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7 साल की बच्ची के लिए मां की असमय मौत से बड़ा दुर्भाग्य क्या होता? उसके पिता, जो शादी ही नहीं करना चाहते थे, पत्नी की मौत के बाद बेटी के प्रति उदासीन हो गए. चिड़चिड़ी, सख़्त दादी ने उस पर हाथ उठाने का कोई मौक़ा न गंवाया. पारिवारिक स्नेह से बच्ची पूरी तरह अनजान थी.
लेकिन बेटी की जिंदगी पांच साल बाद, 1988 में, बदल गई. उस साल पिता उसे कोल्लम जिले के एक मछुआरों के गांव वल्लिकावु ले गए और वहां 30 साल की एक अविवाहिता के दर्शन करवाए. पिता ने अपनी बेटी से कहा, "यह हैं अम्मा जो अब तुम्हारा ख्याल रखेंगी." उस महिला ने मुस्कराकर लड़की की ओर देखा और 'मोलू' कहकर गले लगा लिया. उस लड़की ने मुझे बताया, "शायद पहली बार किसी ने मुझे इस तरह गले लगाया था. मैं सातवें आसमान पर पहुंच गई."
इसके बाद लड़की को वल्लिकावु जाने का बेसब्री से इंतजार रहता. फिर जल्द ही वह कोल्लम में एक खंडहरनुमा भवन पर बने अनाथालय में रहने लगी. वह सुधामणि इदमन्नेल की, जिन्हें माता अमृतानंदमयी देवी के नाम से जाना जाता है, देख-रेख में तीन दशक से अधिक समय तक रही. आज सुधामणि इदमन्नेल भारत के सबसे प्रमुख आध्यात्मिक संस्थानों में एक की सर्वेसर्वा हैं.
बच्चों की औपचारिक शिक्षा के प्रति अमृतानंदमयी की प्रतिबद्धता ने लड़की को अम्मा का मुरीद बना दिया. उनके करीब होने का एहसास रोमांचित कर देने वाला था. इस पूर्व सेविका ने बताया कि अमृतानंदमयी और उनके नज़दीकी सेवादारों की बातों पर उसका अंधविश्वास था.
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