सिख धर्मगुरुओं के दबाव में 10 साल की बच्ची के खिलाफ बेअदबी की एफआईआर

फोटो : बिक्कड़ सिंह

पंजाब के संगरूर जिले के रामपुर गांव की 10 साल की मजहबी सिख बच्ची के लिए स्थानीय गुरुद्वारे में सुबह की अरदास और सेवा बुरा सपना साबित हुआ. 27 जून की सुबह बच्ची गुरुद्वारे में सेवा करने गई थी. जब से कोरोनावायरस संक्रमण फैला है और स्कूल बंद कर दिए गए हैं, तभी से वह नियमित रूप से गुरुद्वारे जाकर सेवा कर रही थी. लेकिन 28 जून को जब वह सेवा करने गुरुद्वारे लौटी तो उसने देखा कि गुरुद्वारा प्रबंधक और दूसरे सिख धर्म और राजनीतिक संगठन उसका इंतजार कर रहे हैं. उन लोगों ने बच्ची पर आरोप लगाया कि उसने गुरु ग्रंथ साहिब के पन्ने फाड़ कर पवित्र ग्रंथ की बेअदबी की है. बता दें कि सिख धर्म लेने वाले दलितों को मजहबी सिख बोला जाता है.

मौजूद लोगों ने बच्ची से दो-तीन घंटे तक पूछताछ की और फिर उसे पुलिस को सौंप दिया. 28 जून को भवानीगढ़ पुलिस स्टेशन में बच्ची के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए के तहत, जो धर्म की बेअदबी से संबंधित है, एफआईआर दर्ज की गई. कानून के इस प्रावधान के मुताबिक किसी वर्ग के धर्म और धार्मिक विश्वासों को जानबूझकर ठेस पहुंचाना अपराध है. उस नाबालिग के माता-पिता के अनुसार, बच्ची और परिवार वालों को तीन दिनों तक अवैध रूप से पुलिस हिरासत में रखा गया और फिलहाल बच्ची की सुरक्षा के मद्देनजर उसे पास के गांव के रिश्तेदार के यहां छुपा दिया है. यह जानने के लिए कि कैसे एक 10 साल की बच्ची के ऊपर ऐसा आरोप लग सकता है और इसके बाद उसे क्या-क्या सहना पड़ा, मैंने रामपुर जाकर उसके परिजनों, गुरुद्वारा के नेतृत्व, स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस से बात की.

इस मामले से जुड़े पुलिस अधिकारियों ने मुझे बताया कि सिख संगठनों को खुश करने के लिए और हिंसा या किसी अन्य तरह की अप्रिय घटना को रोकने के लिए बच्ची के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने मुझसे कहा, “सिख समूह ने इस धार्मिक मामले को बहुत उछाला है.” संगरूर के वरिष्ठ पुलिस सुपरिटेंडेंट संदीप गर्ग ने बताया कि पुलिस इस बात की शिनाख्त कर रही है कि उसने पवित्र ग्रंथ को जानबूझकर फाड़ा था या गलती से ऐसा हुआ था. उन्होंने कहा, “हमें लगता है यह गलती से हुआ था और पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या ऐसा करना किसी ने बच्ची को सिखाया था.

गर्ग और गुरुद्वारा समिति के सदस्यों ने दावा किया है कि सीसीटीवी फुटेज में बच्ची को पन्ने फाड़ते देखा जा सकता है लेकिन जब मैंने वह वीडियो देखा तो पाया कि उसमें गुरु ग्रंथ साहिब दिखाई नहीं दे रही है और बच्ची उस अपराध को करती दिखाई नहीं देती जिसका कसूरवार उसे बताया जा रहा है. बच्ची के मां-बाप ने मुझे बताया कि चार लोगों के उनके परिवार को, जिसमें 7 साल का बेटा भी है, 28 जून से 1 जुलाई के बीच तीन रातों तक थाने में बंद रखा गया और कोर्ट में पेश नहीं किया गया. आपराधिक प्रक्रिया के अनुसार, पुलिस किसी को भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए बिना 24 घंटे से ऊपर बंद नहीं रख सकती. आईपीसी की धारा 83 के अनुसार, "कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से ऊपर और बारह वर्ष से कम आयु के ऐसे शिशु द्वारा की जा जाती है जिसकी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह उस अवसर पर अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों का निर्णय कर सके.” इन परिस्थितियों में और यह देखते हुए की पुलिस महकमे में भी बच्ची के निर्दोष होने पर आम सहमति है, यह समझ में नहीं आता कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज ही क्यों की?

पुलिस की एफआईआर में कहा गया है कि वह घटना 27 जून को सुबह के 5 बजे और अगले दिन दोपहर 1.50 बीच की है. एफआईआर दर्ज की गई है रामपुर गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष हरदेव सिंह की शिकायत के आधार पर. हरदेव ने बताया कि जब वह 27 जून को प्रार्थना करने गुरुद्वारा पहुंचे, तो ग्रंथि मनप्रीत सिंह ने बेअदबीकी बात उनके और कमेटी के अन्य सदस्यों, मलकीत सिंह, मुकुंद सिंह और बलविंदर सिंह, के सामने लाई. शिकायत में कहा गया है कि ग्रंथि ने उन्हें बताया कि पवित्र ग्रंथ के पेज नंबर 641 से 654 तक को फाड़ा गया है. उन्होंने बताया कि इसके बाद कमेटी ने सीसीटीवी फुटेज देखा जिसमें 10 साल की बच्ची को जानबूझकर गुरु ग्रंथ साहिब के पन्ने फाड़ते देखा जा सकता है. अगले दिन सिंह ने भवानीगढ़ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई.

स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है कि परिवार को चार दिनों तक लिए पुलिस हिरासत में रखा गया था. किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून (2015) के तहत जब पुलिस किसी किशोर को कथित अपराध के लिए गिरफ्तार करती है उस किशोर को विशेष पुलिस इकाई या बाल कल्याण अधिकारी को सौंपना होता है. इस कानून में आगे कहा गया है कि कुछ अपवाद परिस्थितियों को छोड़कर बच्चों को तुरंत जमानत दे दी जानी चाहिए और उसे ऑब्जरवेशन या निगरानी गृह में रखा जाना चाहिए. कानून के तहत, कथित तौर पर कानून से छेड़छाड़ करने वाले बच्चे को पुलिस हिरासत या जेल में नहीं रखा जाएगा.

संगरूर जिला बाल न्याय प्रशासन के लीगल-कम-प्रोहिबिशन अधिकारी अर्शबीर सिंह जोहल ने मुझे बताया कि भवानीगढ़ पुलिस स्टेशन ने बच्ची की हिरासत उन्हें नहीं सौंपी थी और ऑब्जरवेशन गृह में बालिका को कभी नहीं लाया गया. उन्होंने बताया कि इस मामले में एफआईआर दर्ज होनी ही नहीं चाहिए थी क्योंकि नियम है कि केवल गंभीर अपराधों में ही एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए. उन्होंने कहा इस मामले में एफआईआर धारा 295ए के तहत दर्ज की गई है जो गलत बात है और यह बाल न्याय कानून (2015) के तहत मामूली अपराध की श्रेणी में आएगा. इस मामले को केवल डेली डायरी रिपोर्ट दर्ज किया जाना चाहिए था जिसमें पुलिस प्राप्त होने वाली सभी शिकायतों का रिकॉर्ड रखती है.

पुलिस के अनुसार, उन लोगों ने यह देखते हुए कि लोग बच्ची के खिलाफ हैं, रिपोर्ट दर्ज कर ली. उस दिन जब वह बच्ची गुरुद्वारा पहुंची तो उसे गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, शिरोमणि अकाली दल मान, दमदम साहिब तख्त के स्थानीय प्रतिनिधि और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्यों ने घेर लिया. ग्रंथि मनप्रीत ने मुझे बताया कि समिति के सदस्यों और गांव के जानकार लोग उस दिन सुबह से वहां मौजूद थे. एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया कि बंदूक की गोली की रफ्तार से राजनीतिक दलों के नेता और लोग वहां पहुंचे गए और 10 साल की बच्ची से आक्रामक तरीके से पूछताछ करने लगे. उस वक्त वहां के वातावरण में बहुत गर्मी थी. कुछ लोगों ने तो अपनी तलवार खींच रखी थीं.

मनप्रीत ने बताया कि वह बच्ची गुरुद्वारे में सेवा किया करती थी. उन्होंने कहा, “बच्ची गांव की थी और मजहबी सिख समुदाय से आती थी. वह सेवा करने आया करती थी और जब कोई संगत वहां मौजूद नहीं थी, तो उस अवसर का लाभ उठा कर उसने वह काम किया. जब मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें वाकई लगता है कि बच्ची ने जानबूझकर ऐसा किया होगा, तो उन्होंने कहा कि उसे किसी ने सिखाया होगा. मनप्रीत जैसा सभी सोचते हैं. गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष हरदेव ने मुझसे कहा, “वह दलित बच्ची पिछले 10-12 दिनों से आ रही थी और जब ग्रंथि आराम करने के लिए उठे और प्रार्थना करने आईं औरतें लौट गईं तो उसने पन्ने फाड़ दिए.”

बावजूद इसके सभी लोगों ने एफआईआर दर्ज किए जाने को सही बताया. एक पुलिसकर्मी ने धार्मिक नेताओं का हवाला देते हुए कहा, “एफआईआर दर्ज करने से बचा जा सकता था लेकिन ये लोग ऐसे हैं जो कमजोर को निशाना बनाते हैं और कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाता.” पंजाब राज्य अनुसूचित जाति आयोग की अध्यक्ष तेजिंदर कौर ने कहा कि वह इस मामले में जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगेंगी. उन्होंने कहा, “इस मामले में मूर्खता है उसे देखकर मैं चौक गई. पहली बात तो, मैं लोगों के बर्ताव से चौकी और इसके बाद जिस तरह से इस 10 साल की बच्ची पर बेअदबी का आरोप लगाया गया उससे. क्या इस 10 साल की बच्ची को यह भी पता है कि बेअदबी क्या बला है? एक छोटी बच्ची की जिंदगी और अधिकारों को हर हाल में संरक्षित करना चाहिए. पुलिस दबाव में आकर 10 साल की बच्ची के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का बहाना नहीं बना सकती.”

10 साल की बच्ची के साथ उसके मां-बाप की अनुपस्थिति में घंटों तक पूछताछ की गई. जब मैं उसके घर गई तो वहां मुझे सिर्फ उसके मां-बाप मिले क्योंकि बच्ची को सुरक्षा के मद्देनजर रिश्तेदार के यहां भिजवा दिया गया था. वह 10 साल की बच्ची गरीब परिवार से आती है बच्ची की मां खेत मजदूर है और पिता दिहाड़ी कारपेंटर हैं जो प्रतिदिन 300 रुपए कमा पाते हैं और उन्हें महीने में सिर्फ 5-7 दिन ही काम मिल पाता है. जब मैं घर पहुंची तो बच्ची की मां खेत पर काम कर रही थी और उसके पैर घुटनों तक मिट्टी में गड़े थे. मुझसे बात करने के पहले वह जल्दी-जल्दी अपने पैर-हाथ धोने लगी. उसने मुझे बताया, “हमें नहीं पता कि उस दिन क्या हुआ था. हम गुरुद्वारा तब गए जब उन्होंने हमें बुलवाया.” बच्ची के पिता ने मुझे बताया कि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने उनके पूरे परिवार से दो-तीन घंटे तक पूछताछ की. “उन लोगों ने हमसे कहा कि हमारी बेटी ने पन्ने फाड़े हैं और फिर हमें पुलिस स्टेशन भेज दिया गया.”

बच्ची के पिता के अनुसार, पुलिस उनसे बार-बार पूछ रही थी कि क्या बच्ची को ऐसा करने के लिए किसी ने मजबूर किया था और क्या परिवार की किसी से दुश्मनी है. उन्होंने मुझसे कहा, “हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.” जब मैंने उनसे पूछा कि परिवार को कितने वक्त के लिए पुलिस हिरासत में रखा गया था तो मां ने जवाब दिया, “चार-पांच दिन.” मां-बाप ने बताया कि पुलिस ने उन्हें परेशान या उनकी पिटाई नहीं की. उन्होंने बताया कि 1 जुलाई को बच्ची और मां को बाल न्याय बोर्ड के समक्ष सुनवाई के लिए ले जाया गया जिसने तुरंत जमानत दे दी. उन लोगों को वहां से वापस पुलिस स्टेशन लाया गया और गांव से भाग जाने के लिए कहा गया. बच्ची के पिता ने मुझसे कहा, “उन्होंने हमसे कहा कि इससे पहले कि सिख संगठन हमें मार डाले हम लोग भाग जाएं. हम लोग किसी तरह से अपना चेहरा और सिर छुपा कर भागने में सफल रहे.” परिवार पास के एक गांव में अपने रिश्तेदारों के यहां चला गया और अगले दो सप्ताह तक वहीं रहा और बाद में सात साल के बेटे के साथ गांव लौट आया.

गुरुद्वारा कमेटी के अनुसार, सीसीटीवी फुटेज में ग्रंथ के ऊपर रखे रुमाल को हटाकर पन्ने फाड़ते हुए बच्ची दिखाई दे रही है. मनप्रीत ने बताया, “बच्ची को सीसीटीवी रिकॉर्डिंग दिखाई गई थी और उसने माना था कि उससे पन्ने उसी ने मोड़े थे लेकिन उसने यह नहीं बताया कि उसे ऐसा करने के लिए किसने कहा था.” लेकिन मैंने नोटिस किया कि जिस स्थान पर पन्ने फटने का आरोप है वह रिकॉर्डिंग में दिखाई नहीं देता. उस फुटेज में दिखाई पड़ता है कि बच्ची अंदर आती है और भवन में झाड़ू लगाने लगती है लेकिन जहां पवित्र ग्रंथ रखा जाता है वह स्थान कैमरे में दिखाई नहीं देता. जब मैंने इस जानकारी से पुलिस का वास्ता कराया तो एक पुलिस अधिकारी ने माना कि कथित आरोप सीसीटीवी फुटेज में दिखाई नहीं देता. लेकिन एसएसपी गर्ग ने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया.

मनप्रीत ने दावा किया कि बच्ची ने ही गुरु ग्रंथ साहिब के पन्ने फाड़े थे. मनप्रीत ने कहा कि फुटेज में दिखता है कि वह बच्ची सिर को ढके बगैर गुरुद्वारे के अंदर आई थी जो उसकी पहली गलती थी. “उसके बाद वह दूसरी औरतों के साथ सिर झुकती है और फिर झाड़ू उठा लेती है. उसके बाद वह जहां गुरु ग्रंथ साहिब रखी जाती है वहां जाती है और जंत्री उठाती है और इसके बाद वह गुरु ग्रंथ साहिब के ऊपर रखे रुमाल को छूती है और पन्नों को फाड़ देती है.” जब मैंने उनसे पूछा कि क्या यह संभव नहीं कि सेवा करते हुए गलती से पन्ने फट गए हों क्योंकि ग्रंथ बड़ा और भारी होता है, तो मनप्रीत ने कहा कि इस बात का पता लगाना पुलिस का काम है.

मनप्रीत ने दावा किया कि यह अकेली ऐसी घटना नहीं है. “हमें राजस्थान से भी बेअदबी की सूचना मिली है. हम हर महीने दो से तीन बार ऐसी खबरें सुनते हैं.” लेकिन मनप्रीत यह नहीं बता पाए कि कैसे राजस्थान की घटना इस नाबालिक बच्ची के असिद्ध अपराध से जुड़ी है. मनप्रीत ने इस बात पर भी जोर दिया कि बच्ची के माता-पिता ने माफी नहीं मांगी और इस घटना के प्रति रोष व्यक्त नहीं किया. “महाराज को बहुत गहरा काटा था.”

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की वरिष्ठ सदस्य और पूर्व महासचिव किरनजोत कौर ने बच्ची और उसके परिवार के खिलाफ जिस तरह का बर्ताव किया गया उसका विरोध किया. उन्होंने कहा, “कब से सिख इतने कमजोर हो गए कि उन्हें 10 साल की बच्ची का गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करने का नैरेटिव तैयार करना पड़ रहा है?” कौर के अनुसार, जारी बेअदबी के नैरेटिव का लंबा इतिहास है. उन्होंने कहा कि लोग शक्की हो गए हैं और यह नैरेटिव डर दिखाकर सिख समुदाय से पैसे इकट्ठे करने का एक अवसर बन गया है. उन्होंने बताया, “निजी बातों में बहुत से लोग स्वीकार करते हैं कि 10 साल की बच्ची के साथ जो हुआ बहुत गलत हुआ लेकिन सार्वजनिक रूप से ऐसा कहने से डरते हैं.”

कौर ने कहा कि जब बीर (ग्रंथः) की उम्र हो जाती है तो पेपर खराब होने लगता है. “मुझे ताज्जुब होता है कि इस संभावना की जांच किए बिना गुरुद्वारे में रोज सेवा करने वाली एक बच्ची को इतना सताया गया और जैसा व्यवहार उसके और उसके परिवार के साथ हुआ वह तालिबानी व्यवहार है, जो सिख विचारधारा के विपरीत है.”

मानव अधिकार अधिवक्ता आरएस बेंस ने बताया कि 10 साल की बच्ची को बेअदबी के लिए गिरफ्तार कर पुलिस ने अपराध किया है क्योंकि इतनी छोटी उम्र के बच्चे गुरु ग्रंथ साहिब के जीवित गुरु होने के जटिल विचार को समझ नहीं सकते. अपराध के मामलों में कानूनन यह जनना जरूरी है कि अपराध के पीछे इरादा क्या था? बेंस ने कहा कि 10 साल के बच्ची के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के दबाव में पुलिस कैसे आ गई. “तो क्या इसका मतलब है कि अगर दर्जन भर लोग कानून और व्यवस्था को बिगाड़ने की धमकी देंगे, तो पुलिस निर्दोष के खिलाफ एफआईआर लिखने लगेगी ताकि लोगों का गुस्सा शांत किया जा सके? इस मामले में तो एक बच्ची की बात थी.”

अब लग रहा है कि पुलिस अपनी गलती सुधार रही है. इस मामले के जांच अधिकारी सुखदेव सिंह ने मुझसे कहा कि पुलिस मामले को बंद करने की प्रक्रिया में है. उन्होंने बताया, “हम लोग इस मामले को रद्द कर रहे हैं.” सुखदेव ने बताया कि गांव पंचायत ने लिखित में दिया है कि बच्ची के भविष्य को ध्यान में रखते हुए, पुलिस जो भी निर्णय लेगी उसे वे लोग स्वीकार करेंगे. दूसरे पुलिस अधिकारी ने मुझसे कहा कि वह एक सिख परिवार है, एक छोटी बच्ची है ऐसा नहीं होना चाहिए था. लेकिन दबाव में हमें ऐसा करना पड़ा.”

बच्ची की मां ने 17 जुलाई को मुझसे कहा था, “जो हमारे साथ हुआ वह बहुत गलत हुआ. हम गरीब लोग हैं.” उन्होंने बताया कि शुरू में बच्ची बहुत डर गई थी और लगातार रो रही थी लेकिन अब वह ठीक महसूस करने लगी है. “वह हमसे कुछ नहीं कहती थी, लेकिन बार-बार बोलती रहती थी कि पन्ने फट गए. उससे पूछा जा रहा था उसे पन्ने फाड़ने के लिए किसने कहा था? वह क्या ही बताती क्योंकि उसके पीछे कोई था ही नहीं.”

बाल न्याय बोर्ड ने मामले की सुनवाई 22 सितंबर को तय की है लेकिन जांच अधिकारी के आश्वासन को माने तो पुलिस इस मामले को तारीख से बहुत पहले ही बंद कर देगी. फिर भी ऐसा लगता है कि बहुत नुकसान हो ही चुका है. बच्ची के पिता ने मुझसे कहा, “लोग और कमेटी के सदस्य जैसे हमें देखते हैं उससे डर लगता है.”


जतिंदर कौर तुड़ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले दो दशकों से इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और डेक्कन क्रॉनिकल सहित विभिन्न राष्ट्रीय अखबारों में लिख रही हैं.