कांग्रेस की पंजाब इकाई में गहमागहमी का दिन था. “सुखी पाजी, अगर मैं मुख्यमंत्री बन भी जाऊं, तो भी सरकार तो आपने ही चलानी है. इसलिए आप ही मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालें.” इस बातचीत के दौरान वहां मौजूद पार्टी के एक सदस्य का कहना है कि ये शब्द नवजोत सिंह सिद्धू के थे, जो उन्होंने सुखजिंदर सिंह रंधावा से कहे थे. “चलिए घोषणा करते हैं.”
यह तारीख थी 19 सितंबर 2021. इससे एक दिन पहले ही कांग्रेस नेता और पंजाब के दो बार के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पार्टी की राज्य इकाई में अंदरूनी रस्साकस्सी के बीच अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. अमरिंदर के खिलाफ बागी धड़े का नेतृत्व उसी वर्ष जुलाई में राज्य इकाई के प्रमुख के रूप में नियुक्त किए गए सिद्धू और कांग्रेस के पुराने नेता व गुरदासपुर से विधानसभा के तीन बार के सदस्य रंधावा कर रहे थे. वहां मौजूद कांग्रेस सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि 19 सितंबर की सुबह सिद्धू आश्वस्त थे कि रंधावा को ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए.
पूरे दिन कांग्रेस के विधायकों को अपनी पसंद के मुख्यमंत्री की पैरवी के लिए चंडीगढ़ के जेडब्ल्यू मैरियट होटल और एक-दूसरे के घरों के अंदर-बाहर दौड़-भाग करते देखा जा सकता था. सिद्धू, रंधावा और कुछ अन्य कांग्रेसी नेता पार्टी के आलाकमान (गांधी परिवार) द्वारा चयन प्रक्रिया की निगरानी के लिए नियुक्त किए गए तीन सदस्यों के साथ मैरियट में थे. वहां मौजूद कांग्रेस सदस्य के अनुसार पर्यवेक्षकों में से एक ने स्पष्ट किया था कि वह सिर्फ अगले पांच महीने के लिए किसी को मुख्यमंत्री नियुक्त करना चाह रहे हैं क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में सिद्धू का नाम तय था.
राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने मुझे बताया कि मामले को सुलझाने के लिए पर्यवेक्षकों ने पार्टी के सभी विधायकों को मतदान के लिए बुलाया. जाखड़ ने कहा कि पंजाब कांग्रेस में ऐसी वोटिंग आखिरी बार 1977 में हुई थी. 2021 की इस अंदरूनी वोटिंग के अंतिम परिणाम के बारे में वह कहते हैं: “मुझे 42 वोट मिले. सुखजिंदर रंधावा को 16 वोट मिले. महारानी परनीत कौर को 12 वोट मिले.” पटियाला से सांसद परनीत अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं. जाखड़ ने बताया कि राज्य के तत्कालीन मंत्री और राज्य विधानसभा में विपक्ष के पूर्व नेता चरणजीत चन्नी को मात्र 2 वोट मिले. “और... सिद्धू को शायद 6 वोट मिले थे.”
तब तक सिद्धू की मंशाओं में भी फेरबदल हो चुका था. उस दिन वहां मौजूद कांग्रेस सदस्य के अनुसार सिद्धू की मांग थी, “न सुखी, न जाखड़. मुझे मुख्यमंत्री बनाओ.” जाखड़, जो एक पंजाबी हिंदू हैं, ने मुझे बताया कि उनकी पार्टी के साथी नेताओं ने फैसला किया कि सिख-बहुल राज्य में एक हिंदू को मुख्यमंत्री बनाना ठीक नहीं होगा. “सुनील को बना दिया तो आग लग जाएगी पंजाब में,” जाखड़ यह वाकया याद करते हुए बताते हैं. उन्होंने कहा कि पंजाब में हिंदू-सिख का दोहरा मापदंड अपनाना “एक पूरे समुदाय के खिलाफ भेदभाव” करने के बराबर है.
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