था कि सिद्धू हर समय अमृतसर में नहीं रह सकते थे. शेरगिल के अनुसार, उनके दोस्त और सहयोगी उनकी अनुपस्थिति में उनके लिए काम किया करते थे.
अपने कार्यकाल के दो साल में सिद्धू को एक बड़ी बाधा का सामना करना पड़ा. दिसंबर 2006 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने उन्हें रोड-रेज मामले में गैर इरादतन मानव हत्या का दोषी ठहराया, जो कि हत्या के बराबर नहीं था. सिद्धू को तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई.
यह मामला पटियाला की एक घटना से जुड़ा था. 27 दिसंबर 1988 के दिन गुरनाम सिंह नामक एक व्यक्ति दो अन्य लोगों के साथ कहीं जा रहे थे. मामले की एफआईआर के मुताबिक विवाद के बाद सिद्धू अपनी कार से उतरे, गुरनाम को उनकी गाड़ी से बाहर निकाला और उन्हें घूंसे मारने लगे. इस बीच सिद्धू के साथ मौजूद एक अज्ञात व्यक्ति- जिसे बाद में रूपिंदर संधू के रूप में पहचाना गया - ने गुरनाम के एक साथी को पीटा. कुछ ही मिनटों में गुरनाम की मौत हो गई. फिर भी पुलिस ने शुरू में केवल संधू के खिलाफ आरोप तय किए, सिद्धू के खिलाफ नहीं. सितंबर 1999 में एक निचली अदालत ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि मामले में मौजूद मेडिकल एविडेंस के आधार पर फैसला लेना मुमकिन नहीं था.
हाईकोर्ट के उस फैसले को पलटने के बाद सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. इस बीच कानूनी रूप से बाध्य न होने के बावजूद उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया. एक रिपोर्टर कहते हैं, "सद्भावना का यह इशारा तब उपयोगी साबित हुआ, जब उन्होंने अपील पर फैसला होने तक अपनी सजा पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया." उस समय सिद्धू के करीबी दो लोगों के अनुसार जेटली ने ही उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा था. पेशे से वकील और लंबे समय तक बीजेपी के सदस्य रहे जेटली उस समय मीडिया, न्यायपालिका और कॉरपोरेट जगत में अपनी मजबूत पैठ के साथ राजधानी की नब्ज पर काबिज व्यक्ति थे. 2014 में मोदी के राष्ट्रीय सत्ता में आने के बाद जेटली को प्रधानमंत्री के सबसे भरोसेमंद सेनापतियों में गिना जाता था.
सिद्धू ने 11 जनवरी 2007 को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी. सिद्धू की ओर से वकील हरीश साल्वे और जेटली उस महीने अदालत में पेश हुए थे. अमृतसर सीट के लिए जल्द ही एक उपचुनाव होने वाला था और जेटली ने कथित तौर पर तर्क दिया कि "18 से 25 जनवरी के बीच नामांकन पत्र दाखिल किए जायेंगे और सिद्धू की सजा पर रोक लगाने की याचिका पर उससे पहले फैसला किया जाना चाहिए." अदालत ने उनकी सजा पर रोक लगाते हुए मामले को स्थगित कर दिया. सिद्धू ने उपचुनाव में फिर से लगभग 78000 वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की.
मई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को 1000 रुपए के मुचलके पर बरी कर दिया. उस सितंबर में, हालांकि, अदालत अपने फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई और सिद्धू को एक नोटिस भेजकर यह पूछा कि उनकी सजा में बदलाव क्यों किया जाना चाहिए? मामला अभी भी लंबित है. गुरनाम के एक रिश्तेदार ने मुझे बताया, “यह एक ताकतवर व्यक्ति के खिलाफ एक लंबी लड़ाई रही है. रोड-रेज में गंवाई हुई जान की यही कीमत है."
2009 के वसंत में अगले चुनावों तक सिद्धू की जमीन सरकती नजर आ रही थी. वरिष्ठ पत्रकार और उद्योगपति ने मुझे बताया, "उनकी हार लगबघ तय थी." अकाली दल तब बीजेपी के साथ था, लेकिन मतदान से लगभग एक हफ्ते पहले तक अकाली "सिद्धू के खिलाफ काम कर रहे थे."
सिद्धू के पूर्व सहयोगी ने बताया, "ये उन दिनों की बात है जब जब अकाली-बीजेपी गठबंधन में अकालियों का दबदबा था.वह अपनी मर्जी से अमृतसर चलाना चाहते थे."
वरिष्ठ पत्रकार और उद्योगपति ने दावा किया कि सिद्धू इसलिए भी अकालियों को नागवार गुजरते थे क्योंकि अकाली नेता मंच पर उनकी भव्य उपस्थिति का मुकाबला नहीं कर पाते थे. वह आगे कहते हैं, "उन्होंने सिद्धू का मंच पर आना बंद करा दिया था. यह समझदार और साफ-साफ बोलने वाले सिद्धू का अपमान था." सिद्धू के पूर्व सहयोगी के अनुसार, अकाली के इन प्रयासों के पीछे मुख्य ताकत मजीठिया थे- जो तब अमृतसर के संसदीय क्षेत्र में स्थित माझा से एक विधायक थे.
फिर पूरे मामले ने एक नया मोड़ लिया. सिद्धू के पूर्व सहयोगी बताते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी, जो बीजेपी में वाजपेयी के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ नेता थे, ने प्रकाश सिंह बादल को फोन किया. इस बातचीत के बाद अकालियों ने सिद्धू को अपना समर्थन दिया और वह कांग्रेस के ओपी सोनी पर एक छोटे फासले से जीत हासिल करने में सफल हुए. 2009 के चुनाव में सिद्धू पंजाब में सीट जीतने वाले एकमात्र बीजेपी उम्मीदवार थे, लेकिन जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार और उद्योगपति ने बताया, "यह सिद्धू की जीत नहीं थी."
इस तकरार ने मजीठिया और सिद्धू के बीच अनबन के पहले बीज बो दिए. कुछ साल बाद 2012 में सिद्धू ने अमृतसर के नगरपालिका चुनावों में बीजेपी उम्मीदवारों का साथ न देने के चलते अकालियों पर "गठबंधन धर्म" की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगाया. मजीठिया ने पलटवार करते हुए कहा, "यदि अकाली दल ने 2009 के लोकसभा चुनावों में गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया होता तो सिद्धू अमृतसर से सांसद नहीं होते. जब हमारे गठबंधन के सहयोगी अच्छा प्रदर्शन करने में विफल रहे, तो अकाली दल की वजह से ही सिद्धू को अटारी, मजीठा, राजसांसी, अजनाला और अमृतसर (दक्षिण) से बढ़त मिली." सिद्धू ने इस बात का जवाब देते हुए कहा, "चूंकि उन्होंने मेरा नाम लिया है, इसलिए मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि मैंने भी अकाली दल के समर्थन में हजारों रैलियों को संबोधित किया है. अकाली का कार्यकर्ता मेरी पगड़ी की तरह है. अकालियों ने जहां भी पसीना बहाया है, वहां मैंने अपना खून दिया है."
2009 में सिद्धू के दोबारा चुने जाने के बाद उनके सामने एक और राजनीतिक अड़चन आई. उस साल गर्मियों में बीजेपी के राजिंदर मोहन सिंह छिना को राज्य सरकार के अमृतसर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट का प्रमुख नियुक्त किया गया. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार सिद्धू के खेमे ने दावा किया कि छिन्ना ने "मई में पिछले लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के सहयोगी के खिलाफ काम किया था." सिद्धू ने उन्हें हटाए जाने तक अमृतसर नहीं लौटने की कसम खाई. उस सितंबर में शहर भर में पोस्टर लगे कि सिद्धू "लापता" हैं. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार बलतेज पन्नू ने मुझे बताया कि इसके पीछे संदिग्ध लोगों में मजीठिया का नाम भी शामिल था.मजीठिया ने इस घटना पर या सिद्धू के साथ अपने संबंधों के अन्य पहलुओं पर मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं दिया. सिद्धू अक्टूबर में तब अमृतसर लौटे, जब छिना को पंजाब राज्य औद्योगिक निर्यात निगम का अध्यक्ष बनाया गया.
सिद्धू के करीबी एक अन्य पत्रकार के अनुसार 2009 के चुनाव के बाद अकाली सिद्धू पर हावी रहते थे. पत्रकार ने मुझे बताया कि इसका एक उदाहरण यह था कि अकालियों ने अमृतसर में अपनी पसंद के वरिष्ठ अधिकारियों को तैनात किया था. उन्होंने कहा, "सांसद होने के बावजूद सिद्धू को स्थानीय समितियों में शामिल नहीं किया जाता था. तब से उनके अंदर मजीठिया के खिलाफ रोष पनपने लगा था. सिद्धू का यह भी मानना था कि जहां उन्हें अपनी योग्यता के आधार पर टिकट मिला था, वहीं मजीठिया अपने रिश्तेदारों की वजह से राजनीति में थे."
बीजेपी में सिद्धू के सितारे का गिरना जारी था. केशुभाई पटेल पर अपनी बयानबाजी के कुछ समय बाद, अप्रैल 2013 में, उनकी पत्नी और उस समय बीजेपी की सदस्य नवजोत कौर सिद्धू ने प्रेस में बयान दिया कि उनके पति की मेहनत को "पहचाना नहीं जा रहा और उन्हें दरकिनार कर दिया गया है." उन्होंने बताया कि नवंबर 2012 में सिद्धू ने रियलिटी शो बिग बॉस से एक प्रतियोगी के रूप में अपना नाम वापस ले लिया था. नवजोत कौर ने दावा किया, "नरेन्द्र मोदी के लिए गुजरात में चुनाव प्रचार करने के लिए उन्हें बिग बॉस से बाहर आने के कारण 6 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की क्योंकि हम दोनों एक मिशन और लोगों की सेवा के लिए राजनीति में हैं."
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सिद्धू को मैदान में नहीं उतारा. इंडियन एक्सप्रेस में एक कॉलम के अनुसार, "राजस्व मंत्री और शिअद (शिरोमणि अकाली दल) के अमृतसर प्रभारी मजीठिया के साथ उनका मतभेद एक खुला रहस्य है और शिअद बीजेपी में मौजूदा संकट को यह सुनिश्चित करने के अवसर के रूप में देखता है कि सिद्धू को अमृतसर से चुनाव में न उतारा जाए." साथ ही सिद्धू के पूर्व सहयोगी ने मुझे बताया, “यह वो दिन थे जब पूरे अमृतसर में नवजोत सिद्धू के लापता होने के पोस्टर लगे हुए थे. टीवी पर उनकी निरंतर उपस्थिति और अमृतसर से उनकी अनुपस्थिति के खिलाफ सार्वजनिक आक्रोश का माहौल था, क्योंकि लोगों ने उन पर बहुत विश्वास जताया था. और फिर उनके खिलाफ रोड-रेज का मामला भी था ही.”
सिद्धू की जगह बीजेपी ने जेटली को अमृतसर से मैदान में उतारा और मजीठिया को उनके प्रचार प्रबंधक के रूप में नियुक्त कर दिया. वरिष्ठ पत्रकार और उद्योगपति के अनुसार, शुरुआत में जेटली और सिद्धू के बीच जेटली की उम्मीदवारी को लेकर कोई विवाद नहीं था. वह बताते हैं, "सोनी के हाथों मिली अपनी पिछली तकरीबन शिकस्त से डरे हुए सिद्धू ने न केवल जेटली के चुनाव लड़ने पर जोर दिया, बल्कि यह भी वादा किया था कि वह उनके चुनाव के लिए प्रचार करेंगे." लेकिन जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि सिद्धू जेटली की उमीद्वारी से पूरी तरह अप्रभावित नहीं थे. उन्होंने मीडिया से कहा कि यह उनके "गुरु" के लिए उनका "बलिदान" था. बीजेपी ने सिद्धू को कुरुक्षेत्र और पश्चिमी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्रों से टिकट की पेशकश की, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि वह चुनाव लड़ेंगे तो अमृतसर से वरना नहीं. जेटली के चुनाव प्रचार में सिद्धू स्पष्ट रूप से गैरमौजूद रहे.
उस समय सिद्धू से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने स्थिति को गलत तरीके से संभाला. उनके पूर्व सहयोगी का कहना है, "जेटली साहब ने पटियाला मामले में उन्हें बचाया, अदालत में हर संभव मदद की. लेकिन सिद्धू एहसानफरामोश निकले."
जेटली कांग्रेस के अमरिंदर सिंह से यह चुनाव हार गए थे. पूर्व सहयोगी बताते हैं, "उस चुनाव में कैप्टन से कोई भी हार जाता." लेकिन अमरिंदर ने चुनाव से पूर्व एक साक्षात्कार में कहा था कि अगर वह सिद्धू के खिलाफ होते, तो उन्हें कड़ी टक्कर मिलती. उन्होंने कहा था, "फिलहाल कोई मुकाबला नहीं है. अरुण जेटली कोई उम्मीदवार नहीं हैं."
बीजेपी ने अप्रैल 2016 में सिद्धू को राज्यसभा के लिए नामित किया, लेकिन उन्होंने जुलाई में अपने पद से इस्तीफा दे दिया और सितंबर में पार्टी छोड़ दी. वरिष्ठ पत्रकार और उद्योगपति कहते हैं, "अगर उन्होंने थोड़ा धैर्य दिखाया होता, तो जेटली निश्चित रूप से उन्हें केंद्र में एक मंत्रालय दिलवा देते." जेटली तब वित्त मंत्री थे और उनकी शक्ति चरम पर थी. "लेकिन सिद्धू ने हड़बड़ी में काम किया."
पत्रकार कूमी कपूर ने 2021 में लिखा था, “जेटली का मानना था कि सिद्धू और उनकी राजनेता पत्नी नवजोत कौर ने उनके अमृतसर चुनाव अभियान को नुकसान पहुंचाया था. उन्होंने सुनिश्चित किया कि सिद्धू को बीजेपी से बाहर कर दिया जाए." 2017 की शुरुआत में सिद्धू कांग्रेस में शामिल हो गए. उसके बाद, कपूर आगे लिखती हैं, अमरिंदर ने “सलाह के लिए जेटली की ओर रुख किया. जेटली ने अमरिंदर को चेताया कि सिद्धू आने वाले समय में उन्हें नुकसान पहुंचाएंगे."
सिद्धू की सबसे सार्वजनिक राजनीतिक लड़ाई, जिसमें वह अब विजयी दिखाई पड़ते हैं, अमरिंदर के साथ रही है. सिद्धू के कांग्रेस में शामिल होने से पहले भी दोनों के बीच झगड़े होते थे. उदाहरण के लिए, सिद्धू लुधियाना सिटी सेंटर मामले में एक प्रमुख शिकायतकर्ता थे, जिसमें अमरिंदर और उनका परिवार आरोपी था. लेकिन फिर भी दोनों अपनी सहूलियतों के अनुसार अक्सर गलबहियां करते भी देखे जाते थे. पिछले एक साल से दोनों खुलकर एक दूसरे पर हमलावर रहे हैं और दोनों ने ही अक्सर बहुत से तुच्छ बयान दिए हैं. हालांकि सिद्धू के खिलाफ लगने वाले दो आरोप उन पर भारी पड़ते दिखते हैं: अंधविश्वास पर उनकी अति-निर्भरता और उनके कथित अलौकिक दर्शन, और एक मंत्री के रूप में उनका निराशाजनक प्रदर्शन.
राज्यसभा से इस्तीफे के बाद सिद्धू कथित तौर पर आप और कांग्रेस, दोनों के साथ बातचीत कर रहे थे. अगस्त 2016 में अमरिंदर ने मीडिया से कहा, "सिद्धू में कांग्रेस का डीएनए है और वह हमेशा किसी अन्य पार्टी की तुलना में कांग्रेस में बेहतर रहेंगे." लेकिन सितंबर 2016 में बीजेपी छोड़ने के बाद सिद्धू ने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला किया, और अमरिंदर ने तुरंत इसे महत्वहीन बताकर खारिज कर दिया. आवाज-ए-पंजाब नाम से स्थापित इस मोर्चे को सिद्धू ने अपने करीबी सहयोगी परगट सिंह और पूर्व में अकाली दल में रह चुके बैंस भाइयों के साथ मिलकर बनाया था. एक बयान में सिद्धू ने कहा कि उनका समूह आगामी चुनाव नहीं लड़ेगा, ताकि सत्ता विरोधी वोट को विभाजित न किया जा सके और बादल-अमरिंदर गठजोड़ को इसका फायदा न मिले. थोड़े ही समय में बैंस बंधु आप में जा मिले और तीन महीने में आवाज-ए-पंजाब को भंग कर दिया गया. परगट और सिद्धू भी बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए.
सिद्धू के साथ कुछ महीनों तक काम करने वाले सिमरजीत सिंह बैंस का अनुभव उनके बारे में काफी कुछ कहता है. बैंस कहते हैं, "वह बहुत अनिश्चित इंसान हैं. वह नाश्ते पर कुछ तय करेंगे और शाम तक उसे रद्द कर देंगे. वह अपने आसपास ऐसे लोग चाहते हैं जो उनकी प्रशंसा और चापलूसी करते रहे. बस मेरी जी-हुजूरी करो और मेरे रास्ते में न आओ.'"
बैंस ने मुझे बताया कि वह जब भी सिद्धू के दिल्ली स्थित खेल गांव वाले फ्लैट में जाते थे , तो वहां चार-पांच पुजारी हमेशा हवन करते मिलते थे. “प्रवेश करते ही सिद्धू अपनी उँगलियाँ चटकाते और कहते, ‘चलो अंदर!’” वह उनके गुरु की तरह बर्ताव करते थे." सिद्धू के पूर्व सहयोगी ने कहा कि दिल्ली में उनके फ्लैट और पटियाला और अमृतसर में उनके घरों में हमेशा पुजारी मौजूद होते हैं.
सिद्धू अक्सर अपनी धार्मिकता से प्रेरित होने के विषय पर बोलते रहते हैं. 2017 की शुरुआत में वह चंडीगढ़ प्रेस क्लब की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पोर्टेबल शिव मंदिर लेकर पहुंच गए थे. सिद्धू से जुड़े पांच लोगों ने मुझे बताया कि वह अलग-अलग देवताओं से दिव्य दर्शन मिलने का दावा करते हैं. एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने मुझे पिछले साल सिद्धू के साथ हुई अपनी एक अनौपचारिक मुलाकात के बारे में बताया. उन्होंने कहा, "मुझे जो अजीब लगा वह यह था कि सिद्धू ने दावा किया कि हर रात भगवान शिव और दशम पिता" - सिख गुरु गोबिंद सिंह - "उनके पास आते हैं. उन्होंने कहा कि ये दोनों फिर उन्हें बताते हैं कि उन्हें अगले दिन क्या करना है. फिर उन्होंने कहा कि 'दोनों जैसा कहते हैं, मैं उसे सुबह-सुबह ही समझ लेता हूँ ...खटैक!'" ("खटैक!" सिद्धू का तकिया-कलाम शब्द है, जिसे वो अक्सर अपनी बात को ख़त्म करने या कभी-कभी तालियों के इशारे के लिए इस्तेमाल करते हैं.) उनके पूर्व सहयोगी ने मुझे बताया कि सिद्धू हर रात इस तरह के दिव्य दर्शन मिलने का दावा करते हैं. कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि सिद्धू अक्सर उनसे कहते थे, "मैं अपने पिछले जन्म और इस जीवन में अपने भविष्य के बारे में सब कुछ जानता हूं."
अमरिंदर ने हाल ही में सिद्धू को पांच साल पहले कांग्रेस में लाने के प्रयासों के दौरान हुई एक मुलाकात का ब्योरा साझा किया था. अमरिंदर ने एक साक्षात्कार में बताया, "उन्होंने मुझसे कहा कि वह रोजाना छह घंटे ध्यान करते हैं और एक घंटे भगवान से बात करते हैं." उन्होंने सिद्धू से पूछा कि कैसे? सिद्धू का जवाब था, "बस जैसे हम बात करते हैं." अमरिंदर कहते हैं कि उन्होंने सोनिया गांधी से कहा था कि सिद्धू कांग्रेस के लिए 'अनफिट' हैं, लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी. सिद्धू के कांग्रेस में शामिल होने से कुछ समय पहले उनकी पत्नी, जो एक डॉक्टर भी हैं, ने मीडिया को बताया, “हम ज्योतिष विद्या में बहुत विश्वास रखते हैं. वह किसी खास तारीख पर ही पार्टी में शामिल होंगे. गृह आपको प्रभावित करते हैं."
जब 2017 के राज्य चुनावों से एक महीने पहले सिद्धू को आखिरकार पार्टी में शामिल किया गया, तो अमरिंदर सार्वजनिक रूप से उनके आगमन से खुश थे. उन्होंने मीडिया से कहा, "सिद्धू मेरा बेटा है और वो बिना किसी शर्त पार्टी में शामिल हुआ है." सिद्धू ने 2017 में अमृतसर पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और लगभग तीस हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की. उपमुख्यमंत्री के पद की मंशा रखने की अफवाहों के बीच उन्हें बाद में स्थानीय सरकार के साथ-साथ पर्यटन और सांस्कृतिक मामलों का मंत्री नियुक्त किया गया.
पर सिद्धू और अमरिंदर के रिश्तों में फिर से खटास आने में देर नहीं लगी. जनवरी 2018 में सिद्धू ने दावा किया कि स्थानीय सरकार के मंत्री होने के बावजूद अमरिंदर और कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने उस महीने हुए मेयर चुनावों में उन्हें किसी भी स्तर पर शामिल नहीं किया था. उन्होंने मीडिया से कहा, "इससे मुझे गहरा दुख पहुंचा है." उस वर्ष अमरिंदर सरकार ने रोडरेज मामले की सुप्रीम कोर्ट सुनवाई में सिद्धू को दोषी ठहराने की भी मांग की. सिद्धू के पूर्व सहयोगी ने मुझे बताया कि इसके बाद से ही दोनों के बीच दरार बढ़ती चली गई.
मई 2019 में नवजोत कौर, जो तब तक कांग्रेस में शामिल हो गई थी, ने उस साल लोकसभा चुनाव में चंडीगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी का टिकट नहीं मिलने के लिए अमरिंदर को जिम्मेदार ठहराया. इस बीच सिद्धू ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पर अकालियों के साथ मिले होने का आरोप लगाया. उन्होंने 2015 के बेअदबी मामले में अकालियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए अमरिंदर पर कटाक्ष करने शुरू कर दिए. मई में कई राज्य कैबिनेट मंत्रियों ने सिद्धू से कहा कि अगर उन्हें अमरिंदर पर संदेह है तो वह अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दें. अगले ही महीने "अयोग्य संचालन" का हवाला देते हुए सिद्धू को स्थानीय-सरकारी विभाग से हटाकर बिजली विभाग का प्रभारी बना दिया गया. पर्यटन और संस्कृति विभाग का कार्यभार चन्नी को सौंप दिया गया.
सिद्धू पर आरोप लगते हैं कि उन्होंने स्थानीय-सरकारी विभाग का संचालन ठीक से नहीं किया. इस आरोप के कई समर्थक हैं. अमरिंदर अपने भाषणों अभी भी इस मुद्दे को उठाते हैं. उदाहरण के लिए, जनवरी 2022 में उन्होंने कहा कि सिद्धू ने "अपनी फाइलों को पास नहीं किया." एक राज्य मंत्री के अलावा, जिन्होंने मुझे बताया कि सिद्धू के कार्यालय के उपरांत उनके दफ्तर से लगभग सोलह सौ फाइलें इकठ्ठा की गई थी, कई अधिकारियों और उनके एक दोस्त ने भी मुझे बताया कि वह अक्सर निर्णायक फैसलों पर अपने हस्ताक्षर करने से हिचकिचाते थे.
उनके पूर्व सहयोगी ने मुझे बताया, "उनके ड्राइंग रूम में फाइलों का चट्टा लगा रहता था, पर वह उन पर हस्ताक्षर नहीं करते थे. परेशान आईएएस अधिकारी उनसे हस्ताक्षर की गुहार कर-कर के थक जाते थे. उन्हें हमेशा यह डर लगा रहता था कि लोग उन्हें फंसाने की कोशिश कर रहे हैं और बस वही एकमात्र ईमानदार आदमी हैं."
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने मुझे बताया कि एक बार सिद्धू ने उनसे कहा था, "भगवान ने मुझे पंजाब के लिए भेजा है. मैंने जो कुछ कहा है, वह सही है." अधिकारी को लगता है कि इसी वजह से वह किसी अन्य अधिकारी या विधायक तक पर भरोसा नहीं करते थे. इस वजह से उनकी फैसले लेने की क्षमता डगमगाई रहती थी. अधिकारी कहते हैं, "कई घंटे बर्बाद करने के बाद भी वह फैसला नहीं कर पाते थे. या तो वह फाइल पर हस्ताक्षर नहीं करते थे, और अगर कर देते थे तो दो दिन के अंदर फोन लगाकर कहते थे, 'इसे क्लियर करने का फैसला किसने किया? इसे वापस लेकर आओ.'"
इस दौरान सिद्धू के साथ काम करने वाले एक सरकारी अधिकारी इस बात के पीछे एक अलग तर्क देते हैं. उनका कहना है कि सिद्धू किसी भी ऐसी फाइल पर हस्ताक्षर करने से मना कर देते थे, जो पूर्व-निर्धारित नियमों पर खरी नहीं उतरती थी. इसी वजह से फाइलों का एक अंबार लग गया था. अधिकारी ने कहा कि सिद्धू को एक बार उनके पुराने दोस्त और सहयोगी परगट से जुड़ी एक फाइल दी गई थी. "उन्होंने यह कहते हुए फाइल को फेंक दिया था कि 'भले ही यह मेरे पिता की फाइल क्यों न हो, मैं इस पर समझौता नहीं कर सकता."
कई अधिकारियों का कहना है कि सिद्धू की अनिश्चितता से काम में भी रूकावट आती थी. सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी का कहना है कि सिद्धू ने अपने विभागों के लिए सात अधिकारियों को चुना और फिर उन सभी को बाहर कर दिया. हालांकि अधिकारी यह भी कहते हैं कि "लेकिन फिर भी वह कई अन्य राजनेताओं की तुलना में अधिक ईमानदार हैं." एक अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी ने मुझे बताया कि अपनी सभी कमियों के बावजूद सिद्धू उदार भी हैं. उन्होंने दावा किया कि एक बार सिद्धू ने अमृतसर में वृक्षारोपण अभियान के लिए अपनी जेब से एक करोड़ रुपए का योगदान दिया था.
स्थानीय-सरकारी विभाग से निकाले जाने के बाद सिद्धू ने राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. यह जुलाई 2019 की बात थी और इसके बाद वह लगभग पांच महीने के लिए पूरी तरह से किसी की पहुंच और लोगों की नजर से दूर चले गए.
इसके बाद उन्हें सीधा नवंबर 2019 में करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के अवसर पर देखा गया. करतारपुर गलियारे को सीमा पार की एक वीजा मुक्त जगह और पाकिस्तान में गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत से जोड़ने वाले धार्मिक मार्ग के रूप में खोला गया. वहां मौजूद अपने सहयोगियों से बात करते हुए सिद्धू ने उन्हें बताया कि अपने अवकाश के दौरान “मैं हर दिन 15-20 घंटे ध्यान कर रहा था. मैं दूसरी दुनिया में था." उन्होंने कार्यक्रम में एक भाषण के साथ अपनी एक मजबूत छाप छोड़ी और गलियारे को दोनों मुल्कों के बीच अमन की निशानी बताया. उन्होंने ऐसा करने के लिए मोदी और इमरान खान दोनों को धन्यवाद दिया. अपनी इस यात्रा को बड़े पैमाने पर मिले स्वागत के बाद भी सिद्धू अगले कुछ और महीनों तक लो प्रोफाइल में रहे.
धीरे-धीरे सिद्धू कांग्रेस आलाकमान के साथ बातचीत की सीढ़ियां बनाते दिखे. फरवरी 2020 में पार्टी ने उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए एक स्टार प्रचारक घोषित किया, लेकिन उन्होंने प्रचार में भाग नहीं लिया. महीने के अंत में सिद्धू ने प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी दोनों से मुलाकात की. उन्होंने एक प्रेस बयान में लिखा, "उन्होंने मुझे धैर्यपूर्वक सुना और मैंने उन्हें पंजाब की मौजूदा स्थिति के साथ-साथ राज्य के पुनरुत्थान और पुनरुद्धार के रोडमैप से अवगत कराया." सिद्धू के करीबी एक कांग्रेस विधायक ने मुझे बताया, "वह थोड़े अतिवादी हैं लेकिन मैंने देखा है कि वो दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के सामने शांत नजर आते हैं." सिद्धू स्पष्ट रूप से केवल राज्य स्तर पर अपनी पार्टी की आलोचना करते हैं, लेकिन गांधी परिवार की नहीं. हालांकि हमेशा ऐसा नहीं था. विपक्षी नेता बताते हैं कि कांग्रेस में शामिल होने से पहले सिद्धू सोनिया गांधी को "मुन्नी" कहकर उनका मजाक उड़ाते थे.
2020 की गर्मियों तक सिद्धू वापस आ चुके थे. उन्होंने अमरिंदर के खिलाफ अपने हमले तेज कर दिए. अफवाहें थी कि आप और अकाली दल, दोनों ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे. सिद्धू ने दिल्ली में बीजेपी सरकार द्वारा विवादास्पद रूप से लागू किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों का भी समर्थन किया.
अगले वर्ष तक यह स्पष्ट हो गया था कि जहां कांग्रेस में सिद्धू का सितारा बुलंद हो रहा था, वहीं पार्टी के भीतर सत्ता-विरोधी लहर अमरिंदर को नीचे खींच रही थी. सिद्धू के लिए एक बड़ी भूमिका के बारे में खुली अटकलें थी और मुख्यमंत्री के साथ उनके संबंधों को सुधारने की कोशिशें भी जोरों पर थी. मार्च में अमरिंदर ने कहा, "हर कोई चाहता है कि नवजोत हमारी टीम का हिस्सा बने." उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में यहां तक कहा कि, "अगर उन्हें मेरी नौकरी चाहिए, तो वह इसे ले सकते हैं." इस बीच सिद्धू अपने रुख से पीछे नहीं हटे. वह लगातार मांग करते रहे कि 2015 की बेअदबी और गोलीबारी के मामले और नशे के व्यापर की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए. अप्रैल में अमरिंदर ने पलटवार करते हुए बयान दिया कि अगर सिद्धू ने उन्हें पटियाला में चुनौती दी, तो वह उन्हें इतनी बुरी तरह हराएंगे कि सिद्धू की जमानत जब्त हो जाएगी.
जल्द ही पंजाब कांग्रेस के अन्य नेता भी अमरिंदर के खिलाफ लामबंद होने लगे और सिद्धू ने उनसे संपर्क साधना शुरू कर दिया. उन्होंने प्रहार करते हुए सार्वजनिक रूप से दावा किया कि पार्टी के विधायकों को भी लगता है कि राज्य में अब भी बादल ही सरकार चला रहे हैं. सिद्धू ने कहा कि वह किसी पद की तलाश में नहीं हैं और केवल राज्य की प्रगति के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन मीडिया अमरिंदर के खिलाफ उनके विरोध को कुछ इस तरह दिखा रहा है जैसे वह पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष या उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग कर रहे हों.
जून और जुलाई में सिद्धू कई बार गांधी परिवार से मिले. 13 जुलाई को उन्होंने कांग्रेस पर निशाना लगाते हुए ट्वीट किया, "हमारे विपक्षी दल आप ने हमेशा पंजाब के लिए मेरे विचारों और काम का आदर किया है." इसके पांच दिन बाद ही कांग्रेस ने सिद्धू को पंजाब इकाई का प्रमुख घोषित कर दिया. एक हफ्ते के भीतर सिद्धू ने अपना शक्ति प्रदर्शन करते हुए पार्टी के पंजाब के सभी विधायकों को अपने साथ स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने के लिए आमंत्रित किया. लगभग साठ विधायकों ने उनका निमंत्रण स्वीकार किया. बढ़ते विरोध के बीच अमरिंदर ने 18 सितंबर को अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
आने वाले चुनावों में सिद्धू के दो लक्ष्य दिखाई पड़ते हैं. सबसे पहले अमृतसर पूर्व निर्वाचन क्षेत्र में मजीठिया के खिलाफ जीत, जिसे उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी ने सिद्धू के खिलाफ लड़ने के लिए चुना है. वहीं उनका दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य संभवतः पंजाब का मुख्यमंत्री बनना है.
उनकी मुख्यमंत्री बनने की राह चुनौतियों से भरी हुई है. जहां एक ओर कई रिपोर्ट दावा करती हैं कि चन्नी और सिद्धू दोनों मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, वहीं सिद्धू हमेशा से अपनी इस इच्छा को सार्वजनिक रूप से बताने से कतराते रहे हैं और केवल इतना ही कहते हैं कि वह वही चाहते हैं, जो पंजाब के लिए सही हो. उनके पूर्व सहयोगी बताते हैं कि कुछ समय पहले सिद्धू ने उनसे कहा था, ''अब मैं किसी को सीट दिलाने में मदद नहीं करूंगा.'' पूर्व सहयोगी ने आगे यह भी बताया कि, "उनकी नजर हमेशा सीएम पद पर रहती थी."
यह स्पष्ट नहीं है कि सिद्धू वास्तव में पंजाब की समस्याओं के विषय में गंभीर हैं या नहीं. सर्जरी के प्रोफेसर रहे प्यारे लाल गर्ग, जो राज्य के कई सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के बारे में मुखर हैं, पहले मानते थे कि सिद्धू जमीनी मुद्दों को लेकर गंभीर हैं. सिद्धू ने अगस्त में पंजाब कांग्रेस प्रमुख बनाए जाने के तुरंत बाद चार सलाहकार नियुक्त किए थे. गर्ग उनमें से एक थे. उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें सिद्धू के साथ केवल एक ही बार तीन घंटे की एक बैठक में बात करने का मौका मिला.
"उनके सवाल प्रभावशाली थे," गर्ग ने बताया. सिद्धू चाहते थे कि पंजाब में निजी और कभी-कभी आपराधिक हितों और राजनीतिक साम्राज्यों से जुड़े परिवहन, शराब और रेत खनन जैसे क्षेत्रों का प्रभार सरकार द्वारा संभाला जाए और पूरा राजस्व राजकोष में भेजा जाए. गर्ग ने बताया कि इसके अलावा "उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनकी किसी भी गलती के लिए खुले तौर पर उनकी आलोचना करूं."
लेकिन सितंबर के अंत तक गर्ग ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. उन्होंने मीडिया से कहा, "वह मेरी आवाज का गला घोंटना चाहते हैं. लेकिन जब तक मैं जिंदा हूं, तब तक उनके इरादे पूरे नहीं होंगे." जब मैंने इस जनवरी में गर्ग से बात की, तो सिद्धू पर उनकी प्रतिक्रिया काफी हद तक सकारात्मक थी. उन्होंने कहा कि सिद्धू भले ही किसी पद के पीछे हों, लेकिन वह "बिकाऊ" नहीं हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार पन्नू का कहना है कि मदन लाल जलालपुर को सिद्धू का खास समर्थन हासिल है. जलालपुर घनौर का प्रतिनिधित्व करने वाले एक ऐसे विधायक के रूप में जाने जाते हैं जो सिद्धू के खेमे में हैं. उनपर अकालियों ने 2021 में अवैध शराब व्यापार से संबंध रखने का आरोप लगाया था. कांग्रेस सदस्यों ने बाद में पार्टी से उन्हें आगामी चुनावों में टिकट न देने की राय जताई, लेकिन सिद्धू फिर भी उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में खड़े रहे.
कुछ लोगों का मानना है कि सिद्धू महज अपनी सुविधा के हिसाब से समय-समय पर पंजाब से जुड़े संवेदनशील मुद्दे उठाते हैं. उनकी मांग की है कि अकाली दल-बीजेपी शासन द्वारा हस्ताक्षरित बिजली-खरीद समझौतों को कानून के माध्यम से रद्द कर दिया जाए. पन्नू ने बताया, "जुलाई 2021 में वह अचानक बिजली समझौतों की गड़बड़ियों के बारे में बोलने लगे. जब उनके पास आधिकारिक शक्ति थी, तब उन्होंने उन्हें रद्द क्यों नहीं किया?" 2019 में सिद्धू ने बिजली विभाग का प्रभार संभालने की पेशकश को खारिज कर दिया था. पन्नू ने यह भी बताया कि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन का हिस्सा रहने के दौरान सिद्धू ने कभी भी बेअदबी के मामलों में अपने तल्ख़ तेवर नहीं दिखाए.
दिसंबर 2021 के अंत में कथित बेअदबी और लिंचिंग की दो व्यापक रूप से प्रचारित घटनाओं पर सिद्धू की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि वह किस तरह पंजाब की मुश्किलों को केवल रणनीतिक स्तर पर इस्तेमाल करते हैं. पहली घटना में गुरु ग्रंथ साहिब को अपवित्र करने के कथित प्रयास के बाद स्वर्ण मंदिर के अंदर एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. दूसरे ही दिन कपूरथला में एक और व्यक्ति की बेअदबी के आरोप में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, हालांकि बाद में पुलिस को वहां बेअदबी का कोई सबूत नहीं मिला. सिद्धू ने तुरंत घोषणा की कि बेअदबी की घटनाओं के दोषियों को "सार्वजनिक रूप से फांसी दी जानी चाहिए." सिखों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के डर से उन्होंने मामले में हुई लिंचिंग की कोई निंदा नहीं. चन्नी सहित पंजाब के अधिकांश राजनेता भी इन मामलों में हुई लिंचिंग पर चुप्पी साधे नजर आए.
पन्नू ने मुझे बताया, “किसी भी सफल राजनेता में दो गुण होने चाहिए. धैर्य और दूरदृष्टि. सिद्धू में दोनों की कमी है. जगमीत सिंह बराड़, सुखपाल सिंह खैरा और बीर देविंदर सिंह ऐसे राजनेताओं के उदाहरण हैं, जो इसी कारण विफल रहे." पन्नू ने कहा कि सिद्धू स्पष्ट रूप से एक 'टीम प्लेयर' नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सिद्धू "गृहिणियों को प्रति माह 2,000 रुपए, कॉलेज जाने वाली महिलाओं को स्कूटी और डिजिटल टैब जैसे असंभव मुफ्त उपहार देने की घोषणा कर रहे हैं." सिद्धू के वादों को उनके "पंजाब मॉडल" में सूचीबद्ध किया गया है. यह एक ऐसा मॉडल जान पड़ता है, जो अकेले सिद्धू ने तैयार किया है. पन्नू ने कहा, "अगर वह मुख्यमंत्री बनते हैं, तो सरकार को एक ही इंसान चलाएगा." इसके उलट चन्नी को लेकर अभी तक किसी ने भी इस तरह की चिंता नहीं जताई है.
चन्नी की हालिया नियुक्ति को कांग्रेस द्वारा दलित वोटों को भुनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन पार्टी ने राज्य में अनुसूचित जाति समुदायों के लिए बहुत कम जमीनी काम किया है. जनवरी में राज्य के पूर्व मंत्री और फगवाड़ा से तीन बार के विधायक जोगिंदर सिंह मान पचास साल कांग्रेस में रहने के बाद आप में शामिल हो गए. मान ने मुझसे कहा, ''सिद्धू ने मेरे जैसे वरिष्ठ तक का अपमान किया. जब मैं उनसे मिला, तो उन्होंने मुझे नजरंदाज कर दिया और जानबूझकर मेरी तरफ देखा तक नहीं. उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैंने उस पोस्ट मैट्रिक दलित छात्र छात्रवृत्ति घोटाले का मुद्दा उठाया जिससे लाखों छात्रों को नुकसान हुआ था. मान 2019 में अनुसूचित जातियों और पिछड़े समुदायों के छात्रों के लिए आवंटित करोड़ों रुपए की राशी की कथित हेराफेरी का जिक्र कर रहे थे.
चन्नी के साथ भी पूर्व में विवाद जुड़े रहे हैं, हालांकि उनके विवादों की संख्या सिद्धू से कम है. इनमें से सबसे गंभीर मामला 2018 में सामने आया, जब एक महिला आईएएस अधिकारी ने उन पर अनुचित मैसेज भेजने का आरोप लगाया. इससे पहले 2016 में चन्नी ने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में बोलते हुए सबका ध्यान खींचा था. कांग्रेस की उपलब्धियों के बारे में बताते हुए चन्नी ने कहा कि अमरिंदर ने राज्य की सड़कों पर 'पैचवर्क' करवाया है. इस बयान के लिए बादल परिवार और आप ने उन्हें जमकर ट्रोल किया. जब वह मुख्यमंत्री बने, तो ये दोनों घटनाएं फिर से चर्चा में आ गई. जनवरी में चन्नी के भतीजे का नाम एक अवैध रेत खनन मामले से जोड़ा गया. लेकिन अब तक कांग्रेस के भीतर उनकी स्थिति पर इसका कोई असर नहीं नजर आता है.
इसके उलट चन्नी ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी उपयुक्तता से जुड़े संदेह को काफी हद तक आशावाद में बदला है. इसमें उनके सुलभ और शांत आचरण की बड़ी भूमिका रही है. इस जनवरी में पंजाब में प्रधानमंत्री मोदी के काफिले को किसानों के एक जत्थे द्वारा की गई नाकेबंदी के कारण एक फ्लाईओवर पर रोक दिया गया था. केंद्र सरकार ने इसे एक बड़ी सुरक्षा चूक माना और बीजेपी नेताओं ने इस घटना को प्रधानमंत्री की हत्या के प्रयास के रूप में प्रचारित किया. लेकिन चन्नी ने बेहद शांत तरीके से इन आरोपों का मुकाबला किया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की जान को कोई खतरा नहीं था और अगर सुरक्षा में कोई चूक हुई है, तो इसकी जांच कराई जाएगी. उन्होंने कहा, "मैं अपने लोगों पर लाठीचार्ज या फायरिंग का आदेश नहीं देने वाला हूं."
सत्ता संभालने के बाद से चन्नी ने सिद्धू की लंबे समय से चली आ रही मांगों में से एक को पूरा किया: दिसंबर में पंजाब के अधिकारियों ने आखिरकार मजीठिया से जुड़े एक ड्रग्स केस की जांच के संबंध में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की.
इस बीच सिद्धू ने अपनी गैर-भरोसेमंद छवि में कोई बदलाव नहीं किए हैं. दिसंबर 2021 में वह अपने लंबे समय के सहयोगी परगट की एक चुनावी रैली में उपस्थिति का वादा कर गायब रहे. उन्होंने परगट के फोन का भी कोई जवाब नहीं दिया. चन्नी और सुनील जाखड़ की उपस्थिति में संपन्न हुई इस रैली से सिद्धू की अनुपस्थिति पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस की आलाकमान को नागवार गुजरी.
जनवरी में सिद्धू ने चन्नी की उपस्थिति के बिना ही अपना "पंजाब मॉडल" लॉन्च किया, जिसे उन्होंने पंजाब की सभी समस्याओं का इलाज बताया. इसके पहले और बाद से वह हर संभव मौके पर चन्नी पर हमले करते नजर आए हैं. नवंबर 2021 में चन्नी सरकार ने घोषणा की कि राज्य के निवासियों को खदान से 5.50 रुपए प्रति क्यूबिक फीट की निश्चित कीमत पर रेत मिलेगी. सिद्धू ने अगले महीने एक जनसभा में कहा, "कई घोषणाएं हो सकती हैं." उन्होंने दावा किया कि अगर उनके पंजाब मॉडल को मंजूरी मिलती है, तो रेत की एक पूरी ट्रॉली 1000 रुपए में उपलब्ध होगी.
चन्नी ने कभी-कभी सिद्धू पर पलटवार भी किए हैं. दिसंबर में सिद्धू ने एक जनसभा में कहा कि कांग्रेस विधायक नवतेज सिंह इतने सक्षम हैं कि वह “किसी स्टेशन-हाउस अधिकारी की पैंट गीली करवा सकते हैं.” एक अन्य रैली में भी कांग्रेस के एक दूसरे नेता अश्विनी सेखरी की प्रशंसा करते हुए भी उन्होंने अपनी इस टिप्पणी को दोहराया. पुलिस का अपमान करने वाली इन टिप्पणियों के लिए सिद्धू की काफी आलोचना हुई. महीने के अंत में पंजाब सशस्त्र पुलिस परिसर में एक भाषण के दौरान चन्नी ने अपने प्रतिद्वंदी पर अप्रत्यक्ष हमला करते हुए कहा : "जो भी अपराधिक और असामाजिक तत्व हैं, उनकी पैंट पंजाब के पुलिसकर्मी को देख कर गीली हो ही जाती है."
लेकिन चन्नी अधिकांश सिद्धू की बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. वह जब कुछ कहते भी हैं, तो भी उनके शब्द बेहद नपे-तुले होते हैं. एक टेलीविजन साक्षात्कार में सिद्धू की उनकी सरकार की नापसंदी का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसे लोग पसंद हैं, जो "उनकी आलोचना करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं." सिद्धू की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के बारे में पूछे जाने पर चन्नी ने कहा कि हर कोई "ख्वाब देखने के लिए स्वतंत्र" है.
तमाम रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि चन्नी और सिद्धू, दोनों ही कांग्रेस की ओर से पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के लिए अपना पूरा जोर लगा रहे हैं. पर इन अटकलों के बावजूद सिद्धू अभी भी सार्वजनिक रूप से इस पद में कोई रुचि न होने का दावा कर रहे हैं. इससे पहले कांग्रेस की पंजाब इकाई का प्रमुख बनने की अटकलों के दौरान भी उन्होंने यही रवैया अपनाया था. प्रमुख का पदभार संभालने से कुछ दिन पहले ही सिद्धू ने मीडिया से कहा था, "मेरे पास बहुत सारे प्रस्ताव आए, लेकिन मैंने सभी को मना कर दिया. यहां सबसे पहले एक मकसद जरूरी है. एक ऐसी परियोजना जो पंजाब को उसकी खोयी हुई गरिमा लौटाएगी. जो इस काम को पूरा करेगा, मैं उनके पीछे चलूंगा. बिना किसी पद की चिंता किए मैं दिन रात आपके लिए काम करूंगा. लेकिन अगर आप इसे पूरा नहीं करते हैं, तो फिर यह काम मैं करूंगा. मैं इसे लोगों तक, लोगों के बीच, लोगों से, और लोगों के लिए ले जाऊंगा.” वह कहते हैं कि उनकी लड़ाई "व्यवस्था" के खिलाफ है. "यह व्यवस्था दो शक्तिशाली परिवारों द्वारा नियंत्रित, संचालित और तैयार की गई है ... यह परिवार कायदे-कानून को ताक पर रखते आए हैं."
सिद्धू ने 13 जनवरी 2022 को ट्वीट किया, "एक ऐसी व्यवस्था जो हमारे गुरु को न्याय नहीं दिला सकती और नशे के कारोबार में लिप्त बड़ी मछलियों को दंडित नहीं कर सकती, ऐसी व्यवस्था को जमींदोज करना ही होगा. मैं फिर कहता हूं कि मैं किसी पद के पीछे नहीं भाग रहा हूं. अब या तो यह व्यवस्था रहेगी या नवजोत सिंह सिद्धू.”
सिद्धू के करीबी रहे कांग्रेस विधायक ने मुझे बताया, ''उन्हें सब कुछ चाहिए. वह सब कुछ चाहते हैं, लेकिन कहते हैं कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए."
(कारवां अंग्रेजी के फरवरी 2022 अंक की इस कवर स्टोरी का हिंदी में अनुवाद कुमार उन्नयन ने किया है. मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)