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12 मई, 2025 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन बिहार के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान, बोधगया स्थित महाबोधि विहार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. सोशल मीडिया में आईं उस कार्यक्रम की तस्वीरों में दिखा कि गौतम बुद्ध की पूजा एक हिंदू पुजारी के हाथों हो रही थी. राज्य के संवैधानिक प्रमुख की हैसियत से बौद्ध स्थल में आयोजित हिंदू अनुष्ठान में भाग लेने को राष्ट्रीय सौहार्द का प्रतीक बता कर प्रचारित किया तो जा सकता है, लेकिन वास्तव में वह, कुछ किलोमीटर दूर हो रहे विरोध प्रदर्शन को लेकर बिहार सराकर की उदासीनता को दर्शाता है.
दोमुहान रोड पर जयप्रकाश पार्क के निकट सरकारी ज़मीन पर बौद्ध भिक्षु बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 (बीटीए) को निरस्त करने की मांग को लेकर 1 मार्च से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं. अखिल भारतीय बौद्ध मंच के महासचिव और विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे आकाश लामा ने मुझे बताया, ‘सभी धर्मों का अपने पवित्र स्थानों पर नियंत्रण होता है. केवल बौद्धों के पास बोधगया में यह अधिकार नहीं है.’
भिक्षुओं का मुख्य विवाद बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति की संरचना को लेकर है, जिसे बीटी अधिनियम के तहत मंजूरी दी गई है. समिति में राज्य सरकार द्वारा नामित आठ सदस्य, जिसमें चार हिंदू और चार बौद्ध होते हैं. गया के जिला मजिस्ट्रेट इस समिति के पदेन अध्यक्ष होते हैं. वर्तमान में समिति में डीएम को छोड़कर चार बौद्ध और दो हिंदू सदस्य हैं.
यह विरोध प्रदर्शन 12 फरवरी से चल रहा है, जब लगभग दो दर्जन भिक्षुओं ने विहार परिसर के अंदर कानून का विरोध करने के लिए भूख हड़ताल की थी. 27 फरवरी को मामला तब बिगड़ गया जब जिला प्रशासन और पुलिस ने उन्हें वहां से जबरन हटा दिया. विरोध स्थल पर 100 से ज़्यादा भिक्षुओं ने वॉटरप्रूफ छतरी के नीचे डेरा डाला हुआ है और एक अस्थायी रसोई बना कर लंबी लड़ाई के लिए कमर कस चुके हैं.
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