जैसा राजा दशरथ के प्रिय पुत्र लामा ने चाहा,
उन्होंने कमल की शहद जैसी सीता से विवाह किया.
पर एक दिन लंका के शासक दस नाक वाले राजा लावन ने,
बेशर्मी से सीता के सौंदर्य का बखान किया, नारीत्व का रत्न कहा,
"आप जवान लड़कियों में मोती हैं, जब से हम आपको लंका लाए हैं,
कितने दिन हो गए, मेरे मोती, मेरी दीप्तिमान फूलों की माला!
मेरी दो आंखों में तुम्ही हो, मैं तुम्हारी ही शपथ लेता हूं, मेरी प्यारी,
मेरी ऐसी इच्छा है कि मैं तुम्हें देखूं और तुम्हें बताऊं,
मुझे क्या चाहिए ...
पर जब ऐसी स्त्री को मेरे साथ आनंद के सागर में प्रवेश करना चाहिए था-
क्यों, अल्लाह! आपने उस सुअर लामा का साथ क्यों दिया?
मलयालम से अनुवादित ये पंक्तियां मप्पिला रामायण के नाम से ख्याति रामायण की कहानी का एक हिस्सा हैं. जैसा कि अनगिनत अन्य स्थानों और समुदायों ने किया है, केरल के मालाबार क्षेत्र में रहने वाले मप्पिला मुसलमानों ने राम और रावण की कहानी को अपनी संस्कृति के सांचे में ढाला. राम को वे लामा और रावण को लवना कहते हैं. इन पंक्तियों में आया अल्लाह का संदर्भ उनके इस्लामी विश्वास प्रणाली की ओर इशारा करते हैं. मप्पिला रामायण, रामायण के विभिन्न पाठों के एक विशाल साहित्य-संसार का केवल एक हिस्सा है जिसमें दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में रामायण के विभिन्न इस्लामी संस्करण शामिल हैं.
जैसा कि अध्येता ए. के. रामानुजन ने अपने निबंध "थ्री हंड्रेड रामायण : पांच उदाहरण और अनुवाद पर तीन विचार" में लिखा है, राम की कहानी के अनगिनत लिखित और मौखिक संस्करण छोटी धाराओं की तरह हैं जो एक शक्तिशाली नदी की ओर बहती हैं जो कि रामायण का साहित्य-संसार है. हालांकि वाल्मीकि की रामायण अक्सर मुख्यधारा की कल्पना पर कब्जा कर लेती है, यह धारणा कि कोई एक संस्करण दूसरों की तुलना में अधिक श्रेष्ठ या अधिक प्रामाणिक है, इसे आधुनिक अध्येताओं द्वारा हर एक रामायण का निश्चित काल निर्धारण न होने के बावजूद भी खारिज कर दिया गया है.
रामायण की बहुस्वरता को उसकी एक सीमा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि अनंत संभावना के दायरे के रूप में देखा जाना चाहिए. भारत की अनगिनत जातियां और धर्म, जो भारत में पैदा हुए या फैल गए, वे सभी रामायण से अलग-अलग हद तक प्रभावित हुए हैं. राम की कहानी को हिंदू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, दलित और आदिवासी संस्करणों में विभिन्न रूपों में अपनाया गया है.
न केवल भारत में बल्कि इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, जापान, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित अन्य देशों में मुसलमानों के पास इस कहानी के अपने संस्करण हैं. हालांकि रामायण की यह कहानी कुछ जगहों पर इस्लामी धर्मशास्त्र के भीतर अच्छी तरह फिट बैठती है, तो दूसरी जगहों पर यह एक सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा का हिस्सा है. यद्यपि कि इन कई संस्करणों पर अधिक गंभीर शोध-कार्य अभी तक नहीं किया गया है.
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