1
गुरुग्राम के अल्ताफ अहमद 17 सितंबर 2021 को अपने घर पर ही थे. उनका 45वां जन्मदिन था. सुबह सारा वक्त उन्हें रिश्तेदारों और दोस्तों के बधाई कॉल और संदेश आते रहे. उनको फोन करने वालों में से कुछ ने इस संयोग पर मजाक भी किया कि अहमद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन एक ही दिन आता है.
अहमद का जन्मदिन उस साल शुक्रवार को पड़ा था. वह नमाज के लिए निकलने की तैयारी कर ही रहे थे, उन्हें एक स्थानीय इमाम अब्दुल हसीब का फोन आया, जो अपनी बेटियों को अरबी सिखा रहे थे और वे एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. हसीब ने उन्हें बताया कि गुरुग्राम के सेक्टर 47 में नमाज स्थल पर तनाव हो गया है. धुर दक्षिणपंथी संगठन भारत माता वाहिनी के संस्थापक दिनेश भारती बड़ी संख्या में समर्थकों के साथ घटनास्थल पर मौजूद थे.
सेक्टर 47 नमाज स्थल अहमद के घर से करीब पांच किलोमीटर दूर है. जैसे ही अहमद वहां पहुंचे, उन्हें पांच फोन कॉल आईं. इमामों में हड़कंप मच गया. “ जल्दी आओ, जल्दी आओ,” उन्होंने अहमद से कहा. “ये लोग धमकी भरे नारे लगा रहे हैं.” अहमद ने इमामों से नमाज स्थल से नहीं हटने को कहा. "हमें वहां नमाज पढ़ने की इजाजत है और हमें सुरक्षा देना पुलिस का काम है."
जब तक अहमद घटनास्थल पर पहुंचे, तब तक बूंदाबांदी शुरू हो चुकी थी. करीब 100 मीटर की दूरी पर भारती के नेतृत्व में प्रदर्शनकारी माहौल को गर्मा रहे थे. “वे ऑटोवालों और राहगीरों को रोकते और उनसे कहते, ‘पाकिस्तान बना दिया है इस जगह को इन्होंने,''' अहमद ने मुझे बताया. उन्होंने कहा, 'प्रदर्शनकारी मुसलमानों को परेशान कर रहे थे. "मुझे लगा कि गुंडे किसी भी मिनट नमाजियों पर पत्थर फेंकना शुरू कर सकते हैं."
प्रदर्शनकारियों पर लगाम लगाने के लिए पुलिस को प्रदर्शनकारियों की तरफ इकट्ठा किया गया था. अहमद ने पुलिस को हिंदुओं से यह कहते सुना: “आज नमाज होने दो. हम इसे अगले हफ्ते नहीं होने देंगे.'' गुस्से में आकर उन्होंने पुलिस को निशाने पर ले लिया. अहमद ने कहा, "मैंने उन्हें बताया कि आपके विभाग द्वारा अनुमति दी गई है."
अहमद के पुलिस से यह पूछते ही भड़काऊ नारेबाजी, जो नमाज के दौरान जारी थी, थोड़ी देर के लिए बंद हो गई. आसपास के लोग मोबाइल फोन पर कहासुनी को रिकॉर्ड कर रहे थे और पुलिस पीछे हट गई. अहमद के दखल ने पल भर के लिए पुलिस और प्रदर्शनकारियों को बचाव की मुद्रा में ला दिया और नमाज आगे बढ़ी जिसे उन्होंने बाद में "डर के माहौल" के रूप में वर्णित किया.
दिन भर की घटनाओं से अहमद के सब्र का बांध टूट गया. टकराव के बाद, वह हसीब के साथ अपने छोटे आयताकार दफ्तर में लौट आए. अहमद ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एक शिकायत टाइप की, उसे छापा और इमाम के साथ पुलिस आयुक्त के कार्यालय गए. "इस बार, मैंने सोचा, मैं इन लोगों का सामना करूंगा, क्योंकि आप बार-बार नमाज में बाधा नहीं डाल सकते," उन्होंने मुझसे कहा.
अहमद की पैदाइश 1976 में दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के परिसर की है, जहां उनके पिता ने राष्ट्रपति के प्रेस कार्यालय में तीन दशकों से ज्यादा वक्त तक सेवा की थी. मध्य दिल्ली में सेंट कोलंबा स्कूल में अध्ययन करने और फिर सूचना प्रौद्योगिकी में डिप्लोमा हासिल करने के बाद, वह 2000 के दशक के अंत में, तकनीकी उछाल के दिनों में गुरुग्राम चले आए. कॉर्पोरेट जिंदगी की बेरहम लीक ने उन्हें तबाही के कगार पर धकेल दिया. उन्होंने अपना कारोबार बदल दिया और अब शहर भर में एक सफल आतिथ्य व्यवसाय (हॉस्पिटेलिटी सर्विस) चलाते हैं.
अहमद दरमियानी कदकाठी के हैं, बाल पीछे की ओर खिसक रहे हैं और गाढ़े—उजले रंग की दाढ़ी रखते हैं. वह खुलकर बात करते हैं और ठहाके मार कर हंसते हैं. सालों तक, अहमद की जिंदगी शहर के अभिजात वर्ग से अलग न थी - कैरियर, जायदात और परिवार. "मस्जिद स्तर या सामुदायिक स्तर पर जो कुछ भी होता है उसमें शामिल होने के लिए मैं बहुत उत्सुक नहीं था," उन्होंने मुझे बताया.
2018 की गर्मियों में अहमद के लिए चीजें नाटकीय रूप से बदल गईं. उस साल अप्रैल में, हिंदू मर्दों ने सेक्टर 53 में एक नमाज सभा में नमाजियों को धमकी दी. हाल ही में उभरी संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति ने, जो एक छाता संगठन है, जिसमें पूरे गुरुग्राम के लगभग दो दर्जन दक्षिणपंथी समूह शामिल थे, शहर भर में नमाज को बाधित करना शुरू कर दिया था. समिति ने सदियों से चली आ रही एक मुस्लिम धार्मिक प्रथा को काले और काल्पनिक उद्देश्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया और नमाज बंद करने की मांग की.
"तभी मुझे झटका लगा," अहमद ने मुझे बताया. "ऐसा नहीं है कि मेरी पैदाइश के बाद से कई चीजें नहीं घटीं थी. बाबरी मस्जिद का मुद्दा था, 2002 के दंगे थे.”
हालांकि वह हिंदू राष्ट्रवादी उत्थान के दौर से गुजर रहे थे, संकट की स्थानीय प्रकृति के बारे में कुछ ने अहमद को प्रभावित किया. "अब, मुझे लगा कि वे मेरे धर्म के बारे में कुछ बहुत ही मौलिक बात पर आ गए हैं," उन्होंने कहा. अहमद ने जुमे की नमाज के महत्व पर जोर दिया —केवल ईद की नमाज़, जो साल में दो या तीन बार होती थी, मुसलमानों के लिए ज्यादा महत्व रखती है.
2018 की घटनाओं ने गुड़गांव नागरिक एकता मंच का गठन किया, जो एक प्रगतिशील नागरिक-समाज समूह है जिसमें शहर के कई प्रमुख निवासी शामिल हैं. अहमद इसके संस्थापक सदस्य हैं. वह मंच की गतिविधियों में सक्रिय भागीदार बने, जैसे कि महामारी के दौरान प्रवासी राहत कार्य में मदद करना.
स्थानीय प्रशासन द्वारा मुस्लिम समुदाय और समिति के बीच समझौता कराने के बाद 2018 की गर्मियों में थोड़ा हंगामे के बाद गुरुग्राम में नमाज पर हमले कम हो गए. इसके बाद, नमाज स्थलों की संख्या सौ से अधिक से घटाकर लगभग तीन दर्जन कर दी गई, हालांकि शेष जगहों में से कुछ - जैसे कि सेक्टर 47 में - पिछली वाली की तुलना में ज्यादा नमाजी शामिल हो सकते थे. अगले तीन सालों तक एक असहज शांति कायम रही, जब तक कि भारती ने एक नया मोर्चा नहीं खोल दिया जिसे उन्होंने "खुले में नमाज बंद कराने के मिशन" के रूप में वर्णित किया.
17 सितंबर 2021 की सुबह अहमद के सेक्टर 47 स्थित नमाज स्थल पर पहुंचने से कुछ घंटे पहले भारती ने अपने आम शुक्रवार की दिनचर्या गुरुग्राम के पुराने और जर्जर इलाके सदर बाजार स्थित अपने घर से की थी. एक सफेद जिप्सी में अपने पड़ोस की भीड़भाड़ वाली सड़कों से होते हुए, वह नए शहर के चौड़े रास्ते से गुज़रे, जिसमें महलनुमा बंगले और भव्य गगनचुंबी इमारतें थीं. उनकी जीप के पिछले हिस्से में कुदाल और फावड़े रखे हुए थे. वह एक आम ठेकेदार थे, निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे थे और उनके कारोबार के इन उपकरणों का अब कामचलाऊ हथियारों के रूप में भाव दोगुना हो गया है.
भारती दक्षिणपंथी राजनीतिक उद्यमियों की एक नई, बढ़ती जमात की नुमाइंदगी करते हैं. पैसे और संपर्कों के बिना, जिससे स्थानीय हिंदू राष्ट्रवादी प्रतिष्ठान में आसानी से अपना रास्ता बना सकें, भारती ने शोहरत और सफलता के लिए अपना खुद का रास्ता बनाने का फैसला किया था. मार्च और अप्रैल 2021, कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान सभी सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगने से पहले, वह एक के बाद एक नमाज स्थल को बाधित कर रहे थे. सितंबर में, भारती वहीं से शुरू कर रहे थे, जहां से उन्होंने छोड़ा था.
उनके कार्यों ने एक स्थानीय डार्विनवादी राजनीतिक प्रतियोगिता को उजागर किया. दर्जनों हिंदू राष्ट्रवादियों ने एक साथ गुरुग्राम में नमाज स्थलों को बाधित करना शुरू कर दिया. राज्य द्वारा स्वीकृत अधिकांश जगहों को बंद कर दिया गया, जबकि मुट्ठी भर जो बचीं थी, वे उपद्रव का एक सुलगता जरिया बनी रहीं. ऊपर से आने वाले संकेतों पर प्रतिक्रिया करते हुए प्रशासन और पुलिस भीड़ के सामने पीछे हट गई.
मैंने 2022 में कई महीनों में नमाज विवाद पर रिपोर्ट की. कई यात्राओं, बैठकों और फोन कॉलों से जो सामने आया, वह जमीन पर हिंदुत्व मशीनरी का एक विस्तृत चित्र था. एक तरह से नमाज विवाद की कहानी बदलते भारत में बदलते गुरुग्राम की भी कहानी है. अपने चमकदार मॉल, शानदार कॉर्पोरेट दफ्तरों और आधुनिक गगनचुंबी अपार्टमेंट परिसरों के साथ, गुरुग्राम को भारत के आर्थिक तरक्की की मिसाल बतौर देखा जाता है. लेकिन इसकी दौलत और शौहरत काफी हद तक देश भर के प्रवासियों के चलते है, जिनमें कामकाजी वर्ग के मुसलमान भी शामिल हैं.
भारत के सबसे बड़े और धनी शहरों में से एक, गुरुग्राम में मुस्लिम नमाजों पर हमला, मोदी के तहत हिंदू वर्चस्ववाद के एक त्वरित चरण का हिस्सा है. सजामाफी के इस सक्षम माहौल में, हिंदू चरमपंथियों का बेलगाम फैलाव एक अनुदार मध्यम वर्ग की मौन सहमति के साथ बेखौफ संचालित होता है.
मैं भारती से पहली बार मार्च 2022 में शहर की जानी मानी जगह, सिग्नेचर टावर के साये में भारतीय जनता पार्टी के नए बने कार्यालय के बाहर मिला था. लगभग चालीस की उम्र के भारती नाटे कद के हैं और उनका शरीर एक पहलवान जैसा है. उन्होंने भगवा कुर्ता पहन हुआ था, चमचमाती दाढ़ी और माथे पर पीले रंग का तिलक लगा था. कमल का बैज उनकी जेब पर सुशोभित था. उन्होंने मुझे ऑफिस बुलाया था और मैंने मान लिया था कि वे वहीं इंटरव्यू देंगे. लेकिन वह इस माहौल में असहज दिखे. भारती ने पास में खड़ी एक स्कूटी की ओर इशारा करते हुए कहा, “चलो चलते हैं. दफ्तर में मेरा काम खत्म हो गया है.
भारती ने गुरुग्राम की चकाचौंध और आधुनिकता से अलगाव की भावना जाहिर की. जब हम एक खुशहाल से दिखते इलाके से कतार में खड़े पेड़ों के बीच की सड़क से गाड़ी से जा रहे थे, उन्होंने मुझे उदास स्वर में कहा, " गुड़गांव में लोगों के पास बहुत पैसा है. भगवान ने हमें ही नहीं दिया पैसा.”
वह मुझे सुशांत लोक मार्केट में एक चाय की दुकान पर ले गए : शहर के निम्न वर्ग के बीच बसी, किराने की दुकानों से घिरी एक टपरी. सस्ते, भूरे रंग के सनमाइका से ऊपर से तीन टेबुल एक साथ जोड़े गए थे. हम जर्जर प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठ गए.
भारती का जन्म 1974 में हरियाणा के रोहतक में हुआ था. वह हाई स्कूल में थे जब उनके पिता गंभीर रूप से बीमार हो गए, जिससे परिवार आर्थिक संकट में घिर गया. भारती बाहर निकल गए और मजदूर वर्ग जिन नौकरियों को करता है, उसमें लग गए : उन्होंने 1990 के दशक में दिल्ली की रेड लाइन बसों में एक ड्राइवर और सहायक के रूप में शुरुआत की और बाद में एक निजी ड्राइवर के रूप में काम किया. 2002 में, उन्होंने निर्माण क्षेत्र में एक छोटा सा व्यवसाय शुरू किया, ईंटों और रेत की आपूर्ति की.
2010 में भारती हरिद्वार चले गए. "मेरी भावना भगवान की ओर बढ़ने लगी," उन्होंने बताया. उन्होंने गंगा के तट पर संतों और तपस्वियों के साथ बातचीत की. संतों और तपस्वियों को चिंता थी कि हिंदुओं की भावी पीढ़ियां जीवित नहीं रह सकेंगी. सात साल तक हरिद्वार में रहने के बाद भारती वहां से चल दिए. उस दौरान की प्रेरणा से उन्होंने भारत माता वाहिनी की शुरुआत की.
भारती के राजनीतिक घोषणापत्र का कुल सार मुसलमानों के खिलाफ कट्टर नफरत है. "एक समुदाय विशेष में मर्द के चार पत्नियां और चालीस बच्चे हैं," उन्होंने कहा. उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने सैद्धांतिक रूप से अपने कारोबार में मुस्लिम मजदूरों को काम पर नहीं रखा है. उन्होंने कहा, “ये लोग साफ-सफाई से नहीं रहते. वे अपने दांत तक साफ नहीं करते. उनके मुंह से बदबू आती है.”
भारती का मानना था कि वह अफरातफरी के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर खड़े प्रहरी की तरह हैं. उन्होंने कहा कि लोग देश के खिलाफ काम करने के लिए विदेशी फंडिंग ले रहे हैं और उन्हें रोके जाने की जरूरत है. “समय-समय पर वे आपके सामने आते हैं, जैसे शाहीन बाग या कोई और विरोध में.” जब मैंने उनसे पूछा कि वह कैसे जानते हैं शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन को विदेशी फंडिंग मिली, उन्होंने कहा, “सूचनाएं होती हैं.” जल्द ही यह साफ हो गया कि इस तरह की शेखी बघारना भारती के व्यक्तित्व की एक सबसे खास विशेषता है.
2020 में कभी सेक्टर 38 में गाड़ी चलाते हुए, भारती ने मुसलमानों के एक समूह को एक खुली जगह में नमाज पढ़ते हुए देखा. उन्होंने मौलवी से उस जगह पर नमाज अदा करने की इजाजत के बारे में पूछताछ करते हुए एक वीडियो बनाया. "मौलवी परेशान हो गए," उन्होंने मुझे बताया. उन्होंने अनुमति प्राप्त नमाज स्थलों की सूची के लिए स्थानीय प्रशासन से संपर्क किया और फिर सूची को फर्जी बताते हुए खारिज कर दिया.
"इस पर किसी भी सरकारी अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं थे," उन्होंने मुझे बताया. "किसी भी सरकारी विभाग का कोई लेटरहेड नहीं था." ढीठपने से वैधानिकता का यह सहारा लगभग हर किसी के लिए एक बहाना था, जिसे मैं स्थानीय, अनौपचारिक आवास व्यवस्था को अमान्य करने के साधन के रूप में नियमित रूप से बता रहा था. भारती ने मुझे बताया कि नमाज का मुद्दा उन पर असर करने लगा. उन्होंने जगह-जगह घूमकर मुस्लिम नमाजियों के खुले में नमाज पढ़ने के वीडियो बनाए.
भारती के लिए, शुक्रवार की नमाज मुसलमानों का शक्ति प्रदर्शन था. जब मैंने उनसे पूछा कि इतनी स्थापित धार्मिक परंपरा को इस तरह कैसे लेबल किया जा सकता है, तो उन्होंने प्रतिवाद किया, "एक बात बताओ, क्या उन्हें एक साथ खुले में ही खुदा मिलता है? वे जहां काम कर रहे हैं वहां नमाज क्यों नहीं पढ़ सकते?'' उनके अनुसार, गुरुग्राम में और मस्जिदों की मुसलमानों की मांग देश भर में "दंगे भड़काने की साजिश" थी. उन्हें हर कहीं इस्लामी साजिश नजर आती, जो खुद को जाहिर और खुफिया तरीकों से जोड़ रही थी.
हमारी बातचीत के बीच में भारती ने अपने फोन में स्टोर एनडीटीवी की कुछ महीने पहले की एक क्लिप मुझे दिखानी शुरू की. वीडियो में, भारती एक स्थानीय मौलवी के सामने कूद पढ़ते हैं, जो नमाज पढ़ाने के लिए आए था और बिलखना शुरू कर देते हैं. "नमाज तो नहीं होगा यहां.” पास खड़ी एक पुलिस वैन में, भारती को ले जाने के लिए, कई पुलिसवाले लगे. आपे से बाहर होकर भारती का विरोध जारी रहा. यह एक नाट्य प्रदर्शन था, लेकिन टकराव आसानी से दंगे में बदल सकता था. जैसे ही भारती ने फोन स्क्रीन को मेरी तरफ झुकाया, उनका चेहरा गर्व से दमक उठा.
भारती की अप्रत्याशित शोहरत ने समिति के लिए परेशानियां पैदा कर दी हैं. वह हिंदू दक्षिणपंथी ईको सिस्टम के भीतर एक बेकाबू, कुछ हद तक अराजक, व्यक्ति हैं. भारती इस ईको सिस्टम में अपने से ऊपर वालों को कोई तवज्जो नहीं देते और बात करने से साफ लगता है कि वह अनुशासन में बंध कर नहीं रह सकते. वह ठाकुर जाति के भारती, मजदूर वर्ग के हैं और ऐसा वर्ग के व्यक्ति को शोहरत मिलने ने नेतृत्व और सामाजिक हैसियत की बुनावट को उधेड़ दिया है.
समिति से उनकी कई शिकायतें थीं. "मेरे पास आदेश देने की क्षमता है इसलिए मैं आदेश देता हूं," उन्होंने मुझसे कहा. "अगर वे मुझे नहीं बुलाएंगे, तो मैं क्यों जाऊंगा?" समिति ने उन्हें दो बार जेल से बाहर निकाला लेकिन फिर भी भारती को लगा कि समिति ने उन्हें उनका हक नहीं दिया है. वह कहते हैं, "उन्होंने मेरी गिरफ्तारी को मुद्दा नहीं बनाया. मैंने इसे शुरू किया और दूरे लोग इसका श्रेय लेने के लिए कूद पड़े."
सुशांत लोक चाय की दुकान पर, उनके व्यक्तित्व का एक सनकी और खतरनाक पहलू उभरने लगा. हम एक घंटे से ज्यादा समय से बात कर रहे थे. अपने करतबों से मुझे सराबोर करते हुए भारती की आवाज ऊंची हो गई. कुछ देर बाद वह अचानक टूट पड़े. उनका ध्यान एक युवा दुकानदार पर चला गया जो टपरी के दरवाजे पर एक स्टूल पर बैठा था. “भाई, के सुन रहा है तू?” भारती ने उससे पूछा. “उठ ले. खड़ा हो ले.” दुकानदार, जो एक किशोर से ज्यादा नहीं दिखता था, डर के मारे दूर चला गया.
भारती ताकत के अपने क्षण का आनंद लेते दिख रहे थे. "यह आदमी मुसलमान था," उन्होंने पूरी उम्मीद के लहजे में कहा. जब मैंने उनसे पूछा कि वह कैसे जानते हैं, तो उन्होंने खिलखिलाते हुए कहा, “मेरा रडार हमेशा सतर्क रहता है. यह कभी नहीं रुकता.''
समिति की नाक के नीचे से भारती अपनी हवा बना रहे थे और उन्हें उनकी हद दिखाने की जरूरत थी. सितंबर 2021 में, गुरुग्राम में हिंदू दक्षिणपंथ के विभिन्न गुटों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो नए कलाकार मंच पर दिखाई दिए: कुलभूषण भारद्वाज, समिति के कानूनी सलाहकार और सेक्टर 47 का प्रतिनिधित्व करने वाले पार्षद कुलदीप यादव.
भारद्वाज, जो बीजेपी की गुरुग्राम इकाई में चौंकाने वाली टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं, हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ टिप्पणी करने के लिए तीसरी बार पार्टी से निलंबित कर दिए गए थे. अड़तालीस साल के और छह फीट से अधिक लंबे, भारद्वाज की कुछ टटपुंजिए आपराधिक वकीलों के बीच लंपट हवा थी. हनुमान के एक पोस्टर के नीचे बैठे, उनका विशाल फ्रेम गुरुग्राम के जिला अदालत में उनके छोटे, बॉक्स जैसे केबिन पर हावी था, जहां मैं उनसे मिला. उन्होंने एक झक सफेद शर्ट और एक चमकदार सोने की घड़ी पहनी हुई थी. एक लाल तिलक उनके माथे के ऊपर से नाक के सिरे तक फैला हुआ था.
भारद्वाज ने एक निम्न श्रेणी के दिल्ली पुलिस अधिकारी के बेटे के रूप में पढ़ाई की चिंता से ग्रस्त प्रारंभिक जीवन का वर्णन किया. वयस्क जीवन में सम्मानित और शक्तिशाली लोगों की श्रेणी में शामिल होने में उनकी असफलता ने केवल उस चिंता को बढ़ाया ही था. सुर्खियों में आने के एक छोटे से पल का आनंद वह तब ले पाए जब उन्होंने 2020 में जामिया मिलिया इस्लामिया में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान छात्रों पर गोली चलाने वाले 17 साल के गोपाल शर्मा का प्रतिनिधित्व किया था.
अभावों से घिरे, भारद्वाज कभी-कभी भाषण की मुद्रा में चले जाते, मानो किसी जनसभा को संबोधित कर रहे हों और कमरा श्रद्धा से मौन हो जाता. भारती की तरह, उन्होंने भी धूर्तता से नमाज को सार्वजनिक व्यवस्था के लिए एक खतरा बताया. "अगर बच्चे क्रिकेट खेलना चाहते हैं और संयोग से यह शुक्रवार की दोपहर है, ये लोग वहां नमाज पढ़ रहे हैं," उन्होंने कहा. "जब हमें क्रिकेट खेलने का मन करता है तो आप वहां नमाज क्यों पढ़ रहे हैं?" उन्होंने "जमीन जिहाद" का भूत खड़ा किया, जो हिंदू दक्षिणपंथ द्वारा फैलाया गया एक झूठ है. यह खुली जगह में नमाज पढ़ने को जमीन पर कब्जा करने की रणनीति के रूप में प्रचारित करता है. भारद्वाज अपनी कथनी और करनी दोनों में ठेठ अति—दक्षिणपंथी पेश हो रहे थे, जिस प्रतिष्ठान ने उन्हें नकार दिया था उसकी तुलना में ज्यादा कट्टरपंथी दिखाई देकर वह अपने लिए राजनीतिक गलियां खोल रहे थे.
पार्षद यादव, वह सब कुछ थे जो भारद्वाज नहीं थे : चिकनी-चुपड़ी बात करने वाले और एक सफल राजनीतिज्ञ. वह एक स्थानीय रसूखदार परिवार से आते हैं जो पीढ़ियों से राजनीति में है. शहर की एक सड़क का नाम उनके दादा के नाम पर रखा गया है. उन्होंने कहा, 'गांव वाले सब हमें वोट देंगे. ऐसी पहचान है अपनी." 41 साल के सफाचट दाढ़ी, चिकने, कांच की रिम वाला चश्मा लगाए यादव को देख कोई भी यह मानने की भूल कर सकता है कि वह गुरुग्राम के कॉर्पोरेट दफ्तरों में से किसी के सफेदपोश कर्मचारी हैं. हम सोहना रोड पर शीशे की इमारत में उनके आधुनिक दफ्तर में मिले. उनके बड़े से केबिन की परिधि के साथ चमड़े के शानदार सोफे की व्यवस्था की गई थी. कांच की खिड़कियों से शहर के क्षितिज का असरदार नजारा दिखाई देता है.
पार्षद ने मुझे बताया कि वह निवासियों के प्रतिनिधि के रूप में उनके साथ खड़े होने के लिए मजबूर हैं और इसलिए सेक्टर 47 में नमाज के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. उन्होंने संख्याओं की ठंडी तर्कसंगतता को एक चतुर बहुसंख्यकवादी राजनेता के रूप में समझा; उनके वार्ड में मुट्ठी भर मतदाता ही मुसलमान थे. उन्होंने मुझे बताया कि महामारी से पहले लगभग तीस लोग नमाज स्थल पर नमाज़ पढ़ते थे, जिनमें ज्यादातर मजदूर थे जो सेक्टर के अंदर काम कर रहे थे. लॉकडाउन के बाद, उन्होंने कहा, नमाजियों की संख्या सौ हो गई और निवासियों ने आपत्ति करना शुरू कर दिया.
“टोपियों से तो एलर्जी है ना,” यादव ने अपने ठेठ हरियाणवी लहजे में कहा. "टोपी देखकर ऐसा लगता है कि ये लोग पाकिस्तान से आए हैं. आप मेरी बात समझ रहे हैं?"
यादव ने मुझे बताया कि नमाजियों की खुशमिजाजी से निवासियों को गुस्सा आ गया. खासकर एक घटना के बाद जब कुछ युवा मुस्लिम सेक्टर में आए और पार्क में खेलने लगे और तस्वीरें लेने लगे, तो रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने उनसे संपर्क किया. यादव ने कहा , "उन्होंने मुझे बताया कि यहां एक समस्या शुरू हो गई है और इसे दूर किया जाना चाहिए."
गुरुग्राम में हिंदू दक्षिणपंथी वैचारिक सहमति से एकजुट थे. उन्होंने कहा, 'हिंदू अब भी नरम होते हैं. मुस्लिम सोचते हैं कि हिंदू घर बनाएंगे और हम आखिर में उन पर कब्जा कर लेंगे. धीरे-धीरे हमारी आबादी बढ़ेगी और फिर हम उन्हें मार देंगे, आखिरकार पूरा देश हमारा होगा. वह भारती और भारद्वाज की वैचारिक प्रतिबद्धताओं को खारिज करते थे. उन्होंने इसे "राजनीति चमकाना” कहा.
सितंबर और अक्टूबर 2021 में गुरुग्राम के हिंदू दक्षिणपंथ के तीन युद्धरत गुट सेक्टर 47 नमाज़ स्थल पर मौजूद थे. भारती को अपनी नग्न राजनीतिक महत्वाकांक्षा के बारे में कोई खेद नहीं था, लेकिन यादव और भारद्वाज ने जोर देकर कहा कि सेक्टर के निवासियों ने उनसे मदद के लिए संपर्क किया था. दोनों दावे संदिग्ध दिखाई दिए. निलंबन के बाद भारद्वाज फिर सुर्खियों में आए; उनका सेक्टर से कोई पूर्व संबंध नहीं था. कई लोगों से मैंने यह भी सुना है कि 17 सितंबर की घटनाओं के बाद, यादव खुद निवासियों को लामबंद कर रहे थे. "अगर गुड़गांव के दूसरे कोने से कोई यहां आता है, तो पूरे मामले का राजनीतिकरण हो जाएगा," उन्होंने निवासियों से कहा. राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को अपने ही मैदान से बाहर करने के लिए यह एक चतुर चाल थी.
1 अक्टूबर को, प्रदर्शनकारियों, जिसमें अब सेक्टर 47 के निवासी शामिल हैं, का नमाजियों के साथ टकराव शुरू हो गया. दोनों समूहों में लगभग अस्सी लोग शामिल थे. विरोध करने वाले निवासियों में सेक्टर के सेवानिवृत्त बुजुर्ग और गृहिणियों को शामिल किया गया था - केवल इन्हीं लोगों को शुक्रवार की दोपहर जुटाया जा सकता था.
हिंदू प्रदर्शनकारी अपने साथ एक माइक्रोफोन और एक पोर्टेबल स्पीकर लाए थे, जिसका इस्तेमाल वे भजन गाने और नारे लगाने के लिए करते थे. "भूमि जिहाद बंद करो" गृहिणियों ने नारा लगाया. प्रदर्शनकारियों ने तख्तियां भी लीं थी, जैसे “खुले में नमाज बंद करो” और “नमाज मस्जिद में अदा करो”.
1 अक्टूबर को नमाजियों के साथ पहला आमना-सामना होने के बाद, निवासियों ने अगले दो हफ्ते तक विरोध करना जारी रखा. व्यामोह के नए रूप विकसित होते दिख रहे थे. कुछ ने नमाजियों की पहचान जांच की मांग की, ऐसा न हो कि वे आतंकवादी हों. एक शुक्रवार को टकराव बढ़ने के बाद नमाज की जगह को करीब दो सौ मीटर दूर ले जाना पड़ा.
दूसरी तरफ, हिंदू नेताओं के बीच रस्साकस्सी और ज्यादा तेज हो गई. भारती को, जो 1 अक्टूबर को भिडंत में थे, दो दिन बाद गिरफ्तार कर लिया गया था. उन्होंने पांच दिन जेल में बिताए. दो शुक्रवार बाद, 15 अक्टूबर को, उन्हें सेक्टर 47 साइट से गिरफ्तार किया गया और हफ्ते भर से ज्यादा समय बाद रिहा किया गया. भारती ने कहा कि उन्हें उठा लिया गया जबकि भारद्वाज और यादव को नहीं उठाया गया. "क्या वे कानून नहीं तोड़ रहे थे?" उन्होंने दावा किया कि यादव की वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और रेजिडेंट्स एसोसिएशन के प्रमुखों के साथ मिलीभगत थी, जो सभी एक ही जाति के थे. एक बार फिर, भारती की असीम महत्वाकांक्षा निष्ठुर ढांचागत सच्चाइयों से टकराकर थर्रा उठी. "मेरे पास पैसे नहीं हैं," उन्होंने कहा. "इसलिए मैं पार्टी में आगे नहीं बढ़ पा रहा हूं."
कुछ हफ्ते बाद, भारती और यादव सार्वजनिक रूप से झगड़ने लगे. भारती ने अपनी गिरफ्तारी के लिए यादव को दोषी ठहराया, जिस पर पार्षद ने तीखी प्रतिक्रिया दी. “इत्ने जूत मारूंगा” उन्होंने भारती से कहा.
एक अनजाने पल में, यादव ने मेरे सामने माना कि वह पुलिस के साथ नजदीकी से तालमेल बनाकर चल रहे थे. उन्होंने कहा, ''हम भी गिरफ्तार हो सकते थे. यह हमारी चतुराई थी कि हम प्रशासन के संपर्क में रहे. अगर एसीपी मेरे दोस्त नहीं होते तो सेक्टर के लोग भी गिरफ्तार हो जाते.” उन्होंने मुझे बताया कि पुलिस के साथ उनकी नियमित बातचीत होती थी, जो प्रदर्शनकारियों को सलाह देते थे कि स्थिति को कितना बिगड़ना चाहिए. वे कहते, “आज इतना कर लो”. यादव ने कहा, "एक बार उन्होंने हमसे कहा था, 'आज आप हमारे साथ धक्का-मुक्की कर सकते हैं.' जब मैं उनके साथ तालमेल कर रहा हूं, तो उनकी भी जिम्मेदारी होती है कि वे हमें सफलता तक ले जाएं."
अक्टूबर के अंत तक, नमाज स्थल पर आने वाले नमाजी कम होने लगे थे. विभाजन के उस पार, विरोध करने वाले निवासियों की गति कायम नहीं रह सकी. यह एक समृद्ध इलाका है और दीवाली आने ही वाली थी. जिला प्रशासन के साथ एक बैठक के बाद, 18 अक्टूबर को निवासियों ने अगले दो हफ्ते के लिए विरोध प्रदर्शन बंद करने पर सहमति जताई. अहमद ने मुझे बताया, "उन्हें लगा कि सेक्टर 47 काम नहीं कर रहा है." हिंदू समूहों ने नए गुरुग्राम में लामबंदी की कठिनाइयों को महसूस किया, उन्होंने कहा, क्योंकि यह ज्यादातर कॉर्पोरेट पेशेवरों का व्यस्त जीवन जीने वाले लोग थे.
यादव ने मुझे बताया कि अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे समस्या का समाधान करेंगे. नवंबर की शुरुआत में, अहमद सहित हिंदू दक्षिणपंथियों और मुस्लिम प्रतिनिधियों के बीच एक भयावह और विवादास्पद बैठक में, जिसने नामित नमाज़ स्थलों को घटाकर बीस कर दिया गया था, सेक्टर 47 मैदान को सूची से हटा दिया गया.
सेक्टर 47 नमाज स्थल एक व्यस्त चौराहे पर एक पेट्रोल पंप के पीछे एक आयताकार मैदान है. यहां परती पड़ी झाड़ियां थी और कांटेदार तार से घिरी हुई थी, बजरी और मलबा हर तरफ बिखरा हुआ था. हालांकि भूमि तकनीकी रूप से सेक्टर की थी, लेकिन यह प्रभावी रूप से इसके बाहर थी. यहां तक कि सेक्टर से मैदान एक अपार्टमेंट परिसर के चलते दिखता भी नहीं था. अहमद ने कहा, "आवासीय क्षेत्र से लगभग सात सौ से आठ सौ मीटर की हवाई दूरी है. कौन सा बच्चा दोपहर की गर्मी में वहां खेलेगा?"
मार्च 2022 की एक दोपहर, मैं सेक्टर 47 के रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के दो पदाधिकारियों से मिला: सुनील यादव, अध्यक्ष और आरके यादव, सचिव. दोनों 2005 से सेक्टर में रह रहे थे. सुनील यादव गुरुग्राम की जिला अदालत में वकील थे, जहां मेरी मुलाकात भारद्वाज से हुई थी. आरके यादव प्रापर्टी डीलर का काम करते थे. "मैं आरडब्ल्यूए में पूर्णकालिक हूं," उन्होंने मुझे बताया. दोनों ने अपनी उंगलियों में कई ज्योतिषीय अंगूठियां पहनी थीं.
आरके यादव ने नमाज पढ़ने आए मुसलमानों द्वारा किए गए अपराध की एक सर्वनाशपूर्ण दृष्टि को चित्रित किया: चेन स्नेचिंग, घरों से गैस सिलेंडरों की चोरी, खड़ी कारों से साइड मिरर और टायरों को निकालना. जब मैंने उनसे शिकायत या प्रथम-सूचना रिपोर्ट के बारे में पूछा, तो उन्होंने टाल दिया. "ये छोटी-छोटी घटनाएं हैं," उन्होंने मुझसे कहा. वह अचानक अपने आरोपों को कम करने की कोशिश कर रहे थे.
नमाज के खिलाफ आंदोलन सेक्टर की महिला निवासियों द्वारा संचालित किया गया था. "स्कूल का समय होता था और महिलाएं अपने बच्चों को लेने जाती थीं," उन्होंने कहा. "इतने लोगों को देखकर एक डर महसूस होगा."
सुनील यादव ने मुझे बताया कि सेक्टर 47 में केवल चार मुस्लिम परिवार रहते हैं, जिनमें से किसी ने भी वहां नमाज नहीं पढ़ी. मजदूर वर्ग के नमाजियों के लिए उनकी हिकारत साफ थी. उन्होंने कहा, ''ये सभी अनपढ़ हैं. पंचरवाले, पुताई वाले, इसी तरह के लोग."
इसके बाद जो हुआ वह बहुत ही अनुमानित था. यादव ने दक्षिणपंथी बातों को तोते की तरह दोहराया: "भूमि जिहाद" के दावे, सामूहिक नमाज़ के महत्व को समझने से इनकार करना और इसे शक्ति प्रदर्शन करार देना. "उन्होंने लॉकडाउन के दौरान जुमे की नमाज क्यों नहीं पढ़ी?" सुनील यादव ने जानना चाहा. मैंने सुझाव दिया कि मुसलमान महामारी को एक आपातकालीन स्थिति मानते हैं. उन्हें यकीन नहीं हुआ. "अगर आपात स्थिति में कर सकते हैं, तो अब ऐसा क्यों नहीं कर सकते?" उन्होंने प्रतिकार किया. "क्या अल्लाह तब अलग था?"
मुलाकात के बाद सुनील और आरके यादव ने मुझे सेक्टर के एक पार्क में जाने को कहा. जबकि नमाज़ स्थल सुनसान था, पार्क जगमग था: बच्चे झूलों पर झूल रहे थे, गृहिणियां भजन गा रही थीं. पार्क के बीच में, चार बेंचों को एक वर्ग के रूप में जमीन पर आमने—सामने जोड़ दिया गया था. यह वह जगह थी जहां नमाज के सबसे मुखर विरोधियों में से कुछ-सेवानिवृत्त लोग- हर शाम मिलते थे. शाम के करीब 6 बज रहे थे जब मैं वहां पहुंचा; शाम 6.30 बजे तक, बेंचें ठसाठस भरी हुई थीं.
एसपी सिंह, जो हाल ही में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए एक भर्तीकर्ता के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे, ने मुझे बताया कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश और ओडिशा तक के स्थानों से कर्मचारियों को नियुक्त करते थे. उन्होंने हरियाणा के मुस्लिम बहुल जिले नूंह से लोगों को भर्ती करने के बारे में सोचा. सिंह ने कहा कि उन्होंने लगभग पचास मुसलमानों को काम पर रखा और दावा किया कि कारखाने से एक दिन में 11 मोटरसाइकिलें चोरी हो गईं. उन्होंने कहा, ''हमने सभी को एक ही बार में निकाल दिया. इसलिए उन्हें काम नहीं मिल रहा है."
सिंह ने आत्मविश्वास से कहा, "मुसलमान आपको बेवकूफ बना रहे हैं." उन्होंने दावा किया कि नमाजी हंगामा करने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए उन्हें रोका गया. "यह पार्क जहां हम बैठे हैं मनोरंजन के लिए है," उन्होंने कहा. “अगर कोई यहां नमाज पढ़ने लगे तो क्या यह अच्छा लगेगा?”
सेवानिवृत्त लोगों ने मुझे बताया कि वे खुश हैं कि नमाज़ रोक दी गई है. "आप यह भी जानते हैं कि हम मुसलमानों से इतना प्यार नहीं करते," सेक्टर के एक अन्य निवासी भगवान दास ने मुझे बताया. चूंकि वे खुले में इबादत के खिलाफ थे, मैंने पूछा कि क्या वे मस्जिदों के निर्माण पर सहमत होंगे. सवाल की बचकानी अव्यावहारिकता पर हंसते हुए सिंह ने जवाब दिया, "बवाल हो जाएगा".
मैं जल्द ही कोरस की आवाज़ों के बीच एक मूक दर्शक से थोड़ा बाहर निकला. आरोप अंतहीन लग रहे थे और तेजी से भयावह होते जा रहे थे: ज्यादातर अपराध, चाहे बलात्कार हो या हत्या, मुसलमानों द्वारा किए गए थे; लव जिहाद में शामिल थे मुसलमान; मुसलमानों ने अशिक्षित रहना चुना. सेना के एक पूर्व अधिकारी राम निवास ने कहा, "वे जानवरों से भी बदतर हैं." जैसे-जैसे बातचीत लंबी होती गई, वह चिड़चिड़े और घुनघुन होने लगे थे. उन्होंने कहा, 'अगर पचास से सौ लोग एक साथ हों तो यह आतंकवाद को बढ़ावा देता है.' उनकी आवाजा अचानक गुस्से से भर उठी. “उन सभी को एक ट्रेन में बैठाया जाना चाहिए और पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए. नमाज पढ़नी है तो पाकिस्तान चले जाओ.''
2
31 अक्टूबर 2021 को गृह मंत्री अमित शाह ने उत्तराखंड में देहरादून में एक रैली को संबोधित किया. वह राज्य चुनावों के लिए बीजेपी के अभियान का उद्घाटन कर रहे थे. शाह ने कहा, "जब मैं पहले उत्तराखंड आया था, कांग्रेस के कार्यकाल में, मेरा काफिला ट्रैफिक जाम में फंस गया था. मुझे बताया गया कि शुक्रवार को नमाज़ के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग को रोकने की इजाजत है."
उन्होंने घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं दी, न घटना की तारीख बताई और न ही सड़क का नाम बताया. शाह का यह शातिराना भड़काउ बयान एक आश्चर्यजनक हस्तक्षेप था; हिंदू दक्षिणपंथियों और शहर के प्रशासन ने इसकी व्याख्या शीर्ष से उनकी गतिविधियों के समर्थन के रूप में की. घटनाओं का क्रम उल्लेखनीय था. भारती द्वारा जो गति दी गई थी, वह भारत के गृह मंत्री के सार्वजनिक बयानों के लिए अपना रास्ता खोज चुकी थी.
इस समय तक, हिंदू दक्षिणपंथी आंदोलन का केंद्र पुराने गुरुग्राम में सेक्टर 12ए में चला गया था. यह शहर में हिंदुत्व की राजनीति का गढ़ है; यहीं से हिंदुत्व की सेना के ज्यादातर प्यादे आते हैं. इधर, नमाज का विवाद चरम पर पहुंच गया. सेक्टर 47 को भुला दिया गया. बीते शुक्रवार को सेक्टर 12ए स्थल पर पांच सौ से ज्यादा पुलिस अधिकारियों को तैनात किया गया था. भारद्वाज के नेतृत्व में समिति के सदस्य पास के एक चौराहे पर जमा हो गए थे और नमाज की जगह की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे थे. इस बिंदु पर, उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया. भारद्वाज और भारती सहित 25 लोगों की गिरफ्तारी हुई.
5 नवंबर को, गोवर्धन पूजा का त्योहार, एक भव्य और उग्रवादी अवतार में, सेक्टर 12ए में मनाया गया. हिंदू दक्षिणपंथी इन उत्सवों को ठीक उसी स्थान पर आयोजित करने पर जोर देते जो सालों से नमाज के लिए नामित रहा है. जमीन पर क्षैतिज रूप से एक टीले की तरह, कृष्ण की एक भूरी मिट्टी की मूर्ति उकेरी गई. गुलाबी शामियाना के नीचे सफेद चादर से ढका एक मंच था; समिति के कार्यकर्ता पीछे भगवा झंडे फहरा रहे थे, आमंत्रित बेतार के माइक्रोफोन से भाषण दे रहे थे.
वक्ताओं में गुरुग्राम से बाहर के प्रमुख व्यक्ति शामिल थे. विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ पदाधिकारी सुरेंद्र जैन उपस्थित थे. पूर्व में आम आदमी पार्टी से और अब बीजेपी विधायक, कपिल मिश्रा जिनके भड़काऊ भाषण ने दिल्ली हिंसा को भड़का दिया था, सुर्खियों में थे.
जैन ने कहा, 'हमने आपको 1947 में जमीन दी थी. आपने जो मांगा था, आपको पाकिस्तान दिया गया था." उनके भाषण के दौरान नमाज का विरोध करने वालों का फूलमाला पहनाकर स्वागत किया गया. दर्शकों से "जय श्री राम" के नारे गूंज उठे. "मैं इन स्वतंत्रता सेनानियों और धर्म योद्धाओं को सलाम करता हूं," जैन दहाड़े. गुरुग्राम प्रशासन को झुकाने वाले इन योद्धाओं को मैं नमन करता हूं.
आखिरकार, मिश्रा ने मंच संभाला और एक भड़काऊ भाषण दिया. उन्होंने नमाज के अधिकार का बचाव करने वालों की तुलना शाहीन बाग से की, दोनों को कानून और व्यवस्था के लिए खतरा बताते हुए. मिश्रा ने प्रदर्शनकारियों पर तंज कसते हुए कहा, "हो गया सीएए वापस?" उन्होंने नमाज के खिलाफ आंदोलन को सड़कों की बाधा से मुक्ति बताया. उन्होंने कहा, ''किसी को भी हर हफ्ते सड़कों को ब्लॉक करने का अधिकार नहीं है. यह इजाजत नहीं दी जाएगी."
पहले से ही तनावपूर्ण माहौल को, पूजा ने और बढ़ा दिया.
द वायर के लिए एक लेख में, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने उन कई त्रुटियों और विरोधाभासों की ओर इशारा किया, जिससे स्पष्ट रूप से एक धार्मिक सभा के रूप में इसे चित्रित किया गया था. त्योहार के केंद्र में महिलाएं थीं, फिर भी यहां वक्ता लगभग खासकर पुरुष थे. भगवान कृष्ण को समर्पित दिन "जय श्री राम" के जाप की असंगति भी थी. "क्या यह वास्तव में गोवर्धन पूजा है या कुछ और?” अपूर्वानंद ने पूछा.
पूजा हिंदू समिति के अध्यक्ष और पर्दे के पीछे की घटनाओं को प्रभावित करने वाले और प्रभावशाली बनाने वाले महावीर भारद्वाज के लिए एक दुर्लभ सार्वजनिक उपस्थिति थी. एक दोपहर, घटनाओं के कुछ महीने बाद, मैं उनसे ऐतिहासिक शीतला माता मंदिर में मिला. मंदिर, हिंदुत्व लामबंदी के लिए एक चुंबक की तरह था जहां धार्मिक गतिविधि संघ के एजेंडे से जुड़ी हुई थी. यह सेक्टर 12ए के करीब था.
मंदिर एक बड़े परिसर के एक छोटे से हिस्से में अस्थायी रूप से चल रहा था. जहां काम चल रहा था वहां निर्माण बाधाओं के चलते इसे बंद कर दिया गया था; दूसरी ओर, एक नए, विशाल मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा था. अप्रैल 2021 में, जब भारती गुरुग्राम में नमाज को बाधित कर रहे थे, तब हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर ने नए मंदिर की आधारशिला रखी थी. अमर उजाला के अनुसार परियोजना पर 200 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया था कि अंतिम संरचना कुतुब मीनार से ऊंची होगी.
मेरे आने के कुछ मिनट बाद, महावीर भारद्वाज एक एसयूवी से उतरे. लगभग साठ की उम्र में भी एकदम तंदरुस्त वह सफेद स्नीकर्स के साथ पीले रंग का कुर्ता और पायजामा पहने थे. भारद्वाज आजीवन संघ के कार्यकर्ता रहे. वह चुनावी महत्वाकांक्षा से रहित एक प्रतिबद्ध विचारक थे, जो हिंदुत्व पारिस्थितिकी तंत्र के स्थायी मजबूत ढांचे का निर्माण करते हैं.
भारद्वाज ने मुझे बताया कि समिति का गठन 2018 में "हिंदू हितों की रक्षा के लिए" किया गया था. नमाज़ के खिलाफ लामबंदी करने के लिए गठित, इसने नवरात्रि के दौरान मांस की दुकानों को बंद करने जैसे अन्य क्षेत्रों में जल्दी से अपना दावा किया .
संगठन के एक हजार से अधिक सदस्य थे, उन्होंने कहा, और इसके संरक्षकों में एक सेवानिवृत्त कर्नल और एक सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश शामिल थे. सदस्यता निःशुल्क है. "नियम और शर्तें केवल यह हैं कि आप हिंदू होने चाहिए," उन्होंने कहा. जब मैंने भारद्वाज से पूछा कि गैर-हिंदुओं को क्यों प्रतिबंधित किया गया है, तो उन्होंने जवाब दिया, "गैर-हिंदुओं को ठीक करने के लिए ही तो बनाई है”.
गोवर्धन पूजा के तमाशे के पीछे समिति की संगठनात्मक पदचिह्न जाहिर हैं. पूजा में बोलते हुए, भारद्वाज ने एक नया सिद्धांत पेश किया था कि नमाज़ को लेकर संघर्ष को कैसे हल किया जा सकता है. उन्होंने मुसलमानों से घर वापसी करने का आग्रह किया.
नमाज के खिलाफ हिंदुत्व विरोध के कोर में बसा विरोधाभास फिर से प्रकट हुआ: खुले में सार्वजनिक पूजा का गला घोंटना, लेकिन मस्जिदों के लिए और भी बड़ा विरोध. मस्जिदों का सवाल अक्सर गुस्सा भी भड़काता है. भारद्वाज मुझसे एक औपचारिक, संस्कृतनिष्ठ हिंदी में बात कर रहे थे, उनका स्वर शांत और नियंत्रित था, लेकिन जब मैंने और मस्जिदों की मुस्लिम मांग उठाई तो वह भड़क गए. "इसकी कोई गारंटी है?" उन्होंने गुस्से से पूछा. "क्यों बहनचोद दस-दस बच्चे पैदा कर रखे हैं? अगर मेरे पास एक कमरा है और दस बच्चे पैदा करुं, तो क्या मैं जिला आयुक्त के बंगले पर कब्जा कर लूंगा?"
शीतला माता मंदिर से नजदीक ही, मैं शहर के सबसे प्रमुख मुस्लिम मौलवी और जमीयत उलेमा-ए-हिंद, के गुरुग्राम अध्याय के अध्यक्ष मुफ्ती सलीम से मिला. इस मुस्लिम निकाय ने विभाजन का विरोध किया था. सलीम एक समृद्ध कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखते हैं जो पीढ़ियों से इस इलाके में रह रहा है. हम पुराने शहर के अल-मंज़िल रेस्तरां में मिले थे. सलीम रेस्टोरेंट के मालिक हैं. सदर बाजार मस्जिद के ठीक सामने, यह जगह पहले शराब की दुकान हुआ करती थी, जिससे तनाव पैदा होता ही रहता. हिंदू मालिक ने सलीम के दुकान बंद करने के अनुरोध को मान लिया तो सलीम ने उसकी आय के संभावित नुकसान को कम करने के लिए उनसे यह जगह खरीद ली. इस घटना ने समझौते की एक पुरानी भावना की बात की.
सलीम सफेद सलवार कमीज और एक टोपी पहने हुए थे; शीशे की रिम वाला चश्मा उनके छोटे, अंडाकार चेहरे पर जंच रहा था. शहर के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक नेता के लिए, वह एकदम युवा थे, केवल 37 वर्ष के.
उन्होंने गुरुग्राम की अजीबोगरीब स्थिति के बारे में बताया: यह एक नया शहर है जहां अधिकांश मुसलमान प्रवासी हैं. पुराने शहरों में, जैसे कि दिल्ली में, उन इलाकों में दशकों और शताब्दियों में संगठित रूप से मस्जिदें उभरी थीं जहां मुसलमानों की पर्याप्त आबादी थी. "यहां, मुसलमान पूरे शहर में बिखरे हुए हैं," उन्होंने कहा. "वे हमें मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं दे रहे हैं और न ही हमें खुले में नमाज पढ़ने की इजाजत दे रहे हैं."
सलीम ने मुझे बताया कि हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण समय-समय पर धार्मिक स्थलों के आवंटन के लिए आवेदन आमंत्रित करता है. मंदिरों और गुरुद्वारों को नियमित रूप से जगहें दे दी जाती हैं, यहां तक कि कभी-कभी चर्च को भी इजाजत मिल जाती हे. मस्जिदों के लिए आवेदन बार-बार फेल हुए हैं. "हर कोई जुमे को पेरशान है," उन्होंने कहा. “इस माहौल में भी, जब हमने मस्जिद के लिए आवेदन किया तो उसे ठुकरा दिया गया. हमारा पैसा वापस कर दिया गया.''
सेक्टर 57 में मस्जिद के लिए 2000 के दशक की शुरुआत में केवल एक आवेदन को मंजूरी दी गई थी. मस्जिद मुकदमेबाजी में फंस गई थी और अधूरी रह गई थी. सलीम ने कहा, "कई धर्मनिरपेक्ष लोग हमसे कहते हैं, 'तुम ज़मीन क्यों नहीं ले लेते और मस्जिद क्यों नहीं बना लेते?" उन्होंने कहा कि मुस्लिम संगठन हुडा आवंटन के बाहर भूखंड खरीदने के लिए धन जुटा सकते हैं लेकिन उनमें सुरक्षा की भावना का अभाव है. "अगर हम मस्जिद पर एक करोड़ खर्च करते हैं, तो कौन जिम्मेदारी लेगा कि इसे सील नहीं किया जाएगा?"
पुराना गुरुग्राम देश के सबसे बड़े ऑटो पार्ट्स बाजारों में से एक है; ज्यादातर कारोबारी मुसलमान हैं. सेक्टर 12ए नमाज़ स्थल के पास एक दुकान में मेरी मुलाकात अब्दुल कादिर जिलानी से हुई. उनके जैसे लोग शहर को चलाने वाली मानव शक्ति हैं, उन्हें गुरुग्राम की लोकप्रिय यादों से गायब और मिटा दिया गया है. तेईस साल के जिलानी ने खिलाड़ियों जैसे बाल कटवाए हुए थे. वह 2019 में बिहार के अपने गृहनगर दरभंगा से ऑटो पार्ट्स की दुकान में प्रशिक्षु बनने के लिए गुरुग्राम आए थे.
जब जिलानी पहली बार गुरुग्राम पहुंचे तो वह सेक्टर 12ए के नमाज स्थल पर नमाज पढ़ते थे. अब वह अकेले दुकान में नमाज पढ़ते हैं, चमकदार हरी दीवारों के भीतर फर्नीचर को हिलाते, घुटने टेकते और कांच के दरवाजे के सामने भारत के एक बड़े, फ्रेम किए गए नक्शे के नीचे तंग जगह में उठते थे.
जिलानी के लिए बारह घंटे का कार्य दिवस आदर्श है. रात करीब 8 बजे बंद होने तक वह दुकान पर ही रहते हैं. उन्होंने मुझे बताया कि वह हर महीने 20,000 रुपए कमाते हैं, जिसमें से आधे से ज्यादा घर भेज देते हैं. जिलानी दुकान से दस मिनट की पैदल दूरी पर, राजीव नगर में कामकाजी पुरुषों के छात्रावास में चार मुस्लिम दोस्तों के साथ रहते थे.
एक शाम, मैं काम के बाद उनसे मिला और हम उनके हॉस्टल वापस चले गए. यह एक संकरी, पतली पलस्तर वाली इमारत थी, जो एक गोदाम की तरह थी. बाकी गली में भी लगभग इसी तरह की इमारतें थी - राजीव नगर में ऐसी जगहों की भरमार है. हॉस्टल का मासिक किराया पांच हजार रुपए प्रति बेड था. जिलानी और उनके दोस्तों ने अपने संसाधनों को इकट्ठा करने और दो बेडरूम का अपार्टमेंट लेने के बारे में सोचा था, लेकिन उन्हें कोई नहीं मिला-कोई भी पांच युवा मुस्लिम पुरुषों को किराए पर नहीं लेना चाहता था.
जिलानी के हॉस्टल में करीब पचास लड़के रहते थे. उनमें से सात, उनके सहित, मुस्लिम थे. जिलानी को कभी-कभी हिंदू निवासियों से भद्दी टिप्पणियां सुनने को मिलती थीं. "एक लड़के ने दूसरे दिन मुझसे पूछा, 'तुम बंटवारे के बाद भी यहां क्यों हो? जब ये मुस्लिम देश बन गए हैं, तो तुम अब तक यहां क्यों हैं?'
जिलानी ने हॉस्टल में अपने दोस्तों से मेरा परिचय कराया, जो उसके ऊपर वाली मंजिल पर रहते थे. अरशद मथुरा से थे और एक सूचना प्रौद्योगिकी फर्म में तकनीशियन के रूप में काम करते थे. नूर इस्लाम हरियाणा के पलवल के रहने वाले थे और ज़ोमैटो में कार्यरत थे. इज़राइल खान राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले थे और एक लेखा अधिकारी थे. तीनों अभी बीस—बाइस साल के थे और दूर के रिश्तेदार थे. उनके गृहनगर एक दूसरे से पचास किलोमीटर के दायरे में थे.
वे हल्की लकड़ी के पलंगों पर पालथी मारकर बैठे थे, जिनमें पतले गद्दे होते हैं. बेडशीट बेतरतीब पड़ी थी और गद्दे पर प्रतियोगी गाइडबुक और बाबा आदम के जामने का बड़ा सा लैपटॉप बिखरा पड़ा था. किनारे की टेबल पर सभी आकार के चार्जर ढेर कर रखे गए थे. मेरे पहुंचते ही जिलानी सबके लिए खाना बनाने नीचे अपने कमरे में चले गए.
लड़कों ने मुझे बताया कि वे जुमे की नमाज के लिए सदर बाजार मस्जिद गए थे. जब से वे गुरुग्राम पहुंचे थे, तब से वे सेक्टर 12ए नमाज स्थल जा रहे थे, जो कि करीब थी. एक बार जब हिंदू दक्षिणपंथियों ने उस स्थल को निशाना बनाना शुरू किया, तो उनके लिए नमाज पढ़ना बेहाल हो गया.
उन्होंने बताया कि जब वे नमाज के लिए चटाई बिछाते हैं तो कैसे हिंसक धमकियां उन टूट पड़ती हैं. नमाज के विरोधी रोहिंग्या कहकर पुलिस से नमाज अदा करने वालों के पहचान पत्रों की जांच करवाते. मीडिया अपने कैमरों के साजो सामान के साथ पहुंचा. खान ने कहा, 'हमें वहां नमाज पढ़ने में अजीब लगने लगा. लोग जूते लेकर घूम रहे थे, कैमरे से तस्वीरें ले रहे थे." उस जगह के सामने की दुकानों के मालिक अचानक नमाज के सख्त खिलाफ हो गए. खान ने कहा, "यहां तक कि दुकानदार भी हमें अजीब तरीके से देखने लगे. जहर इतने असरदार तरीके से फैलाया गया था कि सबको लगने लगा था कि खुले में नमाज़ गलत है."
नमाज स्थलों को बंद करने के बाद नमाजियों की भारी भीड़ से मस्जिदें खचाखच भरने लगी थीं, लेकिन लड़कों ने कहा कि वे किसी तरह स्थिति से निपट रहे हैं. उन्होंने मुझे बताया कि, नमाज़ पर हमले के बाद, उनके माता-पिता लगातार चिंतित थे और उनकी जांच के लिए फोन कर रहे थे. उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें जितना संभव हो सके आपे में रहने और उकसावे का जवाब नहीं देने के लिए कहा, चाहे वह कितना भी गंभीर क्यों न हो. इस्लाम ने कहा, "मेरे भाई ने मुझसे कहा, अगर कोई तुम्हें थप्पड़ भी मारे, तो तुम्हें चुपचाप घर वापस आना है."
एक बार जब नमाज स्थलों पर हिंदू दक्षिणपंथियों द्वारा हमला किया जाने लगा, तो उनके माता-पिता ने उन्हें अपने कमरे में ही नमाज पढ़ने का कह कर जाने से मना कर दिया. खान ने कहा, "हम नमाज के लिए एक घंटे से भी कम समय के लिए जाते हैं. लेकिन लोग इसे भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं." इस्लाम ने महसूस किया कि इस तरह की नफरत पिछले सालों में नहीं थी. उन्होंने कहा, 'नमाज सालों से होती आ रही है. ऐसा नहीं है कि उन्हें एम्स बनाने के लिए यह जगह चाहिए थी."
नमाज़ पर हमले की भड़काऊ प्रकृति ने दुश्मनी में इजाफा किया. इस्लाम ने कहा, 'बिल्कुल हमें अपनी पहचान छिपानी होगी.' अपनी मुस्लिम पहचान को खुले तौर पर जाहिर करना जोखिम भरा है. "आपका बहिष्कार किया जाएगा, चाहे वह किसी कंपनी में हो या किसी कोचिंग संस्थान में पढ़ रहा हो."
जब वे अपने गृहनगर लौटे, तो लड़कों ने कहा, उन्हें राहत और आज़ादी महसूस हुई. खान ने कहा, "हम वहां अपनी टोपी और कुर्ता पहन सकते हैं." शहर के अधिकांश अन्य प्रवासियों की तुलना में सांस्कृतिक और भाषाई रूप से स्थानीय लोगों के करीब होने के बावजूद, वे अभी भी बहिष्कृत महसूस करते हैं. इस्लाम ने कहा, "अगर आप गुरुग्राम में हिंदू हैं, चाहे कहीं से भी हों, आपको स्थानीय माना जाएगा. अगर आप मुसलमान हैं, तो यहां से भी आपको एक बाहरी व्यक्ति माना जाएगा."
शाह के बयान के बाद से मामला खतरनाक गति से बढ़ा था. 26 नवंबर 2021 को, भारती के नेतृत्व में सौ लोगों ने सेक्टर 37 में एक नमाज़ स्थल पर कब्जा कर लिया और एक हवन का आयोजन शुरू किया. इस बार की चाल 26 नवंबर 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के शहीदों को याद करने की थी. पिछले बारह सालों में इस तरह का कोई समारोह नहीं हुआ था.
गुरुग्राम को हिलाकर रख देने वाले दर्जनों अभिनव व्यवधानों में से यह केवल एक था. एक सप्ताह, हिंदुत्व समूहों ने निवासियों के साथ क्रिकेट खेलने की योजना बनाई, जो जुमे की नमाज के समय से कुछ समय पहले शुरू हुआ. एक अन्य स्थान पर ट्रकों को इस तरह से खड़ा किया गया था कि सामूहिक नमाज मुमकिन न हो पाए. भौगोलिक दायरा चौड़ा हो रहा था और विरोध अधिक विकेंद्रीकृत हो रहे थे; सिरहौल और खांडसा के गांव, साथ ही औद्योगिक उद्योग विहार खुले स्थानों में नमाज के खिलाफ आंदोलन में शामिल हुए.
राज्य प्रभावी रूप से भीड़ के सामने आत्मसमर्पण कर रहा था. साल भर वैसे तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को ज्यादातर नमाज स्थलों से लगभग सौ मीटर की दूरी पर रोके रखा. नवंबर के बाद से, मुस्लिम समूहों ने मुझे बताया, पुलिस न तो प्रदर्शनकारियों को जगहों पर पहुंचने से रोक रही है और न ही नमाज़ को बाधित करने से रोक रही है.
11 दिसंबर को खट्टर ने इस मामले पर चुप्पी तोड़ी. उन्होंने कहा, 'खुले में नमाज पढ़ने को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन बातचीत से सौहार्दपूर्ण समाधान निकाला जाएगा.' कानून प्रवर्तन में सुस्ती और अचानक यू-टर्न को देखते हुए, यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल नहीं था कि खट्टर चाय का स्वाद भांप गए थे. शाह के बयान के तुरंत बाद उनका हस्तक्षेप हुआ था.
अगर खट्टर की घोषणा पारे को कम करने के साथ-साथ उनकी हिंदुत्व की साख को मजबूत करने का एक प्रयास थी, तो वे पहला उद्देश्य पूरा करने में विफल रहे. पीछे हटने के बाद, राज्य ने नियंत्रण खो दिया था. 18 दिसंबर को उद्योग विहार में हिंदू गुटों ने नमाज में बाधा डाली, वहां मुस्लिम नमाजियों को "भारत माता की जय" के नारे लगाने के लिए परेशान किया.
जबकि हिंदुत्ववादी समूहों ने अपनी सड़क छाप ताकत का दावा किया, पृष्ठभूमि में उग्र शरारतें की जा रही थीं. शाह के बयान के तीन दिन बाद 3 नवंबर को उपायुक्त कार्यालय में दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों के बीच बैठक हुई. मुस्लिम पक्ष के अन्य लोगों के साथ अहमद और सलीम उपस्थित थे. महावीर भारद्वाज और कुलभूषण भारद्वाज, समिति के अन्य पदाधिकारियों के साथ, हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. भारती को बाहर कर दिया गया था, जिससे वह चिढ़ गए थे.
बैठक शुरू होने से पहले ही अहमद को कुछ अनहोनी का आभास हो गया था. उन्होंने देखा कि पुलिस अधिकारी समिति के नेताओं को अत्यधिक आदरपूर्ण तरीके से संबोधित करते हैं, उनके नाम में "जी" लगाते हैं. यह जानकर कि डेक अपने पक्ष में हो गया है, हिंदू दक्षिणपंथ ने एक आश्चर्यजनक युक्ति निकाली. ''वे आपके सामने एक नया मुस्लिम चेहरा लेकर आते हैं.'' सलीम ने खुर्शीद रजाका को याद करते हुए मुझसे कहा, जो आरएसएस से जुड़े मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेता हैं. सलीम, अहमद और अन्य लोगों के विरोध के बावजूद, समिति रजाका को गुरुग्राम के मुसलमानों का एकमात्र प्रतिनिधि घोषित करने के लिए दबाव डालती रही. बैठक के अंत तक, समिति रजाका को स्थापित करने में सफल रही थी.
रजाका की उपस्थिति के बाद, नामित नमाज़ स्थल तब तक घटते रहे जब तक कि वे शून्य नहीं हो गए. मुस्लिम समुदाय की अपील के बाद, छह नमाज स्थलों- जहां रजाका का समर्थन करने वाले मौलवियों के नेतृत्व में नमाज पढ़ी जाती थी- को पुनर्जीवित किया गया. छह स्थल करीब हैं. सलीम ने सोचा कि उन्हें पूरे शहर में फैला देना चाहिए था, लेकिन अधिकारियों ने नहीं सुना. सलीम ने कहा , 'अब खुर्शीद गायब हो गए हैं.' "जो नुकसान उन्होंने करना था, वह कर चुके."
महीनों के इंटरव्यू के दौरान, किसी मुसलमान के पास रजाका के बारे में कहने के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं था. सलीम और अहमद दोनों ने मुझे बताया कि उन्हें उनके गृह क्षेत्र मेवात से बहिष्कृत कर दिया गया है. एमआरएम एक ऐसा संगठन है जिससे मुस्लिम नफरत करते हैं; समुदाय मंच के सदस्यों को बिल्कुल तरजीह नहीं देता. सलीम ने कहा, "आरएसएस में उनका कुछ महत्व हो सकता है, लेकिन मुसलमानों में नहीं. ऐसे व्यक्ति को मुसलमानों का प्रतिनिधि क्यों बनाया गया?”
मैं रजाका से राष्ट्रीय राजमार्ग के पास एक व्यस्त चौराहे पर मिला, जहां उन्होंने मुझे अपनी कार में बिठा लिया. वह तेजी से गाड़ी चला रहे थे, उद्देश्य की एक अतिशयोक्तिपूर्ण भावना के साथ, अपने मोबाइल पर कई लोगों को कॉल करते थे और मुझसे छोटी-छोटी बातें करते थे, कभी-कभी तीनों काम एक साथ करते थे.
रजाका ने अपना ज्यादातर वयस्क कामकाजी जीवन गुरुग्राम में एक बैंक मैनेजर के रूप में बिताया, जब अभी इसका अमीर मेगा शहर के तौर पर उदय नहीं हुआ था. हालांकि अब वे एमआरएम के राष्ट्रीय संयोजक हैं, उन्होंने स्वीकार किया कि उनके मूल निवास मेवात में, उनके पड़ोसी और दोस्त अभी भी उन्हें समुदाय का दुश्मन मानते हैं- सबसे बड़ी गाली किसी को जनसंघी कहना है. रजाका ने मुझे बताया कि उन्होंने छात्रों और युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया और अपने समुदाय को सकारात्मक सोच में बांधने का प्रयास कर रहे हैं. “मैं उन्हें उन लोगों से दूर रखने की कोशिश करता हूं जो उन्हें गुमराह कर रहे हैं, जैसे हिजाब या शाहीन बाग के मुद्दे पर,” उन्होंने कहा. "लोग मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश करते रहते हैं."
रजाका पूरी तरह से हिंदू दक्षिणपंथ के मानक चर्चा बिंदुओं से सहमत नहीं थे. वह इस बात से सहमत थे कि व्यापक मुस्लिम अपराधी नहीं हैं, न कोई अतिक्रमणकारी हैं, न ही ताकत दिखाने का कोई प्रयास है. उन्होंने खुले में नमाज की तुलना हिंदू धर्म में कांवड़ियों से की. "लोगों ने नमाज़ का विरोध किया," उन्होंने कहा, जैसे कि केवल यही एक सबसे जरूरी है. "यही एकमात्र समस्या थी."
रजाका की उपस्थिति ने अवसरवाद और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के बारे में मुसलमानों की आलोचनाओं को हवा दी. "मैं इस्लाम के साथ हूं," उन्होंने पलटकर कहा. "मैं मुसलमानों के साथ नहीं हूं." रजाका ने छह शेष नमाज स्थलों को बचाने के श्रेय का दावा किया, हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें भारद्वाज और भारती के विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने पूरी तरह से नमाज बंद के लिए दबाव डाला.
हमारी मुलाकात के अंत में, रजाका ने चौंकाने वाले तिरस्कार के साथ अपने सह-धर्मवादियों के बारे में बोलना शुरू किया. मुझे उठाकर कुलदीप यादव, पार्षद के ऑफिस ले गए थे दोनों बातें करने लगे. यादव ने स्वीकार किया कि मस्जिदों के निर्माण के लिए स्थानीय विरोध है, जबकि रजाका ने कहा कि वह जानते थे कि नमाज स्थलों को घटाकर छह करने से कई समस्याएं पैदा होंगी. मुद्दा अनसुलझा लग रहा था.
अचानक, रजाका मेरी ओर मुड़े और बोले, मानो गुरुग्राम के मुसलमानों की तकदीर पर आखिरी फैसला सुना रहे हों, “पिटते ही रहेंगे साले.”
3
एक शुक्रवार की दोपहर, मैं अहमद के साथ उस मस्जिद में गया जहां उन्होंने नमाज़ पढ़ी थी. हम टोयोटा एसयूवी में उनके दफ्तर से निकले. अहमद ने मुझे बताया कि वह अपने विशेषाधिकार के कारण ही मस्जिद जा सके. गुरुग्राम के मजदूर वर्ग के मुसलमानों के लिए - जिनमें से एक बड़ा हिस्सा निर्माण क्षेत्र में काम करता है - किसी मस्जिद तक कई किलोमीटर की यात्रा करना, एक ऐसी कोशिश जिसमें पैसे और वक्त दोनों की जरूरत होती है, कोई विकल्प नहीं था.
दस मिनट की ड्राइव के बाद हम सेक्टर 57 में अंजुमन जामा मस्जिद पहुंचे. आधे-अधूरे खंभों से निकली लोहे की छड़ें, पेंट के अभाव में नंगी लाल ईंटें दिख रहीं थी. मस्जिद में नमाज के लिए तीन स्तर थे: एक तहखाना, एक ऊंचा फर्श और छत. पहले से ही गर्म वसंत की धूप में, छत वीरान पड़ी थी. नीचे के दो स्तर राफ्टरों से भरे हुए थे. चप्पल-जूते सीढ़ियों पर बेतरतीब ढंग से बिखरे पड़े थे. बेमेल रंगों में सस्ते बिछौनों को नमाज के कमरे में क्षैतिज रूप से फैलाया गया था; अजीब सी सीटी बजाते पंखे धूल फैला रहे थे. भयावह माहौल के बावजूद नमाज का सिलसिला जारी रहा.
अहमद बाहर खड़े थे. दिखने से ही झलकती उनकी उच्च वर्ग की शौहरत कामकाजी वर्ग के नमाजियों की मंडली के बीच एक विसंगति थी. उन्होंने मस्जिद का संचालन करने वाले हरियाणा अंजुमन चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष असलम खान के साथ बातचीत की. खान ने मुझे बताया कि 2004 में 17 मंदिरों, दो गुरुद्वारों और एक चर्च और एक मस्जिद को जमीन आवंटित की गई थी.
ट्रस्ट ने काम शुरू किया और बेसमेंट का निर्माण किया लेकिन कुछ स्थानीय प्रॉपर्टी डीलरों ने जल्द ही निर्माण पर रोक लगा दी. याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि मस्जिद की जगह उस जगह पर पुलिस थाना या बाजार बनाया जाए. ट्रस्ट ने उच्च न्यायालय में मामला जीत लिया और निर्माण फिर से शुरू कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की और निर्माण फिर से रोक दिया गया. खान ने मुझे बताया कि सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही स्थगित होती रही. "नए गुड़गांव में केवल एक मस्जिद है और हम इस तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं," उन्होंने कहा. "यह सरकार द्वारा आवंटित जगह है - इसके बारे में क्या अवैध हो सकता है?"
वापस अपने दफ्तर में लौट अहमद ने बताया कि कैसे नमाज विवाद ने उनके जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था. उनके व्यवसाय और उनके परिवार को नुकसान उठाना पड़ा था. 17 सितंबर 2021 की घटनाओं के बाद तीन महीने तक उन्होंने ऑफिस आना बंद कर दिया. उन्होंने कहा, "मैं अपना नंबर किसी को नहीं देता, यहां तक कि अपने क्लाइंट्स को भी नहीं." अहमद ने मुझे बताया, अगर वह अपने आतिथ्य व्यवसाय से संबंधित किसी अन्य नज़दीकी संपत्ति को देखने भी जाते, तो उनके सुरक्षा गार्ड पूरे रास्ते उनके साथ चलते. तब उनके व्यवसाय की हालत बहुत खराब हो गई थी. "बीस लोग यहां आ सकते हैं और सब कुछ तोड़ सकते हैं," उन्होंने कहा.
उनके परिजन दिनभर उन पर नजर रखते रहे. उन्हें तरह-तरह की धमकियां मिली थीं, जिनमें किसी वाहन से कुचल जाना या गोली मार देना शामिल था. उन्होंने कहा कि उन्होंने कानूनी तौर पर अपनी सारी संपत्ति अपने परिवार को हस्तांतरित कर दी है. "अगर कुछ गलत होता है तो आगे क्या करना है इस बारे में मेरी उनसे बातचीत होती है."
जहां अहमद के लिए चीजें तनावपूर्ण हो गई थीं, वहीं नमाज के विवाद ने उनके व्यक्तित्व के एक जिद्दी और फौलादी पहलू को भी सामने ला दिया था. "मैं एक ऐसे कारण के लिए लड़ रहा हूं जिसके बारे में मैं दृढ़ता से महसूस करता हूं," उन्होंने कहा. "मैं हार नहीं मानूंगा. कम से कम मेरी बेटियों को पता होना चाहिए कि मैंने लड़ाई लड़ी. वह जानते थे कि वह आसानी से अपने उच्च वर्ग के खोल में सिमट सकते हैं और सब कुछ अनदेखा कर सकते हैं. "लेकिन सिर्फ पैसा या खाना नहीं है जो आपके जीवन को पूरा करता है," उन्होंने कहा. "यह इज्जत के बारे में भी है."
मैंने अहमद से पूछा कि क्या नमाज विवाद के दौरान के हफ्तों में भारती या कुलभूषण भारद्वाज जैसे अवरोधकों के साथ उनकी कोई सीधी बातचीत हुई थी. उन्होंने अपने खाने से नजर ऊपर उठाई. उनकी आंखें नफरत से भिंच गईं. "वे मेरा खून खौलाते हैं."
नमाज़ पर हमले का एक स्थायी परिणाम शहर के हिंदुत्व रक्षकों के नेटवर्क की अति-सक्रियता थी. उनमें से एक जो चर्चा में आया, वह बजरंग दल का प्यादा अमित हिंदू था. कानूनी तौर पर उसका नाम अमित था हिंदू उसने खुद जोड़ लिया था.
मार्च 2022 की एक दोपहर, अमित ने मुझे सेक्टर 45 की एक खाली इमारत में बुलाया, जो बजरंग दल के गुरुग्राम संचालन के बेस के रूप में काम करती थी. इमारत में पहली मंजिल पर बालकनी की बाड़ से बंधा राष्ट्रीय ध्वज था. अमित और उनका बुनियादी ऑपरेशन ग्राउंड फ्लोर पर आधारित था. यह सफेद संगमरमर के फर्श के साथ एक मंद रोशनी वाला, गुफानुमा हॉल था. प्रवेश द्वार के दाईं ओर की जगह पर भारत माता का एक दीवार के आकार का पोस्टर सटा था.
अमित सफेद शर्ट, काली पैंट और एडिडास के स्नीकर्स के ऊपर भगवा चादर पहने नजर आए. वह दुबले-पतले थे और लंबे बालों के साथ एक पोनीटेल में बंधे हुए थे और उनके माथे पर एक पतला केसर का तिलक लगा हुआ था. उनका जन्म 1992 में हुआ था. उन्होंने मुझे बताया कि बीस साल की उम्र में उन्होंने उत्तराखंड के अल्मोड़ा में कॉलेज छोड़ दिया. "देश को देखना है. मुस्लिम हर समय अत्याचार कर रहे हैं."
अमित ने आय का कोई साधन नहीं होने का दावा किया और मुझे बताया कि उनके परिवार और दोस्त उन्हें पैसे देते. वह एक किराए के कमरे में अकेले रहते थे और उन्होंने कहा कि वह अपना ज्यादातर समय या तो भजन सुनने में बिताते थे या समाचार सुनने में बिताते थे. "मुझे यात्रा करना पसंद है," उन्होंने जन्माष्टमी पर श्रीनगर के लाल चौक की अपनी यात्रा के बारे में बताते हुए कहा, जहां उन्होंने धार्मिक नारे लगाए. यह लुम्पेन हिप्पीनुमा जीवन शैली थी, काम और नौकरियों की दुनिया के प्रति तिरस्कारपूर्ण. अमित ने मुझे बताया कि वह महीने में दस दिन बिल्डिंग में बिताया करते थे. बाकी समय वह यात्रा करते थे.
गुरुग्राम में नमाज पर हमले के चरम पर, अमित ने दावा किया कि बजरंग दल के सदस्य प्रत्येक शुक्रवार को कम से कम दस स्थलों का दौरा करेंगे. हर शुक्रवार की सुबह हम लोग तय जगह पर इकट्ठा होते थे. पचास लोगों के दो दस्ते बनाते जो शहर भर में कारों और बाइकों से नमाज़ स्थलों पर नजर रखते. "हम मुसलमानों से कहते कि खुले में नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी," उन्होंने कहा.
अमित ने मुझे बताया कि उन्हें सेक्टर 12ए में गिरफ्तार किया गया था. जब मैंने उनसे पूछा कि बजरंग दल क्यों मलबे से भरे मैदान के लिए लड़ रहा था, तो अमित ने खुलासा किया कि यह हिंदू कार्यकर्ता थे जिन्होंने मैदान को मलबे से भर दिया था. "कोई भी अब वहां नहीं बैठ सकता है," उन्होंने कहा. वह इससे बेहद खुश नजर आ रहे थे.
भारती की तरह, अमित में एक मसीहाई कांप्लेक्स भरा हुआ था और वह अक्सर तीसरे व्यक्ति के रूप में अपने बारे में बोलने से नहीं चूकते थे. "न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में," उन्होंने मुझसे कहा, "अगर हिंदू परेशान है, तो अमित हिंदू वहां उसके साथ होगा."
बेचैनी की तपिश उनसे झलक रही थी, जैसे कि वह किसी उद्देश्य या कार्रवाई की तलाश में लगे हों. "मेरे पास अभी तीन-चार कॉल आए हैं," उन्होंने मुझसे कहा. अमित ने मुझे सेक्टर 44 में नमाज पढ़ते हुए कुछ मुसलमानों का एक वीडियो दिखाया. उन्होंने दावा किया कि नमाज के कारण हिंदुओं को समस्या हो रही है. "उनका सबसे बड़ा डर अपनी लड़कियों के लिए है, क्योंकि वे वहां लव जिहाद करते हैं," उन्होंने हिंदुत्व पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा फैलाए गए दो झूठों को बड़े करीने से एक ही कथा में बांधते हुए कहा.
अमित के एक घनिष्ट मित्र, जो विहिप के थे, आ गए. मित्र के बोलते ही अमित ने हुक्का से एक दो कश मारे. फिर उन्होंने अपने मोबाइल को आइने की तरह इस्तेमाल कर अपना तिलक ठीक किया. पड़ोसी गांव के तीन नाबालिग लड़कों ने अगली बार आकर इमारत के एक और उपयोग का खुलासा किया. अमित ने मुझे बताया, "ये प्रतिदिन एक घंटे के लिए प्रशिक्षण के लिए आते हैं. हम उनसे राष्ट्रहित की बात करते हैं."
मुझसे मिलने के दो दिन बाद अमित को सेक्टर 45 में रमाडा होटल के पास, जहां हम मिले थे, दो मुस्लिम आदमियों पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. उनमें से एक अब्दुर रहमान बिहारी मूल के मौलवी थे और टोपी-दाढ़ी के साथ आसानी से मुस्लिम दिखते थे. रहमान अपने दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर गुरुग्राम वापस लौट रहे थे और दोनों होटल के पास कुछ देर के लिए रुके थे.
मीडिया को दी रहमान की गवाही के अनुसार, अमित अपने कुछ दोस्तों के साथ एक कार में थे जब उन्होंने रहमान और उनके दोस्त को देखा. अमित और उसके साथी ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया. उन्होंने रहमान के सिर से टोपी छीन ली और उनकी दाढ़ी खींच ली और उन्हें जबरन सूअर का मांस खिलाने की धमकी दी और उन्हें लूट लिया.
अमित को गिरफ्तार कर लिया गया और अगले दिन जब हिंदू दक्षिणपंथी नेटवर्क उसकी रिहाई के लिए जुटा तो उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया. खबर सुन कर मौके पर पहुंचे सलीम ने मुझे बताया कि महावीर और अन्य लोग लगातार मुस्लिम समुदाय के लोगों के संपर्क में थे और उन पर शिकायत वापस लेने का दबाव डाल रहे थे.
भारती के विपरीत, अमित ने संघ के भीतर काम किया और स्थानीय प्रतिष्ठान के प्रति सविनय थे. नतीजतन, उनका सितारा उदय होने लगा. जुलाई में, मैंने स्क्रॉल में एक रिपोर्ट के साथ एक तस्वीर में उनका चेहरा देखा. बजरंग दल के सदस्य कन्हैया लाल की हत्या के खिलाफ एक विरोध मार्च के दौरान नरसंहार के नारों के लिए दल और विश्व हिंदू परिषद पर मामला दर्ज किया गया था. लाल उदयपुर के एक दर्जी थे, जिन्होंने बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मुहम्मद के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने के बाद उनके समर्थन में एक पोस्ट साझा किया था. सितंबर में, गुरुग्राम में एक उच्च प्रतिष्ठान, स्टूडियो एक्सो बार के सामने आधा दर्जन पुरुषों के साथ खड़े अमित की एक तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में छपी थी. बजरंग दल और विहिप कॉमेडियन कुणाल कामरा के कार्यक्रम स्थल पर कामरा के शो का विरोध कर रहे थे. हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों ने कामरा पर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने का आरोप लगाया. शो रद्द कर दिया गया था.
हिंदू दक्षिणपंथियों द्वारा वतावरण में फैला दिया गया जहर बड़े पैमाने पर समाज में फैल रहा था. अक्टूबर में लगभग 200 हिंदुओं की स्वतःस्फूर्त भीड़ ने गुरुग्राम के गांव भोरा कलां में एक मस्जिद पर धावा बोल दिया. भीड़ को स्थानीय मस्जिद में मरम्मत और नवीनीकरण की बात पर भड़काया गया था, जिसे उन्होंने मस्जिद के विस्तार की साजिश के रूप में देखा. वे नमाज के समय नमाजियों को पीटते और मस्जिद में तोड़-फोड़ करते हुए दाखिल हुए. दिसंबर के अंत में इंडियन एक्सप्रेस ने छापा कि अमित और अन्य बजरंग दल के सदस्यों ने सेक्टर 69 में एक नमाज स्थल पर हमला किया है. इसी महीने कुलभूषण भारद्वाज और कुछ स्थानीय निवासियों सहित हिंदुओं के एक समूह ने सेक्टर 23ए में एक ईदगाह मैदान में विरोध प्रदर्शन किया, जिसे हरियाणा वक्फ बोर्ड को सामूहिक नमाज के लिए आवंटित किया गया था.
रजाका और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के तत्वावधान में चलने के बावजूद छह नमाज स्थलों को हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा निशाना बनाया जाना जारी रहा. शीतला माता मंदिर में हमारी मुलाकात के दौरान महावीर ने मुझसे कहा था कि अगर उन छह स्थलों को बंद नहीं किया गया तो समिति फिर से आंदोलन शुरू कर देगी.
भारती ने अप्रत्याशित तौर पर मुझे भी उन नमाज स्थलों के बारे में नाराज होते हुए बताया जिनके बारे में उन्होंने दावा किया था कि उनकी संख्या छह से ज्यादा हो गई है जबकि सहमति छह की हुई थी. “क्या दिनेश भारती को फिर से वहां जाना होगा?” वह गरजे. "समिति अपने चूतड़ों पर क्यों बैठी है?" जब मैंने उल्लेख किया कि एमआरएम संघ की शाखा है, तो भारती ने मुझे बताया कि वह इसे इस रूप में नहीं पहचानते हैं.
सुशांत लोक में चाय की दुकान पर हमारी मुलाकात के बाद से भारती लगातार अजाब होते जा रहे थे. वह इंटरव्यू के लिए राजी होते, फिर आखिरी मिनट में अदना सा बहाना कर रद्द कर देते. लेकिन वह हिंदुत्व नेटवर्क के भीतर और बाहर, दिन के विषम समय में, अघोषित रूप से, काल्पनिक और वास्तविक, दुश्मनों के बारे में शिकायत करते थे. उनकी स्पष्टवादिता एक पल में खतरों में बदल जाती थी. "मैंने जो कुछ भी कहा है उसे गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए," वह कहते थे. "कोई गलती नहीं होनी चाहिए." यह देखना मुश्किल नहीं था कि उनके व्यक्तित्व के इन तत्वों- क्रूरता, बढ़ा-चढ़ा कर बोलना और सामाजिक अयोग्यता, ने उन्हें स्थानीय हिंदुत्व नेटवर्क के रसूखदारों के साथ गफलत में डाल दिया था.
भारती के मेसेज मेरे व्हाट्सएप इनबॉक्स में आते रहे. 1990 के दशक की शुरुआत में कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से पलायन पर बनी प्रोपगेंडा फिल्म द कश्मीर फाइल्स देखने के तुरंत बाद भारती ने मुझे लंबा “रिव्यू” भेजा. ऊपर से नीचे तक कहीं भी फुलस्टाप नहीं लगा था. भारती ने बताया कि कश्मीर से उनका लगाव बचपन से है और जो कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ वहीगुरुग्राम और पूरे भारत में होगा यदि हिंदू एक नहीं हुए तो. अंत तक आते आते उनकी शेखी खालिस्तानियों के आसन्न खतरे से हो कर पारंपरिक मूल्यों से भटक रहे युवाओं के लिए चिंता से भर गई.
भारती भी अपनी छवि संवारने की कोशिश कर रहे थे. एक दिन उन्होंने मुझे अपनी एक स्टूडियो की एयरब्रश तस्वीर भेजी. उनकी खुरदुरी त्वचा चिकनी दिखाई दे रही थी और उसके बेतरतीब बाल बड़े करीने से सजे हुए थे. उन्होंने सरसों के पीले कुर्ते के ऊपर, अपने गले में केसरिया रंग की चुनरी पहन रखी थी. दोनों रेशम की तरह चमक रहे थे.
ये मुझे अराजक मन की अराजक हरकतें लग रही थीं. ऐसा लगता है कि हिंदुत्व नेटवर्क में ऊपर उठने के लिए भारती के पास बहुत कम सुसंगत रणनीति है. अप्रैल में भारती ने एक बार फिर खुद ही एक कदम उठाया. उन्होंने जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त से संपर्क किया और दावा किया कि नमाज की जगहें छह से बढ़कर लगभग एक दर्जन हो गई हैं और प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है. भारती ने इन अधिकारियों के साथ-साथ मुख्यमंत्री को भी याचिकाएं लिखीं.
भारती के इस अदना से तमाशे को स्थानीय टेलीविजन चैनलों ने जम कर उठाया. लेकिन यह लापरवाही के साथ एक गलत फैसला साबित हुआ. अपनी बाद की भेटों में जब भी मैंने भारती से बात की वह घबराए लगे. उन्होंने अपने खिलाफ मामलों और अपने वकीलों के साथ बैठकों की बात की. भारती को लगा कि संस्थापन द्वारा उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है.
इस दावे में कुछ सच्चाई थी. घटनाओं की जानकारी रखने वाले कई लोगों ने मुझे बताया कि स्थानीय हिंदुत्व नेतृत्व ने भारती को उनके आवेगी कार्यों के बारे में पर्याप्त चेतावनी दी थी. अब संस्थापन ने उन्हें ठीक करने का फैसला किया था.
भारती द्वारा प्रशासन को याचिकाएं भेजने के दो हफ्ते बाद मुझे एक और निबंध सरीखा उनका मेसेज मिला. "गुरुग्राम पुलिस तुम जितना चाहो उतने मुकदमें मेरे ऊपर डाल दो. मैं तब तक नहीं रुकूंगा जब तक मैं खुले में नमाज बंद नहीं करा दूंगा." भारती ने प्रशासन और हिंदुत्व नेतृत्व पर उनके खिलाफ मिलीभगत का आरोप लगाते हुए दावा किया कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने संदेश को एक धमकी के साथ समाप्त किया : अगर प्रशासन ने उनके खिलाफ झूठे मामलों का ढेर लगाना जारी रखा, तो वह खुद को मार डालेंगे और अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराएंगे. "या तो खुले में नमाज खत्म हो जाएगी या मेरी अर्थी को शहर के चारों ओर घुमाया जाएगा."
जब मैं आखिरी बार अहमद से मिला था, तो उन्होंने गुरुग्राम के मुसलमानों के लिए अच्छे नतीजे की उम्मीद छोड़ दी थी. उनके लिए खट्टर का बयान आखिरी झटका था. “जब मुख्यमंत्री ने कहा है कि इसकी अनुमति नहीं है तो पुलिस और प्रशासन स्थानों को क्यों बढ़ाएंगे?” उन्होंने कहा. "वे इसे बिल्कुल जीरो भी कर सकते हैं."
अहमद ने सोचा कि अब और आगे बढ़ने लायक एकमात्र चीज मस्जिदों के लिए जमीन का आवंटन है. लेकिन वह आशावादी नहीं लग रहे थे और उनका स्वर थका हुआ सा था. वह हाल ही में उत्तर प्रदेश में अपने गृहनगर रायबरेली से लौटे थे, जहां उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में आदित्यनाथ के फिर से चुने जाने को देखा था.
अहमद महसूस करते हैं कि मुसलमानों के प्रति नफरत की हद और तीव्रता हर बीतते साल के साथ बढ़ रही थी. अभी हाल ही में, उनकी पत्नी ने उन्हें बताया कि एक आवासीय व्हाट्सएप ग्रुप में कोई घरेलू नौकर के बारे में पूछताछ कर रहा था और उसने विशेष रूप से कहा था कि वह व्यक्ति गैर-मुस्लिम हो. एक मुसलमान के रूप में आज जो भावना है वह डर की है. उन्होंने कहा, “हम जुम्मे की नमाज को लेकर डरे हुए हैं. हम अपने किसी भी त्योहार को मनाने से डरते हैं."
अहमद पूछते हैं, “क्या हिंदुओं ने पार्कों में रावण के पुतले नहीं जलाए? क्या रामलीला इस देश के हर गली मोहल्ले में नहीं होती?" अहमद के लिए मुद्दा स्पष्ट है : मुसलमानों को दबाना और उनके दर्द का मजा लेना.
जिंदगी भर अहमद यह मानते रहे कि यह देश उनका भी उतना ही है जितना उनके जैसे किसी हिंदू का. वह अबुल कलाम आजाद और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आइडियल मानते हैं. उन्होंने कहा, ''जब मेरे ही समुदाय के कुछ लोग देश की व्यवस्था के बारे में गलत बातें करते थे तो मुझे इससे नफरत होती थी.”
लेकिन नमाज पर हमले के इर्द-गिर्द की घटनाएं, जिस तरह वे घटित हुईं, इन सब बातों ने उनमें कुछ बदल दिया था. वह कहतो हैं, "मैं सबको नहीं बता सकता कि मैं अंदर से कितना टूटा हुआ हूं." उन्होंने कहा कि मुसलमानों को भारत के दुश्मन के रूप में पेश किया जा रहा है. वह मानते हैं, "हम दोयम दर्जे के नागरिक होने वाले नहीं हैं बल्कि हम हो चुके हैं.”