28 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने केरल के पथानामथिट्टा जिले की पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया. इस मंदिर का प्रबंधन सामाजिक-धार्मिक ट्रस्ट त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड करता है. यह मंदिर अय्यप्पा देवता का है. हिंदू पौराणिक मान्यता है कि अय्यप्पन शाश्वत ब्रह्मचारी हैं. 1955 के आसपास बोर्ड ने मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश निषेध कर दिया ताकि देवता के शाश्वत ब्रह्मचर्य के प्रण की रक्षा हो सके. सर्वोच्च अदालत के फैसले के खिलाफ हजारों लोग केरल की सड़कों पर उतर आए और दावा किया कि यह फैसला उनके विश्वास पर हमला है. 17 अक्टूबर को मासिक पूजा के लिए छह दिनों के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए गए. जिन महिलाओं ने मंदिर में जाने के प्रयास किया उन पर भीड़ ने हमला किया. दंगों जैसे हालात बन गए. कोई भी महिला मंदिर के अंदर नहीं जा सकी.
अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि महिलाओं को प्रवेश करने से रोकना अस्पृश्यता का एक रूप है. मंदिर में गैर ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति भी सबरीमाला में विवाद का मुद्दा है. उस फैसले में कहा गया है, “धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित होने पर भी धार्मिक कर्मकांड से महिलाओं के बहिष्कार की बात, स्वतंत्रता, गरिमा और समानता के संवैधानिक मूल्यों के अधीन है. बहिष्कार प्रथा संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है.” फैसले के मद्देनजर मला अराया, जिसे केंद्र सरकार की सूची में अनुसूचित जनजाति माना गया है, मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों का अभ्यास करने का दावा कर रहा है. मला अराया, शब्द “मलय अरायण” से आया है जिसका अर्थ है “पहाड़ियों का राजा”. यह केरल के कोट्टयम, इड्डुक्कि और पत्तनमतिट्टा जिलों के क्षेत्र में सबसे बड़ी जनजातीय समुदायों में से एक है.
इस समुदाय का दावा है कि वे लोग 1902 तक इस मंदिर में पूजापाठ करते थे. उस साल एक ब्राह्मण परिवार ने मंदिर में पूजापाठ का जिम्मा ले लिया और समुदाय के लोगों का प्रवेश मंदिर में वर्जित कर दिया गया. उस समय से “थंत्री” अथवा मंदिर के मुख्य पुजारी का पद पारिवारिक हो गया है . मला अराया समुदाय का कहना है कि बाद में मंदिर के इतिहास और इसके अनुष्ठानों का ब्राह्मणीकरण हो गया और आदिवासी समुदाय को मंदिर से प्रभावकारी रूप से हटा दिया गया.
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