लक्षित हिंसा से उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुसलमानों में डर, कहा पुलिस पर नहीं रहा यकीन

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में 23 फरवरी से मुस्लिम विरोधी हिंसा जारी है. हिंसा कर रहे लोग “जय श्रीराम”, “एनआरसी होकर रहेगा”, “मोदी जी आगे बढ़ो” जैसे नारे लगा रहे हैं. मयंक मखीजा
27 February, 2020

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24 फरवरी को रात लगभग 11 बजे उत्तर-पूर्वी दिल्ली की मौजपुर रोड के बाबरपुर जंक्शन पर लाठी-डंडे लिए करीब 200 लोगों ने भगवा झंडे लहराते हुए सारा ट्रैफिक जाम कर दिया. इन लोगों ने केसरिया स्कार्फ पहना था और उनके माथे पर तिलक लगा था. दक्षिणपंथी हिंदुओं की भीड़ "एक ही नाम, जय श्री राम" और "हर हर महादेव" के नारे लगा रही थी. यह हिंदू सर्वसत्तावाद का खुला प्रदर्शन था. लगभग एक दर्जन औरतें जंक्शन के बीच में बैठी थीं और हनुमान चालीसा का पाठ कर रही थीं. भीड़भाड़ के बीच कुछ लोग विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 के समर्थन में तख्तियां लिए खड़े थे.

हथियारबंद हिंदू भीड़ ने बाबरपुर, मौजपुर, कर्दमपुरी, चांद बाग, गोकलपुरी, भजनपुरा, यमुना विहार, विजय पार्क और जाफराबाद में मुस्लिम इलाकों को निशाना बनाया है. ये सभी क्षेत्र दिल्ली के उत्तर पूर्व जिले में आते हैं. लोक सभा में भारतीय जनता पार्टी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा में अब तक कई लोग मारे गए हैं, लेकिन सभी मृतकों की पहचान या उनकी मौत कैसे हुई, इस पर स्पष्टता नहीं है. मौजपुर के कम से कम आधा दर्जन मुस्लिम निवासियों ने मुझे बताया कि सीएए समर्थकों ने 23 फरवरी को उन पर उस वक्त हमला किया, जब वे काम से लौटकर वापस घर जा रहे थे. हिंसा के बाद, 24 फरवरी की रात तक दिल्ली पुलिस ने चांद बाग, गोकलपुरी, भजनपुरा और यमुना विहार के इलाकों को बंद कर दिया. उस रात मैं बस जाफराबाद, बाबरपुर, मौजपुर और विजय पार्क ही जा सका. ये सभी पांच किलोमीटर के दायरे में हैं. इन क्षेत्रों में मुस्लिमों ने मुझे बताया कि उनके मोहल्लों में सीएए समर्थकों ने आक्रामक पथराव किया. जाफराबाद के एक मुस्लिम निवासी ने मुझे बताया कि 24 फरवरी की सुबह मौजपुर के पास धर्मपुरी गली में हिंदुओं ने अपने घरों के बाहर भगवा झंडे लगा लिए थे ताकि सीएए समर्थक उनके घरों पर हमला न करें.

24 फरवरी की रात को बाबरपुर जंक्शन पर दक्षिणपंथी हिंदू भीड़ पड़ोस के हिंदू इलाकों- उत्तर में यमुना विहार, दक्षिण में सीलमपुर, पश्चिम में मौजपुर और पूर्व में छज्जूपुर से आई थी. हिंदू भीड़ के कई सदस्य अपनी उच्च जाति गौरव का प्रदर्शन कर रहे थे. उनमें से कई आदमियों ने ऐसी टी-शर्ट पहनी थी, जिन पर "ब्राह्मण," "जाट" और "जय श्री राम" लिखा था. उनके साथ बातचीत करने पर मुझे यह पता चला कि उनमें से कई राजपूत और बनिया जैसी अन्य उच्च जातियों के थे. पिछले दिनों स्थानीय मुस्लिम महिलाओं के एक समूह ने जाफराबाद मेट्रो स्टेशन की ओर जाने वाली मौजपुर रोड घेरी हुई थी, जिसके विरोध में भीड़ इकट्ठा हुई थी. बाबरपुर, मौजपुर, जाफराबाद, सीलमपुर और यमुना विहार के आसपास के क्षेत्रों में मुस्लिमों की आबादी लगभग 30 प्रतिशत है. जाफराबाद और सीलमपुर की मुस्लिम महिलाएं पिछले दो महीनों से सीलमपुर में सड़क के किनारे बैठीं सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र और जाफराबाद के निवासी कबीर खान ने मुझे बताया कि 23 फरवरी को सीलमपुर में सीएए विरोधी समूह के एक गुट ने सड़क पर कब्जा करने का फैसला किया क्योंकि वे अपनी मांगों के लिए केंद्र सरकार की उदासीनता से निराश थे. खान ने कहा कि मेट्रो स्टेशन के पास दो तरफा सड़क का सिर्फ एक हिस्सा घेर लिया गया था ताकि सरकार और न्यायपालिका का ध्यान आकर्षित किया जा सके. दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में सड़क घेर कर विरोध चल रहा है. जहां शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त वार्ताकारों के साथ बातचीत कर रहे हैं, वहीं जाफराबाद और सीलमपुर के विरोध प्रदर्शन काफी हद तक लोगों की नजरों से गायब रहे और मीडिया के साथ-साथ सरकार और न्यायपालिका ने भी इसकी अनदेखी की है.

बाबरपुर में हिंदुओं द्वारा किया गया विरोध प्रतिक्रियावादी दिखाई दिया और मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने के अलावा इसका कोई दूसरा लक्ष्य नहीं था. इसके बरक्स जाफराबाद और सीलमपुर में जिन प्रदर्शनकारियों से मैंने बात की उनके पास सीएए का विरोध करने का एक स्पष्ट एजेंडा था, जिनमें से कई प्रदर्शनकारियों ने इसे "असंवैधानिक" और "भेदभावपूर्ण" और एक ऐसा कानून बताया जो ''मुसलमानों की उपेक्षा'' करता है. बाबरपुर में मैंने एक सीएए समर्थक से बात की जिसके हाथ में डंडा था. उसे कानून के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और उसने बताया कि लोग सड़कों पर इसलिए आए हैं क्योंकि उन्हें जाफराबाद और शहीन बाग के सीएए विरोधी "मुस्लिम" प्रदर्शनकारी पसंद नहीं हैं, जिन्होंने सड़क पर कब्जा कर रखा है. हिंदू भीड़ द्वारा लगाए जा रहे अधिकांश नारे सांप्रदायिक गालियां थीं. सीएए समर्थकों ने मुझे बताया कि इस कानून के खिलाफ विरोध करने वाले "देशद्रोही" और "घुसपैठिए" हैं. मैंने उनके साथ दो घंटे बिताए लेकिन उनमें से किसी ने भी इस बारे में बात नहीं की कि सीएए क्यों जरूरी है या यह कैसे भेदभावपूर्ण है? वास्तव में कानून के बारे में मुश्किल से ही कोई बातचीत हुई. वे “जय श्री राम” के नारे लगा कर ही संतुष्ट थे और अपने डंडे दिखा कर “मेरा कर्मा तू, मेरा धर्मा तू” जैसे बॉलीवुड के गानों पर नाच रहे थे. हालांकि, यह प्रतिक्रिया केवल बाबरपुर रोड पर जमे लोगों की ही नहीं थीं बल्कि जिस भी क्षेत्र में मैं गया यही नेरेटिव हर जगह मिला.

उत्तर पूर्वी दिल्ली में जो हिंसा भड़की है, वह सड़क पर कब्जे के बाद दो समुदायों के बीच फूट पड़ा कोई सहज संघर्ष नहीं है. वह एक सोची-समझी राजनीतिक योजना का परिणाम है. 23 फरवरी को दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख नेता कपिल मिश्रा ने बाबरपुर का दौरा किया और सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को धमकी दी. उनके साथ ऐसे लोग थे जो दावा कर रहे थे कि वे सीएए समर्थक थे. मिश्रा ने भीड़ से कहा कि वह पुलिस को जाफराबाद सड़क साफ करने के लिए तीन दिन का अल्टीमेटम देते हैं नहीं तो वह खुद मामले को हल करेंगे. जब मिश्रा ने भीड़ को संबोधित किया उस वक्त उत्तर पूर्वी जिले के पुलिस उपायुक्त वेद प्रकाश उनके पास खड़े थे और उन्होंने मिश्रा को रोकने या उनके उत्तेजक भाषण पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया. जाफराबाद और विजय पार्क के मुस्लिम निवासियों के अनुसार, मिश्रा के वहां से जाने के बमुश्किल कुछ मिनटों बाद ही सीएए का समर्थन करने वाली भीड़ ने बस्ती में मुस्लिम घरों पर हमला करना शुरू कर दिया.

24 फरवरी की रात बाबरपुर में सीएए समर्थकों की भीड़ से बात करते हुए, मैंने प्रकाश को "दिल्ली पुलिस जिंदाबाद" के नारों के बीच भीड़ के सदस्यों की तरफ आते और उनसे हाथ मिलाते हुए देखा. हिंदू भीड़ द्वारा प्रकाश का स्वागत असामान्य नहीं था. जब भी पुलिस की कोई गाड़ी हथियार बंद भीड़ के सामने से गुजरती, तो भीड़ उसका स्वागत करती. उनमें से कुछ लोग हाथ में लाठी और डंडे लेकर बेपरवाही से पुलिस से बात कर रहे थे. ऐसा लगता था जैसे हथियार बंद भीड़ पुलिस से बेखबर थी.

इसके विपरीत, मुस्लिम आबादी में पुलिस के प्रति गहरा अविश्वास था. विजय पार्क के लोगों ने मुझे बताया कि उन्होंने हिंदू दक्षिणपंथी भीड़ के साथ पुलिस को मुसलमानों पर हमला करते देखा था. लोगों ने मुझे बताया कि उन्हें अब पुलिस पर भरोसा नहीं है और वे पुलिस से भी उसी तरह डरते हैं जैसे सशस्त्र दक्षिणपंथी उन्मादी भीड़ से डरते हैं. लोगों ने कहा कि 23 फरवरी को हिंदू भीड़ के साथ मुस्लिम मोहल्लों पर हमला करते हुए पुलिस "जय श्री राम" के नारे लगा रही थी. मैं खुद मुस्लिम इलाकों में तैनात पुलिस के दुश्मनाना रवैये का गवाह बना. जाफराबाद में तैनात जवानों ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के साथ कोई मेलमिलाप नहीं किया या उनसे बात करने तक की कोशिश नहीं की. इसके विपरीत सीएए समर्थक हथियार बंद भीड़ के साथ उनका रवैया खुशमिजाज था.

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जिन भी क्षेत्रों से हिंसा की खबरें आ रही हैं, वे बीजेपी शासित हैं. उत्तरी पूर्वी दिल्ली लोक सभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले हिंसाग्रस्त इलाकों से बीजेपी के दिल्ली प्रमुख मनोज तिवारी सांसद हैं. इन सभी क्षेत्रों में भारी मुस्लिम आबादी है, जो स्थानीय इलाकों का ध्रुवीकरण करने के लिए पर्याप्त है.

दिल्ली पुलिस को नियंत्रित करने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 27 जनवरी को बाबरपुर में एक चुनावी भाषण में लोगों से कहा था, “ जब आप 8 फरवरी को बटन दबाएंगे, तो करंट शाहीन बाग में लगना चाहिए.” बीजेपी ने शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को बदनाम करना ही दिल्ली में अपना मुख्य चुनावी एजेंडा बनाया था. जाफराबाद के निवासी रिक्शा चालक नदीम ने मुझे बताया कि बीजेपी सीएए के विरोध को “हिंदू-मुस्लिम” करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि इलाके के लोग बीजेपी के 'गुप्त एजेंडे' को समझते हैं और जिसके चलते वे हिंदू भीड़ की सांप्रदायिक गालियों का जवाब देने से बचते हैं. हालांकि, नदीम ने कहा कि हिंदू वर्चस्ववादी भीड़ द्वारा आक्रामक हमलों के खिलाफ उनके समुदाय के धैर्यपूर्ण रवैये के बावजूद उन्हें सबसे ज्यादा इस बात ने ''आहत'' किया कि दिल्ली पुलिस का रवैया मुस्लिम समुदाय के प्रति "भेदभावपूर्ण" रहा.

हिंदू दक्षिणपंथी भीड़ के सदस्यों ने मुझे बताया कि 23 फरवरी को मौजपुर में पहले मुस्लिम कॉलोनियों से पथराव शुरू हुआ था और उन्होंने केवल जवाबी कार्रवाई की. हालांकि, जाफराबाद, बाबरपुर और मौजपुर से गुजरते हुए साफ पता चलता था कि मुस्लिम क्षेत्रों को हिंदू मोहल्लों की तुलना में कहीं अधिक नुकसान हुआ है. मुझे धर्मपुरी में हिंदू घरों को हुआ कोई भी नुकसान नहीं दिखाई दिया. जब मैं विजय पार्क से गुजरा तो मुस्लिम निवासियों में डर का माहौल था. 23 फरवरी के बाद से उनमें से कोई भी रात को सो नहीं रहा था. उनमें से ज्यादातर की आंखों के चारों ओर काले घेरे थे और गले में खराश थी क्योंकि वे 36 घंटों से जाग रहे थे. वे रविवार से अपनी कॉलोनियों की एंट्री और एग्जिट गेट की रखवाली कर रहे थे. मैं आधा दर्जन मुस्लिम मर्दों से भी मिला, जिन्होंने बताया कि लक्षित सांप्रदायिक हिंसा के दौरान उन पर हमले किए गए जिससे उन्हें गंभीर चोटें आई हैं.

पेशे से वकील मुहम्मद जुबैर 23 फरवरी को कड़कड़डूमा अदालत से विजय पार्क में अपने घर लौट रहे थे. उसी दौरान सीएए समर्थक भीड़ ने उन पर हमला किया. उन्होंने कहा कि भीड़ ने, "कठमुल्ला है, मारो साले को" कहते हुए उनकी पिटाई की. जुबैर ने कहा कि उन्होंने स्थानीय एसएचओ को फोन किया था लेकिन वह उन्हें बचाने नहीं आया. उन्होंने बताया कि जब हिंदू दक्षिणपंथी भीड़ "जय श्री राम" के नारे लगाती मुस्लिम मोहल्लों में घुसने लगी तो उन्होंने पुलिस को फिर से फोन किया लेकिन पुलिस नहीं आई. जुबैर के सिर पर चोट लगी है.

दिहाड़ी मजदूर मोहम्मद मुबारक निर्माण स्थल जा रहे थे जब सीएए समर्थक भीड़ ने 23 फरवरी को मौजपुर मेट्रो स्टेशन के पास उन पर हमला कर दिया. मुबारक ने मुझे बताया कि जब उन्होंने सुना कि लोगों पर हमला किया जा रहा है तो वह स्टेशन के सामने वाली सड़क पार नहीं करना चाहते थे. “लेकिन बैरिकेड पर खड़े पुलिसवालों ने मुझे बताया कि विजय पार्क की ओर जाने वाली सड़क पर चलना बिलकुल सुरक्षित है और जैसे ही मैं आगे बढ़ा, भीड़ पीछे से आई और मुझ पर हमला कर दिया. पुलिस देखती रही लेकिन मुझे बचाने नहीं आई.” करीब बीस लोगों ने उनके साथ मारपीट की. उनके सिर, पीठ, पैरों के पीछे, चोटें लगी हैं और उनकी बाईं भौं के ऊपर गहरी चोट लगी थी. उन्होंने मुझे बताया कि उन पर दरांती से हमला किया गया था.

सलमान खान, सदीम राजपूत और सैफ अहमद विजय पार्क के उन अन्य निवासियों में से थे, जिन्हें 23 फरवरी को हुए हमले में कई चोटें आईं. उन सभी ने मुझे बताया कि मदद करने से इनकार करने वाले पुलिस कर्मियों के सामने उन्हें पीटा गया था. निवासियों ने यह भी कहा कि जब हथियार बंद दक्षिणपंथी भीड़ मुस्लिम मोहल्लों पर हमला कर रही थी तो पुलिस उनके पीछे-पीछे चल रही थी. उन्होंने कहा कि पुलिस ने हिंदू भीड़ के पीछे छिपते हुए उनके मोहल्लों में गोलीबारी की.

विजय पार्क के निवासियों में से एक शाहनवाज ने मुझे बताया कि 23 फरवरी के बाद से, भगवा गुंडे लाठियां लेकर बाबरपुर जंक्शन पर तैनात थे और हर राहगीर से पूछ रहे थे कि वह मुस्लिम है या हिंदू. उन्होंने बताया कि भीड़ ने एक आदमी की धार्मिक पहचान का पता लगाने के लिए उसके कपड़े उतार दिए. एक अन्य घटना के बारे में जाफराबाद के निवासी ऑटो चालक मुन्ना ने बताया कि 24 फरवरी को भी हिंदू भीड़ इसी तरह सतर्क थी. हिंदू भीड़ ने उनका ऑटो रोका और ऑटो में सवार एक मुस्लिम यात्री को दाढ़ी से पकड़ लिया और फिर उसके साथ मारपीट की. मुन्ना ने तब से मौजपुर-बाबरपुर जंक्शन पर सवारी ले जाना बंद कर दिया.

विजय पार्क की स्थिति इतनी अस्थिर थी कि जब मैं वहां के निवासियों से बात कर ही रहा था कि वे बचने के लिए भागने लगे क्योंकि अफवाह फैल गई थी कि एक हथियार बंद हिंदू भीड़ ने उनके मोहल्ले पर हमला कर दिया है. मैंने अधेड़ उम्र की एक महिला से भी बात की, जो नियमित रूप से सीलमपुर में उपस्थित रहती थीं और 23 फरवरी को जाफराबाद में पुलिस ने उनकी पिटाई की थी. मेरे बोलते ही वह रोने लगीं. उन्होंने मुझे बताया कि वह असहाय महसूस कर रही हैं क्योंकि उन्हें सरकार और पुलिस से कोई उम्मीद नहीं रह गई है. पुलिस की पिटाई से वह इतनी आहत हुई हैं कि उन्होंने अपनी पहचान बताने से इनकार कर दिया. लेकिन जैसे ही हिंदू भीड़ के हमले की अफवाह फैली, उन्होंने हमारी सुरक्षा की दुआ पढ़नी शुरू कर दी.

मैं जाफराबाद के विरोध स्थल पर भी गया. हालांकि, वहां के लोगों ने मुझसे बात करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि उन्हें अब पत्रकारों पर भरोसा नहीं है. 24 फरवरी को मर्दों ने कतार बना कर महिला प्रदर्शनकारियों का बचाव किया था. उन्होंने मुझे औरतों का इंटरव्यू लेने से मना कर दिया. “मीडिया हमारी खबरें नहीं दिखाता है. हम कुछ और कहते हैं, लेकिन वह कुछ और दिखाता है.” जब मैंने जोर दिया, तो उनमें से एक आदमी हाथ जोड़कर मेरे पास आया और मुझे चले जाने के लिए कहा.

वह मुझसे बात करें यह मिन्नत करने में घंटों लग गए. वे इस शर्त पर सहमत हुए कि मैं तस्वीरें और वीडियो नहीं लूंगा. उन्होंने मुझे बताया कि मीडिया और पुलिस से वे निराश हैं और उन्हें मीडिया पर जरा भी भरोसा नहीं है. 20 साल के एक दर्जी इरफान ने मुझे बताया कि अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सीएए को वापस ले लेते हैं तो प्रदर्शनकारी तुरंत घर चले जाएंगे. जब मैंने उनसे पुलिस की भूमिका और सांप्रदायिक हिंसा में मिलीभगत के बारे में पूछा, तो इरफान ने कहा, "अगर हमें उनका भरोसा नहीं रह गया है, तो हमें उनका डर भी नहीं रह गया है."

विभिन्न सीएए-विरोधी केंद्रों पर जहां तिरंगा झंडा दिखाई देता है वहीं सीएए समर्थक हर तरफ भगवा झंडा लहराते नजर आए. बाबरपुर में, जब मैंने सीएए समर्थकों में से एक अमन वर्मा से पूछा कि वे "शांतिपूर्ण विरोध" में डंडा लेकर क्यों आए हैं, तो वर्मा ने मुझे बताया कि उन्होंने इसे "आत्मरक्षा" के लिए रखा है. उन्होंने कहा, "अगर वे हमारे ऊपर पत्थर फेंकते हैं, तो जाहिर है कि हम उन पर फूल तो नहीं बरसाएंगे."