मुस्लिम रामायण

रामायण के विविध मुस्लिम संस्करण

Azeez Tharuvana चित्र Osheen Siva
12 December, 2021

जैसा राजा दशरथ के प्रिय पुत्र लामा ने चाहा,
उन्होंने कमल की शहद जैसी सीता से विवाह किया.
पर एक दिन लंका के शासक दस नाक वाले राजा लावन ने,
बेशर्मी से सीता के सौंदर्य का बखान किया, नारीत्व का रत्न कहा,
"आप जवान लड़कियों में मोती हैं, जब से हम आपको लंका लाए हैं,
कितने दिन हो गए, मेरे मोती, मेरी दीप्तिमान फूलों की माला!
मेरी दो आंखों में तुम्ही हो, मैं तुम्हारी ही शपथ लेता हूं, मेरी प्यारी,
मेरी ऐसी इच्छा है कि मैं तुम्हें देखूं और तुम्हें बताऊं, 
मुझे क्या चाहिए ...
पर जब ऐसी स्त्री को मेरे साथ आनंद के सागर में प्रवेश करना चाहिए था-
क्यों, अल्लाह! आपने उस सुअर लामा का साथ क्यों दिया? 

मलयालम से अनुवादित ये पंक्तियां मप्पिला रामायण के नाम से ख्याति रामायण की कहानी का एक हिस्सा हैं. जैसा कि अनगिनत अन्य स्थानों और समुदायों ने किया है, केरल के मालाबार क्षेत्र में रहने वाले मप्पिला मुसलमानों ने राम और रावण की कहानी को अपनी संस्कृति के सांचे में ढाला. राम को वे लामा और रावण को लवना कहते हैं. इन पंक्तियों में आया अल्लाह का संदर्भ उनके इस्लामी विश्वास प्रणाली की ओर इशारा करते हैं. मप्पिला रामायण, रामायण के विभिन्न पाठों के एक विशाल साहित्य-संसार का केवल एक हिस्सा है जिसमें दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में रामायण के विभिन्न इस्लामी संस्करण शामिल हैं. 

जैसा कि अध्येता ए. के. रामानुजन ने अपने निबंध "थ्री हंड्रेड रामायण : पांच उदाहरण और अनुवाद पर तीन विचार" में लिखा है, राम की कहानी के अनगिनत लिखित और मौखिक संस्करण छोटी धाराओं की तरह हैं जो एक शक्तिशाली नदी की ओर बहती हैं जो कि रामायण का साहित्य-संसार है. हालांकि वाल्मीकि की रामायण अक्सर मुख्यधारा की कल्पना पर कब्जा कर लेती है, यह धारणा कि कोई एक संस्करण दूसरों की तुलना में अधिक श्रेष्ठ या अधिक प्रामाणिक है, इसे आधुनिक अध्येताओं द्वारा हर एक रामायण का निश्चित काल निर्धारण न होने के बावजूद भी खारिज कर दिया गया है. 

रामायण की बहुस्वरता को उसकी एक सीमा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि अनंत संभावना के दायरे के रूप में देखा जाना चाहिए. भारत की अनगिनत जातियां और धर्म, जो भारत में पैदा हुए या फैल गए, वे सभी रामायण से अलग-अलग हद तक प्रभावित हुए हैं. राम की कहानी को हिंदू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, दलित और आदिवासी संस्करणों में विभिन्न रूपों में अपनाया गया है. 

न केवल भारत में बल्कि इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, जापान, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित अन्य देशों में मुसलमानों के पास इस कहानी के अपने संस्करण हैं. हालांकि रामायण की यह कहानी कुछ जगहों पर इस्लामी धर्मशास्त्र के भीतर अच्छी तरह फिट बैठती है, तो दूसरी जगहों पर यह एक सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा का हिस्सा है. यद्यपि कि इन कई संस्करणों पर अधिक गंभीर शोध-कार्य अभी तक नहीं किया गया है. 

हालांकि इस्लाम अरब प्रायद्वीप में विकसित हुआ, लेकिन वह हज़रत मुहम्मद (570-632 ईसवी) के समय में ही भारत में फैल गया. पिछली सहस्राब्दी में, भारत में इस्लाम हिंदू धर्म के साथ एक बहुत गहरे सांस्कृतिक आदान-प्रदान में लगा हुआ है. भक्ति आंदोलन और सूफीवाद इसी समन्वयवाद का हिस्सा थे. उदाहरण के लिए, कबीर के गुरु, चौदहवीं शताब्दी के कवि-तपस्वी रामानंद (रामानंद कबीर के गुरु थे, इस मिथक को हिंदी के कई अध्येताओं ने तथ्यात्मक तौर पर कब का खारिज कर दिया है, बहुजन वैचारिकी के अध्येता चंद्रिका प्रसाद ‘जिज्ञासु’ ने विस्तार से इस संदर्भ में लिखा है, जिसकी पुष्टि कंवल भारती और अन्य अध्येता भी करते हैं-संपादक) ने दलितों और मुसलमानों को अपने शिष्यों के रूप में स्वीकार किया. सत्रहवीं शताब्दी के धार्मिक विद्वान जुल्फकार मुबेद लिखते हैं कि जब भक्ति आंदोलन लोकप्रिय था, उस समय कुछ मुसलमान विष्णु की पूजा करते थे. 

कुछ विद्वानों ने तो यहां तक तर्क दिया है कि हो सकता है राम की कथा की उत्पत्ति अरब जगत में हुई हो. अपनी पुस्तक थूलिका चलनंगल में अध्येता के. बलराम पन्निकर ने सुझाव दिया है कि प्राचीन मिस्र में या इसके आसपास के क्षेत्र में सूर्य की आराधना की परंपरा ने रामायण के सृजन को जन्म दिया. पन्निकर लिखते हैं कि "रामायण" का शाब्दिक अर्थ राम के जीवन की पद्धति है और यह उस शब्द का रूपांतरण है जो सूर्य-पूजा का जिक्र करता है. उनका मानना ​​है कि भगवान के लिए अरबी शब्द "रब्बी" का मूल "रवि" के समान है, जो सूर्य के लिए इस्तेमाल होने वाला एक संस्कृत शब्द है और एक अन्य अरबी शब्द "रहमान" है जिसका इस्तेमाल भगवान को संदर्भित करने के लिए किया जाता है. यह राम के उच्चारण से जुड़ा हुआ है. अध्येता एम. वेंकट रत्नम के अनुसार, दशरथ चौदहवीं शताब्दी ईसा पूर्व में एक मितानी राजा तुशरत थे, जबकि राम रामसेस द्वितीय थे, जो एक फैरो थे, जिन्होंने तेरहवीं शताब्दी ईसा पूर्व में मिस्र पर शासन किया था. अपनी पुस्तक ‘द ग्रेटेस्ट फैरो ऑफ इजिप्ट’ में, रत्नम इस तथ्य की ओर भी इशारा करते हैं कि वाल्मीकि की रामायण आर्य साहित्य है, और आर्यों की उत्पत्ति मध्य एशिया में हुई थी. 

इस्लामिक परंपरा में मुसलमानों के एक वर्ग द्वारा राम को मुसलमानों के पैगंबर के रूप में स्वीकार किया गया है. इस्लामी मान्यता के अनुसार मुहम्मद से पहले एक लाख चौबीस हजार से अधिक और पैगंबर हुए हैं. हालांकि कुरान में, इन पैगंबरों (नबियों) में से केवल 25 के नामों का उल्लेख है और उनके विवरण दिए गए है. कुरान में यह भी घोषणा है कि अलग-अलग देशों और समुदायों के लिए अलग-अलग पैगंबरों की व्यवस्था की गई है. हालांकि, मुसलमानों का मानना ​​​​है कि इनमें से कोई भी पैगंबर ईश्वर या ईश्वर के पुत्र नहीं थे, लेकिन वे केवल मानव थे. कुरान में यह भी कहा गया है कि दूतों (पैगंबरों) को अलग-अलग समय पर अलग-अलग राष्ट्रों और जातियों में भेजा गया था. उनके प्रति सम्मान के साथ समान व्यवहार करना इस्लामिक विश्वास का एक आंतरिक हिस्सा है. भारत में कुछ ऐसे मुसलमान हैं जो कृष्ण और राम को ऐसे ही पैगम्बर मानते हैं. 

विद्वानों ने प्राचीन हदीस की पांडुलिपियों में कृष्ण पर मुहम्मद के कथनों का दस्तावेजीकरण किया है. बारहवीं शताब्दी के इस्लामी विद्वान अबू मंसूर अल-दालामी ने अपनी कृति फिरदौस-उल-अकबर और तारिक-उल-हमदान में मुहम्मद को यह कहते हुए उद्धृत किया, "भारत में एक नबी था, जो काले रंग का था, और जिसका नाम कहिन (कृष्ण) था." इस कथ्य को अनेक विद्वानों ने अपनी रचनाओं में उद्धृत किया है. 

मुगल बादशाहों ने रामायण-महाभारत साहित्य के उर्दू और फारसी में अनुवाद को प्रोत्साहित किया. बादशाह अकबर के कहने पर अब्दुल कादिर बदौनी ने वाल्मीकि की रामायण का 1584 और 1589 के बीच पद्य रूप में फारसी में अनुवाद किया. शाहजहां के शासनकाल के दौरान एक गद्य अनुवाद पूरा हुआ. 

जहांगीर के शासन के दौरान, सदुल्लाह कैरानावी तहकल्लु समसिहा द्वारा रचित रामायण-ए-मसिही बेहद लोकप्रिय हो गया. इस काम में, पैगंबर ईसा (यीशु) और उनकी मां मरियम (मैरी) जैसे पात्रों को रूपक के रूप में प्रस्तुत किया गया था. ईसा और मरियम मुसलमानों के विश्वास का एक आंतरिक हिस्सा रहे हैं जैसे वे ईसाइयों के लिए हैं. रामायण का कोई अन्य संस्करण अभी तक खोजा नहीं गया है जहां यीशु और मैरी को चित्रित किया हो. 

सदियों से, भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ऐसे कई सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुए हैं. यह कला, परंपराओं, भाषा, खान-पान और यहां तक ​​कि पहनावे की शैलियों में भी देखा जा सकता है. 

केरल के मालाबार क्षेत्र में, हिंदू और मुसलमान ऐतिहासिक तौर पर परस्पर सौहार्द के साथ रहते हैं. यह परंपरा आज भी जारी है, और इस प्रकार समन्वयवाद केरल की मुस्लिम और हिंदू दोनों संस्कृतियों में गहराई से अंतर्निहित है. 

थेय्यम में इस्लाम का प्रभाव देखा जा सकता है, जो हिंदू मंदिरों में पूजा का अनुष्ठानिक नृत्य रूप है. कन्नूर और कासरगोड जिलों में हिंदू मंदिरों में "मापीला थेय्यम" का प्रदर्शन किया जाता है. उन्हें "उम्माची थेय्यम" और "मुकरी थेय्यम" जैसे नामों से जाना जाता है. मालाबार के मुसलमान "उम्माची" शब्द का प्रयोग "मां" के लिए करते हैं. उम्माची थेय्यम मालाबार में मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली वेशभूषा में किया जाता है. "मुकरी" वह व्यक्ति है जो मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने के लिए अज़ान करता है. मुकरी थेय्यम में नृत्य की शुरुआत प्रार्थना के लिए पुकार से होती है. 

इस सांस्कृतिक आदान-प्रदान में मप्पिला रामायण का सृजन हुआ. इसने मप्पीला गीतों का रूप ले लिया है, और यह मौखिक या पाठ्य दोनों रूपों में हो सकता है. 

शुरुआती दिनों में, मप्पिला गीत अरबी-मलयालम में लिखे गए थे, जिसमें मलयालम शब्दों को लिखने के लिए अरबी लिपि का उपयोग करना शामिल था. अरबी-मलयालम के एक शोधकर्ता के. के. अब्दुल करीम के अनुसार, अरबी-मलयालम में छह हजार से अधिक काव्य ग्रंथ और बारह सौ गद्य ग्रंथों की रचना की गई है. अष्टांग हृदयम और शीलावती जैसी प्रसिद्ध संस्कृत कृतियों और अरबी, फ़ारसी और उर्दू में कई क्लासिक ग्रंथों का अरबी-मलयालम में पिछली शताब्दी में अनुवाद किया गया था. 

एक शोधकर्ता, शिक्षक और लोक गीतकार टी .एच. कुन्हीरमन नांबियार,  लोक गायक हसनकुट्टी की मदद से मप्पिला रामायण के लोक गीतों को एकत्रित और संकलित करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिनकी 2004 में मृत्यु हो गई. 143 पंक्तियों की उनकी कृति मालाबार के मुस्लिम समुदाय के जीवन की पृष्ठभूमि में राम की कहानी को प्रतिरोपित करती है. इसके पात्र मप्पिल लोगों की बोली, पोशाक, भोजन, रीति-रिवाजों और मान्यताओं को अपनाते हैं. 

यह केवल पात्रों के नाम नहीं हैं जो स्थानीय रूपों में बदल जाते हैं. दशरथ के विवाह को निकाह कहते हैं. मौत को संदर्भित करने के लिए मलयालम मारनम के बजाय अरबी शब्द मौत का उपयोग किया जाता है. दशरथ को राम का बप्पा कहा जाता है, जो पिता के लिए मप्पिला शब्द है. जबकि रावण की बहन सूर्पनखा को पेंगलुम्मा कहा जाता है, जिसे मप्पिला पोशाक पहने दिखाया गया है. रामायण के पात्र कोझी और पाथल का सेवन करते हैं. कोझी एक प्रकार की चिकन बिरयानी और पाथल एक भाप से तैयार मालाबार व्यंजन है. 

मप्पिला रामायण का पहला गीत राम की कहानी का संक्षिप्त सारांश प्रस्तुत करता है. पहली दो पंक्तियां हैं : "वह गीत जिसे दाढ़ी वाले संत ने बहुत पहले गाया था/ इस विवरणात्मक गीत को हमारी लामायण की तरह देखा जाए." मूल रूप में इस्तेमाल किये गए "दाढ़ी वाले संत" शब्द, वाल्मीकि को संदर्भित करता है, जो औलिया है. औलिया सूफी साधकों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है. 

गीत आगे बढ़ता है:

"हमारे बैठ कर प्रतीक्षा करने का गीत, कड़कड़कम के महीने के लंबे इंतजार में /वह गीत जिसे हम अपनी कानों में उंगलियां डालकर गाएंगे." केरल के हिंदू घरों में, कड़कड़कम के महीने में रामायण का पाठ होना आम बात है - जो जुलाई और अगस्त महीनों के बीच पड़ता है. 

एक अन्य गीत में, प्यार करने वाली सूर्पनखा लामा के लिए भावप्रवण प्रणय निवेदन करती है. जब वह शादी का प्रस्ताव रखती है, तो वह (लामा-राम) उसे बताते हैं कि वह पहले से ही शादीशुदा है और इसलिए दोबारा शादी नहीं कर सकते. वह जवाब देती है कि शरीयत के अनुसार, पुरुषों को अधिकतम चार पत्नियां रखने की अनुमति है, और विनती करती है कि लामा उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकर करें. 

केरल के मुसलमानों के बीच लोकप्रिय रामायण का एक लिखित संस्करण, ईशाल रामायण है. यह ओट्टमालियाक्कल मुथुकोया थंगल द्वारा रचित एक कविता है. ओट्टमालियाक्कल मुथुकोया थंगल को ओम करुवरकुंडु के नाम से भी जाना जाता है, जो केरल के मलप्पुरम जिले के करुवरकुंडु के मूल निवासी हैं. "ईशाल" जिसका अर्थ है धुन, मप्पीला गीत में एक प्रकार का मीटर (पैमाना) है. करुवरकुंडु एक सफल मप्पिला कवि हैं, जिन्होंने अब तक एक हजार से अधिक गीत लिखे हैं और वे अरबी के लंबे समय तक शिक्षक रहे हैं. 

ईशाल रामायण  में, करुवरकुंडु वाल्मीकि की रामायण को मप्पिला गीत के रूप में प्रस्तुत करते हैं. इसके 140 गीतों की रचना मप्पिला गीतों की तुकबंदी की पद्धति के अनुसार की गई है, जिनमें एक खास तरह के राग और लय हैं. गीतों में विभिन्न प्रकार की धुनें होती हैं. ईशाल रामायण में लगभग सभी प्रमुख धुनों का प्रयोग किया गया है. ईशाल रामायण  में कई अरबी वाक्यांश आते हैं. 

कुछ दृश्यों में, इस्लामी इतिहास की घटनाओं को सामने लाया जाता है. उदाहरण के लिए, राम और रावण के बीच की लड़ाई सातवीं शताब्दी के बदर की लड़ाई की ओर इशारा करती है, जो मुहम्मद की सेना और मक्का के कुरैश के बीच लड़ी गई थी. 

ईशाल रामायण  में केरल के मुसलमानों में प्रचलित एक कला रूप, ओप्पना का भी उपयोग किया गया है. ओप्पना मप्पिला गीत की एक निश्चित धुन का उपयोग करता है और इसमें एक नृत्य शामिल होता है जो आमतौर पर शादियों के दौरान किया जाता है. ईशाल रामायण  के कई गीतों को इस तरह से सुनियोजित किया गया है कि उन्हें ओप्पना के लिए भी गाया जा सकता है. 

केरल में पहले भी इसी तरह के प्रयास किए जा चुके हैं. 1922 में एक इस्लामी विद्वान और पलक्कड़ के मूल निवासी करूमन कुरिक्कल ने नवीन रामायण लिखी. इस 720-पृष्ठ की कविता की प्रस्तावना हिंदू पंडित वदनूर वडक्केपट्टू नारायणन नायर द्वारा लिखी गई थी. तमिल रामायण, रामावतारम्, जिन्हें कंबर रामायण भी कहा जाता है, के दो उल्लेखनीय उन्नायक प्रसिद्ध पुनर्लेखक मुस्लिम थे - अठारहवीं शताब्दी के तमिल कवि उमर पुलवर और राजनेता एम.एम. इस्माइल. पुलावर एक प्रमुख सूफी कवि थे और इस्लामी विद्वान थे, जिन्होंने सीरा पुराणम भी लिखा था, जो मुहम्मद की जीवनी थी, जिसे विद्वानों ने कंबर रामायण से प्रभावित पाया है. इस प्रकार मुसलमानों ने सदियों से रामायण को आत्मसात करने और उसकी व्याख्या करने की कोशिश की है. आज भी रामलीला में भाग लेकर और रामायण के कथानक को उसके खास कला रूपों में स्वीकार कर यह प्रयास जारी है. 

रामायण की साहित्यिक परंपरा पूरे एशिया में फैली हुई है. इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका, चीन, वियतनाम, जापान, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित देशों के रामायण के अपने-अपने संस्करण हैं. इनमें से कई जगहों पर कहानी को एक भारतीय प्राचीन कथा के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि एक ऐसी कहानी के रूप में देखा जाता है जो उनके अपने क्षेत्रों में घटित होती है. प्रत्येक संस्करण में अपने-अपने भौगोलिक स्थानों, लोगों और समुदायों के संदर्भ हैं. प्रत्येक संस्करण में उनके समुदाय की मान्यताएं और रीति-रिवाज हैं जो उनके रामायणों में व्याप्त हैं. थाईलैंड में अयुथ्थाय नामक एक शहर है जो अयोध्या का एक रूपांतर है. इस देश में रामायण के प्रभाव को दर्शाता है. 

कोथन की रामायण का अपना एक संस्करण है जिसे कोठानी रामायण कहा जाता है. कोथन, जो पूर्वी क्षेत्रों में एक जगह है, जो पहले तुर्किस्तान था. यह अनुमान लगाया गया है कि कोठानी रामायण नौवीं शताब्दी में किसी समय लिखी गई थी. इस संस्करण में, राम और लक्ष्मण दोनों सीता से विवाह करते हैं. कोथान एक ऐसा क्षेत्र था, जहां पुराने समय में बहुपतित्व की प्रथा प्रचलित थी. जिस प्रकार वर्षा जिस भूमि पर पड़ती है उसका रंग ग्रहण कर लेती है, उसी प्रकार रामायण कथाओं ने प्रत्येक भूमि के गुणों को ग्रहण कर लिया. कोठानी संस्करण तिब्बती रामायण की कहानियों के समान है. इसके अनुरूप, यह भी देखा जा सकता है कि बौद्ध क्षेत्रों तक पहुंचने वाली रामायण की कहानियों में बौद्ध विषय हैं. 

इंडोनेशिया में राम कथा प्राचीन काल से चली आ रही है. हालांकि इंडोनेशियाई रामायण की कहानी और भारतीय रामायण के बीच कई समानताएं हैं. इंडोनेशिया में मुसलमानों का बहुमत है और उन्हें अक्सर रामायण की कहानी में दर्शाया जाता है. इसलिए इंडोनेशियाई रामायण अन्य रामायण साहित्य से आश्चर्यजनक रूप से भिन्न है. 

इंडोनेशिया में दो तरह की रामायण कथाएं प्रचलन में हैं. एक जावानीस रामायण है, जो वाल्मीकि की रामायण से काफी मिलती-जुलती है और दूसरी आधुनिक संस्करण है. इंडोनेशियाई रामायणों की एक सामान्य विशेषता राम के प्रति भक्ति का अभाव है. राम कहानी से संबंधित इंडोनेशिया में सबसे पुराना साहित्यिक कार्य काकाविन रामायण है. यह ग्रंथ दसवीं शताब्दी में लिखा गया माना जाता है. इसके रचयिता के संबंध में अधिक स्पष्टता नहीं है. अध्ययनों से पता चलता है कि काकाविन रामायण किसी एक लेखक की कृति नहीं है, बल्कि इस पाठ को समय के साथ कई लेखकों द्वारा जोड़ा और संशोधित किया गया है. विद्वान मनमोहन घोष लिखते हैं कि इस पाठ का स्रोत सातवीं शताब्दी की कविता भट्टिकाव्य थी, न कि वाल्मीकि की रामायण. 

वाल्मीकि, जिन्हें संस्कृत साहित्य का पहला कवि माना जाता है और पहले इंडोनेशियाई कवि माने जाने वाले सुनन कलिजाग की जीवन कथाओं में कई समानताएं हैं. एक मुस्लिम उपदेशक कलिजाग को आदिवली की उपाधि मिली थी. आदिवली यानी पहला कवि. सूफी संतों के लिए अक्सर प्रत्यय "वली" लगाया जाता है. 

पौराणिक कथा के अनुसार, संन्यासी के रूप में अवतरित होने से पहले वाल्मीकि एक शिकारी हुआ करते थे, जो लूट और हत्या भी करते थे. एक दिन घने जंगल में उन्होंने दो संन्यासियों को लूटने का प्रयास किया. लेकिन वे उनके (संन्यासियों) व्यक्तित्व के तेज का सामना नहीं कर पाए और संन्यासियों ने उनके व्यक्तित्व को रूपांतरित कर दिया. वे एक महान तपस्वी (साधक) और एक महान ऋषि बन गए. यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि ने सप्तऋषियों की उपस्थिति में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था. सात ऋषि, जिनकी हिंदू ग्रंथों में चर्चा एवं प्रशंसा की गई है. 

कलिजाग का अध्यात्मिक जीवन से पहले का जीवन वाल्मीकि के समान था. जावानीस लोककथाओं के अनुसार, कलिजाग एक ठग और डाकू हुआ करते थे. माना जाता है कि वह एक चतुर ठग थे. एक दिन, उन्होंने इस्लामी दर्शन के शिक्षक सुनन बोनांग नामक एक संन्यासी को लूट लिया. बोनांग ने कलिजाग को इस्लाम के सिद्धांत समझाए, जिससे उनका व्यक्तित्व रूपान्तरित हुआ. कलिजाग ने इस्लाम स्वीकार किया, सूफीवाद का पालन करना शुरू किया और माना जाता है कि उन्होंने इंडोनेशिया में इस्लाम के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वाल्मीकि की तरह, कलिजाग के सही समय का पता लगाना असंभव है. 

ऐसा माना जाता है कि इस्लाम इंडोनेशिया में नौ वलियों द्वारा फैलाया गया था, जिनमें से कलिजाग पहले थे. कलिजाग ने वायंग के लिए रामायण और महाभारत की कहानियों की भी रचना की. एक शास्त्रीय जावानीस कठपुतली नाटक, जो कठपुतली द्वारा फेंकी गई छाया का उपयोग पीछे से प्रकाशित एक पारभासी स्क्रीन के विपरीत करता है. माना जाता है कि कलिजाग ने इस शैली का आविष्कार किया था. 

इंडोनेशिया में रामायण के कई संस्करण ऐसे भी हैं जो उतने पुराने नहीं हैं. इनमें सेराथु कंदम और रामकेलिंग शामिल हैं, जिनका जावानीस नाटक पर मौलिक प्रभाव पड़ा है. बाली में, वायंगा वोंगा नाटक पूरी तरह से रामायण के दृश्यों से बना है. रामायण के आधुनिक रूप इंडोनेशिया से वियतनाम, थाईलैंड और म्यांमार जैसे क्षेत्रों में फैल गए हैं. इन रूपों की खास विशेषता उनमें निहित इस्लामी विषय हैं. 

सेराथु कंदम में आदम, मुहम्मद और अल्लाह पात्रों के रूप में दिखाई देते हैं. राम और रावण के युद्ध के बीच, जिब्रील युद्ध से बचाने के लिए वार्ता का हिस्सा बनते हैं, जिब्रील महादूत हैं जो ईश्वर और मनुष्यों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं. 

इंडोनेशियाई मुसलमान रामायण को एक सांस्कृतिक परंपरा और अपनी साहित्यिक विरासत का हिस्सा मानते हैं. वे रामायण के मंचन और अन्य कलात्मक प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं. 

एक और देश जहां रामायण की जड़ें बहुत गहरी हैं वह है फिलीपींस. इस क्षेत्र के कई संस्करणों में इस्लामी धाराएं मौजूद हैं. यह उनमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जिसे भारतविद् जुआन आर. फ्रांसिस्को ने 1968 में खोजा था. इस पाठ में रावण प्रमुख व्यक्ति है, और इसका नाम लवाना है, जैसा कि मप्पिला रामायण में है. लवाना के आठ सिर हैं और वह पुलु बंदियार के सुल्तान का पुत्र है. अपने बेटे लवाना के आक्रामक कृत्यों को सहन करने में असमर्थ, सुल्तान उसे एक द्वीप पर निर्वासित कर देता है. 

रामायण का एक और संस्करण, हिकायत महाराजा रावण है, जो रावण के वनवास से शुरू होता है. तपस्या के रूप में रावण अपना सिर अग्नि की वेदी को समर्पित करता है. बारह साल बाद अल्लाह आदम को यह पूछने के लिए भेजते हैं कि रावण क्या चाहता है. रावण चारों लोकों पर अधिकार करने की इच्छा व्यक्त करता है और आदम से कहता है कि यदि उसकी इच्छा पूरी हो जाती है तो वह क्रोध को त्याग देगा. 

फिलीपींस में मुसलमानों के बीच प्रसारित होने वाली सबसे पहली रामायण की कहानियां मौखिक रूप में थीं. लिखित रूप में दर्ज होने के बाद भी, मौखिक संस्करण अभी भी व्यापक रूप से लोकप्रिय हैं. 

मलेशिया की भी रामायण और महाभारत की अपनी समृद्ध साहित्यिक परंपरा है. इन कहानियों ने लोगों के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया है. लिखित रूप में महाभारत, जिसे हिकायत युदा के नाम से जाना जाता है, मलेशिया में भी उपलब्ध है. 

मलेशियाई संस्कृति और भाषा का भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा से गहरा संबंध है. मलेशिया एक ऐसा राष्ट्र है जहां कभी हिंदू पौराणिक कथाओं की जड़ें गहरी थीं. राम की कहानी का न केवल उसके साहित्य पर, बल्कि उसके विभिन्न प्रकार के रंगमंच पर भी प्रभाव पड़ा है. पश्चिमी मलेशिया में कथा के क्षेत्र में, वायंग कुलित नामक छाया-कठपुतली नाटक रामायण पर आधारित है. इंडोनेशियाई संस्करणों की तरह मलेशियाई लोगों में भी राम के प्रति भक्तिभाव की कमी है और वे इस्लाम से गहराई से प्रभावित हैं. 

मलेशियाई मुसलमानों के लिए रामायण पर आधारित विभिन्न नाटक केवल एक कला रूप हैं. मलेशिया के पूर्व उप प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने एक साक्षात्कार में कहा, "मैं एक मुसलमान हूं जो दिन में पांच बार नमाज अदा करता हूं. हमारे सांस्कृतिक उत्सवों में आपकी रामायण और महाभारत की निर्णायक भूमिकाएं हैं. मलेशिया के अधिकांश हिस्सों में मुसलमान हैं जो नियमित रूप से उनका पाठ करते हैं. हमारी महाभारत और रामायण शायद वैसी न हों जैसी आप भारत में उसे देखते हैं. मुझे यह बताया गया है कि मलेशिया में उन्हें 'इस्लामिक रूप से' फिर से लिखा गया है. तथ्य यह है कि हमने अपनी सीमाओं के भीतर इन मिथकों को अपनी संस्कृति के हिस्से के रूप में विकसित किया है.” 

मलेशिया में इस्लाम के आगमन से पहले की रामायण की कुछ पांडुलिपियां उपलब्ध हैं. सातवीं शताब्दी से पहले के रामायण से संबंधित कुछ पत्थर के शिलालेख हैं. कई संस्करण ऐसे भी हैं जो वाल्मीकि रामायण के प्रभाव को दर्शाते हैं. हालांकि, मलेशिया में इस्लाम के प्रसार के साथ, पुराने धर्म, संस्कृति और साहित्य का काफी हद तक इस्लामीकरण कर दिया गया है. 

तेरहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी के बीच लिखे गए हिकायत सेरी राम में कई इस्लामी अवधारणाएं शामिल हैं जैसे कि अल्लाह और आदम नबी का जिक्र है, जिन्हें इस्लाम में पहला मानव और पहला पैगंबर माना जाता है. हिकायत सेरी राम के सात भाग हैं. पहले भाग में रावण को उसके पिता द्वारा उसके कुकर्मों के लिए वनवास दिया जाता है. फिर वह सिंहल द्वीप पर पहुंचता है और तपस्या करता है. पैगंबर आदम और मुहम्मद के आग्रह पर, अल्लाह उसे चार दुनियाओं पर अधिकार देते हैं: स्वर्ग, नरक, पृथ्वी और समुद्र. हालांकि, अल्लाह शर्त रखते हैं कि रावण न्याय के साथ इन क्षेत्रों का प्रशासन करे. रावण हर देश की एक राजकुमारी से शादी करता है और कई पुत्रों को पिता बनाता है जो बाद में राजा बनते हैं. सेरी राम में दशरथ आदम नबी के पुत्र हैं. 

विष्णु, शिव और ब्रह्मा जैसे हिंदू देवताओं को इस्लामी अवधारणाओं के अनुरूप परिवर्तित करके नया स्वरूप दिया गया है. अगर हम तुलना करें कि सेरी राम और वाल्मीकि की रामायण  में रावण कैसे सत्ता में आता है, तो अंतर स्पष्ट हो जाता है. विलियम एस. बक द्वारा अनुवादित वाल्मीकि संस्करण में यह सामने आता है: 

रावण ने अपने गले पर चाकू रखा, तब ब्रह्मा प्रकट हुए और कहा, "रुको! मुझसे एक बार वर मांगो!" 

रावण ने कहा, "मुझे खुशी है कि मैं आपको प्रसन्न कर पाया हूं." 

"मुझे प्रसन्न करो!" ब्रह्मा ने कहा. “तुम्हारी इच्छा भयानक है, इतनी प्रबल है कि उपेक्षा की जा सकती है; एक बुरी बीमारी की तरह मुझे इसका इलाज करना चाहिए. तुम्हारा दर्द मुझे दुख देता है. कहो!" 

"मैं अजेय होना चाहता हूं और देवताओं या किसी स्वर्ग के किसी व्यक्ति, नरक के शैतानों या असुरों या दानव आत्माओं, पाताल लोक के नागों या यक्षों या राक्षसों द्वारा कभी भी पराजित नहीं होना चाहता." 

"यह वर देता हूं!" ब्रह्मा ने जल्दी से कहा. उन्होंने रावण को उसके जले हुए सिर वापस दे दिए. वह पहले से बेहतर दिखने लगा. वे (रावण के सिर) राख से जीवित हो उठे और रावण के गले में लग गए. रावण मुस्कुराया और अपनी काली मूंछों को संवारा.

सेरी राम में भी यही प्रसंग दिखाई देता है. डब्ल्यू.जी. शेलबियर के अनुवाद के अनुसार इसमें एडम नबी मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं. ब्रह्मा के बजाय, सर्वोच्च व्यक्ति अल्लाह बन जाते हैं: 

अल्लाह (एसडब्ल्यूटी) के आशीर्वाद और शक्ति के साथ, पैगंबर आदम को पृथ्वी पर कुछ समय के लिए जन्नत से उतारा गया था. एक बार की बात है, भोर के समय, पैगंबर पृथ्वी पर चहलकदमी कर रहे थे, जब वे रावण से मिले. वह तपस्या कर रहा था, उल्टा लटक रहा था. नबी ने रावण पूछा : 

"हे रावण, तुम अपने साथ ऐसा क्यों कर रहे हो? तुम कब से इस तरह से हो?" रावण ने उत्तर दिया, "हे अल्लाह के दयालु पैगंबर. मैं बारह साल से इस हालत में हूं.” आदम ने फिर कहा, "हे रावण, वह क्या है कि जिसके लिए तुम अल्लाह (सुब्हान व ता'अला) से याचना कर रहे हो, तुम्हे क्या चाहिए ?" रावण ने उत्तर दिया, "हे मेरे मालिक पैगंबर, क्या यह संभव होगा कि आप मालिक अल्लाह से मेरी इच्छा पूरी करने के लिए कहें. उसके बाद मुझे किस तरह की चीज चाहिए मैं इसे बताऊंगा." 

नबी आदम ने तब कहा, "हे रावण तुम किस तरह की इच्छा रखते हो, मुझे बताओ." 

रावण नबी से कहता है कि वह पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल लोक और समुद्र पर शासन करना चाहता है. पैगंबर जवाब देते हैं, “इसलिए, इस समय, तुमको मुझसे वादा करना होगा कि जब तुम गलत काम करोगे या आप इस तरह का कोई काम करते हो तो, तो तुमको भगवान या अल्लाह के क्रोध को स्वीकार करना होगा और अच्छा काम करते हो तो तुमको आशीर्वाद मिलेगा. यदि तुम इस वादे पर सहमत हो, तो मैं इसके बाद मालिक अल्लाह से तुम्हारी विनम्र इच्छाओं के लिए मांग करता हूं.” 

कहानी को इस्लामी धर्मशास्त्र के अनुरूप बनाने के लिए दो प्रकरणों में ये अंतर आवश्यक है. हिंदू त्रिमूर्ति की अवधारणा इस्लाम में ईश्वर की एकेश्वरवादी अवधारणा के विरोध में है. अल्लाह को सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी माना जाता है और इस प्रकार तपस्या या महान कार्यों द्वारा उसके अधिकार का अतिक्रमण या बलपूर्वक उनके दायरे में हस्तक्षेप करना संभव नहीं है. हालांकि, रामायण और इसी तरह की कहानियों में ब्रह्मा के अधिकार में हेरफेर किया जा सकता है. रावण कई लोकों पर अधिकार मांग कर ठीक यही करता है. वह अपनी तपस्या के माध्यम से ब्रह्मा की सर्वोच्चता को कम करता है. इसलिए, जब कहानियों में ब्रह्मा को अल्लाह द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है, तो कहानी की पूरी क्रिया को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता होती है. 

मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और भारत में मुसलमानों के लिए रामायण और महाभारत सांस्कृतिक ग्रंथ हैं जिनमें दर्शकों की जीवंत वास्तविकता को अपनाया गया हैं. इस प्रकार, उनके लिए रामायण की कहानियां ईसप की दंतकथाओं, पंचतंत्र और वन थाउजेंड एंड वन नाइट्स जैसे क्लासिक ग्रंथों से मिलती-जुलती हैं. कुछ बदलाव मुसलमानों को रामायण की कहानियों को एकेश्वरवादी इस्लामी विश्वदृष्टि के अनुरूप बनाने की सुविधा प्रदान करते हैं. 

रामायण का सार और सौंदर्य इसकी विविधता में निहित है. दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में कोई भी समुदाय इसके प्रभाव से अछूते नहीं रहे, चाहे वे हिंदू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, दलित या आदिवासी कोई भी हों. हालांकि इसकी जड़ें भारतीय हैं, रामायण की शाखाएं बढ़ी और फैल गईं और सांस्कृतिक संवेदनाओं को ढालने में निर्णायक भूमिका निभाई है. यह संकीर्ण सोच है कि रामायण का कोई एक संस्करण शुद्ध है और दूसरा संस्करण भ्रष्ट है. ऐसा सोचना महाकाव्य के व्यापक सांस्कृतिक प्रभाव के साथ घोर अन्याय करता है. 

(अंग्रेजी कारवां के नवंबर 2021 में प्रकाशित इस निबंध का हिंदी में अनुवाद डॉ. सिद्धार्थ ने किया है. मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

 


Azeez Tharuvana is an assistant professor and head of the department of Malayalam at Farook College in Kozhikode. He has served as editor at the Kerala Bhasha Institute and assistant director at the Institute of Tribal Studies and Research, and is the author of several books. He received the Ambedkar National Excellence Award for his book Wayanadam Ramayanam.

Osheen Siva is a multidisciplinary artist from Tamil Nadu, currently based in Goa. Through the lens of surrealism, speculative fiction and science fiction and rooted in mythologies and her Dalit and Tamilian heritage, she imagines new words of decolonised dreamscapes, futuristic oasis with mutants and monsters and narratives of feminine power.