21 अक्टूबर 2018 रविवार के दिन पंजाब के होशियारपुर जिले के दसुया के स्थानीय कैथलिक ईसाई सुबह की प्रार्थना के लिए सैंट मैरी चर्च में इकट्ठा हुए. इलाके के पादरी जेम्स उल्लाटिल किसी प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए शहर से बाहर गए थे. 62 साल के कुरीकोज कट्टुथरा नाम के पादरी ने जालंधर प्रांत में 1983 से अपनी सेवा दी थी. जेम्स की अनुपस्थिति में उन्होंने ही लोगों से सुबह की प्रार्थना करवाई. अपना उपदेश देने के बाद कट्टुथरा ने चर्च के लंगर में भोजन किया. जालंधर प्रांत के चर्चों में लंगर आम बात है. इसके बाद दोपहर के करीब वे अपने कमरे में चले गए. उन्होंने अपने सहायक से कहा कि अगर दरवाजे पर दो बार दस्तक देने के बाद भी वे जवाब न दें तो उन्हें परेशान न किया जाए. अगले दिन सुबह 10 बजे वे अपने कमरे के फर्श पर अचेत हालत में पड़े मिले. उन्हें पास के अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.
आम परस्थितियों में कट्टुथरा की मौत को प्राकृतिक माना जा सकता था. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि उन्हें हाई ब्लडप्रेशर और हाईपरटेंशन जैसे रोग थे. लेकिन उनकी मौत से जुड़ी परिस्थितियां आम नहीं थीं. एक महीने पहले जालंधर प्रांत के 54 साल के पादरी फैंको मुलक्कल को रेप के अरोपों में गिरफ्तार किया गया था. रेप के आरोप में भारत में गिरफ्तार होने वाले वे पहले पादरी हैं. मुलक्कल को एक नन की शिकायत के 85 दिनों बाद गिरफ्तार किया गया. पीड़ित नन, मिशनरी ऑफ जीजस से जुड़ी हुई थी. यह जालंधर सूबा की एक मण्डली है. नन ने अपनी शिकायत में पुलिस को बताया कि मुलक्कल ने उसके साथ 13 बार यौन हिंसा की. आरोप के मुताबिक नन के साथ ये सब कुराविलानगड गांव के एक कॉन्वेंट में हुआ, जो केरल के कोट्टायम जिले में है. 2014 से लेकर 2 साल तक नन को हिंसा का शिकार बनाया जाता रहा.
मुलक्कल की गिरफ्तारी से पहले कैथलिक चर्च ने उन्हें पादरी की जिम्मेदारी से हटा दिया था. हालांकि, ऐसा उन्हीं के अनुरोध पर किया गया था. जो उन्होंने उनके खिलाफ हो रहे विरोध के मद्देनजर किया था. जब नन की शिकायत की जांच हो रही थी तो कट्टुथरा ने मुलक्कल के खिलाफ पुलिस में गवाही दी थी. कट्टुथरा तब मिशनरी ऑफ जीजस में आध्यात्मिक निदेशक थे. शिकायत को लेकर अपने समर्थन के मामले में भी वे मीडिया के सामने मुखर रहे थे. जुलाई 2018 में उन्होंने मलयालम न्यूज चैनल मातृभूमि को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, “कुछ ऐसी नन हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि या तो वे चली गईं या उन्हें जाने को मजबूर किया गया. वे मेरे पास रोती हुए आईं और कहा, ‘फादर, जब तक ये बिशप हमारे प्रांत के बिशप रहेंगे, मैं यहां शांति से नहीं रह सकती. मुझे माफ कीजिएगा. मैं मंडली से जल्द ही चली जाउंगी.’ अगर एक-दो लोग कह रहे होते तो इसे बदनाम करने की साजिश बताकर खारिज किया जा सकता था. लेकिन ऐसे कई थे जो मेरे पास आए.”
केरल में 25 दिन जेल में बिताने के बाद मुलक्कल को रिहा कर दिया गया. जालंधर लौटने पर उनका शानदार स्वागत हुआ. यहां उनके समर्थक भारी संख्या में जुटे और उनके ऊपर गुलाब के फूलों की पत्तियों की बारिश की. चार दिन बाद कट्टुथरा की लाश पाई गई. कट्टुथरा के छोटे भाई जोश कुरयिन ने केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से मौत के मामले में जांच शुरू करने की गुहार लगाई. कट्टुथरा के एक चचेरे भाई पंजाब में ही रहते हैं. वे अक्सर उनसे मिलते रहते थे. उनका सवाल है कि कोई कट्टुथरा के पास पहले क्यों नहीं गया. नाम नहीं बताने की शर्त पर चचेरे भाई ने मुझसे कहा, “फादर 12 बजे सोने गए थे और दोपहर के भोजन के लिए नहीं जागे. जब सहायक ने कॉफी देने के लिए उनका दरवाजा खटखटाया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. वे रात के खाने के लिए भी नहीं जागे. अन्य फादर वहां मौजूद नहीं भी थे तो भी वहां मौजूद सिस्टर इस बात का पता नहीं लगा सकती थीं कि फादर कमरे से बाहर क्यों नहीं आए? कुछ तो गड़बड़ है.”
चचेरे भाई ने मुझसे कहा, “मौत से कुछ दिनों पहले उन्होंने फोन किया और हमें बताया कि उन्हें मानसिक प्रताड़ना दी जा रही है. वहां की ननें उनसे इस बात की भीख मांगती थी कि वे पुलिस को दिया अपना बयान बदल लें.” उन्होंने कहा कि कट्टुथरा ने फोन पर बातचीत करनी बंद कर दी. उन्हें डर था की कॉन्वेंट में उन्हें कोई सुन लेगा. उन्होंने इस बात का भी डर जताया था कि मुलक्कल को जमानत मिलने के बाद कोई अनहोनी हो सकती है. चचेरे भाई को याद है कि अंतिम दिनों में कट्टुथरा अक्सर ये बात दोहराते थे, “मुझे यहां जमकर प्रताड़ित किया जा रहा है.”
कट्टुथरा की प्रथामिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट समाने आई है. इसे दसुया सिविल हॉस्पिटल के चार सरकारी डॉक्टरों ने वीडियो रिकॉर्डिंग के बीच तैयार किया है. इस मौत के पीछे किसी प्राकृतिक कारण की बात नहीं है. आंत से मिले सैंपलों का केमिकल जांच होना बाकी है. चचेरे भाई ने मुझसे कहा, “हम नहीं कह रहे कि उन्हें जहर देकर या पीट-पीट कर मारा गया था.” चचेरे भाई और परिवार के सदस्यों की मानें तो पादरी की मौत की वजह लगातार किया जा रहा उनका उत्पीड़न था. चचेरे भाई की मानें तो, “हम कह रहे हैं कि उन्हें मानिसक प्रताड़ना दी गई जिससे उनकी मौत हुई.”
हालांकि, मौत के कारणों का अभी तक पता नहीं चला है. पूर्व बिशप के खिलाफ अपने रुख के लिए पहचाने जाने वाले इस पादरी की मौत की वजह से जालंधर सूबे में खामोशी छा गई है. नवंबर 2018 में मैं पूरे पंजाब में घूमी और 10 से अधिक लोगों से बात की. इनमें मुलक्कल के करीबी के अलावा आलोचक पादरी भी शामिल थे. मैंने इनसे पादरियों के बीच मुलक्कल के उदय के बारे में बात की. इस बातचीत से पता चला कि मुलक्कल सिर्फ भारत के कैथलिक चर्चों में ही नहीं बल्कि देश के राजनीतिक नेतृत्व के प्रमुख व्यक्तियों के बीच भी बेहद प्रभावशाली हैं. जैसे-जैसे उनका कद बढ़ा उन्हें चुनौती देने वाले पादरियों को किनारे कर दिया गया. यहां तक कि जो उन्हें निजी तौर पर भी चुनौती देते रहे थे या उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों में विश्वास करते हैं वे भी मुझसे खुल कर बात करने को राजी नहीं हुए. पंजाब में जिन ननों से मेरी मुलाकात हुई उन्होंने तो नाम न छापने की शर्त पर भी मुझसे बात नहीं की. जालंधर सूबे के एक वरिष्ठ पादरी ने मुझसे कहा, “हम ऐसे पादरी हैं जो सूबे के भीतर काम कर रहे हैं. हम बिशप के खिलाफ कैसे बोल सकते हैं?” लेकिन जितने पादरियों से मैंने बात की उनमें से सबने कहा कि मुलक्कल को जल्द ही सभी आरोपों से बरी करके उनके पद पर बहाल कर दिया जाएगा. जो उनके साथ थे उन्हें विश्वास था कि वो निर्दोष हैं और उनके विरोधियों को लगता था कि उनकी ताकत उन्हें निर्दोष साबित कर देगी.
20 नवंबर को मैं बिशप के घर गई. ये जालंधर सूबे के पादरियों के लिए चार माले की एक आवासीय बिल्डिंग है. बिशप के पद से हटने के बावजूद मुलक्कल यहीं रह रहे हैं. मैं उनका इंटरव्यू लेने गई थी. बिशप के घर पर एक उम्रदराज सहायक ने मुझसे पूछा, “आप किस बिशप से मिलना चाहती हैं?” मुलक्कल के हटने के तुरंत बाद एग्नेलो ग्रैसियस को एपोस्टोलिक प्रशासक नियुक्त किया गया. वे बॉम्बे के सहायक बिशप थे. वे प्रभावी रूप से जालंधर सूबे के प्रशासनिक प्रमुख बन गए. इसे एक अस्थायी व्यवस्था माना जाता है. जब मैंने सहायक को मुलक्कल से मिलने की बात कही तो वह कुछ मिनटों के लिए कमरे से बाहर चला गया और वापस लौटकर कहा, “वे किसी से मिलना नहीं चाहते. वे सारा वक्त प्रार्थना में व्यस्त रहते हैं.” दो हफ्ते बाद जब मेरी रिपोर्टिंग समाप्त होने वाली थी, मुलक्कल ने कारवां से संपर्क किया और इस शर्त पर मुझसे बात की कि वे नन की शिकायत पर कुछ नहीं बोलेंगे क्योंकि मामला अभी न्यायालय में लंबित है.
मुलक्कल ने कहना शुरू किया, “मुझे 1990 में पादरी बनाया गया था.” 1997 से 2001 तक उन्होंने रोम जाकर "गुरु नानक की नैतिक शिक्षा में धर्मशास्त्र की पड़ताल" पर डॉक्टरेट की पढ़ाई की. 2006 से 2008 तक उन्होंने जालंधर सूबे में पब्लिक रिलेशन अधिकारी के तौर पर अपनी सेवा दी. उन्होंने बताया, “मैं 2009 में दिल्ली में सहायक बिशप बन गया. 2013 में मुझे जालंधर का बिशप नियुक्त किया गया.” मुलक्कल जालंधर के तीसरे बिशप थे. इसकी स्थापना 1972 में बिशप सिंपोरियन कीपरथ ने की थी. 2007 में अनिल कूटो ने कीपरथ की जगह ली और 2012 के दिसंबर में दिल्ली का आर्चबिशप नियुक्त किए जाने तक अपनी सेवा दी.
जालंधर सूबे में कई सालों से काम करने वाले एक कर्मचारी से मेरी बात हुई. उसने मुझसे मुलक्कल के उदय के बारे में बताया. सूबे के अधिकार क्षेत्र में पंजाब के 15 जिलों के अलावा हिमाचल प्रदेश के चार जिले आते हैं. ये हैं : ऊना, चंबा, कांगड़ा और हमीरपुर. शुरुआती सालों के बारे में इस कर्मचारी का कहना था कि जब इसका निर्माण हुआ था तो यह कर्ज में था. कीमरथ के समय 1980 से 1990 तक इसने पंजाब और हिमाचल प्रदेश में शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की. नतीजतन छात्रों द्वारा फीस के तौर पर दी जाने वाली रकम इसकी आय का प्रमुख स्रोत हो गया. पूर्व कर्मचारी के मुताबिक, “जालंधर में जो स्कूल आज दिखाई देते हैं वे तब नहीं थे. अब पंजाबी मीडियम के स्कूलों के अलावा 60-70 अंग्रेजी मीडियम स्कूल हैं. हर स्कूल में 1500-3000 छात्र पढ़ते हैं. मासिक फीस और अन्य तरह की फीस के अलावा हर साल 10000 रुपए की सालाना फीस अलग से ली जाती है. अब आप हर छात्र से हो रही कमाई का हिसाब लगा लीजिए.” इस पूर्व कर्मचारी के मुताबिक, “स्कूलों ने सूबे के आर्थिक आधार को बनाया. इसके बाद चर्च और अन्य संपत्तियां बनाई गईं.”
यह विस्तार मुलक्कल के आने के बाद भी जारी रहा. इस दौरान खास बात ये हुई कि इस सूबे के तहत कई कंपनियों का भी गठन हुआ. उन्होंने सहोदय नाम की एक निर्माण कंपनी बनाई जो चर्च, स्कूल और सूबे से जुड़ी ऐसी चीजें बनाने का ठेका लेती है. इसके पास एक ट्रांसपोर्ट कंपनी भी है जो स्कूलों के लिए बस चलाती है और सुरक्षा सेवा भी देती है. यह सूबे की संपत्तियों को सुरक्षा भी देती है. इन दोनों का गठन मुलक्कल ने बिशप बनने के बाद किया था. मुलक्कल ने मुझसे कहा कि इन कंपनियों की स्थापना “गरीबों को रोजगार देने” के लिए की गई थी. बिशप के तौर पर एक और बड़ा कदम उठाते हुए अक्टूबर 2015 में मुलक्कल ने जालंधर सूबे के तहत एक नई मंडली की स्थापना की. इसका नाम द फ्रांसेसियन मिशनरी ऑफ जीसस यानी एफएमजी रखा गया.
पूर्व कर्मचारी ने बताया कि मुलक्कल अपने पूर्ववर्ती से एक मामले में अलग हैं- राजनीतिक समर्थन के मामले में. कर्मचारी ने कहा, “जब वे सूबे के पीआरओ थे तो उन्होंने सभी नेताओं के साथ संबंध बनाए. गुरदासपुर और अमृतसर में ईसाइयों की खासी संख्या है. इसे उन्होंने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया. सभी पार्टियां उनके पास ईसाई वोट के लिए आती थीं.”
मुलक्कल की राजनीतिक नजदीकी रणनीतिक और दृढ लगती है. दिल्ली के आर्कडायसिस के पादरी स्टेनली कोझीचिरा मुलक्कल को 2001 से जानते हैं, उन्होंने याद किया, “वे कहा करते थे कि वे उन्हीं का साथ देंगे जिन्हें पता है कि जीत कैसे हासिल की जाती है. उन्होंने इस बात का पहले ही प्लान बना लिया है कि 25 सालों में उन्हें कहां पहुंचना है. वे अपने लक्ष्य की ओर पहुंचने के लिए ढेर सारी चीजें करते हैं.” भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी 2009 में दिल्ली आर्कडायसिस के गोल्डन जुबली सेलिब्रेशन के दौरान मुलक्कल के चीफ गेस्ट थे. कोझीचिरा ने कहा, “बिशप फ्रैंको ने सलाह दी कि हमें उन्हें लाना चाहिए.” पूर्व कर्मचारी ने भी कहा कि मुलक्कल “राजनीतिक पैंतरेबाजी के उस्ताद हैं.” कर्मचारी ने आगे कहा कि पूर्व बिशप पर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भरोसा करते हैं. कोझिचिरा और मुलक्कल दोनों ही ने इस बात से इनकार किया कि अल्फांसो कन्नाथनम को केंद्र की नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस सरकार में कल्चर और टूरिज्म राज्य मंत्री बनाए जाने में उनका कोई हाथ था. लेकिन कोझिचिरा ने कहा कि कन्नाथनम हमेशा चर्च जाया करते थे और बिशप से इंस्टालेशन में भी मिलते थे. यहीं से नामित बिशप का सूबे में औपचारिक प्रवेश होता है. कर्मचारी ने कहा, “अल्फांसो के बीजेपी से जुड़ने में बिशप का अहम योगदान था.”
सूबे में भी मुलक्कल अनुगामियों यानी उन्हें मानने वालों की संख्या अच्छी खासी है. 2018 नंवबर के अंत में एक दिन मैं दोपहर के करीब सेक्रेड हार्ड कैथलिक चर्च पहुंची. ये बिशप हाउस के साथ ही लगा है. यहां स्थानीय ईसाई अंग्रेजी और पंजाबी में होने वाली दो अलग-अलग प्रार्थना सभाओं में रोज हिस्सा लेने आते हैं. 30 लोगों का एक समूह, ज्यादातर मलयाली, अंग्रेजी की प्रार्थना सभा में हिस्सा लेने के बाद चर्च के बाहर खड़े थे. जब महिलाओं के एक समूह को मैने बताया कि मैं एक पत्रकार हूं तो उनमें से एक ने मुझसे पूछा कि मैं “अच्छी खबर छापने वाली हूं या बुरी?”
ऐसा पूछने वाली महिला केरल कैथलिक समुदाय की सदस्य थी. उस महिला का कहना था कि “नन के सभी आरोप झूठे हैं." हालांकि, उसने अपनी पहचान न बताने का भी अनुरोध किया. उसने कहा, “ये गलत है कि ऐसे मामलों में हम हमेशा मर्दों के खिलाफ सोचते हैं.” उसने ये भी कहा कि जिन ईसाइयों ने केरल हाई कोर्ट के बाहर प्रदर्शन किया उनके पास “इसकी समझ नहीं है क्योंकि वे यहां नहीं रहते.” जब उसने आगे की बात बतानी शुरू की तो उसकी आवाज तेज हो गई और वहां मौजूद लोग उससे सहमति में सिर हिलाने लगे. उसने सवाल दागा, “उसने दूसरी ही बार में आवाज क्यों नहीं उठाई? अगर मुझे किसी मर्द में दिलचस्पी नहीं तो वह बिना मेरी अनुमति मुझे छू भी नहीं सकता.” एक मलयाली कहावत में उसने कहा, “पत्ता कांटे पर गिरे या कांटा पत्ते पर, नुकसान पत्ते का ही होता है.” उसने कहा कि वह पत्ता मुलक्कल की इज्जत है.
एंटनी मैडेसरी एफएमजे के निदेशक और मुलक्कल के काफी करीबी हैं. उन्होंने मुलक्कल को मिली बेल के बाद वापस लौटने पर हुए स्वागत का उल्लेख इसलिए किया कि पंजाब में उनकी कैसी साख है. मैडेसरी ने कह, “ये समर्थन के बारे में नहीं है. वे लोगों के दिलों में रहते हैं क्योंकि अब तक का उनका जीवन सिर्फ लोगों की भलाई के लिए ही रहा है.” लेकिन मेरी मुलाकात पंजाब के ही एक और वृद्ध पादरी से हुई जिन्होंने मुलक्कल का विरोध किया. उन्होंने पूछा, “वे केरल में ऐसा समर्थन क्यों नहीं हासिल कर सके?” उन्होंने मुलक्कल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे रहीं पांच ननों का जिक्र करते हुए कहा, “ननों के मामले में लोग खुद आगे आए. ये लोगों की मुहिम बन गई.” जब मैंने मुलक्कल की वापसी पर हुए जोरदार स्वागत के बारे में पूछा तो पादरी ने कहा, “इसमें जश्न की क्या बात है? उन्हें बरी नहीं किया गया. वे बस अपनी ताकत दिखाना चाहते थे.”
मुलक्कल अपनी ताकत और प्रभाव का इस्तेमाल यह दर्शाने के लिए करते हैं कि उनकी महत्वकांक्षा के रास्ते में कोई न आए. उन्होंने ये अपने साथी पादरियों की कीमत पर भी किया है. सूबे के कई सदस्यों ने मुझसे कहा कि असहमति और असहयोग मुलक्कल के मामले में काम नहीं करता. कोझिचिरा ने मुझसे कहा, “अगर आप उनके बयानों का विरोध करेंगे तो वे काफी नाराज हो जाते हैं.” पादरियों से मेरी बातचीत में बेसिल मुकेन्थोटैथिल का नाम बार-बार सामने आया. वे मुलक्कल के जूनियर थे लेकिन उन्हें खासा समर्थन प्राप्त था. उन्हें मार्च 2017 में एक पूर्व बिशप ने अनादर के मामले में जलंधर सूबे से सस्पेंड कर दिया. बेसिल के करीबियों ने मुझसे कहा कि मुलक्कल को ये स्वीकार नहीं था कि एक जूनियर पादरी को लोग उनसे ज्यादा पसंद करें. पूर्व बिशप ने बेसिल को सिर्फ इस बात की सजा दे दी.
हालांकि, बेसिल को 1995 में जालंधर सूबे का पादरी बनाया गया था. लेकिन वे मुलक्कल को 1983 के उस दौर से जानते थे जब शहर के सेमिनारी में उनकी शिक्षा-दीक्षा चल रही थी. यहां पूर्व बिशप ने उन्हें अंग्रेजी सिखाई थी. इस पद में आने से पहले बेसिल ने पंजाब के कनवान गांव में तीन महीनों तक मुलक्कल के साथ काम भी किया था. बेसिल के एक करीबी पादरी ने नाम न बताने की शर्त पर मुझसे कहा, “उन्होंने मुलक्कल के साथ लगकर उनसे बहुत कुछ सीखा.” उन्होंने आगे कहा कि बाद के सालों में मुलक्कल उनसे नाराज रहने लगे क्योंकि लोगों के बीच बेसिल की पहुंच मुलक्कल से ज्यादा होने लगी.
बेसिल ने सूबे में दो दशक का समय बिताया. इस दौरान प्रार्थना भवन में दिए जाने वाले अपने उपदेशों और कराए जाने वाली प्रार्थनाओं के लिए वे काफी मशहूर हो गए. ये उपदेश सूबे की आध्यात्म खुराक थे. उपदेशमाला को उन्होंने लुधियाना के एक गांव माचिया खुर्द में शुरू किया था. इन उपदेशों को इनके चैनल प्रार्थन भवन टीवी के जरिए प्रसारित भी किया जाता था. उन्हें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल और देश के बाकी हिस्सों में होने वाले धार्मिक सम्मेलनों में अक्सर बुलाया जाता था. बेसिल के करीबी पादरी ने कहा, “इन सम्मेलनों में बहुत सारे लोग आते थे. वहीं, मुलक्कल के कार्यक्रमों में लोग नहीं आते थे. इससे उन्हें जलन होती थी. बिशप के तौर पर वे चाहते थे कि सब उनके कंट्रोल में रहे.”
इस पादरी के मुताबिक बेसिल की छवि के सहारे मुलक्कल अपनी मंडली फ्रांसेसियन मिशनरी ऑफ जीसस की पहुंच बढ़ाना चाहते थे. पादरी ने कहा कि पूर्व बिशप अक्सर बेसिल से कहते थे कि वे एफएमजे में शामिल हो जाएं और उनसे कहते थे कि वे इकलौते व्यक्ति हैं जो मंडली का नेतृत्व कर सकते हैं. पादरी ने कहा, “उन्होंने बेसिल से कहा, ‘देखो, वैसे तो 25 सालों का मामला है. मेरे साथ पांच-छह सालों तक रुको. अगर बाद में जाना हो तो मैं तुम्हें जाने दूंगा. आखिरकार मैं एक बिशप हूं.’ लेकिन बेसिल ने इसमें रुचि नहीं दिखाई.” 9 जून 2017 को बेसिल ने एक खुला खत लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा कि उन्हें लगता है कि उन्हें सस्पेंड किए जाने के पीछे का “असली कारण” उनका एफएमजे का हिस्सा नहीं बनना है. उन्होंने पूछा, “अगर मैं उतना ही बुरा व्यक्ति हूं जितना मुझे हाल के दिनों में बताया गया है तो बिशप ने मुझसे उनके अहम और पवित्र मंडली एफएमजे से जुड़ने को क्यों कहा?”
जून 2016 में बेसिल का लुधियाना के प्रार्थना भवन से ट्रांसफर कर दिया गया. बेसिल ने अपनी चिट्ठी में लिखा, “मुझे स्थिति और परिस्थितियां अपने लिए खतरों से भरी नजर आईं. मैं एक बिल्डिंग में पूरी तरह से अकेले रहता था. इस घर के दरवाजे और कई हिस्सों में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. इसका रिकॉर्डर और कंट्रोल किसी ऐसी जगह पर था जिसका मुझे पता नहीं था.” बेसिल के नजदीकी पादरी के मुताबिक, “उन्हें इलाके का जिम्मा इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि मुलक्कल को इस बात की चिंता थी कि वे वहां भी कोई नई पहल न शुरू कर दें.”
बेसिल ने लिखा कि उन्होंने असुरक्षा की भावना की वजह से लुधियाना छोड़ दिया. इसके लिए उन्होंने उस साल 17 जून को अनुपस्थिति की दरखास्त डाली थी. इसमें उन्होंने कहा था कि वे कुरिसुमाला आश्रम जाने वाले हैं. यह केरल में कैथलिक चर्च से जुड़ा एक मठ है. चार महीने बाद जालंधर सूबे ने अंमृतसर के पुंगा गांव में उनके ट्रांसफर से जुड़ा आदेश निकाल दिया. बेसिल ने इनकार कर दिया.
2017 के मार्च के मध्य में बेसिल को पंजाब के फिरोजपुर जिले में एक सम्मेलन को संबोधित करना था. लेकिन सम्मेलन के कुछ दिन पहले सिरो-मालाबर इलाके के एक पादरी ने उनसे इसे रद्द करने का अनुरोध किया. दरअसल इस संबोधन को लेकर गुंडों से धमकी मिल रही थी. आरोप थे कि ये गुंडे मुलक्कल के लिए काम कर रहे हैं. तब मुलक्कल लैटिन चर्च के सदस्य थे. सिरो-मालाबर चर्च और लैटिन चर्च वैश्विक कैथलिक चर्च के भाग हैं जो अलग-अलग अधिकार के तहत काम करते हैं. हालांकि मुलक्कल को सिरो-मालाबार कैथलिक चर्च का पादरी बनाया गया था, उन्हें प्रधान पादरी बनाया गया था. ये पादरी समूह के ऊंचे सदस्य होते हैं. वहीं, उन्हें लैटिन चर्च के तहत बिशप बनाया गया था. बेसिल के करीबी पादरी ने कहा कि बेसिल को एक फोन आया जिसमें “उनसे संबोधन रद्द करने को कहा गया था क्योंकि ये लैटिन चर्च के साथ विवाद का कारण बन सकता था...जिसके सदस्य मुलक्कल थे.”
बेसिल ने सम्मेलन में जाना रद्द कर दिया और मुलक्कल द्वारा आधिकारिक रूप से छुट्टी नहीं दिए जाने के बावजूद केरल चले गए. 30 मार्च के तुरंत बाद बेसिल को जालंधर सूबे से सस्पेंड कर दिया गया और उन्हें “चर्च के अनुशासन के लगातार उल्लंघन के कारण पादरी से जुड़े मंत्रालय” का काम करने से भी मना कर दिया गया. प्रभावी रूप से बेसिल से एक पादरी के काम और जिम्मेदारी से जुड़े सभी अधिकार छीन लिए गए, इसमें प्रार्थना भवन का काम भी शामिल था.
छह महीने बाद वरिष्ठ पादरी मैथ्यू पलाचुवत्तील ने मुलक्कल को एक चिट्ठी लिखी. मैथ्यू ने 2011 तक जालंधर सूबे की शिक्षा और संस्कृति के लिए कार्यकारी निदेशक के रूप में काम किया था. चिट्ठी में उन्होंने बाकी बातों के अलावा बेसिल को सस्पेंड किए जाने पर भी चिंता जताई थी. कारवां के पास उस चिट्ठी की एक कॉपी है. मैथ्यू ने लिखा, “सस्पेंशन ऑर्डर में कहीं नहीं लिखा कि फादर बेसिल ने कई मौकों पर छुट्टी की अर्जी दी थी और आप उन्हें जवाब देते रहे, जिसमें आपने एक के बाद दूसरी शर्त लगाना जारी रखा. मुझे नहीं पता की किसी तीसरे व्यक्ति के विचार, जो दोनो को मंजूर हो, पर विचार किया गया है. मुझे नहीं पता कि कैनन लॉ, मामले में शामिल एक पार्टी को एक जज की तरह काम करने का अधिकार देते है या नहीं.” मैथ्यू से जब मेरी बात हुई तो उन्होंने इस बारे में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
मैथ्यू ने अपनी चिट्ठी में लिखा, “मुझे निजी तौर पर लगता है कि फादर बेसिल को सूबे से जुड़े पहले के मामलों में न्याय नहीं मिला. मामले में अगर सही निष्कर्ष निकाला जाता है तो इससे पादरियों के जहन में व्याप्त डर का समाधान करने में सहायता मिलेगी.” लेकिन अभी तक बेसिल के सस्पेंशन को वापस नहीं लिया गया है. वे अब एक प्रार्थना सभा चलाते हैं. इसे वे अपने पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब जिले के अपने घर में चलाते हैं जिसका नाम येशु मसीह भवन है.
(जारी...)