मोदी को “हिंदू आतंकवाद” शब्द से आपत्ति लेकिन “सिख आतंकवाद” शब्द से गुरेज नहीं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 26 अप्रैल 2019 को वाराणसी में अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल के साथ.

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कारवां के पास उपलब्ध दस्तावेज, भारतीय जनता पार्टी के दोहरे मानदंड को उजागर करते हैं. बीजेपी धार्मिक समुदायों को आतंकी गतिविधियों के साथ जोड़ने की मुखालफत करती रही है. हालांकि सार्वजनिक तौर पर बीजेपी हिंदू आतंकवाद जैसे हिंसक धार्मिक कट्टरवाद को खारिज करती है लेकिन दूसरी तरफ गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले गुप्तचर ब्यूरो की अधीनस्थ संस्था, बहु एजेंसी केंद्र (एमएसी) का परिपत्र कहता है कि “इस्लामिक और सिख आतंकवाद” को मिलने वाले वित्तपोषण पर विशेष रूप से नजर रखने के लिए स्थाई फोकस समूह का गठन किया गया है.

बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लंबे समय से कहते आए हैं कि हिंदू आतंकवाद जैसी कोई चीज नहीं है. यह शब्द 2007 के समझौता एक्सप्रेस धमाके और 2008 के मालेगांव एवं अन्य धमाकों की जांच की पृष्ठभूमि में सुर्खियों में आया था. हाल ही में, तमिलनाडु पुलिस ने 14 मई 2019 को अभिनेता से नेता बने कमल हासन पर एक चुनावी रैली में हिंदू आतंकवाद पर टिप्पणी करने के लिए मामला दर्ज किया है.

कारवां के पास 28 मार्च 2019 की तारीख वाला कर्नल देवेन्द्र मिश्रा का एक परिपत्र है इसका शीर्षक है- “आतंक को मिलने वाले वित्तपोषण पर स्थाई फोकस समूह”. कर्नल देवेन्द्र मिश्रा एमएसी के अतिरिक्त उपनिदेशक हैं. उस सर्कुलर में कहा गया है कि आतंकवादी और उनके ठिकाने, जो भारत एवं अन्य स्थानों में सक्रिय हैं, अपने औपचारिक और अनौपचारिक सप्लाई चैन के माध्यम से, विचारधारा को फैलाने और प्रोपेगेंडा के लिए, भर्ती करते हैं, हथियार और विस्फोटक हासिल करते हैं, प्रशिक्षण देते हैं और छिपे समर्थकों का भरणपोषण करते हैं तथा पूर्व/गिरफ्तार/ घायल सदस्यों की देखभाल करते हैं और गिरफ्तार सदस्यों एवं अन्यों को कानूनी मदद देते हैं”. इस नोट में यह भी बताया गया है विभिन्न आतंकी संगठनों के खुले सदस्यों को पैसा भेजने के अलावा सक्रिय आतंकियों और उनके परिवारों को वित्तीय मदद भी दी जाती है.

इस नोट के अनुसार 20 और 22 दिसंबर 2018 को गुजरात के केवड़िया में हुए पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों के वार्षिक सम्मेलन में स्थाई फोकस समूह के गठन का विचार किया गया था. इस समूह का प्रस्ताव, देश और देश के बाहर सक्रिय आतंकियों के वित्तपोषण पर नजर और उसे रोकने के लिए किया गया था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सम्मेलन के कुछ सत्रों में भाग लिया था.

मिश्रा के निर्देशानुसार फोकस समूह की पहली बैठक 11 अप्रैल को शाम 4 बजे नॉर्थ ब्लॉक के मल्टी एजेंसी केंद्र कॉन्फ्रेंस हॉल में हुई थी. इस मीटिंग का एजेंडा था- ऐसी बैठकों के लिए समय निर्धारण और सदस्य एजेंसी द्वारा उपलब्ध सूचनाओं पर विचार करना, जो “इस्लामिक और सिख आतंकवाद के वित्तपोषण के शक” से संबंधित हैं. साथ ही ऐसी संस्थाओं का डेटाबेस तैयार करना भी एजेंडे में शामिल था जिन पर आतंकवाद को वित्तीय सहायता देने का शक है. उपरोक्त बातों के अलावा सूचनाओं के आदान-प्रदान से राज्य के आतंक रोधी स्क्वाडों की क्षमता का विकास करना और सदस्य एजेंसी के सुझावों पर चर्चा करना भी एजेंडे का हिस्सा था.

मिश्रा का परिपत्र जिन 12 एजेंसियों के प्रमुखों और निदेशकों के लिए था वे हैं- रॉ प्रमुख ए. के. धस्माना, राष्ट्रीय जांच एजेंसी के महानिदेशक वाईसी मोदी, वित्तीय गुप्तचर इकाई के निदेशक पंकज कुमार मिश्रा, सीबीआई के निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला, राजस्व खुफिया निदेशालय प्रमुख महानिदेशक डीपी दास, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सुशील चंद्रा, केंद्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो के महानिदेशक मिताली मधुस्मिता, प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक शरद शर्मा, प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख विशेष निदेशक संजय कुमार मिश्रा, जम्मू-कश्मीर पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह, पंजाब पुलिस के महानिदेशक दिनकर गुप्ता और दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक. इन लोगों को उक्त बैठक में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को भेजने को कहा गया था.

इस बारे में कारवां ने मिश्रा के कार्यालय में संपर्क किया लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. केंद्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो की मधुस्मिता ने कहा कि “यह बैठक गृह मंत्रालय ने बुलाई थी और मेरी राय में आपको उनसे संपर्क करना चाहिए”. इस बैठक की जानकारी से संबंधित सवाल पूछने पर उन्होंने सीईआईबी के अधिकारी महेश रस्तोगी से संपर्क करने की सलाह दी. रस्तोगी ने बताया, “बैठक की जानकारी गुप्त प्रवृत्ति की है और इसे साझा नहीं किया जा सकता.”

स्थाई फोकस समूह का गठन, जिसका उद्देश्य इस्लामिक और सिख आतंकवाद पर काम करना है, इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि पिछले दशक में आरएसएस से संबद्ध प्रज्ञा ठाकुर और असीमानंद जैसे लोग गिरफ्तार हुए हैं और उन पर मुकदमा चलाया गया है. इनके मामलों में बीजेपी ने बार-बार कहा है कि धर्म और आतंकी गतिविधियों को जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. इस साल अप्रैल में बीजेपी ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल लोकसभा सीट से खड़ा किया तो उसे आलोचना का सामना करना पड़ा. फिलहाल प्रज्ञा पर मालेगांव धमाके के लिए गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून के तहत मुकदमा चल रहा है. बीजेपी हिंदू आतंकवाद शब्द के प्रयोग का विरोध करती रही है और उसका दावा है कि कांग्रेस पार्टी ने चुनावी फायदे के लिए हिंदू आतंकवाद का हौवा खड़ा किया है. हाल ही में मध्य प्रदेश के खंडवा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था, “हिंदू आतंकवाद का जो झूठ इन लोगों (कांग्रेस के लोगों) ने फैलाया था और हमारी महान धार्मिक विरासत को बदनाम करने की साजिश की थी, इसके लिए उन्हें जवाब दिया जाएगा”.

बीजेपी की उपरोक्त बातें मोदी के कूटनीतिक प्रयासों से मेल खाते हैं. 2018 मार्च में जब जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय भारत आए थे तब मोदी ने कहा था कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को किसी धर्म विशेष के साथ लड़ाई के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा था, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता... आतंकवाद और कट्टरता के खिलाफ युद्ध को किसी धर्म के खिलाफ युद्ध की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. हमारी लड़ाई कट्टर मानसिकता के खिलाफ है जो युवाओं को भटकाती है”. ऐसा लगता है कि मोदी और बीजेपी के उनके साथी, अपने फायदे के लिए एक खास धर्म को आतंकवाद के साथ जोड़ कर नहीं देखना चाहते.

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