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आज भारत में तकरीबन पूरा मीडिया “हिंदू राष्ट्रवाद” के दायरे में समेटा जा चुका है. यह आभासी दुनिया के राजनीतिक धरातल पर एकमात्र नजरिए के रूप में छाया दिख रहा है. इस नजरिए के हिसाब से एक तो “हिंदू” प्राचीन धर्म है और दूसरा विशेष जातीय समूह है जो पौराणिक रूप से इस जातीयता के साथ ही जन्मा है. इस धारणा ने "हिंदुओं" को भारत का सनातन मूल निवासी मान लिया है. यह राजनीतिक मुहिम भारत को उस अनैतिहासिक अतीत में वापस ले जाने का प्रयास करती है जहां हिंदू बाहरी क्षेत्रों से आए प्राचीन यूनानियों से लेकर यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों तक यानी "म्लेच्छ,” या अशुद्ध नस्लीय मिलावटों से सुरक्षित थे.
कई उत्साही राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने हाल ही में दावा किया था कि “हिंदू राज्य” 5 अगस्त 2020 से प्रभाव में आ गया है, जब राम मंदिर के निर्माण का उद्घाटन एक धार्मिक समारोह के साथ हुआ था. इस मंदिर का निर्माण अयोध्या, जिसे पहले फैजाबाद कहा जाता था, की जमीन पर हो रहा है जहां कभी सोलवीं शताब्दी में बनी मस्जिद हुआ करती थी. इस मस्जिद को 1992 में हिंदू संगठनों, जिसमें वर्तमान में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भी शामिल थी, के नेताओं द्वारा जुटाई गई भीड़ ने ध्वस्त कर दिया था. एक धर्मनिरपेक्ष संविधान के आधार पर सरकार का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री ने इस समारोह में एक पुजारी की तरह धार्मिक अनुष्ठान में भाग लिया जिसका प्रसारण हर प्रमुख समाचार चैनल द्वारा किया गया. यह आयोजन - जिसमें धर्मशासित और लोकतांत्रिक मूल्य आपस में गड्डमड्ड थे - एक विशेष कारण से उस तारीख पर आयोजित किया गया था.
ठीक एक साल पहले 5 अगस्त 2019 को तत्कालीन राज्य जम्मू और कश्मीर को एक निश्चित स्तर की स्वायत्तता प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को बीजेपी सरकार ने रद्द कर दिया था. सरकार ने इस क्षेत्र में भारी सैन्य-बल की तैनाती की, नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया, संचार प्रणालियों को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया और विरोध करने के किसी भी प्रयास को दबा दिया. सरकार ने 2019 में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के पारित होने के बाद से विरोध प्रदर्शनों पर नकेल कसना शुरू कर दिया था. दमन का यही तरीका अब देश के बाकी हिस्सों में भी नजर आ रहा है. सरकार ने कई बार अपने धार्मिक और जातिगत पूर्वाग्रहों को सार्वजनिक तौर पर उजागर किया है और अब जब कि कार्यकारी और औपचारिक पुजारी के बीच का फासला भी खत्म कर दिया है, ऐसे में संविधान के मूल सिद्धांत खारिज होते नजर आ रहे हैं. संविधान एक समझौता है, एक लोकतांत्रिक वादा है जिसे भारतीयता को अपनाते हुए सबने एक दूसरे से लिखित तौर पर किया है. हम अब इस वादे के टूटने के साक्षी बने हैं.